Friday, March 23, 2012

भोर





भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा,

रवि ने किया दूर ,जग का दुःख भरा अन्धकार ;
किरणों ने बिछाया जाल ,स्वर्णिम और  मधुर
अश्व खींच रहें है रविरथ को अपनी मंजिल की ओर ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी रथ का सार्थ बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

सुंदर सुबह का स्वागत ,पक्षिगण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में और  भौंरें मस्त तान गुंजा रहे ,
स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने ,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

प्रभात की ये रुपहली किरने ,प्रभु की अर्चना कर रही
साथ ही इसके ; घंटियाँ मंदिरों की एक मधुर धुन दे रही ,
मन्त्र और श्लोक प्राचीन , देवताओं को पुकार रही,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

प्रक्रति ,जीवन के इस नए भोर का स्वागत कर रही
प्रभु की सारी सृष्टि ,इस भोर का अभिनन्दन कर रही ,
और वसुंधरा पर ,एक नए युग ,एक नये जीवन का आव्हान कर रही ,
तू भी हे मानव ,इस जीवन रूपी सृष्टि का एक अंग बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

43 comments:

  1. वाह!!!!

    बहुत सुन्दर आह्वान..........
    सादर.

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  2. प्रकृति का सुन्दर चित्रण

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  3. very optimistic... i wish i cud believe dat lyf is dis beautiful...

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  4. सुन्दर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने प्रेरणा मिल रही है....बहुत सुन्दर रचना!

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  5. नव वर्ष मंगलमय हो |

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  6. वाह अत्यंत सुन्दर आह्वान्………नव संवत्सर मंगलमय हो।

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  7. आपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।

    ----------------------------
    कल 24/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. भोर का सुन्दर चित्रण ....शब्द रचना बहुत खूबसूरत हैं



    पर आज कल ऐसा होता कहाँ हैं ...ना कोयल की कुक ...और ना कोई मंदिर की आरती की पुकार सुनता हैं ...जिनका घर मंदिर के करीब हैं वो भी सरकार को कहें कर स्पीकर बंद करने की मांग करते हैं ...वक्त बदल रहा हैं ...फिर भी इस तरह की प्रभु की पुकार सुन कर पढ़ कर अच्छा लगता हैं

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  9. बहुत सुंदर रचना ... प्रेरक

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  10. बहुत ही सुन्दर रचना ! नव संवत्सर की आपको हार्दिक शुभकामनाएं !

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  11. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :

    आदरणीय विजय जी,

    बहुत ही सुन्दर रचना है. भोर के समय की अनुपम छटा है आपकी इस रचना में. भोर का ऐसा वर्णन इससे पहले मैंने निदा फाजली साहब की रचना में पढ़ा था.
    अद्भुत रचना है. आपको बधाई.

    ---शिव

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  12. VIJAY JI , AAPKEE EK AUR SHRESHTH RACHNA KE LIYE AAPKO BADHAEE
    AUR SHUBH KAMNA .

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  13. बहुत ही बढ़िया प्रेरणात्मक प्रस्तुति, नव संवत की हार्दिक शुभकामनायें....

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  14. भोर भयी, अब नींद तजो रे...

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  15. बहुत उम्दा रचना!!

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  16. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :

    आदरनीय महोदय
    अच्छी रचना है। सुबह का आभास हुआ।

    आपका
    भूपेन्द्र कुमार दवे

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  17. खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
    फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,bahut achchi prastuti.

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  18. सुन्दर रचना...
    सादर बधाई.

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  19. बहुत सुंदर और प्रेरक आह्वान...

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  20. कितनी भी ये रात हसीं हो ... फिर भी सहर की बात अलग है ...:) .. बेहद खूबसूरत रचना ... !!

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  21. शानदार अभिव्यक्ति!!!

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  22. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :

    Shiv Pathak :
    मै बहुत ही साधरण पाठक हु लेकिन आप की कविता अच्छी है

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  23. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

    शुभकामनायें.

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  24. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :

    प्रिय विजय,
    कविता भोर भेजने के लिए आभार.
    देवेन्द्र चौबे

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  25. ईमेल द्वारा कमेन्ट :

    MAHENDRA GUPTA

    तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा
    !तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा !
    मानव को जगाती,कुछ करने को आवाहन करती सुन्दर कृति

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  26. प्रियवर विजय कुमार जी
    सस्नेहाभिवादन !

    सुंदर गीत लिखा है आपने …
    सुंदर सुबह का स्वागत पक्षीगण ये कर रहे
    रही कोयल कूक बागों में और भौंरें मस्त तान गुंजा रहे ,
    स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ;
    तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा !
    भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

    खिलकर कलियों ने खोले , सुंदर होंठ अपने ,
    फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
    पर्णों पर पड़ी ओस , लगी मोतियों सी चमकने ,
    तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
    भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

    वाह वाह …
    आनंद आ गया …


    ~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  27. waah bahut sunder bhor good morning , prakruti ke karib ,badhai

    kabhi kabhi hamare blog ko bhi samay dijiye vijay ji

    nayi post par swagat hai

    http://sapne-shashi.blogspot.com

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  28. खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
    फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
    पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने ,
    तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
    भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
    सुंदर गीत लिखा है

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  29. मंदिर की घंटी की तरह मधुर-मधुर बजती हुई अति सुन्दर काव्य..लयबद्ध करती हुई . अलग सी अनुभूति दे रही है ..बहुत-बहुत बधाई..

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  30. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    ....... रचना के लिए बधाई स्वीकारें !!!

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  31. bhut sundar abhivyakti hai mn me trotajgi bhr dene vali kavita hai.

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