Sunday, June 7, 2015

||| कविता : ज़िन्दगी ||



भीगा सा दिन,
भीगी सी आँखें,
भीगा सा मन ,
और भीगी सी रात है !


कुछ पुराने ख़त ,
एक तेरा चेहरा,
और कुछ तेरी बात है !

ऐसे ही कई टुकड़ा टुकड़ा दिन
और कई टुकड़ा टुकड़ा राते
हमने ज़िन्दगी की साँसों तले काटी थी !

न दिन रहे और न राते,
न ज़िन्दगी रही और न तेरी बाते !

कोई खुदा से जाकर कह तो दे,
मुझे उसकी कायनात पर अब भरोसा न रहा !

© विजय

2 comments:

  1. कोई खुदा से जाकर कह तो दे,
    मुझे उसकी कायनात पर अब भरोसा न रहा !

    बेहतरीन पर अब तो ज्यादातर लोगों को भरोसा ना रहा

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  2. I am extremely impressed along with your writing abilities, Thanks for this great share.

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