Saturday, August 21, 2010

लेकिन तुम घर नहीं आये ....मोरे सजनवा !!!





दोस्तों , इस बार एक नया प्रयोग किया है ,एक शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत लिखा है ,थोड़ी सी तकलीफ हुई इस नयी बोली को लिखने में , लेकिन मन को अच्छा लग रहा था तो , लिखकर ही दम लिया ..एक दोस्त से मन ही मन में वादा किया था , इस गीत को उसे उपहार के रूप में देने का .. और अब हमेशा की तरह आपकी नज़र इसे कर रहा हूँ . मुझे पूरा विश्वास है की आपको मेरा ये नया प्रयोग जरुर पसंद आयेंगा. एक छोटी सी गुजारिश  आप  सबसे है  ... इसे सुनते  हुए  आप  VISUALISE करे  की BACKGROUND में FUSION MUSIC बज  रहा है [ INSTRUMENTAL COMBINATION OF TABLA, FLUTE , JAZZ DRUMS, KEYBOARD, SAXOPHONE AND ELECTRIC GUITAR WITH LOWTONE BACKUP VOCALS  ] [ और  ये  भी  VISUALISE कीजिये  की इसे  गाने  वाले  महान   गायक  है  ..या तो शुभा मुदगल या परवीन सुल्ताना या बॉम्बे जयश्री या किशोरी अमोनकर या वीणा सहस्त्रबुद्धे या जो कोई भी आपके मनपसंद CLASSICAL VOCALIST है ] अब इसे पढ़िये और आनंद लीजिये विरह की अग्नि का बारीश  की बूंदों  के साथ .  अब मैं हमेशा की तरह आप सभी के प्यार और आशीर्वाद का इच्छुक हूँ. धन्यवाद.



लेकिन तुम घर नहीं आये ....मोरे सजनवा !!!




घिर  आई फिर से ... कारी कारी बदरिया
लेकिन तुम घर नहीं आये ....मोरे सजनवा !!!
नैनन को मेरे , तुमरी  छवि हर पल नज़र आये
तेरी याद सताये  , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये ....मोरे सजनवा !!!

सा  नि ध पा , मा गा रे सा ........

बावरा मन ये उड़ उड़ जाये जाने कौन देश रे
गीत सावन के ये गाये तोहे लेकर मन में
रिमझिम गिरती फुहारे बस आग लगाये
तेरी याद सताये  , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये ....मोरे सजनवा !!!

सा  नि ध पा , मा गा रे सा ........

सांझ ये गहरी , साँसों को मोरी ; रंगाये ,
तेरे दरश को तरसे है ; ये आँगन मोरा
हर कोई सजन ,अपने घर लौट कर आये
तेरी याद सताये  , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये ....मोरे सजनवा !!!

सा  नि ध पा , मा गा रे सा ........

बिंदिया, पायल, आँचल, कंगन चूड़ी  पहनू सजना 
करके सोलह श्रृंगार तोरी राह देखे ये सजनी
तोसे लगन लगा कर , रोग  दिल को लगाये
तेरी याद सताये  , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये ....मोरे सजनवा !!!

सा  नि ध पा , मा गा रे सा ........
बरस रही है आँखे मोरी ; संग बादलवा..
पिया तू नहीं जाने मुझ बावरी का  दुःख रे
अब के बरस ये राते ; नित नया जलाये
तेरी याद सताये  , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये ....मोरे सजनवा !!!

सा  नि ध पा , मा गा रे सा ........
 
आँगन खड़ी जाने कब से ; कि तोसे संग जाऊं
चुनरिया मोरी भीग जाये ; आँखों के सावन से 
ओह रे पिया , काहे ये जुल्म मुझ पर तू ढाये
तेरी याद सताये  , मोरा जिया जलाये !!
लेकिन तुम घर नहीं आये ....मोरे सजनवा !!!

घिर  आई फिर से ... कारी कारी बदरिया
लेकिन तुम घर नहीं आये ....मोरे सजनवा !!!




Tuesday, August 17, 2010

कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ कि तुम मेरे हो ....

तुम.....
किसी दुसरी ज़िन्दगी का एहसास हो ..
कुछ पराये सपनो की खुशबु हो ..
कोई पुरानी फरियाद हो ..
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो
किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो
किसी सड़क पर ठहरा हुआ कोई मोड़ हो
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी अजनबी रिश्ते की आंच हो
किसी अनजानी धड़कन का नाम हो
किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी आंसू में रुखी हुई सिसकी हो
किसी खामोशी के जज्बात हो
किसी मोड़ पर छूटा हुआ हाथ हो
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...  हां,  तुम ........
हां , मेरे अपने सपनो में तुम हो
हां,  मेरी आखरी फरियाद तुम हो
हां, मेरी अपनी ज़िन्दगी का एहसास हो ...
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ कि तुम मेरे  हो ....
 
हां,  तुम मेरे  हो ....
हां,  तुम मेरे  हो ....
हां,  तुम मेरे  हो ....

Tuesday, August 3, 2010

सर्द रातें



सर्द रातें

इन सर्द रातों में ,तुझे कुछ याद हो न हो .....
मुझे तो सारी बातें याद है.......
अब तक ,  
जो तेरे - मेरे साथ गुजरी , और जो नही गुजरी ...
वो सब कुछ याद है ...

ऐसी ही एक सर्द रात थी , जब हम कहीं मिले
और एक मुलाकात से दुसरे मुलाकात की बात बनी ..

ऐसी ही एक सर्द रात में तेरे आंसुओ ने मुझे भिगोया था ..
और सारी रात हमने कोई पुरानी सी ग़ज़ल सुनी थी ..

ऐसी ही एक सर्द रात में हमने रात भर आलाव तापा था ,
और ज़िन्दगी की राख की आग को अपने जिस्मो पर सहा था......

ऐसी ही एक सर्द रात में हमने वो पुरानी कसमे खायी थी ..
जिनमे मिलने और मिलकर साथ रहने की बातें होती है ..

ऐसी ही एक सर्द रात में ;
तुमने मेरा हाथ एक अँधेरी सड़क के सूने मोड़ पर छोडा था ..
और मैं तन्हाई का तमाशबीन बन कर रह गया था ..

और उस सर्द रात से , आज तक ;
मुझे हर रात , सर्द रात नज़र आती है ..
मैं तुम्हे याद करता हूँ और ;
अपने आंसुओं से ओस की बूंदे बनाता हूँ...

खुदा जाने , तुम्हे अब ये रातें सर्द लगती है या नही ..
खुदा जाने , तुम्हे अब मेरी याद आती है या नही....
खुदा जाने , अब किसी सर्द रात को हम दोबारा मिलेंगे या नही ...

आज की रात बहुत सर्द है ..
मालूम होता है ,
तेरी यादो के साथ मेरी जान लेकर जाएँगी...
तब शायद,  
किसी सर्द रात को ,  
तुम्हे मेरी याद आयें......


एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...