दोस्तों , ये मेरी 100 वी पोस्ट है , इस मुकाम तक पहुँचने के लिए , आपके प्यार के लिए , आपकी हौसला - अफजाई के लिए , आपकी दोस्ती के लिए और आपके आर्शीवाद के लिए ; मैं आप सबका दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ , और आप सब का आभारी हूँ !! मैं विनंती करता हूँ कि , इसी तरह से आप सभी ; मुझ पर अपना प्यार और आर्शीवाद बनाये रखे ॥
दोस्तों , मुझे इस रचना की प्रेरणा, श्री राजेंद्र सिंह बेदी की उर्दू कहानी " टर्मिनस " से मिली ..... हमेशा की तरह दिल से लिखा है ,उम्मीद है कि आपको अच्छी लगेंगी !!
……………..हकीक़त तो यही है की हम सब ज़िन्दगी की एक बड़ी सी रेलगाडी में सवार है और अपने अपने स्टेशन की राह देख रहे है ...!!!
मुसाफ़िर
इंजिन की तेज सीटी ने
मुझे नींद से उठा दिया ...
मैंने उस इंजिन को कोसा
क्योकि मैं एक सपना देख रहा था
उसका सपना !!!
ट्रेन , पता नहीं किस स्टेशन से गुजर रही थी
मैंने अपने थके हुए बुढे शरीर को ;
खिड़की वाली सीट पर संभाला ;
मुझे ट्रेन की खिड़की से बाहर देखना अच्छा लगता था !
बड़े ध्यान से मैंने अपनी गठरी को टटोला ,
वक़्त ने उस पर धुल के रंगों को ओढा दिया था ....
उसमे ज्यादातर जगह ;
मेरे अपने दुःख और तन्हाई ने घेर रखी थी
और कुछ अपनी - परायी यादे भी थी ;
और हाँ एक फटी सी तस्वीर भी तो थी ;
जो उसकी तस्वीर थी !!!
बड़ी देर से मैं इस ट्रेन में बैठा था
सफ़र था की कट ही नहीं रहा था
ज़िन्दगी की बीती बातो ने
कुछ इस कदर उदास कर दिया था की
समझ ही नहीं पा रहा था की मैं अब कहाँ जाऊं..
सामने बैठा एक आदमी ने पुछा
“बाबा , कहाँ जाना है ?”
बेख्याली में मेरे होंठो ने कहा ;
“होशियारपुर !!!”
कुछ शहर ज़िन्दगी भर के लिए;
मन पर छप जाते है , अपने हो जाते है ..!
होशियारपुर भी कुछ ऐसा ही शहर था
ये मेरा शहर नहीं था , ये उसका शहर था;
क्योंकि, यही पहली बार मिला था मैं उससे !
आदमी हंस कर बोला ,
“बाबा , आप तो मेरे शहर को हो ...
मैं भी होशियारपुर का बन्दा हूँ”
“बाबा, वहां कौन है आपका ?”
आदमी के इस सवाल ने
मुझे फिर इसी ट्रेन में ला दिया
जिसके सफ़र ने मुझे बहुत थका दिया था
मैंने कहा .. “कोई है अपना
....जिससे मिले बरसो बीत गए ...”
उसी से मिलने जा रहा हूँ ..
बहुत बरस पहले अलग हुआ था उससे
तब उसने कहा था की कुछ बन के दिखा
तो तेरे संग ब्याह करूँ… तेरे घर का चूल्हा जलाऊं !!
“मैंने कुछ बनने के लिए शहर छोड़ दिया
पर अब तक ……. कुछ बन नहीं पाया
बस; सांस छुटने के पहले..
एक आखरी बार उससे मिलना चाहता हूँ !!!”
आदमी एक दर्द को चेहरे पर लेकर चुप हो गया
मैंने खिड़की से बाहर झाँका ...
पेड़, पर्वत, पानी से भरे गड्डे,
नदी, नाले, तालाब ; झोपडियां ,
आदमी , औरत , बच्चे
सब के सब पीछे छूटे जा रहे थे
भागती हुई दुनिया ......भागती हुई ज़िन्दगी
और भागती हुई ट्रेन के साथ मेरी यादे...
किस कदर एक एक स्टेशन छुटे जा रहे थे
जैसे उम्र के पड़ाव पीछे छुट गए थे
कितने दोस्त और रिश्तेदार मिले ,
जो कुछ देर साथ चले और फिर बिछड गए
लेकिन वो कभी भी मुझसे अलग नहीं हुई..
अपनी यादो के साथ वो मेरे संग थी
क्योंकि, उसने कहा था ;
“तेरा इन्तजार करुँगी करतारे
जल्दी ही आना” ;
आदमी बोला , “फगवारा गया है अभी
जल्दी ही जालंधर आयेगा ,
फिर आपका होशियारपुर !!!”
मेरा होशियारपुर ..!!!
मैंने एक आह भरी
हाँ , मेरा हो सकता था ये शहर ..
लेकिन क्या शहर कभी किसी के हो सकते है
नहीं , पर बन्दे जरुर शहर के हो सकते है
जैसे वो थी ......इस शहर की
मैंने अपने आप से मुस्कराते हुए कहा
“अगर वो न होती तो मेरे लिए ये शहर ही नहीं होता !”
आदमी को जवाब देने के लिए;
जो ,मैंने कहीं पढ़ा था ; कह दिया कि..
“दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है ,
अपनी अपनी बोलियों बोलकर सब उड़ जायेंगे !!!”
जालन्धर पर गाडी बड़ी देर रुकी रही ,
आदमी ने मेरे लिए पानी और चाय लाया
रिश्ते कब ,कहाँ और कैसे बन जाते है ,
मैं आज तक नहीं समझ पाया
जैसे ही ट्रेन चल पढ़ी ,
अब मेरी आँखों में चमक आ गयी थी
मेरा स्टेशन जो आने वाला था
आदमी ने धीरे से , मुझसे पुछा
“बहुत प्यार करते थे उससे”
मैंने कहीं बहुत दूर ……बहुत बरस पहले ;
डूबते हुए सूरज के साथ ,
झिलमिल तारो के साथ ,
छिटकती चांदनी के साथ ,
गिद्धा की थाप के साथ,
सरसों के लहलहाते खेतो में झाँककर कहा
“हाँ .. मैं उससे बहुत प्यार करता था..
वो बहुत खूबसूरत थी …..
सरसों के खेतो में उड़ती हुई उसकी चुनरी
और उसका खिलखिलाकर हँसना ...
बैशाखी की रात में उसने वादा किया था
की वो मेरा इन्तजार करेंगी
मुझे यकीन है कि ;
वो मेरा इन्तजार कर रही होंगी अब तक ;
बड़े अकेले जीवन काटा है मैंने
अब उसके साथ ही जीना है ;
और उसके साथ ही मरना है”
नसराला स्टेशन पीछे छुटा
तो , मैंने एक गहरी सांस ली
और मैंने अपनी गठरी संभाली
एक बार उसकी तस्वीर को देखा
अचानक आदमी ने झुककर ;
तस्वीर को बड़े गौर से देखा
फिर मेरी तरफ देखा
और फिर मुझसे धीरे से कहा ,
“इसका नाम संतो था क्या ...”
मैंने ख़ुशी से उससे पुछा
“तुम जानते हो उसे” ,
आदमी ने तस्वीर देख कर कहा
“ये ……...............................................
……….ये तो कई बरस पहले ही पागल होकर मर गयी
किसी करतारे के प्यार में पागल थी..
हमारे मोहल्ले में ही रहती थी .................”
फिर मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ा
ट्रेन धीमे हो रही थी ….
कोई स्टेशन आ रहा था शायद..
मुझे कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था
शायद बहते हुए आंसू इसके कारण थे
गला रुंध गया था …सांस अटकने लगी थी
धीरे धीरे सिसकते हुए ट्रेन रुक गयी
एक दर्द सा दिल में आया
फिर मेरी आँख बंद हो गयी
जब आँख खुली तो देखा ;
डिब्बे के दरवाजे पर संतो खड़ी थी
मुस्कराते हुए मुझसे कहा
चल करतारे , चल ,
वाहे गुरु के घर चलते है !!
मैं उठ कर संतो का हाथ पकड़ कर
वाहे गुरु के घर की ओर चल पड़ा
पीछे मुड़कर देखा तो मैं गिर पड़ा था
और वो आदमी मुझे उठा रहा था
मेरी गठरी खुल गयी थी
और मेरा हाथ
संतो की तस्वीर पर था
डिब्बे के बाहर देखा ;
तो स्टेशन का नाम था …..
……..होशियारपुर !!!
मेरा स्टेशन आ गया था !!!
इंजिन की तेज सीटी ने
मुझे नींद से उठा दिया ...
मैंने उस इंजिन को कोसा
क्योकि मैं एक सपना देख रहा था
उसका सपना !!!
ट्रेन , पता नहीं किस स्टेशन से गुजर रही थी
मैंने अपने थके हुए बुढे शरीर को ;
खिड़की वाली सीट पर संभाला ;
मुझे ट्रेन की खिड़की से बाहर देखना अच्छा लगता था !
बड़े ध्यान से मैंने अपनी गठरी को टटोला ,
वक़्त ने उस पर धुल के रंगों को ओढा दिया था ....
उसमे ज्यादातर जगह ;
मेरे अपने दुःख और तन्हाई ने घेर रखी थी
और कुछ अपनी - परायी यादे भी थी ;
और हाँ एक फटी सी तस्वीर भी तो थी ;
जो उसकी तस्वीर थी !!!
बड़ी देर से मैं इस ट्रेन में बैठा था
सफ़र था की कट ही नहीं रहा था
ज़िन्दगी की बीती बातो ने
कुछ इस कदर उदास कर दिया था की
समझ ही नहीं पा रहा था की मैं अब कहाँ जाऊं..
सामने बैठा एक आदमी ने पुछा
“बाबा , कहाँ जाना है ?”
बेख्याली में मेरे होंठो ने कहा ;
“होशियारपुर !!!”
कुछ शहर ज़िन्दगी भर के लिए;
मन पर छप जाते है , अपने हो जाते है ..!
होशियारपुर भी कुछ ऐसा ही शहर था
ये मेरा शहर नहीं था , ये उसका शहर था;
क्योंकि, यही पहली बार मिला था मैं उससे !
आदमी हंस कर बोला ,
“बाबा , आप तो मेरे शहर को हो ...
मैं भी होशियारपुर का बन्दा हूँ”
“बाबा, वहां कौन है आपका ?”
आदमी के इस सवाल ने
मुझे फिर इसी ट्रेन में ला दिया
जिसके सफ़र ने मुझे बहुत थका दिया था
मैंने कहा .. “कोई है अपना
....जिससे मिले बरसो बीत गए ...”
उसी से मिलने जा रहा हूँ ..
बहुत बरस पहले अलग हुआ था उससे
तब उसने कहा था की कुछ बन के दिखा
तो तेरे संग ब्याह करूँ… तेरे घर का चूल्हा जलाऊं !!
“मैंने कुछ बनने के लिए शहर छोड़ दिया
पर अब तक ……. कुछ बन नहीं पाया
बस; सांस छुटने के पहले..
एक आखरी बार उससे मिलना चाहता हूँ !!!”
आदमी एक दर्द को चेहरे पर लेकर चुप हो गया
मैंने खिड़की से बाहर झाँका ...
पेड़, पर्वत, पानी से भरे गड्डे,
नदी, नाले, तालाब ; झोपडियां ,
आदमी , औरत , बच्चे
सब के सब पीछे छूटे जा रहे थे
भागती हुई दुनिया ......भागती हुई ज़िन्दगी
और भागती हुई ट्रेन के साथ मेरी यादे...
किस कदर एक एक स्टेशन छुटे जा रहे थे
जैसे उम्र के पड़ाव पीछे छुट गए थे
कितने दोस्त और रिश्तेदार मिले ,
जो कुछ देर साथ चले और फिर बिछड गए
लेकिन वो कभी भी मुझसे अलग नहीं हुई..
अपनी यादो के साथ वो मेरे संग थी
क्योंकि, उसने कहा था ;
“तेरा इन्तजार करुँगी करतारे
जल्दी ही आना” ;
आदमी बोला , “फगवारा गया है अभी
जल्दी ही जालंधर आयेगा ,
फिर आपका होशियारपुर !!!”
मेरा होशियारपुर ..!!!
मैंने एक आह भरी
हाँ , मेरा हो सकता था ये शहर ..
लेकिन क्या शहर कभी किसी के हो सकते है
नहीं , पर बन्दे जरुर शहर के हो सकते है
जैसे वो थी ......इस शहर की
मैंने अपने आप से मुस्कराते हुए कहा
“अगर वो न होती तो मेरे लिए ये शहर ही नहीं होता !”
आदमी को जवाब देने के लिए;
जो ,मैंने कहीं पढ़ा था ; कह दिया कि..
“दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है ,
अपनी अपनी बोलियों बोलकर सब उड़ जायेंगे !!!”
जालन्धर पर गाडी बड़ी देर रुकी रही ,
आदमी ने मेरे लिए पानी और चाय लाया
रिश्ते कब ,कहाँ और कैसे बन जाते है ,
मैं आज तक नहीं समझ पाया
जैसे ही ट्रेन चल पढ़ी ,
अब मेरी आँखों में चमक आ गयी थी
मेरा स्टेशन जो आने वाला था
आदमी ने धीरे से , मुझसे पुछा
“बहुत प्यार करते थे उससे”
मैंने कहीं बहुत दूर ……बहुत बरस पहले ;
डूबते हुए सूरज के साथ ,
झिलमिल तारो के साथ ,
छिटकती चांदनी के साथ ,
गिद्धा की थाप के साथ,
सरसों के लहलहाते खेतो में झाँककर कहा
“हाँ .. मैं उससे बहुत प्यार करता था..
वो बहुत खूबसूरत थी …..
सरसों के खेतो में उड़ती हुई उसकी चुनरी
और उसका खिलखिलाकर हँसना ...
बैशाखी की रात में उसने वादा किया था
की वो मेरा इन्तजार करेंगी
मुझे यकीन है कि ;
वो मेरा इन्तजार कर रही होंगी अब तक ;
बड़े अकेले जीवन काटा है मैंने
अब उसके साथ ही जीना है ;
और उसके साथ ही मरना है”
नसराला स्टेशन पीछे छुटा
तो , मैंने एक गहरी सांस ली
और मैंने अपनी गठरी संभाली
एक बार उसकी तस्वीर को देखा
अचानक आदमी ने झुककर ;
तस्वीर को बड़े गौर से देखा
फिर मेरी तरफ देखा
और फिर मुझसे धीरे से कहा ,
“इसका नाम संतो था क्या ...”
मैंने ख़ुशी से उससे पुछा
“तुम जानते हो उसे” ,
आदमी ने तस्वीर देख कर कहा
“ये ……...............................................
……….ये तो कई बरस पहले ही पागल होकर मर गयी
किसी करतारे के प्यार में पागल थी..
हमारे मोहल्ले में ही रहती थी .................”
फिर मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ा
ट्रेन धीमे हो रही थी ….
कोई स्टेशन आ रहा था शायद..
मुझे कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था
शायद बहते हुए आंसू इसके कारण थे
गला रुंध गया था …सांस अटकने लगी थी
धीरे धीरे सिसकते हुए ट्रेन रुक गयी
एक दर्द सा दिल में आया
फिर मेरी आँख बंद हो गयी
जब आँख खुली तो देखा ;
डिब्बे के दरवाजे पर संतो खड़ी थी
मुस्कराते हुए मुझसे कहा
चल करतारे , चल ,
वाहे गुरु के घर चलते है !!
मैं उठ कर संतो का हाथ पकड़ कर
वाहे गुरु के घर की ओर चल पड़ा
पीछे मुड़कर देखा तो मैं गिर पड़ा था
और वो आदमी मुझे उठा रहा था
मेरी गठरी खुल गयी थी
और मेरा हाथ
संतो की तस्वीर पर था
डिब्बे के बाहर देखा ;
तो स्टेशन का नाम था …..
……..होशियारपुर !!!
मेरा स्टेशन आ गया था !!!
विजय जी ,पहले तो आपकी सौवीं पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाई .
ReplyDeleteआपकी कहानी कहती हुई कविता बेहद मर्मस्पर्शी बन पड़ी है ,पर माफ़ कीजियेगा तेरा जाना में जहाँ एक सच्चाई नज़र आती है उसकी इसमें कमी लगी .
हमेशा की तरह रुलाने वाली कविता है पर फिर भी बढ़िया रचना के लिए बधाई .
pehle to 100vi post ke liye badhai..........
ReplyDeletehaan! kahani ke roop mein aapne ek bahut achchi kavita kikhi hai..........
Gr88888888888
१०० वि पोस्ट के लिए हार्दिक शुभकामनाये.
ReplyDeleteregards
bahut bahut badhaaye 100 post aur ek naayaab kavita ke liye ...
ReplyDeletearsh
१०० वी पोस्ट के लिये शत शत बधाई
ReplyDeleteकहानी-कविता के सस्पे़स को प्रेमिका के घर तक ले जाते. प्रवाह बढिया है.
बधाई,100 वीं पोस्ट की और एक अच्छी रचना की।
ReplyDeleteआपको 100वें पोस्ट के लिये बहुत बहुत बधाई। कहानी बहुत बडिया है। हरमिन्द्र बेडी जी हिन्दी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं । उनका हिन्दी प्रेम वन्दनीय है । कविता की तरह ही आपने कहानी के प्रवाह को बनाये रखा है नहुत बहुत बधाई
ReplyDelete"...पीछे मुड़कर देखा तो मैं गिर पड़ा था
ReplyDeleteऔर वो आदमी मुझे उठा रहा था
मेरी गठरी खुल गयी थी
और मेरा हाथ
संतो की तस्वीर पर था
डिब्बे के बाहर देखा ;
तो स्टेशन का नाम था …..
……..होशियारपुर !!!
मेरा स्टेशन आ गया था !!! "
विजय जी!
बहुत नायाब पोस्ट लिखी है आपने!
जो व्यक्ति श्री राजेंद्र सिंह बेदी की कथा से प्रेरित हो उसे में साधारण साहित्यकार कहने की भूल तो कर ही नही सकता। कामना है कि आप नियमित हो्कर लिखते रहें।
100वीं पोस्ट की बधाई के साथ मेरी शुभकामनाएँ भी आपके साथ हैं।
ए मुसाफिर इस सफ़र में हम तेरे हमसफ़र हैं...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना... के लिए शुक्रिया...
मीत
vijay ji
ReplyDeletesabse pahle 100th post ke liye hardik badhayi.........ummeed karti hun jaldi hi aapki 1000 vi post bhi hamein padhne ko milegi.
jahan tak musafir ki baat hai........padhte padhte dil ki dhadkaien badh gayi .......koi kisi ka kis had tak intzar kar sakta hai aur koi kisi ko kis had tak chah sakta hai uska darshan hai aapki is kavita mein.dil ki gahraiyon se mehsoos karke likhi gayi kavita hai jaise khud ne jhela ho wo dard.mere pass shabd nhi hain bayab karne ke liye.
gr8.........amazing...........marvellous.
Sabse pahle badhayee qobool karen!
ReplyDeleteRachna to sundar haihee..
बहुत ही गहरे भाव हैं, हार्दिक बधाई इस सुन्दर कविता की और सौवीं पोस्ट की भी।
ReplyDeleteThink Scientific Act Scientific
सब कुछ ठीक है,
ReplyDeleteपर आपके ब्लाग पर रंग संयोजन अखरता है
काले रंग पर पढ़ना आंखों पर अत्याचार करने के समान है। हमारी मानो तो इसको बदल डालो
आपको सौ वीं पोस्ट के लिए बधाई
ReplyDeleteऔर आपकी ये रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा
१००वि पोस्ट की बहुत बहुत बधाई आपको लिखा आपने हमेशा की तरह अच्छा है ..भावुक कर देने वाली रचना है बधाई आपको
ReplyDeleteमेरी ओर से भी बधाई स्वीकारें !
ReplyDeleteइस मार्मिक पोस्ट के लिए हार्दिक शुभकामनायें और आपकी आत्मीयता के लिए आभार !!
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना लिख डाली। शुरु से लेकर अंत डूबता चला गया आपकी इस रचना में। सच कुछ रिश्ते होते ही ऐसे है जो भुलाए नही भूलते है। ऐसे ही रिश्ता अपने खूबसूरत शब्दों से बयान कर दिया आपने। वाकई आपने प्यार की खूबसूरती को बखूबी समझा है। हमें तो पसंद आई आपकी ये 100वी पोस्ट। बधाई इस 100वी पोस्ट के लिए। आप ऐसे ही खूबसूरत रचनाएं लिखते रहे बस और हम पढते रहे।
ReplyDeleteविजय जी आप को आप की सॊवी पोस्ट के लिये बहुत बहुत बधाई.बाकी आप की रेल गाडी थोडी लम्बी हो गई , लेकिन सुंदर कहानी सुनते सुनते कब हम होशियार पुर पहुच गये पता ही नही चला, मै होशियार पुर दो बार आया हू, एक बार जब पेदा हुआ तब दुसरा जब १४,१५ बर्ष का था,
ReplyDeleteआप का धन्यवाद
हर कविताओं में एक खासियत होती है....मन तक जाती है
ReplyDeleteविजय जी सौंवी पोस्ट की बहुत बहुत बधाई...आप इसी तरह शतक पर शतक लगाते रहें...राजिंदिर सिंह बेदी जी की जिस कहानी से आपने prerna ले कर कविता rachi है वो बहुत marm sparshi थी...आज के daur में ये devdaas roopi प्रेम सिर्फ kahaniyon में ही reh gayua है...vastikvta से इसका कोई rishta नहीं रहा...achchha prayaas किया है आपने...
ReplyDeleteneeraj
आपको सौवीं पोस्ट के लिए अनेक बधाईयाँ. इसी तरह ही सुन्दर रचनाएं लिखते रहिए. बहुत सुन्दर रचना है जिसमें हृदय के भाव शब्दों में सजीव हो उठे हैं. पढ़ते पढ़ते पाठक स्वयं ही भावुक हो जाता है. आजकल इस प्रकार की कवितायेँ बहुत कम मिलती हैं, इसीलिए आपकी कवितायेँ सहजने योग्य होती हैं - भावों से ओत-प्रोत, सीधे दिल को छू जाती हैं. इस कविता के बारे में यही कह सकता हूँ - एक बहुत ही सुन्दर मार्मिक रचना है, पूरी रचना सजीव हो कर सामने आगई है. पढ़ने के बाद स्तब्ध सा हो गया मैं. अति सुन्दर!
ReplyDeleteविजय जी !
ReplyDeleteपहले तो एक खूबसूरत शतक बनाने पर
बधाई स्वीकार करें ......
आपकी एक-एक रचना पर पढने वालों
का हुजूम आपको बधाई देने आता है ...
ये आपकी सफलता का प्रमाण है ...
आप तो हुज़ूर दोस्तों के दिलों में बस चुके हैं आपकी रचनाओं का इंतज़ार रहता है सबको
जिन लोगों से आप प्रभावित रहते हैं
उन सब को भी ....
हम पूरी खबर रखते हैं हुज़ूर . . .
ये रचना भी अपने आप में अनूठी है
जिंदगी के फलसफे को बताती हुई
दिल की टीस को बयान करती हुई....
एक बार फिर से मुबारकबाद
---मुफलिस---
एक सुन्दर मार्मिक काव्य रचना !
ReplyDeleteमैं तो कवी को संतो का गुनाहगार ही ठहराउंगा !
ye kavita sach me shatabdi tak logo ki rooh ko chhuye...aisi meri dua h...ab sochti hu k kya isse behtar kuchh likha ja sakta h? sach me adbhut aur hridayasparshi...
ReplyDeleteएक लम्बी परन्तु उत्कृष्ट काव्य । आभार
ReplyDeleteCentury banane ke liye badhai.......aapki bhaavpoorn rachna achchi hai
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना काबिले तारीफ है! सौवी पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है | आप को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeletebahut sundar likha hai aapne.....100th post ki badhai sweekar kare
ReplyDelete१०० वीं पोस्ट के लिए बधाई.. किन्तु जिस रूप में आपने कविता कथा लिखी, मुझे बाद में लगा कि हेप्पी एंडिंग है - पर थोडा विचलित कर दीया आपकी कविता न..बहुत दमदार है... काफी असर छोड़ गयी ..
ReplyDeleteखूबसूरत और भाव प्रवण रचना ...१०० वें पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
satak pura karne ke liye badhai..
ReplyDeletewakai rula diya aapne
ReplyDeletekya sach me kisi se koi itna pyar karta hai
ReplyDeleteThis is an extremely moving and engrossing piece of creation . A story with the rhythm and flow of a poem !! Beautifully written . Thanks!!
ReplyDeleteसर आसूं आ गए... रोंगटे खड़े कर दिए.. प्यार..प्यार...कब समझेगा ये जमाना...
ReplyDelete