Thursday, December 31, 2009

आप सब को नए साल की शुभकामनाये !!!









दोस्तों

आप सब को नए साल की शुभकामनाये !!!
नया साल, आपकी ज़िन्दगी में ; बहुत सी खुशियाँ लेकर आये , मेरी दिल से यही दुआ है आप सभी के लिए .. और हाँ मेरे desk से कुछ छोटी छोटी बाते जो शायद आपके जीवन में कुछ काम आये .....


१. अपने आप में तथा अपने ईश्वर में विश्वास रखे !

२. आगाध आस्था , सम्पूर्ण विश्वास और अटूट प्रेम के साथ जीत की भावना भी आपके भीतर जागृत होवे..

३. आपको अपने आप से ही compete करना है और आपको जीत अपने आप पर ही [ अपनी कमियाँ etc . ] पर हासिल करनी होंगी ..

४. इस धरा के बेहतरीन मंत्र सिर्फ तीन है : दोस्ती , प्रेम, आदर !!!

५. खुश रहे , चुटकुले सुनाये , खूब हँसे ...इस planet को आपकी ख़ुशी की आवश्यकता है ..

६. और अंत में अपना १०० % देवे ...हमेशा .. चाहे वो देश हो , company हो , समाज हो , या घर हो ....अपना output आप हमेशा सर्वश्रेष्ट देने की कोशिश करे..

आपको फिर से नव वर्ष की ढेर सारी बधाई !!

आपका

विजय

+91 9849746500


1. My blog on shri shirdi saibaba : http://shrisaibabaofshirdi.blogspot.com/

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Thursday, December 24, 2009

मेरा नया ब्लॉग : अध्यात्म, जीवन, दर्शन, चिंतन,धर्म और प्रेम पर

दोस्तों ,

नमस्कार, मैंने अध्यात्म,धर्म, जीवन, दर्शन, और चिंतन पर एक ब्लॉग बनाया है ,जो की मेरे अपने अनुभवों का निचोड़ है ,जो कुछ भी मैंने इस छोटी सी उम्र में देखा, जाना, सीखा, पढ़ा, समझा और प्राप्त किया , वही सब कुछ मैंने अपने लेखो के द्वारा इस ब्लॉग में आप सब से बांटना चाहता हूँ , ब्लॉग का नाम है अंतर्यात्रा.... मेरी आप सबसे विनंती है की ,समय निकल कर इस ब्लॉग पर मेरे लेखो को पदियेंगा . बहुत बहुत धन्यवाद. ईश्वर आप सबको सुख , संतोष, ख़ुशी और प्रेम दे . ब्लॉग का लिंक है : http://spiritualityofsoul.blogspot.com/

Monday, December 14, 2009

मेरा फोटोग्राफी ब्लॉग




मेरा फोटोग्राफी ब्लॉग

आदरणीय दोस्तों , मैंने अपना फोटोग्राफी ब्लॉग को update किया है ...आप से निवदन है की अगर समय हो तो जरुर मेरे द्वारा लिए गए photographs को देखे और अपनी अमूल्य राय देवे. .. ब्लॉग का लिंक है : http://photographyofvijay.blogspot.com/
धन्यवाद.
आपका
विजय

Sunday, December 6, 2009

आबार एशो [ আবার এশো ] [ फिर आना ]



आबार एशो [ আবার এশো ] [ फिर आना ]

सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
तो मैंने देखा वो उदास था
मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके मेरी किरणे
तुम पर नज़र करती थी !!!

रात को चाँद एक उदास बदली में जाकर छुप गया ;
तो मैंने तड़प कर उससे कहा ,
यार तेरी चांदनी तो दे दे मुझे ...
चाँद ने अपने आंसुओ को पोछते हुए कहा
मुझसे मेरी चांदनी छीन ले गयी है
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके मेरी चांदनी
तुम पर छिटका करती थी ;

रातरानी के फूल चुपचाप सर झुकाए खड़े थे
मैंने उनसे कहा ,दोस्तों
मुझे तुम्हारी खुशबू चाहिए ,
उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा
हमसे हमारी खुशबू छीन ले गयी है
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके हमारी खुशबू
तुम पर बिखरा करती थी ;

घर भर में तुम्हे ढूंढता फिरता हूँ
कही तुम्हारा साया है ,
कही तुम्हारी मुस्कराहट
कहीं तुम्हारी हंसी है
कही तुम्हारी उदासी
और कहीं तुम्हारे खामोश आंसू

तुम क्या चली गयी
मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी

यहाँ अब सिर्फ तुम्हारी यादे है
जिनके सहारे मेरी साँसे चल रही है ....

आ जाओ प्रिये
बस एक बार फिर आ जाओ
आबार एशो प्रिये
आबार एशो !!!!!

Saturday, December 5, 2009

मटमैला पानी – PART -I


दोस्तों ; ये कविता मैं दुनिया के सारे शराबियों को नज़र करता हूँ ..!!! " मटमैला पानी " शराब के जाम के लिए "कोड वर्ड" है . .. [वैसे शराब पीना बुरी बात है जी ]

मैं अपने सारे ब्लॉगर दोस्तों से ये अपील ,गुजारिश, निवेदन करूँगा की वो भी इस कविता में डुबकी लगाये और एक एक अंतरा जरुर लिखे ...कमेन्ट में....!!! मैं ये सारे अंतरे जोड़कर करीब एक महीने के बाद इस कविता का PART-II पेश करूँगा , जिसमे आप सभी के अंतरे शामिल करूँगा . मेरी ये गुजारिश मेरे गुरु श्री नीरज जी , मुफ्लिश जी , मनु जी , सुशील जी तथा अन्य सारे दोस्तों से है ..... , आईये , इस महफ़िल में अपने नाम का एक जाम जोडीये जरुर....अंतरे के रूप में .... ये एक नयी कोशिश है, मुझे लगता है की हम सब मिल कर एक नयी कविता के फॉर्म का जन्म देंगे ..

मटमैला पानी

सुन लो मेरी ये बात दिल लगा कर जानी
यारो में यार होता है मटमैला पानी !

नहीं किसी से भी इसकी दुश्मनी यारो
बस दोस्ती जन्मभर निभाए ये मटमैला पानी !!
सुन लो मेरी ये बात………….

कभी अपनों ने दिल दुखाया
कभी परायो ने दिल दुखाया
किस किस की बात करे ,सबने दिल दुखाया
पर जिसने हमेशा राहत दी , वो है मटमैला पानी
सुन लो मेरी ये बात……………

दुनिया के लाख झमेले है
इस को निपटाए या उसको निपटाए
दिन रात इसी में बीत जाते है
पर जिसने सारे झमेले निपटाए , वो है मटमैला पानी
सुन लो मेरी ये बात…………..

कौन हिन्दू, कौन मुस्लिम ,
कौन सिख और कौन है इसाई
पीकर जिसे बन जाते है सब हिन्दुस्तानी
वो है सबका प्यारा मटमैला पानी
सुन लो मेरी ये बात………………..

इश्क ने सताया , घर ने सताया
दुनिया ने सताया , दोस्त ने सताया ,
दुश्मन ने भी सताया ...जिसको जानी
वो बस भूल जाये सबकुछ पीकर मटमैला पानी
सुन लो मेरी ये बात……………..



Sunday, November 29, 2009

मेरा कुछ सामान


दोस्तों ,बहुत दिनों से कुछ उलझा हुआ था ज़िन्दगी की कशमकश में , और अब , जब लगने लगा की ,मुझमे और मेरी कविताओ में दूरी बढ़ते जा रही है ,तो आज कुछ लिखा ! इस छोटी सी नज़्म को आपकी महफ़िल में नज़र करता हूँ , और उम्मीद करता हूँ की ,हमेशा कि तरह ,आप सभी अपना प्यार और आशीर्वाद से मुझे नवाजेंगे !!!





मेरा कुछ सामान


कुछ दिन पहले मेरा कुछ सामान
मैंने तुम्हारे पास रख छोडा था !

वो पहली नज़र ..
जिससे तुम्हे मैंने देखा था ;
मैं अब तक तुम्हे देख रहा हूँ..

वो पहली बार तुम्हे छूना..
वो तुम्हारे नर्म लबो के अहसास आज भी
अक्सर मुझे रातों को जगा देते है ..

वो सारी रात चाँद तारो को देखना ..
वो सारी सारी रात बाते करना ....
मैं अब भी तुम्हे चाँद में ढूंढता हूँ

वो तुम्हारे काँधे के पार मेरा देखना...
वो तुम्हारा खुलकर मुस्कराना
तुम्हारी मुस्कान अब तक मेरा सहारा बनी हुई है

वो साथ साथ दुनिया को देखना ..
वो पानी में खेलना और गलियों में भटकना ...
तेरे साथ का साया अब तक मेरे साथ है

वो तुम्हारी आँखों की गहरयियो में झांकना ..
वो तुम्हारी गुनगुनाहट को सुनना ...
वो तुम्हे जानना ,तुम्हे पहचानना

वो तुम्हारे कदमो की आहट ..
वो मेरे हाथो का स्पर्श ....
वो हमारा मिलना और जुदा होना

वो मेरा बोलना , वो तुम्हारा सुनना ..
वो मौन में उतरती बाते
वो चुपचाप गहराती राते

वो कविता ....वो गीत ..
वो शब्द ,वो ख़त ,
तुम्हारे लिखे ख़त अब , मेरी साँसे बनी हुई है

वो ढलती हुई शाम ..
वो उगता हुआ सूरज
वो ज़िन्दगी का चुपचाप गुजरना

वो तुम्हारा आना ..
वो तुम्हारा जाना ...
वो ये ;
वो वो .............
जाने क्या क्या ....

इन सब के साथ ,

मेरे कुछ आंसू भी है जांना तुम्हारे पास......

तुम्हे कसम है हमारी मोहब्बत की
मेरा सामान कभी वापस न करना मुझे !!!


Wednesday, October 7, 2009

तेरा नाम क्या है मेरे प्रेम ?



तेरा नाम क्या है मेरे प्रेम ?


अचानक ही ये कैसे अहसास है
कुछ नाम दूं इसे
या फिर ;
अपने मौन के साथ जोड़ दूं इसे

किसी मौसम का नया रंग हो शायद
या फिर हो ज़िन्दगी की अनजानी आहट
एक सुबह हो ,सूरज का नया रूप लिये

पता नहीं …..
मेरी अभिव्यक्ति की ये नयी परिभाषा है

ये कैसे नये अहसास है
मौन के भी शब्द होतें है
क्या तुम उन्हें सुन रही हो .....

पलाश की आग के संग ...
गुलमोहर के हो बहुत से रंग
और हो रजनीगंधा की गंध
जो छा रही है मन पर
और तन पर
तेरे नाम के संग …..

तेरा नाम क्या है मेरे प्रेम ?

Monday, October 5, 2009

मुसाफ़िर --- मेरी 100 वी पोस्ट


दोस्तों , ये मेरी 100 वी पोस्ट है , इस मुकाम तक पहुँचने के लिए , आपके प्यार के लिए , आपकी हौसला - अफजाई के लिए , आपकी दोस्ती के लिए और आपके आर्शीवाद के लिए ; मैं आप सबका दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ , और आप सब का आभारी हूँ !! मैं विनंती करता हूँ कि , इसी तरह से आप सभी ; मुझ पर अपना प्यार और आर्शीवाद बनाये रखे ॥

दोस्तों , मुझे इस रचना की प्रेरणा, श्री राजेंद्र सिंह बेदी की उर्दू कहानी " टर्मिनस " से मिली ..... हमेशा की तरह दिल से लिखा है ,उम्मीद है कि आपको अच्छी लगेंगी !!

……………..हकीक़त तो यही है की हम सब ज़िन्दगी की एक बड़ी सी रेलगाडी में सवार है और अपने अपने स्टेशन की राह देख रहे है ...!!!




मुसाफ़िर

इंजिन की तेज सीटी ने
मुझे नींद से उठा दिया ...
मैंने उस इंजिन को कोसा
क्योकि मैं एक सपना देख रहा था
उसका सपना !!!

ट्रेन , पता नहीं किस स्टेशन से गुजर रही थी
मैंने अपने थके हुए बुढे शरीर को ;
खिड़की वाली सीट पर संभाला ;
मुझे ट्रेन की खिड़की से बाहर देखना अच्छा लगता था !

बड़े ध्यान से मैंने अपनी गठरी को टटोला ,
वक़्त ने उस पर धुल के रंगों को ओढा दिया था ....
उसमे ज्यादातर जगह ;
मेरे अपने दुःख और तन्हाई ने घेर रखी थी
और कुछ अपनी - परायी यादे भी थी ;
और हाँ एक फटी सी तस्वीर भी तो थी ;
जो उसकी तस्वीर थी !!!

बड़ी देर से मैं इस ट्रेन में बैठा था
सफ़र था की कट ही नहीं रहा था
ज़िन्दगी की बीती बातो ने
कुछ इस कदर उदास कर दिया था की
समझ ही नहीं पा रहा था की मैं अब कहाँ जाऊं..

सामने बैठा एक आदमी ने पुछा
“बाबा , कहाँ जाना है ?”
बेख्याली में मेरे होंठो ने कहा ;
“होशियारपुर !!!”

कुछ शहर ज़िन्दगी भर के लिए;
मन पर छप जाते है , अपने हो जाते है ..!
होशियारपुर भी कुछ ऐसा ही शहर था
ये मेरा शहर नहीं था , ये उसका शहर था;
क्योंकि, यही पहली बार मिला था मैं उससे !

आदमी हंस कर बोला ,
“बाबा , आप तो मेरे शहर को हो ...
मैं भी होशियारपुर का बन्दा हूँ”

“बाबा, वहां कौन है आपका ?”
आदमी के इस सवाल ने
मुझे फिर इसी ट्रेन में ला दिया
जिसके सफ़र ने मुझे बहुत थका दिया था

मैंने कहा .. “कोई है अपना
....जिससे मिले बरसो बीत गए ...”
उसी से मिलने जा रहा हूँ ..
बहुत बरस पहले अलग हुआ था उससे
तब उसने कहा था की कुछ बन के दिखा
तो तेरे संग ब्याह करूँ… तेरे घर का चूल्हा जलाऊं !!

“मैंने कुछ बनने के लिए शहर छोड़ दिया
पर अब तक ……. कुछ बन नहीं पाया
बस; सांस छुटने के पहले..
एक आखरी बार उससे मिलना चाहता हूँ !!!”

आदमी एक दर्द को चेहरे पर लेकर चुप हो गया

मैंने खिड़की से बाहर झाँका ...
पेड़, पर्वत, पानी से भरे गड्डे,
नदी, नाले, तालाब ; झोपडियां ,
आदमी , औरत , बच्चे
सब के सब पीछे छूटे जा रहे थे

भागती हुई दुनिया ......भागती हुई ज़िन्दगी
और भागती हुई ट्रेन के साथ मेरी यादे...

किस कदर एक एक स्टेशन छुटे जा रहे थे
जैसे उम्र के पड़ाव पीछे छुट गए थे
कितने दोस्त और रिश्तेदार मिले ,
जो कुछ देर साथ चले और फिर बिछड गए
लेकिन वो कभी भी मुझसे अलग नहीं हुई..
अपनी यादो के साथ वो मेरे संग थी
क्योंकि, उसने कहा था ;
“तेरा इन्तजार करुँगी करतारे
जल्दी ही आना” ;

आदमी बोला , “फगवारा गया है अभी
जल्दी ही जालंधर आयेगा ,
फिर आपका होशियारपुर !!!”

मेरा होशियारपुर ..!!!
मैंने एक आह भरी
हाँ , मेरा हो सकता था ये शहर ..
लेकिन क्या शहर कभी किसी के हो सकते है
नहीं , पर बन्दे जरुर शहर के हो सकते है
जैसे वो थी ......इस शहर की
मैंने अपने आप से मुस्कराते हुए कहा
“अगर वो न होती तो मेरे लिए ये शहर ही नहीं होता !”

आदमी को जवाब देने के लिए;
जो ,मैंने कहीं पढ़ा था ; कह दिया कि..
“दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है ,
अपनी अपनी बोलियों बोलकर सब उड़ जायेंगे !!!”

जालन्धर पर गाडी बड़ी देर रुकी रही ,
आदमी ने मेरे लिए पानी और चाय लाया
रिश्ते कब ,कहाँ और कैसे बन जाते है ,
मैं आज तक नहीं समझ पाया

जैसे ही ट्रेन चल पढ़ी ,
अब मेरी आँखों में चमक आ गयी थी
मेरा स्टेशन जो आने वाला था

आदमी ने धीरे से , मुझसे पुछा
“बहुत प्यार करते थे उससे”

मैंने कहीं बहुत दूर ……बहुत बरस पहले ;
डूबते हुए सूरज के साथ ,
झिलमिल तारो के साथ ,
छिटकती चांदनी के साथ ,
गिद्धा की थाप के साथ,
सरसों के लहलहाते खेतो में झाँककर कहा
“हाँ .. मैं उससे बहुत प्यार करता था..
वो बहुत खूबसूरत थी …..
सरसों के खेतो में उड़ती हुई उसकी चुनरी
और उसका खिलखिलाकर हँसना ...
बैशाखी की रात में उसने वादा किया था
की वो मेरा इन्तजार करेंगी
मुझे यकीन है कि ;
वो मेरा इन्तजार कर रही होंगी अब तक ;
बड़े अकेले जीवन काटा है मैंने
अब उसके साथ ही जीना है ;
और उसके साथ ही मरना है”

नसराला स्टेशन पीछे छुटा
तो , मैंने एक गहरी सांस ली
और मैंने अपनी गठरी संभाली
एक बार उसकी तस्वीर को देखा

अचानक आदमी ने झुककर ;
तस्वीर को बड़े गौर से देखा
फिर मेरी तरफ देखा
और फिर मुझसे धीरे से कहा ,
“इसका नाम संतो था क्या ...”

मैंने ख़ुशी से उससे पुछा
“तुम जानते हो उसे” ,
आदमी ने तस्वीर देख कर कहा
“ये ……...............................................
……….ये तो कई बरस पहले ही पागल होकर मर गयी
किसी करतारे के प्यार में पागल थी..
हमारे मोहल्ले में ही रहती थी .................”

फिर मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ा
ट्रेन धीमे हो रही थी ….
कोई स्टेशन आ रहा था शायद..
मुझे कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था
शायद बहते हुए आंसू इसके कारण थे
गला रुंध गया था …सांस अटकने लगी थी
धीरे धीरे सिसकते हुए ट्रेन रुक गयी

एक दर्द सा दिल में आया
फिर मेरी आँख बंद हो गयी
जब आँख खुली तो देखा ;
डिब्बे के दरवाजे पर संतो खड़ी थी
मुस्कराते हुए मुझसे कहा
चल करतारे , चल ,
वाहे गुरु के घर चलते है !!
मैं उठ कर संतो का हाथ पकड़ कर
वाहे गुरु के घर की ओर चल पड़ा

पीछे मुड़कर देखा तो मैं गिर पड़ा था
और वो आदमी मुझे उठा रहा था

मेरी गठरी खुल गयी थी
और मेरा हाथ
संतो की तस्वीर पर था

डिब्बे के बाहर देखा ;
तो स्टेशन का नाम था …..
……..होशियारपुर !!!

मेरा स्टेशन आ गया था !!!

Wednesday, September 30, 2009

भारतीय कॉमिक्स पर आधारित मेरा नया ब्लॉग ....





दोस्तों , मैंने एक नया ब्लॉग बनाया है जो की भारतीय कॉमिक्स पर आधारित है ॥ हम सबमे एक बच्चा छुपा होता है , मुझमे भी है who refuses to grow up...... मैं आज भी कॉमिक्स पढता हूँ और पूरी तरह से दीवाना हूँ कॉमिक्स का .......बचपन से मैंने इंद्रजाल कॉमिक्स, मधुमुस्कान , दीवाना ,लोटपोट इत्यादि कॉमिक्स पढ़ी और अब तक उन्हें collect कर रहा हूँ ॥ मैंने इस ब्लॉग में भारतीय कॉमिक्स के चरित्रों को खुद skteching करके बनाया है । आपको बहुत ख़ुशी होंगी और आपके बचपन की यादें ताजा हो जाएँगी ॥ मुझे जब भी समय मिलेंगा ,मैं इन चरित्रों को बना कर आपके सामने हाज़िर करूँगा । करीब 100 भारतीय कॉमिक चरित्र है ,जिन्हें मैं इस ब्लॉग में लाने की कोशिश करूँगा .. आप सब से निवेदन है की अपने बचपन की मस्त यादो को ताज़ा करे और इस लिंक पर click करे..

http://comicsofindia.blogspot.com/

धन्यवाद...
आपका
विजय

Friday, September 18, 2009

मृत्यु




ये कैसी अनजानी सी आहट आई है ;
मेरे आसपास .....
ये कौन नितांत अजनबी आया है मेरे द्वारे ...
मुझसे मिलने,
मेरे जीवन की , इस सूनी संध्या में ;
ये कौन आया है ….

अरे ..तुम हो मित्र ;
मैं तो तुम्हे भूल ही गया था,
जीवन की आपाधापी में !!!

आओ प्रिय ,
आओ !!!
मेरे ह्रदय के द्वार पधारो,
मेरी मृत्यु...
आओ स्वागत है तुम्हारा !!!

लेकिन ;
मैं तुम्हे बताना चाहूँगा कि,
मैंने कभी प्रतीक्षा नहीं की तुम्हारी ;
न ही कभी तुम्हे देखना चाहा है !

लेकिन सच तो ये है कि ,
तुम्हारे आलिंगन से मधुर कुछ नहीं
तुम्हारे आगोश के जेरे-साया ही ;
ये ज़िन्दगी तमाम होती है .....

मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ ,
कि ;
तुम मुझे बंधन मुक्त करने चले आये ;

यहाँ …. कौन अपना ,कौन पराया ,
इन्ही सच्चे-झूठे रिश्तो ,
की भीड़ में,
मैं हमेशा अपनी परछाई खोजता था !

साँसे कब जीवन निभाने में बीत गयी,
पता ही न चला ;
अब तुम सामने हो;
तो लगता है कि,
मैंने तो जीवन को जाना ही नहीं…..

पर हाँ , मैं शायद खुश हूँ ,
कि; मैंने अपने जीवन में सबको स्थान दिया !
सारे नाते ,रिश्ते, दोस्ती, प्रेम….
सब कुछ निभाया मैंने …..
यहाँ तक कि ;
कभी कभी ईश्वर को भी पूजा मैंने ;
पर तुम ही बताओ मित्र ,
क्या उन सबने भी मुझे स्थान दिया है !!!

पर ,
अब सब कुछ भूल जाओ प्रिये,
आओ मुझे गले लगाओ ;
मैं शांत होना चाहता हूँ !
ज़िन्दगी ने थका दिया है मुझे;
तुम्हारी गोद में अंतिम विश्राम तो कर लूं !

तुम तो सब से ही प्रेम करते हो,
मुझसे भी कर लो ;
हाँ……मेरी मृत्यु
मेरा आलिंगन कर लो !!!

बस एक बार तुझसे मिल जाऊं ...
फिर मैं भी इतिहास के पन्नो में ;
नाम और तारीख बन जाऊँगा !!
फिर
ज़माना , अक्सर कहा करेंगा कि
वो भला आदमी था ,
पर उसे जीना नहीं आया ..... !!!

कितने ही स्वपन अधूरे से रह गए है ;
कितने ही शब्दों को ,
मैंने कविता का रूप नहीं दिया है ;
कितने ही चित्रों में ,
मैंने रंग भरे ही नहीं ;
कितने ही दृश्य है ,
जिन्हें मैंने देखा ही नहीं ;
सच तो ये है कि ,
अब लग रहा है कि मैंने जीवन जिया ही नहीं

पर स्वप्न कभी भी तो पूरे नहीं हो पाते है
हाँ एक स्वपन ,
जो मैंने ज़िन्दगी भर जिया है ;
इंसानियत का ख्वाब ;
उसे मैं छोडे जा रहा हूँ ...

मैं अपना वो स्वप्न इस धरा को देता हूँ......



Thursday, September 10, 2009

प्रेम कथा


बहुत समय पहले की बात है
जब देवताओ ने सोचा की
एक प्रेम कथा बनाई जाए ;
उन्होंने तुम्हे बनाया ,
उन्होंने मुझे बनाया ,
और एक जन्म बनाया ;

पर शायद कुछ भूल हो गई ....
कुछ समय का रथ आगे निकल गया,
इस जन्म के लिए एक जन्म बीत गया !!!

जाने -अनजाने में जब हम बने तो
तुम किसी और की हो चुकी थी
मैं किसी और हो चुका था
तुम्हारा जीवन बन रहा था
किसी और के संग फेरे लेते हुए
मेरा जीवन बन रहा था
किसी और के संग मन्त्र पढ़ते हुए....

देवताओ ने हमें बनाया
और जुदा कर दिया
शायद देवता पत्थर के होतें है
शायद देवताओ को एक नए दर्द को जन्म देना था
शायद तुम्हारे मन से
शायद मेरे मन से
पता नही ,
पर देवताओ की बातें देवता ही जाने
हम बने ..
प्यार का जन्म हुआ...
पर हमारे बन्धनों ने उस जन्म को पहली साँस में ही
मृत्यु का आलिंगन दे दिया
और मैं अपनी बात कह न सका ...

समय बीता और जीवन बीता
हमारे बंधन पिघलने लगे
शायद नए बन्धनों के जन्म के लिए
या फिर एक मृत्यु के लिए
हमारी मृत्यु के लिए !

मैंने अब तुमसे अपनी बात की है
देवता शायद इसी दिन का इन्तजार कर रहे थे
वो बड़ी अनोखी रात थी
सारी दुनिया सोयी हुई थी

अचानक चाँद को बादलों ने
अपनी आगोश में ले लिया था
जुगुनू किसी विस्फोट के अंदेशे में कहीं छुप गए थे
आकाश को चूमते हुए पर्वत सिकुड़ गए थे
झींगूरो की कर्कश आवाज शांत थी

सब तरफ़ अजीब सी शान्ति थी
शायद मृत्यु की शान्ति थी
लगता था सब मर चुके है
चाँद ,तारे, पेड़ ,पर्वत और
सारे इंसान
हाँ !
सिर्फ़ हम जिंदा थे
तुम और मैं ......

हम दोनों जल रहे थे
जब कांपती हुई आवाज में ,
तुम्हारा हाथ; मैंने अपने धड़कते हुए दिल पर रखकर
तुमसे , मैंने अपनी बात कही
वो अनजानी सी पुरानी बात कही
उस बात को कहने में
सच कितना समय बीत गया था
यूँ लग रहा था की कई जन्म बीत गए थे
मैंने जब तुमसे वो बात कही
तो शायद समय रुक गया था
हवा ठहर गई थी
हमारी साँसे भी ठहर गई थी
मैंने तुमको तुमसे माँगा
इस जन्म के लिए
तुमने देवताओं को देखा
उन्हें देखकर आंसू बहाए
और प्रार्थना की
कि ;
समय को पीछे ले जाया जाएँ
पर देवता तो पत्थर के बने होतें है

उन्होंने मना कर दिया
न ही उन्होंने हमें ज़िन्दगी दी और न ही दी , हमें एक मौत
जो सब कुछ शांत कर दे
उन्होंने दिए हमें अपने अपने बंधन
जिनके साथ हमने जीना है
इस जन्म के लिए..... उस मृत्यु के लिए

उस मृत्यु के लिए ,जो हमें जुदा कर दे एक जन्म के लिए
जब हम एक हो
जो हमें मिला दे हमेशा के लिए
हम हार गए ..इस जन्म के लिए
और शायद जीत गए ,अगले जन्म के लिए
शायद ..पता नही ;

जन्म और मृत्यु को किसने समझा है
देवताओ कि बातें देवता ही जाने
हम तो इंसान है
मन कि बातें मन के शहर कि गलियों में भटकने दो
यही शायद वक्त का फ़ैसला है
पता नही ...पर शायद ,
प्रेमकथा
इसे ही कहते है
शायद देवता भी यही चाहते है .......

Friday, August 7, 2009

झील


आज शाम सोचा ;

कि ,
तुम्हे एक झील दिखा लाऊं ...
पता नही तुमने उसे देखा है कि नही;
देवताओं ने उसे एक नाम दिया है….

उसे जिंदगी की झील कहते है...

बुजुर्ग ,अक्सर आलाव के पास बैठकर,
सर्द रातों में बतातें है कि,
वह दुनिया कि सबसे गहरी झील है
उसमे जो डूबा , फिर वह उभर कर नही आ पाया ...

उसे जिंदगी की झील कहते है...

आज शाम , जब मैं तुम्हे ,अपने संग ,
उस झील के पास लेकर गया ,
तो तुम काँप रही थी ,
डर रही थी ;
सहम कर सिसक रही थी..
क्योंकि ; तुम्हे डर था;
कहीं मैं तुम्हे उस झील में डुबो न दूँ ....

पर ऐसा नही हुआ ..
मैंने तुम्हे उस झील में ;

चाँद सितारों को दिखाया ;
मोहब्बत करने वालों को दिखाया;
उनकी पाक मोहब्बत को दिखाया ;

तुमने बहुत देर तक, उस झील में ,

अपना प्रतिबिम्ब तलाशती रही ,
तुम ढूंढ रही थी॥

कि शायद मैं भी दिखूं तुम्हारे संग,
पर ईश्वर ने मुझे छला…
मैं क्या, मेरी परछाई भी ,

झील में नही थी तुम्हारे संग !!!

तुम रोने लगी ....
तुम्हारे आंसू ,
बूँद बूँद खून बनकर झील में गिरते गए ,
फिर झील का गन्दा और जहरीला पानी साफ होते गया,
क्योंकि अक्सर जिंदगी की झीलें ,
गन्दी और जहरीली होती है ....

फिर, तुमने मुझे आँखे भर कर देखा...
मुझे अपनी बांहों में समेटा ...
मेरे माथे को चूमा..
और झील में छलांग लगा दी ...
तुम उसमें डूबकर मर गयी ....

और मैं...
मैं जिंदा रह गया ,
तुम्हारी यादों के अवशेष लेकर,
तुम्हारे न मिले शव की राख ;
अपने मन पर मलकर मैं जिंदा रह गया ...

मैं युगों तक जीवित
रहूंगा और तुम्हे आश्चर्य होंगा पर ,
मैं तुम्हे अब भी ;
अपनी आत्मा की झील में सदा देखते रहता हूँ..
और हमेशा देखते रहूंगा..

युग से अनंत तक ....
अनंत से आदि तक ....
आदि से अंत तक....
देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...


Wednesday, August 5, 2009

आओ इश्क की बातें कर ले…


दोस्तों , मेरी एक पुरानी कविता पेश है आपकी महफिल में , जो आज मुझे बहुत HAUNT कर रही है ...



आओ इश्क की बातें कर ले…


आओ इश्क की बातें कर ले , आओ खुदा की इबादत कर ले ,
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

लबो पर कोई लफ्ज़ न रह जाए, खामोशी जहाँ खामोश हो जाए ;
सारे तूफ़ान जहाँ थम जाये , जहाँ समंदर आकाश बन जाए......!
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

तुम अपनी आंखो में मुझे समां लेना , मैं अपनी साँसों में तुम्हे भर लूँ ,
ऐसी बस्ती में चले चलो , जहाँ हमारे दरमियाँ कोई वजूद न रह जाए !
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

कोई क्या दीवारे बनायेंगा , हमने अपनी दुनिया बसा ली है ,
जहाँ हम और खुदा हो, उसे हमने मोहब्बत का आशियाँ नाम दिया है.!
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

मैं दरवेश हूँ तेरी जन्नत का ,रिश्तो की क्या कोई बातें करे.
किसी ने हमारा रिश्ता पूछा ,मैंने दुनिया के रंगों से तेरी मांग भर दी !
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

आओ इश्क की बातें कर ले , आओ खुदा की इबादत कर ले ,
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

Saturday, August 1, 2009

सपना

आदरणीय समीर लाल जी . This poem is dedicated to you. इस नज़्म का backdrop जबलपुर शहर है ,जहाँ मैं कुछ महीनो पहले गया था. वहां Bhedaghat में बहती नर्मदा नदी और marble rocks ने मुझे ये नज़्म लिखने की प्रेरणा दी. मैं ये नज़्म सारे जबलपुर वासियों और वहां के कवि तथा अन्य रचनाकारों को समर्पित करता हूँ ...


सपना

बहुत दिन बीते ... खुदा ने सोचा कि,
कुछ खुशियाँ इकठ्ठी की जाएँ ;
और दुनिया के बन्दों को बांटा जाएँ ....

खुदा को तलाश थी उन बन्दों की ,
जो थक चुके थे अपने जीवन से
और सोचते थे कि;
ये जीवन अब यूँ ही बीतेंगा ...

खुदा ने ढूँढा तो पाया ,
कि, हर बन्दा कुछ यूँ ही था ..
वो बड़ा परेशान हुआ ..
उसकी दुनिया शायद जीने लायक नहीं थी ..
खराब हो चुकी थी ..

उसने एक शहर बनाया
और उसमे बहती एक नदी बनायीं ..
उस नदी के चारो ओर
ऊंचे ऊंचे संगमरमर के पर्वत बनाये ...
और चांदनी रातो में ;
बिखरती प्यार की रौशनी बनायी !!
और वहां एक सपना भी बनाया ....
प्रेम से भरा हुआ ..
जीवन से आनंदित ...
और खुशियों से मुदित ....!!!

खुदा को इन्तजार था अपने उन बन्दों का;
जिन्होंने जीवन को सब कुछ दिया था
पर जीवन ने उन्हें कुछ नहीं दिया था ..

खुदा को इन्तजार करना पड़ा ..
बहुत लम्बा ...
बहुत ज्यादा देर तक ..
दिन पर दिन बीतते गए..
बरसों को पंख लग गए थे ...
यूँ ही कई जनम बीत गए थे...
खुदा थकने लग गया था ..
वो अब बुढा हो चूका था ..

फिर एक करिश्मा हुआ
खुदा भी हैरान था ..
किसी खुदाई ने उस पर भी रहम किया था ...
उसके बनाये दो बन्दे ...
जो कई जनम दूर थे एक दूजे से
उसी शहर में मिलने आ रहे थे...

दोनों कुछ इस तरह जी रहे थे ;
अपने अपने देश में ....
कि ज़िन्दगी ने भी सोचा ..
अल्लाह इन पर रहम करें..
क्योंकि वो रात दिन ..
नकली हंसी हंसते थे और नकली जीवन जीते थे..
ज़िन्दगी ने सोचा ,
एक बार कुछ असली रंग भर दे..
इनके जीवन में...!!!

और ..बस किसी सपने की कशिश में बंधकर दोनों
उसी शहर में पहुंचे ....
जहाँ खुदा ने वो सपना सजाया था
बस एक बार वो मिले ,
फिर उन दोनों को हाथ थामकर खुदा
उन्हें उस नदी के किनारे ले गया ..
और अपने बनाये हुए सपने में ,
उन्हें जीने का एक मौका दिया .......

सपना ...बस इतना हसीन था कि
दोनों की नींद ख़तम नहीं होती थी ..
दोनों ने सपने में दुनिया जहान को देख लिया ...

सब कुछ किसी पिछलें जनम की बात सी थी ..
दोनों कहीं से भी अजनबी नहीं थे ..
बस यूँ लग रहा था कि एक दूजे के लिए ही थे..
सपना बस पंख लगाकर उढ़ गया...

जब नींद खुली तो ;
देखा दोनों अपनी दुनिया में वापस जा चुके थे
लेकिन उस सपने की खुशबू अब तक महक रही थी ..

मैं तो अब भी वही हूँ ;
तेरे साथ...वही चाँद , वही नदी और वही रात ......
जानाँ , क्या तुम उस सपने को भूल सकी हो .....!!!

Wednesday, July 22, 2009

तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...

तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...


एक सपने में कोई आधी -अधूरी आस जगी
कहीं किसी खेत में सरसों की उवास चली
मेरे साँसों में तेरी सांस कैसे मिली ....
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना .....

ज़िन्दगी की राह बदल गयी....
आसमान से एक बादल का टुकडा टुटा
तेरे नाम से उसने मेरा पता पुछा ..
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...

मेरे तन से तेरी खुशबू कैसे छूटी.......
मिटटी की गंध ने तेरे घर का पता दिया
मेघो ने तेरे आंसुओ पर मेरा नाम लिखा ..
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...

मेरे लबो पर तेरे होंठो की ये मुहर कैसी ..
सूरज की किरणों ने एक जाल बुना
चाँद ने उस पर सितारों की चादर बिछाई ..
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...

मेरे साये की तस्वीर में तेरा रंग ये कैसा...
कि , एक बैचेनी सी आँखों में है छायी ..
कि , मन ने कहा , तू बहुत उदास है ..
कि , तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना .....
क्योंकि ; मैंने भी तुझे याद किया है….

हाँ , मैंने भी तुम्हे बहुत याद किया है !!!

Wednesday, July 8, 2009

मन की खिड़की /// The window of my heart


वो एक अजीब सी रात थी ,
जो मेरे जीवन की आखरी रात भी थी !

ज़िन्दगी की बैचेनियों से ;
घबराकर ....और डरकर ...
मैंने मन की खिड़की से;
बाहर झाँका .........

बाहर ज़िन्दगी की बारिश जोरो से हो रही थी ..
वक़्त के तुफानो के साथ साथ किस्मत की आंधी भी थी.

सूखे हुए आँखों से देखा तो ;
दुनिया के किसी अँधेरे कोने में ,
चुपचाप बैठी हुई तुम थी !!!

घुटनों में अपना चेहरा छुपाये,
कांपती हुई ,और भीगती हुई .....
और;
मेरे नाम को अपने आँसूओँ मेँ जलाती हुई ......

मुझे देखकर कहा ;
सुनो .......
मैं बरसो से भीग रही हूँ ..
मैं तुम्हारे मन के भीतर आ जाऊं ?

मैंने मुड़कर मन की खिड़की से ;
झाँककर अपने भीतर देखा ...
मेरे मन की दुनिया ,
अपनी आखरी साँसे गिन रही थी ..
ज़िन्दगी बेजार सी थी
और वीरान थी ..
सब कुछ ख़तम सा हो गया था…..
मेरी सारी खुशियों को
ज़िन्दगी के अँधेरे निगल गए थे......

मेरी किस्मत को तेरा प्यार मंज़ूर नहीं था ,
मेरे खुदा को तेरा साथ का इकरार नहीं था ,
मैं हार चूका था ;
समय से !
ज़िन्दगी से !!
और खुदा से ...!!!

मैंने बड़े प्यार से ;
अपनी भीगी आँखों से तुम्हे देखा ;
बड़े हौले से तेरा नाम लिया ;
एक आखरी सांस ली ;
और
फिर मर गया ..................


The Window of my heart

It was a very strange night,
so strange and ruthless;
That I couldn’t recognize,
It as last night of my life....

such restless was my life ;
By traveling a long journey ,
That it made me Frightened and scared
Of the world around me;

On that night I looked out of
The window of my heart... .........

The rains of Life were very harsh;
There were the tornados of time ;
With unseen storms of fate ;
Making deafening sounds around me ….

My Dry eyes saw you at a distance…
You were so close to my heart and
Yet so far from my reach...
In a dark corner of the cruel world
you were sitting quietly!!!

Your face was hidden
In your knees;
you were trembling and
Getting drenched;
In the harsh rains of life.....
And;
You were burning my name in your tears ......

than suddenly;
You looked at me in a trance of happiness
You were pleading me...
Listen o’ my love
May I come inside your heart...?
I don’t want to stay here in this world…
Please let me come, inside you…

I turned away my face from you
And looked inside the window of my heart;
The world of my heart,
Was breathing its last few breaths ..
My life was destroyed and deserted…
everything had come to an end.....
All my happiness was gone...
the Darkness of death were swallowing my life ......

My destiny was not ready to accept your love
My God did not agree to unite me with you
I lost you to Time, Life and God;

With misty eyes,

I saw you o’ my great love ....
slowly I whispered your name ….
I Took one last breath;
and than I died..................


Tuesday, July 7, 2009

जोगन



गुरु पूर्णिमा के शुभअवसर पर अपने सारे गुरुजनों और मित्रो को प्रणाम करते हुए अपनी ये कविता समर्पित करता हूँ ...मैं ये आशा करता हूँ की आप सबका प्यार यूँ ही मुझ पर बना रहेंगा . ये गीत महान संत " मीराबाई " पर है , मैं इसकी composition में उनके द्वारा रचित कुछ पदों का भी सहारा लिया है. मुझे कृष्ण और राधा और मीरा पर काफी दिनों से कुछ लिखने की इच्छा थी , सो आज पूरी हुई .. हमेशा की तरह आपके प्यार और आर्शीवाद की राह में ....


जोगन


मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !
तेरे बिन कोई नहीं मेरा रे ; हे श्याम मेरे !!
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !

तेरी बंसुरिया की तान बुलाये मोहे
सब द्वारे छोड़कर चाहूं सिर्फ तोहे
तू ही तो है सब कुछ रे , हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !

मेरे नैनो में बस तेरी ही तो एक मूरत है
सावंरा रंग लिए तेरी ही मोहनी सूरत है
तू ही तो एक युगपुरुष रे ,हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !

बावरी बन फिरू , मैं जग भर रे कृष्णा
गिरधर नागर कहकर पुकारूँ तुझे कृष्णा
कैसा जादू है तुने डाला रे , हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ;हे घनश्याम मेरे !

प्रेम पथ ,ऐसा कठिन बनाया ; मेरे सजना
पग पग जीवन दुखो से भरा ; मेरे सजना
कैसे मैं तुझसे मिल पाऊं रे , हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !

Monday, June 29, 2009

क्षमा

मान्यवर मित्रो ....

मैं कुछ दिनों के लिए लेखन से विराम ले रहा हूँ .... मन कुछ ठीक नहीं है ....

यदि किसी कारणवश मुझसे कोई गलती हो गयी हो ,या मेरे कारण किसी को दुःख पहुंचा हो या ,मेरी कोई बात से कोई आहत हुआ हो तो मैं क्षमा मांगता हूँ ..

क्षमापना सारी गलतियों व अपराधों को धोने का अमोघ उपाय है. मनुष्य की श्रेष्टथा इसी में है कि वह अपनी भूलो को स्वीकार करे. जो अपराध को स्वीकार नही करता वह अपराध से कभी मुक्त भी नही हो पाता . जीवन पथ इतना लंबा और अटपटा है कि उसे यदि क्षमापना से बार बार बुहारा न जाए तो वह कुडादान बन जायेगा. दुनिया में सारे धर्मग्रंथो और उपदेशों का सार है कि क्षमा को छोड़कर हम कितना भी चले कहीं भी नही पहुँच पाएंगे. याथार्थ तो यही है कि आत्म उत्कर्ष के किसी भी शिखर पर कोई कभी पहुँचेंगा तो वह क्षमा के साथ ही पहुँचेंगा .

मैं क्षमा द्वार से प्रवेश कर ,मनो मालिन्य ,राग, द्वेष और अहंकार से मुक्त होना चाहता हूँ ..

क्षमा प्राथी

विजय

Saturday, June 27, 2009

मैं तुमसे प्यार करता हूँ ......


अक्सर मैं सोचता हूँ कि,

मैं तुम्हारे संग बर्फीली वादियों में खो जाऊँ !
और तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हे देखूं ...
तुम्हारी मुस्कराहट ;
जो मेरे लिए होती है , बहुत सुख देती है मुझे.....
उस मुस्कराहट पर थोडी सी बर्फ लगा दूं .

यूँ ही तुम्हारे संग देवदार के लम्बे और घने सायो में
तुम्हारा हाथ पकड़ कर चलूँ......
और उनके सायो से छन कर आती हुई धुप से
तुम्हारे चेहरे पर आती किरणों को ,
अपने चेहरे से रोक लूं.....

यूँ ही किसी चांदनी रात में
समंदर के किनारे बैठ कर
तुम्हे देखते हुए ;
आती जाती लहरों से तेरा नाम पूछूँ ..

यूँ ही ,किसी घने जंगल के रास्तो पर
टेड़े मेडे राहो पर पढ़े सूखे पत्तो पर चलते हुए
तुम्हे प्यार से देखूं ..

और ; तुम्हारा हाथ पकड़ कर आसमान की ओर देखूं
और उस खुदा का शुक्रिया अदा करूँ .
और कहूँ कि
मैं तुमसे प्यार करता हूँ....

Monday, June 15, 2009

आओ सजन

दोस्तों , मेरी नयी नज़्म " आओ सजन " आपके खिदमत में पेश है ....उम्मीद है की हमेशा की तरह आप सबका प्यार और आर्शीवाद इस कविता को मिलेंगा . ये नज़्म एक सूफियाना भक्ति गीत है . इस कविता का जन्म एक गुरूद्वारे में हुआ था ..मैं एक कीर्तन सुन रहा था ..उसमे ये शब्द थे " आओ सजन " . ये शब्द मन में बस गए और मुझे बहुत दिनों तक मुझे haunt करते रहे . और आज इसे आप सबको नज़र कर रहा हूँ .. दोस्तों ; मैं ये नज़्म ; आदरणीय प्राण शर्मा जी , आदरणीय महावीर जी , आदरणीय तेजेंद्र जी और मेरे मित्र मुफलिस जी और सुशील छोक्कर जी को समर्पित कर रहा हूँ ...ये सारे गुरु -उस्ताद और मेरे प्रिय मित्र है और देखा जाए तो उस्ताद और मित्र भी मेरे लिए सजन ही है.... दोस्तों ,जब मैंने इस नज़्म को complete किया तो एक रुहानी positive energetic aroma मेरे आस पास था .मुझे उम्मीद है की आप के साथ भी कुछ ऐसा experience हो ..... I am sure that this poem will take you to an inner journey of soul...........MAY GOD BLESS YOU ALL. आपके प्रेम के लिए ,आप सब का आभार !!!


आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !
तेरे दर्शन को तरसे है ; मेरे भीगे नयन !
घर , दर सहित सजाया है ; अपने मन का आँगन !!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!

तू नहीं तो जग , क्यों सूना सूना सा लगता है !
तू नहीं तो हर कोई , पराया सा नज़र आता है !
इतनी बड़ी दुनिया में कौन है यहाँ मेरा ; तेरे बिन !
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!

बहुत घूम चूका मैं ; मंदिर ,मस्जिद और गुरुद्वारे !
किसी अपने को न मिल पाया ; मैं किसी भी द्वारे...!
कहीं भी तू न मिला , भटके है हर जगह मेरा मन !!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!

जीवन में छाये है उदासी के साये बहुत गहरे !
सबने छला है मुझको तेरे नाम से ; प्रभु मेरे !
अब तो तेरे मेहर की बरसात हो मेरे सूने आँगन !!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!

बुल्ले शाह ने कहा था ' रमज सजन दी होर '
आज समझा हूँ कि , क्यों खींचे तू मुझे अपनी ओर !
तू ही मेरा सजन ,बस तू ही मेरा सजन !
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!

Monday, May 18, 2009

तेरा चले जाना .......


जब मैं तुझे छोड़ने उस अजनबी स्टेशन पर पहुंचा ;
जो की अब मेरा जाना पहचाना बन रहा था ….
तो एक बैचेन सी रात की सुबह हो रही थी ......

एक ऐसी रात की , जो हमने साथ बिताई थी
ज़िन्दगी के तारो के साथ .. जागते हुए सपनो के साथ
और प्यार के नर्म अहसासों के साथ ...

हमारे प्रेम की मदिरा का वो जाम
जो हम दोनों ने एक साथ पिया था ..
उसका स्वाद अब तक मेरे होंठों पर था...

मैंने धुंधलाती हुई आँखों से देखा तो पाया कि ;
तेरे चेहरे के उदास उजाले
मेरे आंसुओ को सुखा रहे थे......

मौन की भी अपनी भाषा होती है
ये आज पता चला .......
जब तुमने मेरा हाथ पकड़ कर कुछ कहना चाहा....
और कुछ न कह सकी .....
मैं भी सच कितना चुप था !!

हम दोनों क्या कहना सुनना चाहते थे ;
ये समझ में नहीं आ रहा था .....और सच कहूँ तो
मैं समझना भी नहीं चाहता था !

फिर थोडी देर बाद तुझे ;
तेरे शहर को ले जाने वाली ट्रेन आयी ....
ये वही स्टेशन था ,जिसने तुम्हे मुझसे मिलाया था
और हम दोनों ने ये जाना था कि ;
किसी पिछले जनम के बिछडे हुए है हम...

मैंने मरघट की खामोशी के साथ ;
तुझे उस ट्रेन में बिठाया ..
तेरा चले जाना जैसे ;
मेरी आत्मा को तेरे संग लिए जा रहा था ..

जिस जगह हम मिले , उसी जगह हम जुदा हुए..
ये कैसी किस्मत है हमारे प्यार की ......

फिर ट्रेन चल पड़ी ....
बहुत दूर तलक मैं उसे जाते हुए देखते रहा
और उसे ;
तुझे ले जाते हुए भी देखते रहा ..

मेरी आँखों ने कहा ,
सुन यार मेरे .. अब तो हमें बहने दे.....
बहुत देर हुई ..रुके हुए ...

मैं अपने कदमो को खीचंते हुए वापस आया ....
देखा तो ;
कमरा उतना ही खामोश था ..
जितना हमने उसे छोड़ा था ....

बिस्तर पर पड़ी चादर को छुआ तो ,
तुमने उसे अपनी ठोडी तक ओड़ ली ...
और अपनी चमकीली आँखों से
मुझे देखकर मुस्करा दिया ...

और फिर कोने में देखा तो तुम
मेरे संग चाय पी रही थी ..
सोफे पर शायद तुम्हारा दुपट्टा पड़ा था ...
या मेरी धुंधलाती हुई आँखों को कोई भ्रम हुआ था ...

आईने में देखा तो तुम थी मेरे पीछे खड़ी हुई ...
मुझे छूती हुई .....मेरे कानो में कुछ कहती हुई..
शायद I LOVE YOU कह रही थी......

सारे कमरे में हर जगह तुम थी ...
अभी अभी तो मैं तुम्हे छोड़ आया था
फिर ये सब ..................................

सुनो ,
मैं बहुत देर से रो रहा हूँ ..
तुम आकर मेरे आंसू पोंछ दो ......

Thursday, May 14, 2009

मेरी कविता की किताब

दोस्तों , मैं एक हास्य कविता पेश कर रहा हूँ ....आपकी खिदमत में.....!!! आपको अवश्य पसंद आएँगी ...इस कविता का जन्म पूना में हुआ था, जब मैं श्री नीरज गोस्वामी जी से मिला था .. नीरज जी बहुत शानदार व्यक्तित्व है और ऊपर से वो बहुत हंसमुख है ...मैंने उनसे कविता की किताब के बारे में कहा तो उन्होंने हंसते हुए कहा की , यार ; लोग उस पर दाल रोटी रखकर खायेंगे.. इस बात पर हम दोनों काफी देर तक हंसते रहे , और जब भी इस बात की याद करते है , हम दोनों खूब हंसते है .. फिर मैंने सोचा की ,इसी पर एक कविता लिखी जाये, सो एक कविता लिखी और उसे सजाने संवारने के लिए अपने दुसरे गुरु श्री अविनाश जी के पास भेज दिया .. वो तो एक बेहतरीन हास्य कवि है और मेरे इस segment के लिए गुरु भी है ,उन्होंने तो बस कमाल कर दिया , इस कविता को चार चाँद लग गए है उनके आर्शीवाद से; वो एक शानदार एडिटर भी है .... कविता आप पढिये ... और आनंद लीजियेगा .. कविता थोडी सी लम्बी है पर आशा है की आपको पसंद आएँगी . मैं अपनी इस हास्य कविता को अपने दोनों गुरु श्री नीरज जी और श्री अविनाश जी को dedicate करता हूँ . और उन दोनों गुरुओ को नमन करते हुए ,हमेशा उनके आर्शीवाद की कामना करता हूँ ....!!!

मेरी कविता की किताब

नीरज जी से मेरी मुलाकात हुई ;
मन की पूरी बहुत बड़ी आस हुई !
उन्हें अपना समझकर उन्हें चाय पिलाई ;
दिल उनका जीतकर मैंने एक बात बतलाई !

नीरज जी , मुझे कविता की किताब छपवाना है
साहित्य की दुनिया में बड़ा नाम कमाना है
बहुत बड़ा कवि बनकर दिखलाना है

नीरज जी हंसकर बोले ,
और बोल कर गज़ब ढा दिया
मेरा छोटा सा दिल तोड़ दिया
विजय, क्यों पगला गया है
कविता लिख लिख कर बोरा भर , बौरा गया है

तेरी किताब को कोई नहीं पढ़ेगा
उस पर घास रखकर गधे चरेंगे
और दाल रख कर लोग रोटी खाएँगे
सुनकर दिल मेरा भयभीत सा हुआ
मेरे भीतर का कवि व्यथित हुआ !!

फिर भी निडर हो मैंने किताब छपवाने की ठान ली
नीरज जी को अनसुना कर दिया ;
और दिल की बात मान ली
जाते जाते नीरज जी फिर बोल गए
कानों में नीम सा कुछ घोल गए
बेटा ,दोबारा सोच ले
मेरी बात पर कान दे !

पर मैंने न कान, न नाक और न आंख दी
उनकी सलाह को आंख दिखा दी
एक कान से सुनी दूसरे से निकाल दी
मैं कहा , नीरज जी , बस अब देखिये क्या होता है
साहित्य की दुनिया में मेरा कैसा नाम होता है

घर आकर सारे रूपये लगाकर
मैंने मोटी सी किताब छपवाई
और अपने खर्चे पर दोस्तों को भिजवाई
और लोकार्पण की एक बड़ी पार्टी रखवाई
ये बात अलग है कि इस सारी प्रक्रिया में
बीबी ने मुझे डांट ही खिलाई
खाना तो छोड़िये चाय भी नहीं पिलाई

बहुत दिन बीत गए
कर्जा जिनसे लिया था
वो आने शुरू हो गए
मेरे नाम से गालियों के दौर शुरू हो गए
कविता की वाहवाही की कोई निशान नहीं था
साहित्य जगत में मेरे कोई नाम नहीं था

मैंने एक दिन फैसला किया
और दोस्तों के घर जाने का हौसला किया !!

एक दिन भरी बरसात में एक
दोस्त के घर गया और जो देखा
उसे जी भर भर कोसा
उसके बच्‍चे मेरी किताब के पेजों की
नाव बना रहे हैं और
एक दूसरे पर हवाई जहाज़ बना कर उड़ा रहे है
देख कर ये सीन दिल मेरा टूट गया
मैं उस दोस्त से रूठ गया !
दूसरे दोस्त के घर गया
उसका छोटा बच्चा खडा था
और मेरी किताब को चबा रहा था !!
तीसरे दोस्त के घर गया
वहां हाल और भी खराब थे
वे किताब को वो बेच कर छोले खा चुके थे !!!

घूमते घूमते रात हो गई
पेट में चूहे तांडव मचाने लगे
एक दोस्त के घर पहुंचा
वो बेचारा गरीब था
बरतनों से भी मरहूम था
उसने मेरी ही किताब पर रख कर दाल रोटी ,
मुझे बड़े प्यार से खिलाई
ऐसा कर के उसने मुझे बड़ी ठेस
पर पेट की आंतडि़यों को राहत पहुंचाई

वापिस आते हुए ठोकर लगी और मैं गिर पड़ा
मेरे पैर को मेरी किताब ने ही ठोका था
मुझे गिराने का मौका उसने नहीं चूका था
गिरा और बेहोश हो गया मैं
आँख खुली तो हॉस्पिटल नजर आया
मेरे उपर पड़ रही थी नीरज जी की छाया

नीरज जी हंसकर कहा
फिक्र मत करो , सब ठीक है
हॉस्पिटल का बिल कुछ ज्यादा आया था
तेरी मोटी किताबों को बेचकर चुकाया है
मैं फिर खुश हो गया
पर दोबारा से रो गया
जब मुझे बताया कि बिकी नहीं
मोटी थी, तुली हैं, तोलाराम कबाड़ी वाले ने खरीदी हैं
तभी बिल चुकाया है

हाय रे मेरी कविता की किताब
जिसने अस्‍पताल में भर्ती करवाया मुझे जनाब !!!

अब कभी भी अपनी कोई किताब नहीं छपवाऊंगा ,
ये बात अब समझ आ गयी है
अब आप भी इसे समझ ले , यही दुहाई है ......!!!!!

Monday, May 11, 2009

माँ का बेटा


वो जो अपनी माँ का एक बेटा था
वो आज बहुत उदास है !
बहुत बरस बीते ,
उसकी माँ कहीं खो गयी थी .....


उसकी माँ उसे नहलाती ,
खाना खिलाती , स्कूल भेजती
और फिर स्कूल से आने के बाद ,
उसे अपनी गोद में बिठा कर खाना खिलाती
अपनी मीठी सी आवाज़ में लोरियां सुनाती ..
और उसे सुलाती , दुनिया की नज़रों से बचाकर ....रखती !!!


उस बेटे को कभी कुछ माँगना न पड़ा ,
सब कुछ माँ ही तो थी ,उसके लिए ,
हमेशा के लिए... उसकी दुनिया बस उसकी माँ ही तो थी
अपनी माँ से ही सीखा उसने
सच बोलना , और हँसना
क्योंकि ,माँ तो उसके आंसुओ को
कभी आने ही नहीं देती थी
माँ से ही सीखा ,नम्रता क्या होती है
और मीठे बोल कैसे बोले जातें है
माँ से ही सीखा ,
कि हमेशा सबको क्षमा किया जाए
और सबसे प्यार किया जाए
वो जो अपनी माँ का एक बेटा था
वो आज बहुत उदास है !!


बहुत बरस बीते ,
उसकी माँ खो गयी थी ..
बहुत बरस हुए , उसकी माँ वहां चली गयी थी ,
जहाँ से कोई वापस नहीं लौटता ,
शायद ईश्वर को भी अच्छे इंसानों की जरुरत होती है !
वो जो बच्चा था ,वो अब एक
मशीनी मानव बना हुआ है ...
कई बार रोता है तेरे लिए
तेरी गोद के लिए ...


आज मैं अकेला हूँ माँ,
और बहुत उदास भी
मुझे तेरे बिन कुछ अच्छा नहीं लगता है
यहाँ कोई नहीं ,जो मुझे ; तुझ जैसा संभाले
तुम क्या खो गयी ,
मैं दुनिया के जंगल में खो गया !
आज ,मुझे तेरी बहुत याद आ रही है माँ !!!

Thursday, April 23, 2009

क्षितिज


तुमने कहीं वो क्षितिज देखा है ,
जहाँ , हम मिल सकें !
एक हो सके !!
मैंने तो बहुत ढूँढा ;
पर मिल नही पाया ,
कहीं मैंने तुम्हे देखा ;
अपनी ही बनाई हुई जंजीरों में कैद ,
अपनी एकाकी ज़िन्दगी को ढोते हुए ,
कहीं मैंने अपने आपको देखा ;
अकेला न होकर भी अकेला चलते हुए ,
अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए ,
अपने प्यार को तलाशते हुए ;
कहीं मैंने हम दोनों को देखा ,
क्षितिज को ढूंढते हुए
पर हमें कभी क्षितिज नही मिला !
भला ,
अपने ही बन्धनों के साथ ,
क्षितिज को कभी पाया जा सकता है ,
शायद नहीं ;
पर ,मुझे तो अब भी उस क्षितिज की तलाश है !
जहाँ मैं तुमसे मिल सकूँ ,
तुम्हारा हो सकूँ ,
तुम्हे पा सकूँ .
और , कह सकूँ ;
कि ;
आकाश कितना अनंत है
और हम अपने क्षितिज पर खड़े है
काश ,
ऐसा हो पाता;
पर क्षितिज को आज तक किस ने पाया है
किसी ने भी तो नही ,
न तुमने , न मैंने
क्षितिज कभी नही मिल पाता है
पर ;
हम ; अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर
अवश्य मिल रहें है !
यही अपना क्षितिज है !!
हाँ ; यही अपना क्षितिज है !!!

Monday, April 6, 2009

अचानक एक मोड़ पर


अचानक एक मोड़ पर , अगर हम मिले तो ,
क्या मैं , तुमसे ; तुम्हारा हाल पूछ सकता हूँ ;
तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हारे आँखों के ठहरे हुए पानी से
मेरा नाम पूछूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हारी बोलती हुई खामोशी से
मेरी दास्ताँ पूछूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तेरा हाथ थाम कर ,तेरे लिए ;

अपने खुदा से दुआ करूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हारे कंधो पर सर रखकर ,
थोड़े देर रोना चाहूं ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हे ये कहूँ ,की मैं तुम्हे ;
कभी भूल न पाया ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

आज यूँ ही तुम्हे याद कर रहा हूँ और
उस नाराजगी को याद कर रहा हूँ ;
जिसने एक अजनबी मोड़ पर ;
हमें अलग कर दिया था !!!


सुनो , क्या तुम अब भी मुझसे नाराज हो जांना !!!

Tuesday, March 31, 2009

अपना अफसाना


बहुत दिनों से ये चाह रहा था ;
कि, अपना अफसाना लिखूं...

और मेरा अफसाना भी क्या है
कुछ तेरे जैसा है , कुछ उसके जैसा है

दुनिया की भीड़ में भटकता हुआ
ज़िन्दगी के जंगल में खोया हुआ
किसी बच्चे की हंसी में मुस्कराता हुआ
और अपनी उदासी को समेटता हुआ
एक अदद इंसान की रूह में फंसा हुआ
अपने आप को तलाशता हुआ !

बस ऐसा ही कुछ मेरा अफसाना है ;
इसी अफ़साने से ही तो मेरी कविता जन्मती है !!

कहीं अगर मैं मिलूं तुम्हे तो मुझे पहचान लोंगे ना ?


Monday, March 30, 2009

यादें / MEMORIES

दोस्तों , इस ब्लॉग जगत ने मुझे कई सारे मित्र दिये है , जिनमे से एक है दिल्ली के श्री मनु जी . मैंने आज की कविता मनु जी को dedicate किया है . पिछली बार मैंने अर्श जी पर एक कविता लिखी थी , जो की मैंने कलकत्ता में लिखी थी , और incidently ये कविता भी मैंने मनु जी के लिए कलकत्ता में ही लिखी .. लगता है कलकत्ता के तरफ के मौसम बड़े आशिकाना है ..मोहब्बत के बादल वही ज्यादा बरसते नज़र आतें है ... कविता के साथ मेरा बनाया हुआ एक sketch भी है .... उम्मीद है की हमेशा की तरह आपका स्नेह और प्यार मिलेंगा ....


यादें / MEMORIES

आज ;
मैंने एक पुराना ,
मेरा अपना संदूक खोला ;
तो उसमे मौजूद तेरे प्यार की खुशबु
तेरी यादो के संग , मेरे कमरे को महका गयी .....

सबसे ऊपर है एक दुपट्टा ;
जो की तेरे घर की छ्त से ,
उड़कर मेरे आँगन आ गिरा था ,
कई बरस पहले की ये बात है ...
अब उसका रंग साफ़ नज़र नहीं आता है
मेरे आंसुओं ने कई बार उसे धो दिया है ..!

फिर तुम्हारी दी हुई सात चूडियाँ है ;
याद है तुम्हे ,
इन्हें देते वक़्त ,तुमने कहा था
ये मेरे सात फेरे है ,
जो मैं तेरे संग अगले जनम लूंगी ,
अगले सात जन्मों के लिए ...!
मैं ;
अक्सर उन चूडियों में मेरी ठहरी हुई ज़िन्दगी देखता हूँ ...!

और ये एक तेरा दिया हुआ रुमाल है ,
जिस पर तूने मेरा नाम काढा था ;
और ये क्या है …..
एक बाल है लम्बा सा , तुम्हारा ....
इस रुमाल में लिपटा हुआ ...
याद है , ये मैंने मेरी छाती पर पाया था ,उस दिन;
जिस दिन ,हमने जिस्म की आग से खुद को जलाया था !
तुम कह रही थी ,तुम मेरी ही रहोंगी ...
तुम कितनी झूठी थी !

और तेरे ख़त है ....
और मेरे ख़त भी , जो मैंने तुम्हे लिखे थे
और तुमने मुझे लौटा दिए थे...
ये कहकर कि ..
ये मेरी अमानत है ,किसी अगले जनम ,
मैं तेरे संग बाचुंगी !!

सबसे अंत में तेरी एक तस्वीर है ,
जिसके पीछे तुमने
मेरा नाम लिखा है
और लिखा है कि, तुम्हारे लिए !
सिर्फ तस्वीर ही बची रह गयी है ..
तुम नहीं .....

और भी बहुत कुछ है ..
जो किसी और को दिखाई नहीं देते है ...
तेरी कसमे और तेरे वादे..
तेरी और सिर्फ तेरी ही बातें ;
तेरी ठहरी हुई साँसे..
तेरा उदास मन ....
तेरी बिदाई ......................
बस हर तरफ सिर्फ तू ही तू है ....
और कहीं कहीं शायद मैं भी हूँ ...
तेरी यादों में खोया हुआ ...!

मैं क्या करूँ ..
अक्सर अपने कमरे में
ये संदूक खोल लेता हूँ , तेरी चीजो को छूता हूँ
और बहुत देर तक रोता हूँ !

कौन कहता है कि ;
यादे पूरानी होती है ..!!!

Monday, March 23, 2009

बिटिया


दोस्तों ; मेरे दो बच्चे है . मेरी बेटी मधुरिमा [ हनी ] ;12 बरस की है और मेरा बेटा तुषार [ वासु ] ; 7 बरस का है ! बच्चे तो मुझे बहुत प्यारे है और in fact ; मुझे सारे ही बच्चो से बहुत प्यार है ..पता नहीं , मुझे बच्चो में हमेशा ही भगवान दिखाई देते है .. बच्चो पर कविता लिखना मुझे हमेशा ही अच्छा लगता है ! मैंने बच्चो पर बहुत कुछ लिखा है .. Recently मैंने सुशील जी की बेटी नैना और नीरज जी की पोती मिष्टी पर भी कवितायेँ लिखी है ! [ अगर किसी मित्र को अपने छोटे बच्चे पर कोई कविता लिखवाना है तो मुझे कहियेगा , मैं जरुर लिख दूंगा ]...ये कविता मैंने मेरी बेटी के लिए लिखा है, लेकिन ये दुनिया की हर बेटी के लिए है ...बेटी है तो घर में खुशियाँ है ..ये बेटी ही बाद में पत्नी , बहु, माँ, सास, नानी ,दादी बनती है और हर घर की दुनिया का एक guiding light बनती है ...हनी मेरे जीवन में बहुत महत्त्व रखती है ..मैंने हमेशा से चाहा था की मुझे पहले बेटी की प्राप्ति हो ..और तो और मैंने उसके जनम के पहले उसका नाम भी रखा दिया था ..हनी !..मेरी निजी जीवन में हनी का बहुत बड़ा महत्व है she is everything to me ! ये कविता ,एक पिता की छोटी सी भेंट है अपनी बेटी के लिए .......उसके बहुत से प्यार के बदले में... बेटियाँ तो बस सब कुछ होती है .. ! और हाँ ये कविता आपकी बेटियों के लिए भी है .. मेरा सलाम है दुनिया की सारी बेटियों को !!!




बिटिया

हनी , तुझे मैंने पल पल बढ़ते देखा है !
पर तू आज भी मेरी छोटी सी बिटिया है !!

आज तू बारह बरस की है ;
लेकिन वो छोटी सी मेरी लड़की ....
मुझे अब भी याद है !!!

वही जो मेरे कंधो पर बैठकर ,
चाकलेट खरीदने ;
सड़क पार जाती थी !

वही ,जो मेरे बड़ी सी उंगली को ,
अपने छोटे से हाथ में लेकर ;
ठुमकती हुई स्कूल जाती थी !

और वो भी जो रातों को मेरे छाती पर ;
लेटकर मुझे टुकर टुकर देखती थी !

और वो भी ,
जो चुपके से गमलों की मिटटी खाती थी !

और वो भी जो माँ की मार खाकर ,
मेरे पास रोते हुए आती थी ;
शिकायत का पिटारा लेकर !

और तेरी छोटी छोटी पायल ;
छम छम करते हुए तेरे छोटे छोटे पैर !!!

और वो तेरी छोटी छोटी उंगुलियों में शक्कर के दाने !
और क्या क्या ......
तेरा सारा बचपन बस अभी है , अभी नही है !!!

आज तू बारह बरस की है ;
लेकिन वो छोटी सी मेरी लड़की ....
मुझे अब भी याद है !

वो सारी लोरियां ,मुझे याद है ,
जो मैंने तेरे लिए लिखी थी ;
और तुझे गा गा कर सुनाता था , सुलाता था !

और वो अक्सर घर के दरवाजे पर खड़े होकर ,
तेरे स्कूल से आने की राह देखना ;
मुझे अब भी याद आता है !

और वो तुझे देवताओ की तरह सजाना ,
कृष्ण के बाद मैंने सिर्फ़ तुझे सजाया है ;
और हमेशा तुझे बड़ी सुन्दर पाया है !

तुझे मैंने हमेशा चाँद समझा है ….
पूर्णिमा का चाँद !!!

आज तू बारह बरस की है ,
और ,वो छोटी सी मेरी लड़की ;
अब बड़ी हो रही है !

एक दिन वो छोटी सी लड़की बड़ी हो जाएँगी ;
बाबुल का घर छोड़कर ,पिया के घर जाएँगी !!!

फिर मैं दरवाजे पर खड़ा हो कर ,
तेरी राह देखूंगा ;
तेरे बिना , मेरी होली कैसी , मेरी दिवाली कैसी !
तेरे बिना ; मेरा दशहरा कैसा ,मेरी ईद कैसी !

तू जब जाए ; तो एक वादा करती जाना ;
हर जनम मेरी बेटी बन कर मेरे घर आना ….

मेरी छोटी सी बिटिया ,
तू कल भी थी ,
आज भी है ,
कल भी रहेंगी ….
लेकिन तेरे बैगर मेरी ईद नही मनेगी ..
क्योंकि मेरे ईद का तू चाँद है !!!

Thursday, March 19, 2009

बर्फ के रिश्ते / FROZEN RELATIONS


अक्सर सोचता हूँ ,
रिश्ते क्यों जम जातें है ;
बर्फ की तरह !!!

एक ऐसी बर्फ ..
जो पिघलने से इनकार कर दे...
एक ऐसी बर्फ ..
जो सोचने पर मजबूर कर दे..
एक ऐसी बर्फ...
जो जीवन को पत्थर बना दे......

इन रिश्तों की उष्णता ,
दर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ बन जाती है ......

और अक्सर हमें शूल की तरह चुभते है
और भीतर ही भीतर जमते जाते है ये रिश्तें..
फिर ; अचानक ही एक दिन ;
हम !
हमारे रिश्तों को देखते है
किसी पाषाण शिला
की तरह बर्फ में जमे हुए......

ये रिश्ते ताकते है ;
हमारी और !
और हमसे पूछते है ,
एक मौन प्रश्न ...
ये जनम क्या यूँ ही बीतेंगा !
हमारी जमी हुई उष्णता कब पिगलेंगी !

हम निशब्द होते है
इन रिश्तों के प्रश्नों पर
और अपनी जीवन को जटिलता पर ....

रिश्तों की बर्फ जमी हुई रहती है ..
और यूँ लगता है जैसे एक एक पल ;
एक एक युग की
उदासी और इन्तजार को प्रदर्शित करता है !!

लेकिन ;
इन रिश्तों की
जमी हुई बर्फ में
ये आंसू कैसे तैरते है .......

Monday, March 16, 2009

देह


देह के परिभाषा
को सोचता हूँ ;
मैं झुठला दूं !

देह की एक गंध ,
मन के ऊपर छायी हुई है !!

मन के ऊपर परत दर परत
जमती जा रही है ;
देह ….
एक देह ,
फिर एक देह ;
और फिर एक और देह !!!

देह की भाषा ने
मन के मौन को कहीं
जीवित ही म्रत्युदंड दे दिया है !

जीवन के इस दौड़ में ;
देह ही अब बचा रहा है
मन कहीं खो सा गया है !
मन की भाषा ;
अब देह की परिभाषा में
अपना परिचय ढूंढ रही है !!

देह की वासना
सर्वोपरि हो चुकी है
और
अपना अधिकार जमा चुकी है
मानव मन पर !!!

देह की अभिलाषा ,
देह की झूठन ,
देह की तड़प ,
देह की उत्तेजना ,
देह की लालसा ,
देह की बातें ,
देह के दिन और देह की ही रातें !

देह अब अभिशप्त हो चुकी है
इस से दुर्गन्ध आ रही है !
ये सिर्फ अब इंसान की देह बनकर रह गयी है :
मेरा परमात्मा , इसे छोड़कर जा चूका है !!

फिर भी घोर आश्चर्य है !!!
मैं जिंदा हूँ !!!


Thursday, March 12, 2009

जानवर


अक्सर शहर के जंगलों में ;
मुझे जानवर नज़र आतें है !
इंसान की शक्ल में ,
घूमते हुए ;
शिकार को ढूंढते हुए ;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए !

और फिर
एक और शिकार के तलाश में ,
भटकते हुए..!

और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
इंसान की भूख को देखकर !!!

मुझसे कह रहे थे..
तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे !!!

उन जानवरों के सामने ;
मैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक इंसान था !!!

Monday, March 9, 2009

नज़्म


बड़ी देर हो गई है ,
कागज़ हाथ में लिए हुए !

सोच रहा हूँ ,
कि कोई नज़्म लिखूं !

पर शब्द कहीं खो गए है ,
जज्बात कहीं उलझ गए है ,
हाथों की उंगलियाँ हार सी गई है ;

क्या लिखु .... कैसे लिखु ...

सोचता हूँ ,
या तो ;
सिर्फ “खुदा” लिख दूं !
या फिर ;
सिर्फ “मोहब्बत” लिख दूं !

इन दोनों से बेहतर भला
कोई और नज़्म क्या होंगी...!!!

Friday, March 6, 2009

प्रियतमा


कौन हो तुम प्रियतमा ;
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

क्या रजनीगंधा के फूलों की हो सुगंध !
या फिर आकाश के मेघो की हो उड़ान !
या फिर हो पहली बरखा की सोंधी खुशबु !
या फिर मेरे हृदय की हो धड़कन !

कौन हो तुम प्रियतमा ;
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

रजनीगंधा के फूलों की बनकर सुगंध ,
मेरे सम्पूर्णता मे समाई हो तुम ;
अपने आपको ; मैं तेरी खुशबू मे ढुंढु ;
मेरे अंतर्मन की देवी हो तुम !!
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

आकाश के मेघो की उड़ान हो तुम ,
उमड़ उमड़ कर दिल पर छा जाती हो तुम
उमंग भरे वसंत का उत्सव बनकर प्रिये
हृदय के आँगन को सजाती हो तुम !!
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

तुममे है पहली बरखा की सोंधी खुशबु ,
मन की तपती भूमि पर बरसती हो तुम ,
हवा भी छुकर तुझे ; बहती है मंद मंद;
प्यार का कुवाँरा अहसास हो तुम !!
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

मेरे ह्रदय की धड़कन बनकर मुझे थामा ,
क्या इसलिए की मेरे पास हो तुम ;
या फिर क्योंकि मैं हूँ तुमने मग्न,
कहो न कि, मुझमे समायी हुई हो तुम !!
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

कौन हो तुम प्रियतमा ;
कहो की ,तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

Monday, March 2, 2009

रिश्ते की राख़........


बहुत सी तस्वीरे बनाई मैंने
सोचा कि
एक तस्वीर तुम्हारी भी बना लूँ ...

कल रात कोशिश की,
तो ;
जिंदगी के कागज पर एक रिश्ता बन गया !

सुबह हुई तो देखा कि ,
कोई यार तेरा,
उस कागज़ को जला रहा था......

और तुम मेरे इश्क की राख
अपने अजनबी रिश्ते में घोल रही हो .......

सुनो !!!
तुम अगर कभी इश्क की कब्रगाह से गुजरो ,
और ;
वहां किसी कब्र से तुम्हारे नाम की
आह सुनाई दे....

तो समझना;
वहां मैं सोया हूँ , तेरा नाम लेते हुए !!

बस सिर्फ इश्क के नाम पर..
तुम उस रिश्ते कि राख़ मेरे कब्र पर डाल देना ;

जो कभी हम दोनों ने जिया था !!!

बस ...और क्या !!!
मोहब्बत की दुनिया यूँ ही तो ख़त्म की जाती है …….

Thursday, February 26, 2009

हीर दे लयी


दोस्तों , मेरी बहुत दिनों से इच्छा थी की ,मैं मराठी , पंजाबी और अंग्रेजी में कवितायेँ लिखूं . मैंने अंग्रेजी में तो लिखा है ,फिर कभी उन्हें पेश करूँगा .. बहुत जल्दी मराठी में भी लिख लूँगा .. रही बात पंजाबी की , तो एक कविता लिखा , जितनी पंजाबी मुझे आती थी , उस से उसका श्रृंगार किया , लेकिन बात कुछ बन नहीं रही थी .. फिर मैंने उसे अपने गुरु , आदरणीय नीरज जी को भेज दिया . अब गुरु तो गुरु है .उन्होंने उस कविता को बस पूर्ण रूप से पंजाबी बना दिया ...हालांकि ,उन्होंने कहा की ,कविता में थोडा और सुधार हो सकता है ....और मैंने कोशिश भी की , लेकिन ज्यादा कुछ और नहीं कर सका .. नीरज जी को नमन करते हुए ,कहूँगा की , बहुत जल्दी मैं एक सूफी गीत लिखूंगा और वो पंजाबी में रहेंगा ,और वो शुभ कार्य [ translation ] भी ,उन्ही को करना होंगा.. गुरु की जय हो...अब आप इस कविता को पढिये और अगर पसंद आये तो बहुत ज्यादा तारीफ , नीरज जी की और थोडी सी तारीफ मेरी भी कर दीजिये......

हीर दे लयी

आजा हुन ते प्यार लै हीरिये
तैनू मेरा दिल दा वास्ता हीरिये !!
आजा हुन ते प्यार लै हीरिये !!!

तेरे लई मैं जग छड्या
आजा हुन ते इकरार कर लै सोणिये
आजा हुन ते प्यार लै हीरिये !!!

तेरे बिना दिल दी तड़प न जावे
आजा हुन ते मेरी बावाँ विच माहिये
आजा हुन ते प्यार लै हीरिये !!!

तेरियां अख्खां विच नींद्रा वांग वां मैं
तैनू मेरा दिल कैंदा ;दिलदार चनवे ;
आजा हुन ते प्यार लै हीरिये !!!

हुन मिन्नू एक पल वि चैन नहियों औंदा
हुन मिन्नू अपना बना लै हीरिये ;
आजा हुन ते प्यार लै हीरिये !!!

आजा हुन ते प्यार लै हीरिये !!!
तैनू मेरे दिल दा वास्ता !!
आजा हुन ते प्यार लै हीरिये !!!

Monday, February 23, 2009

एक फौजी की शहादत


उस दिन मैंने उस गाँव में ,
उस बुढे किसान को देखा
उसके चश्मे का कांच टुटा हुआ था
और पैरो की चप्पले फटी हुई थी...

उसके चेहरे पर बड़ी वीरानी थी
मुझे बस से उतरते देख ;
वो दौड़ कर मेरे पास आया
मेरा हाथ पकड़ कर बोला ;

मेरा बेटा कैसा है
बड़े दिन हुए है , उसे जंग पर गए हुए ;
कह कर गया था कि ;
जल्दी लौट कर आऊंगा
पर अब तक नही आया
मेरी हालत तो देखो ....
इस उम्र में मुझे कितनी तकलीफे है
उसकी माँ का इलाज़ कराना है
उसकी बीबी उसका रास्ता देखती है ;
उसका बेटा उसके लिए तरसता है ...

मुझे अपने गले में मेरे आंसू फंसते हुए लगे ;
मैंने कुछ कहना चाहा ,पर मेरा गला रुंध गया था !

उसके पीछे खड़े लोगो ने कहा
कि; वो पागल हो चुका है
अपने बेटे की शहादत पर
जो की एक
फौजी था !!!

मेरी आँखें भीग उठी
वो बुढा अचानक
मेरा हाथ पकड़ कर बोला
बेटा घर चलो
हमने उसके बारे में बताओ....
तुम उसके पास से आ रहे हो न ..

मैंने खामोशी से वो उजाड़ रास्ता
तय किया , उस बुढे पिता के साथ ;
और उसके टूटे -फूटे घर पर पहुँचा !
उसने ,मुझे एक बूढी औरत से मिलाया
उसे मोतियाबिंद था !
उसने उससे कहा ,बेटे के पास से आया है
उसकी ख़बर लाया है ;
बूढी औरत रोने लगी
मैं स्तब्ध था , मुझे कुछ सूझ नही रहा था !

फिर उस फौजी की बेवा ;
ने मुझे पानी दिया पीने को .
मैंने उसकी तरफ़ देखा
कुल जहान का दुख उसके चेहरे पर था
इतनी उदासी और वीरानी मैंने कहीं और नही देखी थी
मैंने रुकते हुए पुछा घर का खर्चा कैसे चलता है
उसने कहा , औरो के घर के काम करती है

मुझसे रहा नही गया
मैंने कहा ,फौजी के कुछ रूपये देने थे ;
उससे बहुत पहले लिए थे...
ये ले लो !!!
और घर से बाहर आ गया
पीछे से एक बच्चा दौडता हुआ आया
मेरे कमीज पकड़ कर बोला
नमस्ते !
मैंने भीगी आंखों से उसे देखा
और पुछा ,
बड़े होकर क्या बनोंगे ?
उसने मुझे सलाम किया और कहा
मैं फौजी बनूँगा !!!

आँखों में आंसू लिए
मैंने बस में बैठते हुए अपने आप से कहा
मेरे देश में शहादत की ऐसी कीमत होती है !!!

वो फौजी हमें बचाने के लिए अपनी जान दे गया
और ये देश , उसके परिवार की जान ले लेंगा
मेरे देश में शहादत की ऐसी कीमत होती है !!!

फिर मैंने बस की खिड़की से उस बच्चे को देखा ,
वो दूर से हाथ हिला रहा था ......
उसने कहा था की वो फौजी बनेगा ..
एक और शहादत के लिये...
हमारे लिये ...
इस देश के लिये ........

Thursday, February 19, 2009

एक शाम और एक दिन


एक शाम थी, जब मैं तेरे शहर आया था ;
एक शाम थी, जब मैंने तुम्हे देखा था ;
एक शाम थी, जब मैंने तुझे चाहा था !!

फिर जिंदगी की बहुत सी शामें गुजरी .....
तेरे बिना तेरी याद में ....
अक्सर तन्हाई में ....
पर दिन कभी ख़तम नही होता था !

और अब.....
आज एक शाम है ,
आज तू मेरे शहर आजा,
आज मुझे देख ले..
आज मैं मर गया हूँ….मेरे जनाजे को देख लें ;

आज मेरी आखरी शाम है
अब ये किस्सा ख़तम हुआ ..

उफ़ , कितना बड़ा दिन था जिंदगी का .....

Saturday, February 14, 2009

पहचान


बादलों का एक टुकडा तू ,
अपने चेहरे पर लगा ले ...

कि ;
जब तू मुझसे मिलने आए तो
दुनियावाले तुझे देख न ले..
तुझे पहचान न ले...

अक्सर दुनियावालें मोहब्बत के चेहरों का खून करते है ..

Friday, February 13, 2009

श्री शिर्डी के साईबाबा पर मेरा ब्लॉग

दोस्तों ; मैंने शिर्डी के श्री साईबाबा पर एक ब्लॉग बनाया है . शिर्डी के साईबाबा, भगवान् के सच्चे स्वरुप है .मुझ पर उनकी अनेक कृपा है .मेरा ये ब्लॉग , बाबा को मेरी छोटी सी दक्षिणा है . मेरा उन्हें शत शत प्रणाम और चरणवंदना . मैंने इस ब्लॉग में बहुत से फोटो को एकत्रित करके अलग अलग पोस्ट में डाला है जो की उनके जीवन काल से जुड़ी हुई है . All the photos are in slide show format. Please click there to see all the photos. मुझे विश्वास है की बाबा आपके जीवन को भी अपने आशीर्वाद से बेहतर बनायेंगे.
Please click : http://shrisaibabaofshirdi.blogspot.com/

Wednesday, February 11, 2009

सरहद


सरहदे जब भी बनी ,
देश बेगाने हो गये
और इंसान पराये हो गये !!!

हमने भी एक सरहद बनायी है ;
एक ही जमीन को
कुछ अनचाहे हिस्सों में बांटा है ;

उस तरफ कुछ मेरी तरह ही ;
दिखने वाले लोग रहते है ;
इस तरफ के बन्दे भी कुछ ;
मेरी तरह की बोली बोलते है ;

फिर ये सरहदें क्यों और कैसी ..
जब से हम अलग हुए ,
तब से मैं ...इंसान की तलाश में ;
हर जगह अपने आप को ढूँढता हूँ

कभी इस तरफ के बन्दे जोश दिखाते है
कभी उस तरफ से नफरत की आग आती है
कभी हम मस्जिद तोड़ते है
कभी वो मन्दिर जलाते है ...

देश क्या अलग हुए .
धर्म अंधा हो गया
और खुदा और ईश्वर को अलग कर दिया

सुना है कि ;
जब सियासतदार पास नहीं होते है
तो ;
दोनो तरफ के जवान पास बैठकर
अपने बीबी -बच्चो की बातें करते है
और साथ में खाना खातें है

मैं सोचता हूँ
अगर सियासतदारों ने ऐसे फैसलें न किये होतें
तो आज हम ईद -दिवाली साथ मनाते होतें !!!!

Tuesday, February 10, 2009

मेरा फोटोग्राफी ब्लॉग

दोस्तों , मैं आप सब का अपने फोटोग्राफी ब्लॉग पर स्वागत करता हूँ. फोटोग्राफी मेरा शौक है और करीब २० सालों से फोटोग्राफी कर रहा हूँ.... मैंने अपने मार्केटिंग के करियर के दौरान पूरा भारत भ्रमण किया है और मेरी नज़र से भारत को देखा है ... मेरा देश दुनिया का सबसे सुंदर देश है , यहाँ पर्वत है , नदी है ,समंदर है , झरने है , रेतीला मैदान है और गाँव, शहर और अब क्या कहूँ .. सबसे सुंदर देश है मेरा.. आप सभी से विनंती है की , मेरा फोटोग्राफी ब्लॉग देखे और अपने बहुमूल्य कमेंट्स दे.
Please visit : http://photographyofvijay.blogspot.com/

Monday, February 9, 2009

लव लेटर बनाम नेता चीटर


दोस्तों , मैं एक हास्य-व्यंग्य रचना पेश कर रहा हूँ ..आपकी खिदमत में !!...मुझे उम्मीद है कि आपको पसंद आयेंगी.... जो मुझसे मिले है /जानते है ,उन्हें पता है कि music मेरी first life line है ,और comedy मेरी second life line... usually मैं खामोश ही रहता हूँ , लेकिन जब group में रहता हूँ तो हँसना और हँसाना मेरी फितरत बन जाती है ... इस कविता को अगर आप पसंद करेंगे तो मैं हर महीने दो-तीन हास्य रचनाएं जरुर लिखूंगा ..इस कविता का शीर्षक ,आदरणीय श्री अविनाश जी ने दिया है ....वो एक बेहतरीन हास्य-व्यंग्य लेखक है .. मैंने इस segment के लिए उन्हें अपना गुरु बना लिया है [ ब्लॉगर जगत के कई उस्तादों को अपना गुरु मान लिया है ,,इन सबका आशीर्वाद और प्यार मिलेंगा तो मेरा कल्याण जरुर होंगा ].....कविता को पढिये ...मुस्करिये...हंसिये...और मुझे अपना स्नेह और प्यार दीजियेगा ......हमेशा की तरह......




लव लेटर बनाम नेता चीटर

लिख रहा हूं मैं आज एक लव लैटर ,
अपनी बैठक रूपी गुफा में लेटकर ;
आ गई मेरी बीवी ,चौके से दौड़कर ;
जाने उसे कैसे हो गई इसकी ख़बर !

मुंह फाड़कर गुराई मुझ पर ,

फिर तुम कुछ लिख रहे हो ;
मेरे बाप की गाढ़ी कमाई यों ही उडा रहे हो !
कौन सी किताब से कविता चुरा रहे हो ;
और अपनी कह , उसे , अपना नाम जमा रहे हो !!

सुनकर मैं ये सब बिल्ली बन भीग गया ;
डरते हुए उससे दास्ताँ सारी कह गया ;
प्रिये, तुम्‍हें अपने पति पर फख्र होना चाहिए ;
विकट मुश्किल में सदा मेरा साथ देना चाहिए !

प्रेमिका अपने प्रेमी से नाराज़ है ;
उसका प्रेमी निकम्‍मा और बेजार है ;
प्रेमिका को प्रेमी लग रहा कचरा है ;
कविताओं से भर गई सारी कचरापेटी है ;
प्रेमिका उसी कचरापेटी के पास लेटी है ;
और ......
वो प्रेमिका कौन है ,
बात मेरी काट कर
जोर से चिल्ला कर
मेरी प्यारी बीवी ने आसमान सिर पर उठाया !
भौचक्का रह गया मैं
उसने सही था अंदाजा लगाया !!

मेरी बीवी नेता बन बकती रही
और मैं पब्लिक बन सुनता रहा !

वो चली गई ;
मुझे सब कुछ कह गई ;
कुछ गुस्से में , कुछ जल कर और बाकी भुनकर !!

मैं फिर लिखने लगा लव लैटर
बेशर्म नेताओं की तरह फिर दोबारा लेट कर ;
मैं लिखने लगा लव लैटर !!!!

Friday, February 6, 2009

नाम


दोस्तों , कल रात एक अजीब सी बात हुई .. मैं अपने किसी project के लिये PPT बना रहा था ... मुझे mobile पर एक call आयी , call दिल्ली से था , एक लड़की ने बात की , उसने कहा की वो मेरी कवितायें पढ़ती है , और हमेशा रोती है ; मैंने उसे counselling करते हुए समझाया कि poems are basically collective work of fact and fiction और कविता पढने के थोडी देर बाद normalcy को adopt कर लेना चाहिए. थोडी देर बाद उसने कहा कि मैं उस पर एक कविता लिखूं .. .. मैंने कहा कि, कहिये ; क्या कहना है , मैं कविता लिख दूँगा .. उसने थोड़ा रुक कर कहा ,कि , वो एक call-girl है ..और मुझसे बोली कि मैं उस पर और उस जैसी और औरतों पर एक नज़्म लिखूं.. मैंने उसका नाम पुछा , उसने नही बताया ..और फ़ोन cut कर दिया .... .. मैंने उस नम्बर पर call back किया , वो एक PCO -टेलीफोन बूथ का नम्बर था .. identity नही मिल पायी ….

मेरा कभी इन सबसे पाला नही पड़ा था , सुना जरुर था . मैंने सोचा और एक छोटी सी नज़्म लिखी .. आपको पक्का प्रभावित करेंगी .. ...

मैं अपनी ये नज़्म , उन सभी लड़कियों को नज़र करता हूँ .. और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ ; की उन्हें मुक्ति दे..

नाम

उस बंद कमरे में ;
मैंने उस से पुछा ,
तुम्हारा नाम क्या है ..

उसने कहा कि ,
नाम में क्या रखा है ,
मैं जिस्म हूँ !

यहाँ सब जिस्म के लिये आते है ,
और जिस्म से मिलकर जाते है '
नाम से कोई नही मिलता !

और सच कहूँ तो मैं अपना नाम भी भूल गई हूँ ,
इस जिस्म की दुनिया में अपनी पहचान भूल गई हूँ ..

रोज़ सुबह जब आइना देखती हूँ ..
अपने आपको नया नाम देती हूँ ..

फिर वो रुक कर बोली ..
आप जैसे ही किसी जिस्म ने मुझे यहाँ छोड़ा ,
आप जैसे ही कुछ जिस्म रोज़ सुबह शाम आते है
और मेरे पुराने नाम से मेरा जिस्म ले जाते है
और फिर मुझे एक नया नाम दे जाते है ....

फिर वो मेरा हाथ पकड़ कर बोली ,
आप क्या चाहते हो नाम या जिस्म ..
मैंने बड़ी उदासी से उसे देखा और कहा
कोई तुम्हे एक नाम दे दे ,यही एक ख्वाईश है

मैं वेश्यालय की सीढियां उतरते हुए सोच रहा था ..
कई सदियां पहले एक अहिल्या हुई थी ,
उसको उसका राम मिल गया था ....
जिसने उसका उद्धार किया था !!!

इस नाम को सिर्फ़ जिस्म मिलते है ......
क्या इसे भी कभी ;
कोई राम मिलेंगा !!!!

Wednesday, February 4, 2009

मेरे लिए


एक दिन जब तुम ;
मेरे द्वार आओंगी प्रिये,
एक अजनबी सुहागन का श्रंगार लिए हुये,
जब तुम मेरे घर आओंगी प्रिये..

तब मैं वो सब कुछ तुम्हे अर्पण कर दूँगा ..
जो मैंने तुम्हारे लिए बचा कर रखा है .....

कुछ बारिश कि बूँदें ... जिसमे हम और तुम भीगें थे...
कुछ ओस की नमी .. जिसका एहसास हमारें पैरों में है...
सर्दियों की गुलाबी धुप.... जिसकी गर्मी हमारें बदन में है...

और इस सब के साथ रखा है ...
कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
कुछ फूलों की मदमाती खुशबु ,
कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
कुछ ठहरे हुए से कदम,
कुछ आंसुओं की बूंदे,
कुछ उखड़ी हुई साँसे,
कुछ अधूरे शब्द,
कुछ अहसास,
कुछ खामोशी,
कुछ दर्द !

ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने
सिर्फ़ तुम्हारे लिये !

मुझे पता है ,एक दिन तुम आओंगी
मेरे घर आओंगी ;

लेकिन जब तुम मेरे घर आओंगी
तो ;
एक अजनबी खामोशी के साथ आना ,
थोड़ा ,अपने जुल्फों को खुला रखना ,
अपनी आँखों में नमी रखना ,
लेकिन मेरा नाम न लेना !!!

मैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
और तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा

लेकिन जब तुम मेरा घर छोड़ जाओंगी
तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये
हाँ ;
शायद मेरे लिये
हाँ मेरे लिये !!!

Monday, February 2, 2009

मेहर


दोस्तों, किसी भी स्त्री के लिए “तलाक” , उसकी ज़िन्दगी का सबसे भयानक शब्द है .. चाहे फिर वो कोई भी जाति या धर्म की हो ; तलाक दिए जाने के बाद स्त्री के मन की पीड़ा को मैंने इस नज़्म में उकेरने की कोशिश की है. मैंने इस कविता के लिए मुस्लिम समाज का परिवेश लिया है ... मैंने मेहर को background में लिया है .. [ मेहर = मुस्लिम धर्म में ,निकाह के वक्त , दुल्हन के साथ एक राशि दी जाती है ,जिसे मेहर कहते है और ऐसा कहा जाता है की , तलाक के वक्त ,सिर्फ़ मेहर के साथ पत्नी को वापस भेज दिया जाता है ] कविता में मैंने भावनाओं को जगह दी है; धर्म से न जोड़ते हुए सिर्फ़ स्त्री की पीड़ा को समाजियेंगा. ..उम्मीद है की आपको सदा की तरह मेरी ये नज़्म भी पसंद आएँगी ... मेरी ये नज़्म ,उन मजबूर लेकिन बहादूर महिलाओं के लिए है . मैं उन्हें सलाम करता हूँ और अपने ईश्वर से ये दुआ करता हूँ की ; प्रभु उनकी जिंदगियों के बेहतर बनाए..


मेहर

मेरे शौहर , तलाक बोल कर
आज आपने मुझे तलाक दे दिया !

अपने शौहर होने का ये धर्म भी
आज आपने पूरा कर दिया !

आज आप कह रहे हो की ,
मैंने तुम्हे तलाक दिया है ,
अपनी मेहर को लेकर चले जा....
इस घर से निकल जा....

लेकिन उन बरसो का क्या मोल है ;
जो मेरे थे, लेकिन मैंने आपके नाम कर दिए ...
उसे क्या आप इस मेहर से तोल पाओंगे ....

जो मैंने आपके साथ दिन गुजारे ,
उन दिनों में जो मोहब्बत मैंने आपसे की
उन दिनों की मोहब्बत का क्या मोल है ...

और वो जो आपके मुश्किलों में
हर पल मैं आपके साथ थी ,
उस अहसास का क्या मोल है ..

और ज़िन्दगी के हर सुख दुःख में ;
मैं आपका हमसाया बनी ,
उस सफर का क्या मोल है ...

आज आप कह रहे हो की ,
मैंने तुम्हे तलाक दिया है ,
अपनी मेहर को लेकर चले जा....

मेरी मेहर के साथ ,
मेरी जवानी ,
मेरी मोहब्बत
मेरे अहसास ,
क्या इन्हे भी लौटा सकोंगे आप ?

Monday, January 26, 2009

शब्दयुद्ध : आतंकवाद के विरुद्ध


दोस्तों ; जैसा की मैंने पिछली बार लिखा था , मेरी कविता " शहीद हूँ मैं …" एक poem cum poster , शब्दयुद्ध : आतंकवाद के विरुद्ध -exhibition के लिए select हुई है .


ये exhibition , क्षितिज के द्वारा पुणे में आयोजित की गई थी . श्री संजय भारद्वाज और श्रीमती सुधा भारद्वाज ने अपने अथक प्रयासों द्वारा इस प्रयोजन को सार्थक किया ..इसकी पृष्ठभूमि २६/११ के आतंकी हमले पर है ... हमारे देश में आतंकी हमलो के द्वारा करीब १८००० नागरिक मारे जा चुके है जो की हमारे युद्धों में मारे जाने वाले सैनिको से कहीं ज्यादा है .. आख़िर बेक़सूर नागरिको का दोष क्या है , सिर्फ़ इतना की वो एक ऐसे देश के नागरिक है , जहाँ राजनैतिक स्वार्थ अपनी परमसीमा पर है ... जहाँ हमें आज़ादी की असली कीमत नही मालूम ... जहाँ ,हमारी संवेदानाएं मर चुकी है ...जहाँ ये देश पूरी तरह से banana country बन चुका है ..

मुझे एक कथा याद आती है .. जब पृथ्वीराज चौहान को उनके कवि ने जोश दिलाया था , एक और कथा है , जहाँ कृष्ण , अर्जुन को अपने शब्दों के द्बारा युद्ध के लिए प्रेरित करते है .. Exhibition के opening पर पुणे के police commissioner ने कहा “शब्द और युद्ध permanent है लेकिन आतंक temporary है !” This makes us to wake up to the call of the nation .

मैं ये समझता हूँ की शब्दों के द्वारा ही हम इस सोये हुए और करीब करीब मरे हुए समाज में एक दुसरे युद्ध की भावना ला सकते है , ये युद्ध निश्चित तौर पर एक अच्छे देश के निर्माण के लिए होंगा.. बहुत सी कविताओं ने मेरी आँखें नम कर दी . मैंने ये फैसला किया है की regularly मैं एक रचना देश के ऊपर लिखूं ... घनश्यामदास अग्रवाल जी कहते है की , अगर कवि और लेखक देश को नही जगाने का कार्य करतें है तो उन्हें १०० गुना ज्यादा सज़ा देना चाहिए.. मैं वहां कई साहित्यकारों से मिला .


मैंने अपने तरफ़ से नीरज जी और शमा जी को बुलाया था , उन दोनों ने और राज सिंह जी ने मेरी exhibition में आकर शिरकत की [ मैं उन के मुकाबले कुछ भी नही , फिर भी उन्होंने मान रखा , इसके लिए उनका दिल से आभारी हूँ ] . I will post a separate post on them shortly.

मेरी कविता बहुत पसंद की गई , मुझे इस बात का गर्व है , की संजय जी की देश चेतना में मैं भी शरीक हूँ . I am thankful to them for selecting my poem for this exhibition .

मेरी कविता पर सुमेधा जी ने painting बनाई है , सुमेधा जी , एक बेहतरीन और talented artist है , इनकी painting exhibitions मुंबई और दिल्ली में हो चुकी है .

मैं इस पोस्ट के जरिये ये भी कहना चाहूँगा की अगर कोई इस exhibition को organise करना चाहेंगा तो मुझे बतलाएं .. मैं संजय जी से कहकर इस चेतना को आगे बढ़ाना चाहूँगा ...


जो भी सुधिजन श्री संजय जी को बधाई देना चाहते है वो उनसे [ mobile no : 09890122603 and email :
sanjaybhardwaj@hotmail.com ] पर संपर्क कर सकतें है . और जो भी paintings and art work में दिलचस्पी रखते है और सुमेधा जी की paintings खरीदना चाहते है , वो उनसे [ mobile no : 09860312093 and email : sumedha.umale@gmail.com ] पर संपर्क कर सकतें है.

मैं अपनी कविता और सुमेधा जी की painting और कुछ exhibition के photographs दे रहा हूँ ....

दोस्तों , मेरी ये नज़्म , उन सारे शहीदों को मेरी श्रद्दांजलि है , जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर , मुंबई को आतंक से मुक्त कराया. मैं उन सब को शत- शत बार नमन करता हूँ. उनकी कुर्बानी हमारे लिए है .

शहीद हूँ मैं .....

मेरे देशवाशियों
जब कभी आप खुलकर हंसोंगे ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी नही हँसेंगे...

जब आप शाम को अपने
घर लौटें ,और अपने अपनों को
इन्तजार करते हुए देखे,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी भी मेरा इन्तजार नही करेंगे..

जब आप अपने घर के साथ खाना खाएं
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी भी मेरे साथ खा नही पायेंगे.

जब आप अपने बच्चो के साथ खेले ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
मेरे बच्चों को अब कभी भी मेरी गोद नही मिल पाएंगी !!

जब आप सकून से सोयें
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
वो अब भी मेरे लिए जागते है ...!!

मेरे देशवाशियों ;
शहीद हूँ मैं ,
मुझे भी कभी याद कर लेना ..
आपका परिवार आज जिंदा है ;
क्योंकि ,
नही हूँ...आज मैं !!!!!
शहीद हूँ मैं …………..!!!!

[ Painting made by Ms. Sumedha on my poem ]















[ one of the poster at the exhibition ]



[ one of the poster at the exhibition ]



[ my poem and painting poster ]


[mr. Sanjay and Mrs. Sudha bhardwaj with Ms. Sumedha ]
[ Me with mr. and Mrs. bahrdwaj ]
[ shri neeraj ji with my poster ]

[ me with the poster ]

[ Ms. Sumedha with the poster ]


[ Police commissioner - pune reading my poem ]

[ General public -college students ,watching my poster ]

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...