Saturday, May 14, 2011

जब तुम मुझसे मिलने आओंगी.....!!!



एक दिन जब तुम ;
मुझसे मिलने आओंगी प्रिये,
मेरे मन का श्रंगार किये हुये,
तुम मुझसे मिलने आना !!

तब मैं वो सब कुछ तुम्हे अर्पण कर दूँगा ..
जो मैंने तुम्हारे लिए बचा कर रखा है .....

कुछ बारिश की बूँदें ...
जिसमे हम दोनों ने अक्सर भीगना चाहा था
कुछ ओस की नमी ..
जिनके नर्म अहसास हमने अपने बदन पर ओड़ना चाहा था

और इस सब के साथ रखा है ...
कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
कुछ फूलों की मदमाती खुशबु ,
कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
कुछ ठहरे हुए से कदम,
कुछ आंसुओं की बूंदे,
कुछ उखड़ी हुई साँसे,
कुछ अधूरे शब्द,
कुछ अहसास,
कुछ खामोशी,
कुछ दर्द !

ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने
सिर्फ़ तुम्हारे लिये प्रिये !

मुझे पता है ,
एक दिन तुम मुझसे मिलने आओंगी ;

लेकिन जब तुम मेरे घर आओंगी
तो ;
एक अजनबी खामोशी के साथ आना ,
थोड़ा , अपनी जुल्फों को खुला रखना ,
अपनी आँखों में थोड़ी नमी रखना ,
लेकिन मेरा नाम न लेना !!!

मैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
और तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा

लेकिन जब तुम मुझे छोड़ कर जाओंगी
तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये
हाँ ;
शायद मेरे लिये
हाँ मेरे लिये !!!




Sunday, May 8, 2011

तलाश



माँ को मुझे कभी तलाशना नहीं पड़ा;
वो हमेशा ही मेरे पास थी और है अब भी .. !

लेकिन अपने गाँव/छोटे शहर की गलियों में  ,
मैं अक्सर छुप जाया करता था  ;
और माँ ही हमेशा  मुझे ढूंढती थी ..!
और मैं छुपता भी इसलिए था  कि वो मुझे ढूंढें !!

....और फिर मैं माँ से चिपक जाता था ..!!!

अहिस्ता अहिस्ता इस  तलाश की सच्ची आँख-मिचोली ,
किसी और झूठी तलाश में भटक गयी ,
मैं माँ की गोद से दूर होते गया ...!

और फिर एक दिन माँ का हाथ छोड़कर ;
मैं ; इस शहर की भटकन भरी गलियों में खो गया ... !!

मुझे माँ के हाथ हमेशा ही याद आते रहे .....!!

वो माँ के थके हुए हाथ ,
मेरे लिए रोटी बनाते हाथ ,
मुझे रातो को थपकी देकर सुलाते हाथ ,
मेरे आंसू पोछ्ते हुए हाथ ,
मेरा सामान बांधते हुए हाथ ,
मेरी जेब में कुछ रुपये रखते हुए हाथ ,
मुझे संभालते हुए हाथ ,
मुझे बस पर चढाते हुए हाथ ,
मुझे ख़त लिखते हुए हाथ ,
बुढापे की लाठी को कांपते हुए थामते हुए हाथ ,
मेरा इन्तजार करते करते सूख चुकी आँखों पर रखे हुए हाथ ...!

फिर एक दिन हमेशा के हवा में खो जाते  हुए हाथ !!!

 आज सिर्फ माँ की याद रह गयी है , उसके हाथ नहीं !!!!!!!!!!!

न जाने ;
मैं किसकी तलाश में इस शहर आया था ....




Wednesday, May 4, 2011

ख्वाब



कभी कभी मैं बुनता हूँ ख्वाब
और फिर चुनता हूँ उन्हें हमेशा  ;
अपने जेहन में सहेज कर रखने के लिये;
 
मैं ख्वाब देखता भी हूँ अक्सर
सोते हुए भी और जागते हुए भी
मेरी आखें उन्हें मेरे मन में उतारती है
और लम्हा लम्हा मैं उन्हें जीता हूँ !

कई ख्वाबो के टुकड़े ;
मैं अक्सर रख लेता हूँ ;
अपने तकिये के नीचे ,
ताकि ,
तनहा रातो में उठकर उन्हें अपने सीने से लगा सकूँ
और कभी कभी चूम लेता हूँ उन्हें बेतहाशा .
क्योंकि उन टुकडो में मेरी ज़िन्दगी भी बसी  हुई है .

वक़्त कभी घडी  की सुईयो के साथ चलता है और
कभी चलता है कलेंडर की तारीखों के साथ
लेकिन मेरे ये ख्वाब अक्सर मेरे लिये ;
जमे हुए लम्हे
बनकर मेरे मन में रह जाते है .

ऐसा ही एक ख्वाब बुना था मैंने तेरे संग
और बुनते हुए मैंने चुने थे उसमे रंग ज़िन्दगी के
फिर वो ख्वाब एक दिन ज़िन्दगी के टुकडो में बदल गया;

मैंने बड़े जतन से उन टुकडो को चुना,
और उनमे अपने बुने हुए ख्वाब के लम्हे देखे ;
और उन्हें सहेज कर रख दिया अपने तकिये के नीचे !

बहुत दिन गुजर गये जानां;
अब भी रातो को उठकर उन ख्वाबो  को गले लगता हूँ;
और खामोश दीवारों से तेरा पता पूछता हूँ.....!!!

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...