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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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फूल,चाय और बारिश का पानी बहुत दिनों के बाद , हम मिले... हमें मिलना ही था , प्रारब्ध का लेखा ही कुछ ऐसा था . मिलना , जुदा होना औ...
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रूह की मृगतृष्णा में सन्यासी सा महकता है मन देह की आतुरता में बिना वजह भटकता है मन प्रेम के दो सोपानों में युग के सांस ल...
अगर आंसुओं कि जुबान होती तो ..
ReplyDeleteसच झूठ का पता चल जाता ..
जिंदगी बड़ी है .. या प्यार ..
इसका फैसला हो जाता...
वाह जी विजय जी अच्छा लिखा आपने
सच कहा....
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है, प्रशंसनिए
khubsurat bhav.....badi saralta se piroye hain aapne..
ReplyDelete...Ehsaas!