सुबह से शाम , और शाम से सुबह ;
ज़िन्दगी यूँ ही बेमानी है दोस्तों ....
किसी अनजान सपने में ,
एक जोगी ने कहा था ;
कि, एक नज़्म लिखो तो कुछ साँसे उधार मिल जायेंगी ...
शायर हूँ मैं ;
और जिंदा हूँ मैं !!!
आसमान के फरिश्तों ;
जरा झुक के देखो तो मुझे....
मुझ जैसा शायर सुना न होंगा ,
मुझ जैसा इंसान देखा न होंगा ...
खुदा मेरे ;
ये साँसे और कितने देर तलक चलेंगी !!
जब तक दिल में गज़ल है...और कलम चल रही है,साँसें चलती रहेंगी..
ReplyDeleteसादर
अनु
बेमानी ज़िन्दगी ही सही शायरी तो हैं न .. ख़ुदा को रश्क होता है तो होने दे..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteBhot shandar sir.. Ye me spni site par daal raha hun,. :)
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ...
ReplyDeleteकिसी की दुआयों में भी इतना असर ना था कि
कुछ पल का सुकून मिलता मुझे ,उसकी पनहा में |...अंजु (अनु)
बहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कही है..
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