Monday, May 18, 2009

तेरा चले जाना .......


जब मैं तुझे छोड़ने उस अजनबी स्टेशन पर पहुंचा ;
जो की अब मेरा जाना पहचाना बन रहा था ….
तो एक बैचेन सी रात की सुबह हो रही थी ......

एक ऐसी रात की , जो हमने साथ बिताई थी
ज़िन्दगी के तारो के साथ .. जागते हुए सपनो के साथ
और प्यार के नर्म अहसासों के साथ ...

हमारे प्रेम की मदिरा का वो जाम
जो हम दोनों ने एक साथ पिया था ..
उसका स्वाद अब तक मेरे होंठों पर था...

मैंने धुंधलाती हुई आँखों से देखा तो पाया कि ;
तेरे चेहरे के उदास उजाले
मेरे आंसुओ को सुखा रहे थे......

मौन की भी अपनी भाषा होती है
ये आज पता चला .......
जब तुमने मेरा हाथ पकड़ कर कुछ कहना चाहा....
और कुछ न कह सकी .....
मैं भी सच कितना चुप था !!

हम दोनों क्या कहना सुनना चाहते थे ;
ये समझ में नहीं आ रहा था .....और सच कहूँ तो
मैं समझना भी नहीं चाहता था !

फिर थोडी देर बाद तुझे ;
तेरे शहर को ले जाने वाली ट्रेन आयी ....
ये वही स्टेशन था ,जिसने तुम्हे मुझसे मिलाया था
और हम दोनों ने ये जाना था कि ;
किसी पिछले जनम के बिछडे हुए है हम...

मैंने मरघट की खामोशी के साथ ;
तुझे उस ट्रेन में बिठाया ..
तेरा चले जाना जैसे ;
मेरी आत्मा को तेरे संग लिए जा रहा था ..

जिस जगह हम मिले , उसी जगह हम जुदा हुए..
ये कैसी किस्मत है हमारे प्यार की ......

फिर ट्रेन चल पड़ी ....
बहुत दूर तलक मैं उसे जाते हुए देखते रहा
और उसे ;
तुझे ले जाते हुए भी देखते रहा ..

मेरी आँखों ने कहा ,
सुन यार मेरे .. अब तो हमें बहने दे.....
बहुत देर हुई ..रुके हुए ...

मैं अपने कदमो को खीचंते हुए वापस आया ....
देखा तो ;
कमरा उतना ही खामोश था ..
जितना हमने उसे छोड़ा था ....

बिस्तर पर पड़ी चादर को छुआ तो ,
तुमने उसे अपनी ठोडी तक ओड़ ली ...
और अपनी चमकीली आँखों से
मुझे देखकर मुस्करा दिया ...

और फिर कोने में देखा तो तुम
मेरे संग चाय पी रही थी ..
सोफे पर शायद तुम्हारा दुपट्टा पड़ा था ...
या मेरी धुंधलाती हुई आँखों को कोई भ्रम हुआ था ...

आईने में देखा तो तुम थी मेरे पीछे खड़ी हुई ...
मुझे छूती हुई .....मेरे कानो में कुछ कहती हुई..
शायद I LOVE YOU कह रही थी......

सारे कमरे में हर जगह तुम थी ...
अभी अभी तो मैं तुम्हे छोड़ आया था
फिर ये सब ..................................

सुनो ,
मैं बहुत देर से रो रहा हूँ ..
तुम आकर मेरे आंसू पोंछ दो ......

Thursday, May 14, 2009

मेरी कविता की किताब

दोस्तों , मैं एक हास्य कविता पेश कर रहा हूँ ....आपकी खिदमत में.....!!! आपको अवश्य पसंद आएँगी ...इस कविता का जन्म पूना में हुआ था, जब मैं श्री नीरज गोस्वामी जी से मिला था .. नीरज जी बहुत शानदार व्यक्तित्व है और ऊपर से वो बहुत हंसमुख है ...मैंने उनसे कविता की किताब के बारे में कहा तो उन्होंने हंसते हुए कहा की , यार ; लोग उस पर दाल रोटी रखकर खायेंगे.. इस बात पर हम दोनों काफी देर तक हंसते रहे , और जब भी इस बात की याद करते है , हम दोनों खूब हंसते है .. फिर मैंने सोचा की ,इसी पर एक कविता लिखी जाये, सो एक कविता लिखी और उसे सजाने संवारने के लिए अपने दुसरे गुरु श्री अविनाश जी के पास भेज दिया .. वो तो एक बेहतरीन हास्य कवि है और मेरे इस segment के लिए गुरु भी है ,उन्होंने तो बस कमाल कर दिया , इस कविता को चार चाँद लग गए है उनके आर्शीवाद से; वो एक शानदार एडिटर भी है .... कविता आप पढिये ... और आनंद लीजियेगा .. कविता थोडी सी लम्बी है पर आशा है की आपको पसंद आएँगी . मैं अपनी इस हास्य कविता को अपने दोनों गुरु श्री नीरज जी और श्री अविनाश जी को dedicate करता हूँ . और उन दोनों गुरुओ को नमन करते हुए ,हमेशा उनके आर्शीवाद की कामना करता हूँ ....!!!

मेरी कविता की किताब

नीरज जी से मेरी मुलाकात हुई ;
मन की पूरी बहुत बड़ी आस हुई !
उन्हें अपना समझकर उन्हें चाय पिलाई ;
दिल उनका जीतकर मैंने एक बात बतलाई !

नीरज जी , मुझे कविता की किताब छपवाना है
साहित्य की दुनिया में बड़ा नाम कमाना है
बहुत बड़ा कवि बनकर दिखलाना है

नीरज जी हंसकर बोले ,
और बोल कर गज़ब ढा दिया
मेरा छोटा सा दिल तोड़ दिया
विजय, क्यों पगला गया है
कविता लिख लिख कर बोरा भर , बौरा गया है

तेरी किताब को कोई नहीं पढ़ेगा
उस पर घास रखकर गधे चरेंगे
और दाल रख कर लोग रोटी खाएँगे
सुनकर दिल मेरा भयभीत सा हुआ
मेरे भीतर का कवि व्यथित हुआ !!

फिर भी निडर हो मैंने किताब छपवाने की ठान ली
नीरज जी को अनसुना कर दिया ;
और दिल की बात मान ली
जाते जाते नीरज जी फिर बोल गए
कानों में नीम सा कुछ घोल गए
बेटा ,दोबारा सोच ले
मेरी बात पर कान दे !

पर मैंने न कान, न नाक और न आंख दी
उनकी सलाह को आंख दिखा दी
एक कान से सुनी दूसरे से निकाल दी
मैं कहा , नीरज जी , बस अब देखिये क्या होता है
साहित्य की दुनिया में मेरा कैसा नाम होता है

घर आकर सारे रूपये लगाकर
मैंने मोटी सी किताब छपवाई
और अपने खर्चे पर दोस्तों को भिजवाई
और लोकार्पण की एक बड़ी पार्टी रखवाई
ये बात अलग है कि इस सारी प्रक्रिया में
बीबी ने मुझे डांट ही खिलाई
खाना तो छोड़िये चाय भी नहीं पिलाई

बहुत दिन बीत गए
कर्जा जिनसे लिया था
वो आने शुरू हो गए
मेरे नाम से गालियों के दौर शुरू हो गए
कविता की वाहवाही की कोई निशान नहीं था
साहित्य जगत में मेरे कोई नाम नहीं था

मैंने एक दिन फैसला किया
और दोस्तों के घर जाने का हौसला किया !!

एक दिन भरी बरसात में एक
दोस्त के घर गया और जो देखा
उसे जी भर भर कोसा
उसके बच्‍चे मेरी किताब के पेजों की
नाव बना रहे हैं और
एक दूसरे पर हवाई जहाज़ बना कर उड़ा रहे है
देख कर ये सीन दिल मेरा टूट गया
मैं उस दोस्त से रूठ गया !
दूसरे दोस्त के घर गया
उसका छोटा बच्चा खडा था
और मेरी किताब को चबा रहा था !!
तीसरे दोस्त के घर गया
वहां हाल और भी खराब थे
वे किताब को वो बेच कर छोले खा चुके थे !!!

घूमते घूमते रात हो गई
पेट में चूहे तांडव मचाने लगे
एक दोस्त के घर पहुंचा
वो बेचारा गरीब था
बरतनों से भी मरहूम था
उसने मेरी ही किताब पर रख कर दाल रोटी ,
मुझे बड़े प्यार से खिलाई
ऐसा कर के उसने मुझे बड़ी ठेस
पर पेट की आंतडि़यों को राहत पहुंचाई

वापिस आते हुए ठोकर लगी और मैं गिर पड़ा
मेरे पैर को मेरी किताब ने ही ठोका था
मुझे गिराने का मौका उसने नहीं चूका था
गिरा और बेहोश हो गया मैं
आँख खुली तो हॉस्पिटल नजर आया
मेरे उपर पड़ रही थी नीरज जी की छाया

नीरज जी हंसकर कहा
फिक्र मत करो , सब ठीक है
हॉस्पिटल का बिल कुछ ज्यादा आया था
तेरी मोटी किताबों को बेचकर चुकाया है
मैं फिर खुश हो गया
पर दोबारा से रो गया
जब मुझे बताया कि बिकी नहीं
मोटी थी, तुली हैं, तोलाराम कबाड़ी वाले ने खरीदी हैं
तभी बिल चुकाया है

हाय रे मेरी कविता की किताब
जिसने अस्‍पताल में भर्ती करवाया मुझे जनाब !!!

अब कभी भी अपनी कोई किताब नहीं छपवाऊंगा ,
ये बात अब समझ आ गयी है
अब आप भी इसे समझ ले , यही दुहाई है ......!!!!!

Monday, May 11, 2009

माँ का बेटा


वो जो अपनी माँ का एक बेटा था
वो आज बहुत उदास है !
बहुत बरस बीते ,
उसकी माँ कहीं खो गयी थी .....


उसकी माँ उसे नहलाती ,
खाना खिलाती , स्कूल भेजती
और फिर स्कूल से आने के बाद ,
उसे अपनी गोद में बिठा कर खाना खिलाती
अपनी मीठी सी आवाज़ में लोरियां सुनाती ..
और उसे सुलाती , दुनिया की नज़रों से बचाकर ....रखती !!!


उस बेटे को कभी कुछ माँगना न पड़ा ,
सब कुछ माँ ही तो थी ,उसके लिए ,
हमेशा के लिए... उसकी दुनिया बस उसकी माँ ही तो थी
अपनी माँ से ही सीखा उसने
सच बोलना , और हँसना
क्योंकि ,माँ तो उसके आंसुओ को
कभी आने ही नहीं देती थी
माँ से ही सीखा ,नम्रता क्या होती है
और मीठे बोल कैसे बोले जातें है
माँ से ही सीखा ,
कि हमेशा सबको क्षमा किया जाए
और सबसे प्यार किया जाए
वो जो अपनी माँ का एक बेटा था
वो आज बहुत उदास है !!


बहुत बरस बीते ,
उसकी माँ खो गयी थी ..
बहुत बरस हुए , उसकी माँ वहां चली गयी थी ,
जहाँ से कोई वापस नहीं लौटता ,
शायद ईश्वर को भी अच्छे इंसानों की जरुरत होती है !
वो जो बच्चा था ,वो अब एक
मशीनी मानव बना हुआ है ...
कई बार रोता है तेरे लिए
तेरी गोद के लिए ...


आज मैं अकेला हूँ माँ,
और बहुत उदास भी
मुझे तेरे बिन कुछ अच्छा नहीं लगता है
यहाँ कोई नहीं ,जो मुझे ; तुझ जैसा संभाले
तुम क्या खो गयी ,
मैं दुनिया के जंगल में खो गया !
आज ,मुझे तेरी बहुत याद आ रही है माँ !!!

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...