tag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post4010369252825763592..comments2024-03-04T16:16:16.546+05:30Comments on कविताओं के मन से....!!!!: मेरा होना और न होना ....vijay kumar sappattihttp://www.blogger.com/profile/06924893340980797554noreply@blogger.comBlogger40125tag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-49354017948677328262010-10-05T09:52:46.374+05:302010-10-05T09:52:46.374+05:30बहुत सुन्दर !बहुत सुन्दर !Priyanka Sonihttps://www.blogger.com/profile/15984049412165820406noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-32607026903928266302010-07-17T20:15:11.584+05:302010-07-17T20:15:11.584+05:30तब धरा के विषाद और वैराग्य से ही
जन्मता है समाधि क...तब धरा के विषाद और वैराग्य से ही<br />जन्मता है समाधि का पतितपावन सूत्र ....!!!<br />आदरणीय ,समाधी तो परमानंद की अवस्था है ,विषाद से कैसे घट सकती है ? ये मेरा व्यक्तिगत विचार है .<br />कविता हमेशा की तरह बहुत अछि है बस यही बात <br />खटकी सो कह दी .सीमा रानीhttps://www.blogger.com/profile/12435916340014716864noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-65283884340000850502010-07-14T20:31:04.377+05:302010-07-14T20:31:04.377+05:30आत्मा और परमात्मा के एकाकार होने की कामना है यह.आत्मा और परमात्मा के एकाकार होने की कामना है यह.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-15522567303897165002010-07-01T22:42:06.455+05:302010-07-01T22:42:06.455+05:30बहुत सुंदर...
बहुत प्यारी रचना ||
बहुत खूब !!बहुत सुंदर...<br />बहुत प्यारी रचना ||<br />बहुत खूब !!Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank)https://www.blogger.com/profile/14269190208303983206noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-58883366912216027582010-06-15T22:07:30.428+05:302010-06-15T22:07:30.428+05:30:):)सुशील छौक्कर https://www.blogger.com/profile/15272642681409272670noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-6631563755716057412010-06-15T11:38:16.229+05:302010-06-15T11:38:16.229+05:30RECD. BY EMAIL FROM DR.ANITA.....
विजय कुमारजी ,...RECD. BY EMAIL FROM DR.ANITA.....<br /><br /><br />विजय कुमारजी ,<br /> <br />नमस्ते ,<br /> <br />आपकी दार्शनिक कविता पढ़ी और बहोत ही अच्छा लगा की आज के इस भूमंडलीकरण और उपभोक्तावादी संस्कृति में आप दार्शनिक कविता लिख रहे हैं. आपके इस अथक प्रयास के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई.<br /> <br />साधुवाद,<br /> <br />डॉ.अनिता ठक्करvijay kumar sappattihttps://www.blogger.com/profile/06924893340980797554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-54997371711751046472010-06-15T11:36:53.126+05:302010-06-15T11:36:53.126+05:30RECD BY EMAIL FROM MS. SHILPA.....
Bhai Shri vij...RECD BY EMAIL FROM MS. SHILPA.....<br /><br /><br />Bhai Shri vijayji,<br /><br /> Namaste,<br /> '' Raham Nazar karo ab more sai,<br /> Tum bin nahi mujhe maa baap bhai ''.<br /><br />Shayad zindgi ek mukam pe aakar har kisi ko darshnik bana deti hai,aur<br />vaise bhi the stark reality of life is this only.Magar janab abhi se<br />is disha main mudna hai ya nahi ye har kisi ka apna apna nazariya hai.<br />Jahan tak kavita ka saval hai achi darshnik rachna hai.Likhte<br />rahe.Meri taraf se dher saari shubhkamnaye.<br /><br />Regards,<br />Shilpavijay kumar sappattihttps://www.blogger.com/profile/06924893340980797554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-90545875092389296112010-06-04T12:51:18.300+05:302010-06-04T12:51:18.300+05:30मुझे तो आपने हमेशा की तरह एक बार फिर निःशब्द कर दि...मुझे तो आपने हमेशा की तरह एक बार फिर निःशब्द कर दिया है। इतनी सूफी सोच-समझ आज के दौर में शायद ही किसी को होगी। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि केंद्र सरकार के संवेदनशील लोगों के हाथों में आपकी कविताएं आ गयीं, तो आपकी एक एक कविता को एनसीईआरटी (NCERT) के सिलेबस में चलाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।नदीम अख़्तरhttps://www.blogger.com/profile/17057642640754937106noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-17388765761548956062010-06-04T08:02:21.508+05:302010-06-04T08:02:21.508+05:30भावपूर्ण कविता के लिए आभार
किसी का शेर है:
मैँ न...भावपूर्ण कविता के लिए आभार<br /><br />किसी का शेर है:<br /><br />मैँ न होता तो किसी नाम से ज़िन्दा रहता<br />ग़म तो ये है मेरे होने ने मिटाया है मुझेद्विजेन्द्र ‘द्विज’https://www.blogger.com/profile/16379129109381376790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-84983975321493591782010-06-03T20:15:42.762+05:302010-06-03T20:15:42.762+05:30बहुत भावपूर्ण रचना है।बधाई।बहुत भावपूर्ण रचना है।बधाई।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-29257988758453415062010-06-03T20:06:38.808+05:302010-06-03T20:06:38.808+05:30बहूत सूंदर, बेहद भावपूर्णबहूत सूंदर, बेहद भावपूर्णयाज्ञवल्क्यhttps://www.blogger.com/profile/01237702332651413280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-86832877149417498592010-06-03T17:28:30.544+05:302010-06-03T17:28:30.544+05:30bahut khoob ji...
great... ati sundarbahut khoob ji...<br />great... ati sundarkavi kulwanthttps://www.blogger.com/profile/07096995143341561602noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-34105110772480645092010-06-03T14:47:07.526+05:302010-06-03T14:47:07.526+05:30मैं ही रथ हूँ ,
मैं ही अर्जुन हूँ ,
और मैं ही कृष्...मैं ही रथ हूँ ,<br />मैं ही अर्जुन हूँ ,<br />और मैं ही कृष्ण .....!!<br />जीवन के महासंग्राम में ;<br />मैं ही अकेला हूँ और मैं ही पूर्ण हूँ <br />मैं ही कर्म हूँ और मैं ही फल हूँ <br />मैं ही शरीर और मैं ही आत्मा ..<br />मैं ही जीवन हूँ और मैं ही मृत्यु हूँ ,<br />rightly said.jeevan ki paridhi mein maut bhi aik rekha si uske peeche-piche chalti hai.aik samay aata hai jab aadmi hone aur na hone ke anter ko samajhane lagata hai.Yatharthko sahejati jeevan darshan se ot-prot rachna ke liye dhanyawad.Rajivhttps://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-77729543999522550112010-05-31T17:47:36.847+05:302010-05-31T17:47:36.847+05:30recd by email from Shri vijay ...
this is a true ...recd by email from Shri vijay ...<br /><br />this is a true reflection of life in different shades ..vijay kumar sappattihttps://www.blogger.com/profile/06924893340980797554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-76739208737065026282010-05-30T23:48:23.041+05:302010-05-30T23:48:23.041+05:30"प्रभु मेरे, तुम्हारा ही रूप बनू; बहुत खूबसूर..."प्रभु मेरे, तुम्हारा ही रूप बनू; बहुत खूबसूरत रचना है एकदम सात्विक और दार्शनिक.. फिर आपकी तारीफ़ करना तो सूरज को दिया दिखाने के समान है।अबयज़ ख़ानhttps://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-71380306918339366542010-05-29T14:38:30.280+05:302010-05-29T14:38:30.280+05:30bahut sundar vijay bhaibahut sundar vijay bhaiwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-5903773497210741992010-05-26T20:19:38.066+05:302010-05-26T20:19:38.066+05:30Sahi kah rahe hain ......waqayi man oob jata hai
...Sahi kah rahe hain ......waqayi man oob jata hai<br /><br />aapne man ko bahut sakun mila ye sab padh karश्रद्धा जैनhttps://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-56744129045799801012010-05-26T17:13:17.463+05:302010-05-26T17:13:17.463+05:30मैं ही रथ हूँ ,
मैं ही अर्जुन हूँ ,
और मैं ही कृष्...मैं ही रथ हूँ ,<br />मैं ही अर्जुन हूँ ,<br />और मैं ही कृष्ण .....!!<br />बहुत ही सुन्दर भाव हैं...आत्मा और परमात्मा का जुड़ा़व बहुत ही खूबसूरती के साथ रचना मे पिरोया है.यह कविता आध्यात्मिक स्तर पर ले जाती है.आपको बहुत-बहुत बधाई!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-33602427684610655472010-05-25T18:58:36.723+05:302010-05-25T18:58:36.723+05:30अंतिम आनंदमयी सत्य तो यही है की ;
मैं ही रथ हूँ ,
...अंतिम आनंदमयी सत्य तो यही है की ;<br />मैं ही रथ हूँ ,<br />मैं ही अर्जुन हूँ ,<br />और मैं ही कृष्ण .....!!<br />जीवन के महासंग्राम में ;<br />मैं ही अकेला हूँ और मैं ही पूर्ण हूँ<br />मैं ही कर्म हूँ और मैं ही फल हूँ<br />मैं ही शरीर और मैं ही आत्मा ..<br />मैं ही जीवन हूँ और मैं ही मृत्यु हूँ<br /><br />अपार , असीम , अनंत<br />उस परमपिता परमेश्वर के पावन आशीर्वाद से उतरे<br />ये कुछ शब्द.... मात्र शब्द नहीं हैं<br />एक उजाला है....एक दर्शन है.....एक आनंद है<br />जो हमेशा हमेशा इंसान के भीतर ही बसा रहता है<br />उस भव्यता को महसूस करने के लिए<br />कुछ ऐसे ही वियोगी क्षणों से गुज़रना होता है<br />आपकी उपासना , आराधना, अर्चना<br />आपके ऐसे ही पलों का प्रतिफल है<br />और यही प्रतिफल ...आपकी ये कविता है<br />भव्या कविता<br />दिव्या कविताdaanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-3569254556459796502010-05-24T19:25:34.630+05:302010-05-24T19:25:34.630+05:30प्रभु मेरे ,
तुम्हारा ही रूप बनू ;
तुम्हारा ही भाव...प्रभु मेरे ,<br />तुम्हारा ही रूप बनू ;<br />तुम्हारा ही भाव बनू ;<br />तुम्हारा ही जीवन बनू ;<br />तुम्हारा ही नाम बनू ;<br />बहुत ही अर्थपूर्ण कविता है. आपने श्रीमद भगवद गीता को बहुत अच्छी तरह से सम्माहित किया है. ईश्वर ही सत्य है. हम् सत्य को पा लेंगे तो ईश्वर भी हमें मिल जाएगा और उसका आशीर्वाद भी. परमपिता परमेश्वर का आशीर्वाद सदा आपके साथ रहे यही प्रार्थना है, यह कविता जीवन के सत्य को समझाने में पूर्णतया सफल रही है.नरेश चन्द्र बोहराhttps://www.blogger.com/profile/02704671927129198311noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-89669888192929812352010-05-24T19:03:02.536+05:302010-05-24T19:03:02.536+05:30मेरा होना और न होना....
सिर्फ शुन्य की प्रतिध्वनि ...मेरा होना और न होना....<br />सिर्फ शुन्य की प्रतिध्वनि ही है....<br /><br />शून्य से शुरू हो कर शून्य पर ही समाप्त होती जीवन की डोर .... इंसान तो मात्र मोहरा है प्रभू के हाथोंमें ..... बहुत ही पावस .. सागर सी शांत ... रचना ..दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-11591073989220237742010-05-24T18:47:14.849+05:302010-05-24T18:47:14.849+05:30सुन्दर सात्विक चिंतन....
ईश्वर आपपर सदैव अपनी कृपा...सुन्दर सात्विक चिंतन....<br />ईश्वर आपपर सदैव अपनी कृपादृष्टि बनाये रखें और सार्थक सुन्दर रचवाते रहें....रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-50308779605362380322010-05-24T16:55:21.651+05:302010-05-24T16:55:21.651+05:30आपकी कविता ने याद दिला दिया सूफ़ी कलाम कि:
इसी तला...आपकी कविता ने याद दिला दिया सूफ़ी कलाम कि:<br />इसी तलाश-ओ-तजस्सुस में खो गया हूँ मैं,<br />जो मैं नहीं हूँ तो क्यूँ हूँ, जो हूँ तो क्या हूँ मैं।<br />आनन्द आ गया आपकी कविता पढ़कर।<br />आपकी कविता पढ़कर जन्मी एक तात्कालिक कविता आपको सादर भेंट किये बिना रुक नहीं पा रहा हूँ।<br /><br />मैं नहीं जानता,<br />लोग कहते हैं,<br />यह सृष्टि ब्रह्मस्वप्न है।<br />लोग कहते हैं,<br />यह सृष्टि भ्रम है। <br />तो क्या ब्रह्मस्वप्न भी भ्रम हो सकता है?<br />अजीब प्रश्न है,<br />सबके अपने उत्तर, <br />सबकी अपनी व्याख्या,<br />और दूर तपती दोपहर में,<br />एक तरुवर की छाया तलाश<br />वह कुछ पानी के घड़े रखे,<br />तन्मयता से पानी पिला रहा है,<br />हर आते जाते प्यासे को।<br />उसे नहीं मालूम<br />ज्ञान की प्यास की क्या होती है। <br />उसके लिये तो पानी पिलाना <br />उसकी रोजी रोटी है।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-65749512061057766652010-05-24T15:07:09.345+05:302010-05-24T15:07:09.345+05:30द्वैत से अद्वैत की ओर ले जाती कविता है। सुंदर है। ...द्वैत से अद्वैत की ओर ले जाती कविता है। सुंदर है। लेकिन आप के ब्लाग की सजावट बहुत ही असुंदर है। काले रंग की पृष्ठभूमि पर रंगीन अक्षर पढ़ने पर पाठक पर की आँखों पर बहुत तनाव छोड़ते हैं। सफेद या हलके रंग की पृष्ठभूमि पर काले या गहरे रंग के अक्षर सदा ही सहूलियत भरे होते हैं। आशा है सजावट को दुरुस्त करेंगे।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3930257775613871058.post-20305156256397690642010-05-24T14:35:28.758+05:302010-05-24T14:35:28.758+05:30धरा के विषाद और वैराग्य से ही जन्मता है समाधि का स...धरा के विषाद और वैराग्य से ही जन्मता है समाधि का सूत्र <br />वाकई पहली बार सही विश्लेषण किया है आपने <br />ये विषाद और वैराग्य ही मोह ख़त्म करता है ,जब मोह ख़त्म होता है तब ही प्रभु मिलते हैं <br />लेकिन अंतिम पैरे में फिर भटक रहे हैं आप <br />आप तो ईश्वर ही हैं ,फिर ईश्वर बनने की चाह क्यों <br />रश्मिरथी का वह अनुच्छेद पढ़िए ----<br />यह देख गगन मुझमें लय है ,यह देख पवन मुझमें लय है.............<br />मुझे तो पूरी याद है पर लम्बी है नहीं तो लिख देतीalka mishrahttps://www.blogger.com/profile/01380768461514952856noreply@blogger.com