Wednesday, February 27, 2013

सिलसिला



सिलसिला कुछ इस तरह बना..........!

कि मैं लम्हों को ढूंढता था खुली हुई नींद के तले |
क्योंकि मुझे सपने देखना पसंद थे - जागते हुए भी ; 
और चूंकि मैं उकता गया था ज़िन्दगी की हकीक़त से !
अब किताबो में लिखी हर बात तो सच नहीं होती न .
इसलिए मैं लम्हों को ढूंढता था ||

फिर एक दिन कायनात रुक गयी ;
दरवेश मुझे देख कर मुस्कराये 
और ज़िन्दगी के एक लम्हे में तुम दिखी ;
लम्हा उस वक़्त मुझे बड़ा अपना सा लगा ,
जबकि वो था अजनबी - हमेशा की तरह ||

देवताओ ;
मैंने उस लम्हे को कैद किया है ..
अक्सर अपने अल्फाजो में , 
अपने नज्मो में ...
अपने ख्वाबो में .. 
अपने आप में ....||

एक ज़माना सा गुजर गया है
कि अब सिर्फ तुम हो और वो लम्हा है ||

ये अलग बात है कि तुम हकीक़त में  कहीं भी  नहीं हो .
बस एक ख्याल का साया  बन कर जी रही हो मेरे संग . 
हाँ , ये जरुर सोचता हूँ कि तुम ज़िन्दगी की धडकनों में होती 
तो ये ज़िन्दगी कुछ जुदा सी जरुर होती……|| 

पर उस ज़िन्दगी का उम्र से क्या रिश्ता . 
जिस लम्हे में तुम थीउसी में ज़िन्दगी बसर हो गयी . 

और ये सिलसिला अब तलक  जारी है …….|||

Monday, February 4, 2013

मेरी पहली किताब : : उजले चांद की बेचैनी :


आदरणीय गुरुजनो  और मित्रो . 
नमस्कार ;

आप सभी से अपनी एक खुशखबरी  शेयर करते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है .

मेरी पहली किताब : जो की एक कविता संग्रह है ; अब छप  चुकी है . 
इसका नाम है : उजले चांद की बेचैनी : 

इसे बोधि प्रकाशन ने छापा  है . ये किताब आपको विश्‍व पुस्‍तक मेला, प्रगति मैदान, नई दिल्‍ली
दिनांक 4 फरवरी से 10 फरवरी के दौरान ; बोधि प्रकाशन, हॉल नं: 12 बी, स्‍टॉल नं 115 में उपलब्ध रहेंगी 

इसके अलावा आप इसे बोधि प्रकाशन से भी मंगवा सकते है . उनका पता है : 
बोधि प्रकाशन, एफ 77, करतारपुरा इंडस्‍ट्रीयल एरिया, बाइस गोदाम, जयपुर 302006 राजस्थान   संपर्क करे : 082900 34632

हमेशा की तरह , इसे भी आप सभी का प्यार और आशीर्वाद  चाहिए . कृपया अपनी राय को मेरे ब्लोग के इस पोस्ट पर कमेंट के रूप में देकर मुझे अनुग्रहित करे। आपके कमेंट्स का हमेशा से ही स्वागत रहा है। 

आपका अपना 
विजय कुमार 


एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

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