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सरहद
सरहदे जब भी बनी ,
देश बेगाने हो गये
और इंसान पराये हो गये !!!
हमने भी एक सरहद बनायी है ;
एक ही जमीन को
कुछ अनचाहे हिस्सों में बांटा है ;
उस तरफ कुछ मेरी तरह ही ;
दिखने वाले लोग रहते है ;
इस तरफ के बन्दे भी कुछ ;
मेरी तरह की बोली बोलते है ;
फिर ये सरहदें क्यों और कैसी ..
जब से हम अलग हुए ,
तब से मैं ...इंसान की तलाश में ;
हर जगह अपने आप को ढूँढता हूँ
कभी इस तरफ के बन्दे जोश दिखाते है
कभी उस तरफ से नफरत की आग आती है
कभी हम मस्जिद तोड़ते है
कभी वो मन्दिर जलाते है ...
देश क्या अलग हुए .
धर्म अंधा हो गया
और खुदा और ईश्वर को अलग कर दिया
सुना है कि ;
जब सियासतदार पास नहीं होते है
तो ;
दोनो तरफ के जवान पास बैठकर
अपने बीबी -बच्चो की बातें करते है
और साथ में खाना खातें है
मैं सोचता हूँ
अगर सियासतदारों ने ऐसे फैसलें न किये होतें
तो आज हम ईद -दिवाली साथ मनाते होतें !!!!