Saturday, July 27, 2013

प्रेमपत्र नंबर : 1409

प्रेमपत्र नंबर : 1409

जानां ;

तुम्हारा मिलना एक ऐसे ख्वाब की तरह है , जिसके लिए मन कहता है कि , कभी भी ख़त्म नहीं होना चाहिए ... 

तुम जब  भी मिलो , तो मैं तुम्हे कुछ देना चाहूँगा , जो कि तुम्हारे लिए बचा कर रखा है ......................................

एक दिन जब तुम ;
मुझसे मिलने आओंगी प्रिये,
मेरे मन का श्रंगार किये हुये,
तुम मुझसे मिलने आना !!

तब मैं वो सब कुछ तुम्हे अर्पण कर दूँगा ..
जो मैंने तुम्हारे लिए बचा कर रखा है .....
कुछ बारिश की बूँदें ...
जिसमे हम दोनों ने अक्सर भीगना चाहा था
कुछ ओस की नमी ..
जिनके नर्म अहसास हमने अपने बदन पर ओड़ना चाहा था
और इस सब के साथ रखा है ...
कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
कुछ फूलों की मदमाती खुशबु ,
कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
कुछ ठहरे हुए से कदम,
कुछ आंसुओं की बूंदे,
कुछ उखड़ी हुई साँसे,
कुछ अधूरे शब्द,
कुछ अहसास,
कुछ खामोशी,
कुछ दर्द !

ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने
सिर्फ़ तुम्हारे लिये प्रिये !

मुझे पता है ,
एक दिन तुम मुझसे मिलने आओंगी ;
लेकिन जब तुम मेरे घर आओंगी
तो ;
एक अजनबी खामोशी के साथ आना ,
थोड़ा , अपनी जुल्फों को खुला रखना ,
अपनी आँखों में थोड़ी नमी रखना ,
लेकिन मेरा नाम न लेना !!!

मैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
और तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा
लेकिन जब तुम मुझे छोड़ कर जाओंगी
तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये
हाँ ;

शायद मेरे लिये
हाँ मेरे लिये !!!

तुम्हारा ही
मैं .........................................

66 comments:

  1. sundar bhavon kee abhivyakti .aabhar

    ReplyDelete
    Replies
    1. देव नागरी मे^ क्यो नही

      Delete
  2. अभी बस पढ़ा है ....जवाब इसका कल दूंगी

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  4. मैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
    और तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा
    लेकिन जब तुम मुझे छोड़ कर जाओंगी
    तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
    किसी और जनम के लिये
    किसी और प्यार के लिये
    हाँ ;

    शायद मेरे लिये
    हाँ मेरे लिये !!!

    तुम्हारा ही
    मैं ..................एक बार फिर दिल को छू गयी अभिव्यक्ति। बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं । बधाई ।

    ReplyDelete
  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ५ रुपये मे भरने का तो पता नहीं खाली हो जाता है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  6. और इस सब के साथ रखा है ...
    कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
    कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
    कुछ फूलों की मदमाती खुशबु ,
    कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
    कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
    कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
    कुछ ठहरे हुए से कदम,
    कुछ आंसुओं की बूंदे,
    कुछ उखड़ी हुई साँसे,
    कुछ अधूरे शब्द,
    कुछ अहसास,
    कुछ खामोशी,
    कुछ दर्द !

    आSह और वाह भी ।

    ReplyDelete
  7. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

    ReplyDelete
  8. मैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
    और तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा
    लेकिन जब तुम मुझे छोड़ कर जाओंगी
    तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
    किसी और जनम के लिये
    किसी और प्यार के लिये
    हाँ ;

    शायद मेरे लिये
    हाँ मेरे लिये !!
    --अलौकिक प्रेम की पराकाष्ठा की बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति !
    latest post हमारे नेताजी
    latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु

    ReplyDelete
  9. PREM - KAVITAAYEN LIKHNE MEIN AAPKAA KOEE JAWAAB NAHIN . EK - EK
    SHABD PREM MEIN RACHAA - BASAA HOTA HAI .

    ReplyDelete
  10. अंतस को छूती बहुत भावपूर्ण रचना...

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर ,,उचित और सुंदर शब्दों और भावों से सजी कविता
    बधाई हो !

    ReplyDelete
  12. ati sunder abhivykti
    sabdon ke pridhan pahan
    milney ki anubhuti
    suryakant

    ReplyDelete
  13. भावपूर्ण अभिव्यक्ति। आभार।

    ReplyDelete
  14. लो भई आ गए हौसला बढाने :)

    कितना कुछ सहेज रखा है तुमने अपनी पोटली में परन्तु आज के भौतिक युग में यह किस काम का। इतना देने के बाद फ़िर कहते हो नाम भी न लेना। यहाँ तो एक सम्मान पत्र देने के बाद लोग बरसों ढिंढोरा पीटते हैं। इस समर्पण इदं नमं का भाव दिखाई देता है, हृदय से समर्पण। इसके साथ कुछ पापर्टी की वसीयत भी कर देते तो सोने में सुहागा हो जाता और भविष्य में "जानां" के काम आती :) :)

    ReplyDelete
  15. हर पंक्ति में समर्पण की गहराई है, कई बार पढ़ने योग्य।

    ReplyDelete
  16. क्या बात है...गज़ब!! बेहतरीन!!

    ReplyDelete
  17. Email Comment :

    Of course Good poem...
    Jagdish Kinjalk, Editor- ivyalok, Bhopal.

    ReplyDelete
  18. Email Comment :

    Poems are excellent;everybody should like and appreciate.
    swargvibha.in

    ReplyDelete
  19. email comment :

    nice poem sirji don;t minnd for u r e-mail..........!
    pradeep kag

    ReplyDelete
  20. Email comment :

    प्रिय बन्धु,
    कवि भोक्ता नहीं द्रष्टा हो । कवि की यही सामर्थ्य उसे सामान्य से विशेष बनाती है ।

    P D Mishra, President Maharshi Agastya Vedic Sansthanam, www.vishwatm.com, prabhu-mishra.blogspot.com,YouTube-brahmram, Facebook- Prabhu Mishra

    ReplyDelete
  21. Email comment :

    Sappatti ji,

    Kavita bahut bhavpuran aur aseem prem urjaa se bhari padi hai...

    Aisi utkrisht kavita padhwane ke liye dhanyabad... Aap kahaniyan bhi
    achchhi likhte hain...

    aapka anuj

    Mahavir Uttranchali

    ReplyDelete
  22. Email comment :

    VIJAYJI APKI KAVITA NEY APKO TO "VIJAY" DILAI JISNEY PARI USKO BHI "VIJAY" MILI,BAHUT BHAO BHARI KAVITA, DHANYAWAD

    Mukul Joshi

    ReplyDelete
  23. Email Comment :

    ]Vijay ji,

    I have read your poem. It reminds me of a very popular song from the film 'Ijaazat' -

    "Mera kuchh saamaan tumhaare paas pada hai".

    Best wishes,

    Mahendra.

    ReplyDelete
  24. बहुत सुन्दर....
    बहुत प्यारी अभिव्यक्ति.....

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  25. प्रेम और समर्पण की सुन्दर प्रस्तुति …शुभकामनायें

    ReplyDelete
  26. १४०९ ख़त ....?

    बहुत बहुत बधाई .....!

    १४०८ खतों को भी प्रकाशित कीजिये .....!!

    ReplyDelete
  27. Saare khat padhwa hi dijiye sir...
    Bahut sundar....

    ReplyDelete
  28. बहुत ही नर्म एवँ नाज़ुक सी अभिव्यक्ति ! अति सुंदर !

    ReplyDelete
  29. Smrition ko sanjona aur shabdon me pirona jo kavita ban jaye.... shayed aapki pratibha ka praman hai... bahumukhi pratibha waale log hi aisa kar sakte hain... acchha laga. kalam chup na ho.. khyal rakhiyega. Dhayawad.

    ReplyDelete
  30. email comment :

    दिल से लिखी गई कविता अच्छी- सरल। बधाई
    aabha mishra

    ReplyDelete
  31. बहुत कम लोगों में सामर्थ्य हुआ करती है प्रेम को ऐसे ओढ़ और बिछा पाने की ...
    बधाई रचना हेतु ...

    ReplyDelete
  32. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  33. विजय जी..
    प्रेम का बहुत ही अद्भुत वर्णन और सुंदर अभिव्यक्ति है। कविता में आध्यात्मिकता और साधना झलकती है। बहुत की सुंदर रचना .... बधाई हो.....>>>>

    ReplyDelete
  34. भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बधाई...|

    प्रियंका

    ReplyDelete
  35. यह कविता प्रेम को हर एंगेल से समझने में सहायक है. सुन्दर काव्य के लिए आपको बधाई.

    ReplyDelete
  36. प्रेम में डूबी, प्‍यार में पगी भवपूर्ण कविता। प्रेम का इतना विस्‍तार, आश्‍चर्य होता है। सचमुच बहुत ही भावपूर्ण कविता। मैं जानना चाहता हूं कि इस कविता को लिखने के पहले आपको किन हालात से गुजरना पड़ा। मुझे बताएंगे। थोड़ी जिज्ञासा है, आप बता पाऍं तो मुझे अच्‍छा लगेगा।

    डॉ महेश परिमल

    ReplyDelete
    Replies
    1. सर . प्रेम हमेशा ही अधुरा होता है . जिसे हम पूर्णता समझते है , वो कभी भी प्रेम नहीं हो सकता . प्रेम का कैनवास इतना बड़ा होता है कि एक ज़िन्दगी भी उसमे समां नहीं जा सकती है . इसी ज़िन्दगी और प्रेम के युद्ध में अगर प्रेम प्राप्त नहीं हो सका तो तब प्रेमी के मन में ऐसी कई भावनाए आती है , जो कि वो अपनी प्रेमिका के संग पूर्ण करना चाहता है . और यहाँ भी मैंने उन भावनाओं को जिया है और उसे कविता के रूप में लिखा है . बस

      Delete
  37. त्याग और समर्पण का इतना सजीव चित्रण प्रस्तुत करती हुई अपकी भावाभ्यक्ति हृदयातल को छू गई।
    सादर

    ReplyDelete
  38. सुन्दर भावों से सजी रचना...बधाई...

    ReplyDelete
  39. Email comment :

    आप के कविता में एह्शस है सुकून है उनके लिए एक सन्देश जो प्रेम की परिभाषा को थोड़ा समझ सके बहुत सुंदर भावना है
    कवि रजनी कान्त तिवारी दिल्ली

    ReplyDelete
  40. email comment :

    Bhai shri vijayji, pranam...aapka prempatr to kafi interesting tha....man kalpna ki lambi udan bhar aaya....vakai main dil ke kisi kone main har koi aise ankahe dard sanjoye baitha hoga...bas aapne uski sundar abhivyakti kar di...badhai...likhte rahain....reply der se karne ke liye soory....
    Regards,
    shilpa

    ReplyDelete
  41. बहुत अच्छे विजय जी.....सुन्दर कविता.........!

    ReplyDelete
  42. Email comment

    आप के कविता में एह्शस है सुकून है उनके लिए एक सन्देश जो प्रेम की परिभाषा को थोड़ा समझ सके बहुत सुंदर भावना है
    कवि रजनी कान्त तिवारी दिल्ली

    ReplyDelete
  43. Email comment :

    प्रिय विजय जी,

    नमस्कार|

    आपने अपनी इस कविता में अपनी भावनाओं को अच्छी तरह व्यक्त किया है|

    शुभ कामनाओं सहित-

    दिनेश श्रीवास्तव

    ReplyDelete
  44. बहुत सुन्दर, दिल कों छूने वाली कविता, विजय जी !

    ढेर सराहना !

    ReplyDelete
  45. sadharan sai asadharan ke taraf gaman karte kavita..ate uttam

    ReplyDelete
  46. Prem krnaa hai , to kr tu tyaag,
    bujha le apni ,apne men hi aag,
    Nahin to hai yah koraa raag.
    Iska Vigyaapn n kro , bus keval sabr se kaam lo.

    ReplyDelete
  47. मर्मस्पर्शी रचना, शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  48. बहुत ही भावनात्मक और कोमल एहसास लिये हुये, बेहतरीन.

    रामराम.

    ReplyDelete
  49. bahut hi sunder likha hai, man ko gehre chhoo gaya

    shubhkamnayen

    ReplyDelete


  50. कुछ बारिश की बूँदें ...
    कुछ ओस की नमी ..
    कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
    कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
    कुछ फूलों की मदमाती खुशबू ,
    कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
    कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
    कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
    कुछ ठहरे हुए से कदम,
    कुछ आंसुओं की बूंदे,
    कुछ उखड़ी हुई साँसे,
    कुछ अधूरे शब्द,
    कुछ अहसास,
    कुछ खामोशी,
    कुछ दर्द !

    ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने
    सिर्फ़ तुम्हारे लिये प्रिये !

    जनाब ! चीज़ें तो नायाब रख रखी हैं...
    :)

    विजय कुमार जी
    सुंदर प्रेम कविता पढ़ कर मन आनंदित हो गया !

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...

    ♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  51. प्यार की कशिश ही ऐसी होती है जिसमें अगले जन्म की आस भी बाकी रह जाती है..सुंदर प्रस्तुति।।।

    ReplyDelete
  52. waah pyaar ka roop bada anokha hai shabd thoda bada rakhen ....

    ReplyDelete
  53. कमाल का प्रेमपत्र है गुरु !
    बधाई !
    :)

    ReplyDelete
  54. पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |

    वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |

    सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
    कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |


    जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
    रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||


    वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
    पावली=चवन्नी

    ReplyDelete
  55. gajab ki rachana .....dher sari badhai apko

    ReplyDelete

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...