Wednesday, October 7, 2009

तेरा नाम क्या है मेरे प्रेम ?



तेरा नाम क्या है मेरे प्रेम ?


अचानक ही ये कैसे अहसास है
कुछ नाम दूं इसे
या फिर ;
अपने मौन के साथ जोड़ दूं इसे

किसी मौसम का नया रंग हो शायद
या फिर हो ज़िन्दगी की अनजानी आहट
एक सुबह हो ,सूरज का नया रूप लिये

पता नहीं …..
मेरी अभिव्यक्ति की ये नयी परिभाषा है

ये कैसे नये अहसास है
मौन के भी शब्द होतें है
क्या तुम उन्हें सुन रही हो .....

पलाश की आग के संग ...
गुलमोहर के हो बहुत से रंग
और हो रजनीगंधा की गंध
जो छा रही है मन पर
और तन पर
तेरे नाम के संग …..

तेरा नाम क्या है मेरे प्रेम ?

Monday, October 5, 2009

मुसाफ़िर --- मेरी 100 वी पोस्ट


दोस्तों , ये मेरी 100 वी पोस्ट है , इस मुकाम तक पहुँचने के लिए , आपके प्यार के लिए , आपकी हौसला - अफजाई के लिए , आपकी दोस्ती के लिए और आपके आर्शीवाद के लिए ; मैं आप सबका दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ , और आप सब का आभारी हूँ !! मैं विनंती करता हूँ कि , इसी तरह से आप सभी ; मुझ पर अपना प्यार और आर्शीवाद बनाये रखे ॥

दोस्तों , मुझे इस रचना की प्रेरणा, श्री राजेंद्र सिंह बेदी की उर्दू कहानी " टर्मिनस " से मिली ..... हमेशा की तरह दिल से लिखा है ,उम्मीद है कि आपको अच्छी लगेंगी !!

……………..हकीक़त तो यही है की हम सब ज़िन्दगी की एक बड़ी सी रेलगाडी में सवार है और अपने अपने स्टेशन की राह देख रहे है ...!!!




मुसाफ़िर

इंजिन की तेज सीटी ने
मुझे नींद से उठा दिया ...
मैंने उस इंजिन को कोसा
क्योकि मैं एक सपना देख रहा था
उसका सपना !!!

ट्रेन , पता नहीं किस स्टेशन से गुजर रही थी
मैंने अपने थके हुए बुढे शरीर को ;
खिड़की वाली सीट पर संभाला ;
मुझे ट्रेन की खिड़की से बाहर देखना अच्छा लगता था !

बड़े ध्यान से मैंने अपनी गठरी को टटोला ,
वक़्त ने उस पर धुल के रंगों को ओढा दिया था ....
उसमे ज्यादातर जगह ;
मेरे अपने दुःख और तन्हाई ने घेर रखी थी
और कुछ अपनी - परायी यादे भी थी ;
और हाँ एक फटी सी तस्वीर भी तो थी ;
जो उसकी तस्वीर थी !!!

बड़ी देर से मैं इस ट्रेन में बैठा था
सफ़र था की कट ही नहीं रहा था
ज़िन्दगी की बीती बातो ने
कुछ इस कदर उदास कर दिया था की
समझ ही नहीं पा रहा था की मैं अब कहाँ जाऊं..

सामने बैठा एक आदमी ने पुछा
“बाबा , कहाँ जाना है ?”
बेख्याली में मेरे होंठो ने कहा ;
“होशियारपुर !!!”

कुछ शहर ज़िन्दगी भर के लिए;
मन पर छप जाते है , अपने हो जाते है ..!
होशियारपुर भी कुछ ऐसा ही शहर था
ये मेरा शहर नहीं था , ये उसका शहर था;
क्योंकि, यही पहली बार मिला था मैं उससे !

आदमी हंस कर बोला ,
“बाबा , आप तो मेरे शहर को हो ...
मैं भी होशियारपुर का बन्दा हूँ”

“बाबा, वहां कौन है आपका ?”
आदमी के इस सवाल ने
मुझे फिर इसी ट्रेन में ला दिया
जिसके सफ़र ने मुझे बहुत थका दिया था

मैंने कहा .. “कोई है अपना
....जिससे मिले बरसो बीत गए ...”
उसी से मिलने जा रहा हूँ ..
बहुत बरस पहले अलग हुआ था उससे
तब उसने कहा था की कुछ बन के दिखा
तो तेरे संग ब्याह करूँ… तेरे घर का चूल्हा जलाऊं !!

“मैंने कुछ बनने के लिए शहर छोड़ दिया
पर अब तक ……. कुछ बन नहीं पाया
बस; सांस छुटने के पहले..
एक आखरी बार उससे मिलना चाहता हूँ !!!”

आदमी एक दर्द को चेहरे पर लेकर चुप हो गया

मैंने खिड़की से बाहर झाँका ...
पेड़, पर्वत, पानी से भरे गड्डे,
नदी, नाले, तालाब ; झोपडियां ,
आदमी , औरत , बच्चे
सब के सब पीछे छूटे जा रहे थे

भागती हुई दुनिया ......भागती हुई ज़िन्दगी
और भागती हुई ट्रेन के साथ मेरी यादे...

किस कदर एक एक स्टेशन छुटे जा रहे थे
जैसे उम्र के पड़ाव पीछे छुट गए थे
कितने दोस्त और रिश्तेदार मिले ,
जो कुछ देर साथ चले और फिर बिछड गए
लेकिन वो कभी भी मुझसे अलग नहीं हुई..
अपनी यादो के साथ वो मेरे संग थी
क्योंकि, उसने कहा था ;
“तेरा इन्तजार करुँगी करतारे
जल्दी ही आना” ;

आदमी बोला , “फगवारा गया है अभी
जल्दी ही जालंधर आयेगा ,
फिर आपका होशियारपुर !!!”

मेरा होशियारपुर ..!!!
मैंने एक आह भरी
हाँ , मेरा हो सकता था ये शहर ..
लेकिन क्या शहर कभी किसी के हो सकते है
नहीं , पर बन्दे जरुर शहर के हो सकते है
जैसे वो थी ......इस शहर की
मैंने अपने आप से मुस्कराते हुए कहा
“अगर वो न होती तो मेरे लिए ये शहर ही नहीं होता !”

आदमी को जवाब देने के लिए;
जो ,मैंने कहीं पढ़ा था ; कह दिया कि..
“दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है ,
अपनी अपनी बोलियों बोलकर सब उड़ जायेंगे !!!”

जालन्धर पर गाडी बड़ी देर रुकी रही ,
आदमी ने मेरे लिए पानी और चाय लाया
रिश्ते कब ,कहाँ और कैसे बन जाते है ,
मैं आज तक नहीं समझ पाया

जैसे ही ट्रेन चल पढ़ी ,
अब मेरी आँखों में चमक आ गयी थी
मेरा स्टेशन जो आने वाला था

आदमी ने धीरे से , मुझसे पुछा
“बहुत प्यार करते थे उससे”

मैंने कहीं बहुत दूर ……बहुत बरस पहले ;
डूबते हुए सूरज के साथ ,
झिलमिल तारो के साथ ,
छिटकती चांदनी के साथ ,
गिद्धा की थाप के साथ,
सरसों के लहलहाते खेतो में झाँककर कहा
“हाँ .. मैं उससे बहुत प्यार करता था..
वो बहुत खूबसूरत थी …..
सरसों के खेतो में उड़ती हुई उसकी चुनरी
और उसका खिलखिलाकर हँसना ...
बैशाखी की रात में उसने वादा किया था
की वो मेरा इन्तजार करेंगी
मुझे यकीन है कि ;
वो मेरा इन्तजार कर रही होंगी अब तक ;
बड़े अकेले जीवन काटा है मैंने
अब उसके साथ ही जीना है ;
और उसके साथ ही मरना है”

नसराला स्टेशन पीछे छुटा
तो , मैंने एक गहरी सांस ली
और मैंने अपनी गठरी संभाली
एक बार उसकी तस्वीर को देखा

अचानक आदमी ने झुककर ;
तस्वीर को बड़े गौर से देखा
फिर मेरी तरफ देखा
और फिर मुझसे धीरे से कहा ,
“इसका नाम संतो था क्या ...”

मैंने ख़ुशी से उससे पुछा
“तुम जानते हो उसे” ,
आदमी ने तस्वीर देख कर कहा
“ये ……...............................................
……….ये तो कई बरस पहले ही पागल होकर मर गयी
किसी करतारे के प्यार में पागल थी..
हमारे मोहल्ले में ही रहती थी .................”

फिर मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ा
ट्रेन धीमे हो रही थी ….
कोई स्टेशन आ रहा था शायद..
मुझे कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था
शायद बहते हुए आंसू इसके कारण थे
गला रुंध गया था …सांस अटकने लगी थी
धीरे धीरे सिसकते हुए ट्रेन रुक गयी

एक दर्द सा दिल में आया
फिर मेरी आँख बंद हो गयी
जब आँख खुली तो देखा ;
डिब्बे के दरवाजे पर संतो खड़ी थी
मुस्कराते हुए मुझसे कहा
चल करतारे , चल ,
वाहे गुरु के घर चलते है !!
मैं उठ कर संतो का हाथ पकड़ कर
वाहे गुरु के घर की ओर चल पड़ा

पीछे मुड़कर देखा तो मैं गिर पड़ा था
और वो आदमी मुझे उठा रहा था

मेरी गठरी खुल गयी थी
और मेरा हाथ
संतो की तस्वीर पर था

डिब्बे के बाहर देखा ;
तो स्टेशन का नाम था …..
……..होशियारपुर !!!

मेरा स्टेशन आ गया था !!!

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...