Thursday, January 27, 2011

अपरिचित ज़िन्दगी ?


जब कभी सोचा की
ज़िन्दगी क्या है तो बस वही पल याद आये
जो तेरे साथ उस अनजानी दुनिया में गुजारे थे...

उन अजनबी रास्तो पर
अक्सर यूँ भटकते थे
जैसे वो हमारे साँसों के लिए ही बने हुए है
मौन के संग धडकती हुई हमारे दिल की
अनजान धड़कने  कुछ न कह पाती थी...
सिर्फ प्यार के मीठे बोल ही होते थे जुबान पर….

हम  बहुत  दूर तक  यूँ ही
साथ साथ चला करते थे...
कुछ तन्हाईयाँ तुम्हारी होती थी
और कुछ मेरी
कुछ मेरे सवाल होते थे ,
कुछ तुम्हारे जवाब .

कोई साया नहीं होता था ,
हमारी अपनी ज़िन्दगी का ;
उस सफ़र में .

न तुम छेडती थी ;
अपनी बीती ज़िन्दगी की कोई बात
न मैं  कहता था अपनी कोई आपबीती

बस चुपचाप चलते ही जाते थे ...
एक दूजे के लिए बनकर ,
हाथो में हाथ डाल कर ….

मैं कौन  या तुम कौन
इन बातो का क्या वास्ता ,
जब आलिंगन में
तुमने मुझे अपने बाँध लिया हो .

सारी बातो को अब बस रहने दो .

आओ एक बार फिर से चले उन रास्तो पर
जो अजनबी होकर भी नहीं थे अजनबी
और जो साँसे सिर्फ हमारी ही थी
और उन पर एक दूजे का नाम लिखा हुआ था

तुम ही बताओ जानां
कौनसी ज़िन्दगी अपरिचित है ,

तुम्हारे संग जिन साँसों ने ख्वाब देखे ,
वो ज़िन्दगी.......!!!!
या
वो,
जो इस जानी हुई दुनिया में अनजाने से गुजार रहे है ..

35 comments:

  1. परिचित और अपरिचित का भेद है इन राहों में।

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  2. तुम ही बताओ जानां
    कौनसी ज़िन्दगी अपरिचित है ,
    तुम्हारे संग जिन साँसों ने ख्वाब देखे ,वो ज़िन्दगी.......!!!!
    या वो, जो इस जानी हुई दुनिया में अनजाने से गुजार रहे है ..


    पता नही विजय जी कौन सी ज़िन्दगी परिचित होती है मगर भावों का बहुत ही सुन्दर संगम है …………दिल मे गहरे उतरती हैं पंक्तियाँ…………एक कसक के साथ ।

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  3. बहुत ही सुंदर रचना....दिल को छु गयी।

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  4. अति सुंदर रचना, धन्यवाद

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  5. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ.

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  6. बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!

    Happy Republic Day.........Jai HIND

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  7. कुछ तो है जो अपरिचित सा है .....जिसके लिए ताउम्र हम भटकते रहते हैं .....

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  8. सही कहा आपने विजय जी, उसी अपरिचित से परिचय पाने में लगी है सारी दुनिया।

    ---------
    जीवन के लिए युद्ध जरूरी?
    आखिर क्‍यों बंद हुईं तस्‍लीम पर चित्र पहेलियाँ ?

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  9. बहुत सुंदर रचना...

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  10. तुम ही बताओ जानां
    कौनसी ज़िन्दगी अपरिचित है ,
    तुम्हारे संग जिन साँसों ने ख्वाब देखे ,वो ज़िन्दगी.......!!!!
    या वो, जो इस जानी हुई दुनिया में अनजाने से गुजार रहे है ..mujhe aapna likha sher yaad aa gaya..
    Kaabhi hans liye ,kabhi ro liye,
    zindagi hum to har haal main tere ho liye.
    Vijay ji..zindagi mere khayaal se hamesha aprichit hi rahi hai.gar zindagi parichit hoti to taa umra zindagi ki talaash na karte.behadd kasak liye hue bhaav, sunder rachna.
    Baadhayi sweekar karen.
    Neelam.

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  11. वाह!! बहुत खूबसूरत रचना है .... अगर अपरिचित परिचित हो जाये तो शायद वो ज़िन्दगी का अंत होगा ...

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  12. मन के दोनो पहलूयों को सु8न्दर शब्द दिये हैं । परिचित अप्रिचित तो वक क्र हसथ मे है जीना आदमी के हाथ मे। सुन्दर रचना के लिये बधाई।

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  13. kavita padkar kkuch pal kko laga ke hum apne tanhae ke duniya me wapas chale gay. mere bete dino ka saz gunguna gae "aprchit zindgee"

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  14. मन की ऊहापोह की बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..

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  15. recd. by email :

    प्रिय vijay
    एक अच्छी कविता पढने को दी , आभार
    संवेदनशील कविता है , बधाई
    Dr. Prem Janmejai

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  16. Vijay ji,
    Really you have written nice poem. It touches our soul. Keep it up.
    -Sanjeet Mandal, Chief Reporter Prabhat khabar Deoghar, Jharkhand.

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  17. अच्छे भाव---पर यार कुछ लय तान तो आनी चाहिये ताकि कविता कहलाये.....

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  18. परिचित और अपरिचित के बीच का रेशमी डोर ही तमाम उहापोह का जबाब होता है ....उस जबाब को सुन्दर शब्दों में ढालने की सुन्दर कोशिश .... सुन्दर रचना ...शुभकामना

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  19. जिसे जानने में लग गई है उम्र सारी
    उसे न पहचान पाई पहचान हमारी
    कार्यशाला के समाचार

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  20. Very heart Rendering composition, Aparachit Zindagi , loved it ......

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  21. बहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना।

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  22. तुम्हारे संग जिन साँसों ने ख्वाब देखे ,
    वो ज़िन्दगी.......!!!!
    या वो,
    जो इस जानी हुई दुनिया में अनजाने से गुजार रहे है ..

    विजय भाई ,,,
    एक और बहुत ही मन मोहक , मनभावन रचना
    पढवाने के लिए आभार ...
    आपकी रचनाओं से परिचित होना ही
    जिंदगी की राहों से परिचय पाना है ... !!

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  23. SEEDHE - SAADE SHABDON MEIN KAHEE
    EK ATI SUNDAR AUR SAJEEV KAVITA HAI. MUN KO BHARPOOR CHHOOTEE HAI .

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  24. अल्लामा इकबाल साहब की ये पंक्तियां आपकी कविता पढ़कर याद आती हैं। प्रीत के जिस रूप को उन्होंने कुछ अलग ढंग से पेश किया था, उसे आपने अपने अंदाज में पेश किया है लेकिन खूबसूरती में इकबाल साहब के बराबर ही आपकी कविता खड़ी नजर आ रही है मुझको। वैसे आपने ये कैसे कह दिया कि मैं आपसे गुस्सा हो सकता हूं। अरे भई सूरज के बिना दिन होता है कहीं। इसी प्रकार मेरा एक भी दिन आपका नाम लिये बिना नहीं गुजरता है। खैर, मैं काफी दिनों के बाद अभी ऑफिस में शांति से बैठा हूं। बहुत काम था। इसलिए कमेंटिंग में देर हुई। अरे, मैं तो भूल ही गया कि अल्लामा इकबाल साहब की पंक्तियां शाया करनी हैं, ये रहा....

    सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती
    आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें

    दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ
    दामान-ए-आस्माँ से इस का कलस मिला दें

    हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे- मीठे
    सारे पुजारियों को मय प्रीत की पिला दें

    शक्ती भी शान्ती भी भक्तों के गीत में है
    धरती के वासियों की मुक्ती पिरीत में है

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  25. email recd by shri pran sharma ji :

    प्रिय भाई विजय जी ,

    आपसे एक मुद्दत के बाद पत्र व्यवहार
    कर रहा हूँ . श्री महावीर शर्मा के दिवंगत होने से
    सक्रियता कम हो गयी थी . उनका जाना दिल के
    दुखदाई था .

    आपकी नयी कविता पढी है . आनंद
    आ गया है मैं आपकी लेखनी का कायल हूँ .

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  26. विजय जी, एक और अद्भुत कविता पढने को मिली आपकी लेखनी से. मन की गांठें खोलती है आपकी यह कविता.

    प्रवाह जितना बढ़िया, भाव भी उतने ही ह्रदयस्पर्शी. साथ रहकर तन्हाइयों की बात ज़िंदगी और उसके अनुभवों को
    एक नया आयाम देती हैं.

    बेहद भावपूर्ण कविता देने के लिए आपको धन्यवाद.

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  27. aapkee rachna का rasaswadan ...ओह...

    अपने aap me yah एक bejod anubhav hua करती hai...

    lajawaab kar dene wali rachna...

    kya kahun और ..

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  28. उम्मीद है जानां ने अब तक जवाब दे दिया होगा विजय जी .....
    सुंदर रचना ......

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  29. आओ एक बार फिर से चले उन रास्तो पर
    जो अजनबी होकर भी नहीं थे अजनबी
    और जो साँसे सिर्फ हमारी ही थी
    और उन पर एक दूजे का नाम लिखा हुआ था

    आह ....
    बहुत सुन्दर लेखन
    बहुत करीब सी लगी पंक्तियाँ
    आभार

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  30. आलोक शर्माFebruary 9, 2011 at 12:13 PM

    बहुत अच्‍छी कवि‍ता लि‍खी गई है। शब्‍दों को गहराईयों में जाकर चुना गया है। अति‍ सुंदर पुनश्‍च बधाई।

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  31. पहले पैरा में:

    जो तेरे साथ उस अनजानी दुनिया में गुजारी थी

    को

    जो तेरे साथ उस अनजानी दुनिया में गुजारे थे...

    कर लिजिये क्यूँकि बात पल की चल रही है जो याद आये न कि जिन्दगी.

    उचित लगे तो सुधार कर इसे डिलिट कर दिजियेगा. सुझाव मात्र है.

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  32. बहुत भावपूर्ण रचना..आनन्द आ गया पढ़कर.

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  33. आदरणीय समीर जी सुधार कर लिया है आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
    अपना प्यार यूँ ही बनाये रखे

    आपका विजय

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