Friday, May 14, 2010

अलविदा

सोचता हूँ 
जिन लम्हों को ;
हमने एक दूसरे के नाम किया है
शायद वही जिंदगी थी !

भले ही वो ख्यालों में हो ,
या फिर अनजान ख्वाबो में ..
या यूँ ही कभी बातें करते हुए ..
या फिर अपने अपने अक्स को ;
एक दूजे में देखते हुए हो ....

पर कुछ पल जो तुने मेरे नाम किये थे...
उनके लिए मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ !!

उन्ही लम्हों को ;
मैं अपने वीरान सीने में रख ;
मैं ;
तुझसे ,
अलविदा कहता हूँ ......!!!

अलविदा !!!!!!

19 comments:

  1. सचमुच बहुत ही सुन्दर और अर्थपूर्ण कविता है विजय कुमार जी.

    ReplyDelete
  2. vijaybhai, is tarah ki alvida behad gambheer he.isame beintahaa prem kee peeda he aour ek sachchaai.

    ReplyDelete
  3. बहुत अच्छी कविता विजय कुमार जी।
    आपकी ब्लॉग फीड में शब्द दिखाई नहीं देते - आप डिफॉल्ट कलर की बजाय उन्हे सफेद रंग में लिखते हैं। अत: आपकी पोस्ट बहुधा अनपढ़ी चली जाती है।

    ReplyDelete
  4. उन्ही लम्हों को ;
    मैं अपने वीरान सीने में रख ;
    मैं ;
    तुझसे ,
    अलविदा कहता हूँ ......!!!

    " उन पलो को जेहन में हमेशा रखते हुए भी अलविदा .....बहुत मुश्किल और आहात करने वाला निर्णय .."
    regards

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  6. DHNYA KAR DIYA PRABHU !

    आस -पास होते तो आज आपके उस हाथ को चूम लेता जिससे ये अद्भुत काव्य सृजित हुआ

    बधाई !

    ReplyDelete
  7. ऐसे ही जिन्दगी में न जाने कितने लमहे संजोकर हम रखते हैं फिर एक दिन उन्हें कह देते हैं अलविदा........

    ReplyDelete
  8. सोचता हूँ
    जिन लम्हों को ;
    हमने एक दूसरे के नाम किया है
    शायद वही जिंदगी थी !
    जी हाँ जितना कोई साथ दे दे काफ़ी है……………शायद उन ही लम्हों मे ज़िन्दगी छुपी होती है या शायद वो ही ज़िन्दगी जीने का सामान बन जाते हैं।बहुत सुन्दर भाव्।

    ReplyDelete
  9. ये अलविदा क्यों कहना पड़ता है, बड़ा ही बुरा लगता है.
    :(
    पर कभी-कभी न चाहते हुए भी कहना पड़ता है और यही जीवन है...............
    बस हम इतना ही कर सकते हैं कि उन्हें अपनी खूबसूरत यादों के रूप में बसा लें. :)

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...अच्छे भावो की अभिव्यक्ति ....////पर हम आपसे अलविदा नहीं कहेंगे .....आप शब्दों का सफ़र जारी रखे .....हम फिर आयेंगे अपने विचार लेकर http://athaah.blogspot.com/

    ReplyDelete
  11. ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई से
    खुदा किसी को किसी से मगर जुदा ना करे
    विजयजी; कमबख्त ये जुदाई ही तो नहीं सुहाती. अलविदा क्यूँ कहना पड़ता है?

    ReplyDelete
  12. vireh aur prem ras se ot-prot ye zazbato ki manjusha bahut acchhi lagi.

    ReplyDelete
  13. विजय जी
    मां सिर्फ मां है। इस शब्‍द में इतना गुरुत्‍व है, कि देह नतमस्‍तक हो जाती है।
    आपकी सुंदर रचना पढ़ कर आनंदविभोर हो गया।
    बधाई।
    "आकुल"

    ReplyDelete
  14. बहुत ही खूबसूरत रचना है विजय जी,बधाई हो। कायल हो गई मैं आपकी।

    ReplyDelete
  15. मार डाला..मार डाला।।।।।

    ReplyDelete

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...