सर्द रातें
इन सर्द रातों में ,तुझे कुछ याद हो न हो .....
मुझे तो सारी बातें याद है.......
अब तक ,
इन सर्द रातों में ,तुझे कुछ याद हो न हो .....
मुझे तो सारी बातें याद है.......
अब तक ,
जो तेरे - मेरे साथ गुजरी , और जो नही गुजरी ...
वो सब कुछ याद है ...
ऐसी ही एक सर्द रात थी , जब हम कहीं मिले
और एक मुलाकात से दुसरे मुलाकात की बात बनी ..
ऐसी ही एक सर्द रात में तेरे आंसुओ ने मुझे भिगोया था ..
और सारी रात हमने कोई पुरानी सी ग़ज़ल सुनी थी ..
ऐसी ही एक सर्द रात में हमने रात भर आलाव तापा था ,
और ज़िन्दगी की राख की आग को अपने जिस्मो पर सहा था......
ऐसी ही एक सर्द रात में हमने वो पुरानी कसमे खायी थी ..
जिनमे मिलने और मिलकर साथ रहने की बातें होती है ..
ऐसी ही एक सर्द रात में ;
वो सब कुछ याद है ...
ऐसी ही एक सर्द रात थी , जब हम कहीं मिले
और एक मुलाकात से दुसरे मुलाकात की बात बनी ..
ऐसी ही एक सर्द रात में तेरे आंसुओ ने मुझे भिगोया था ..
और सारी रात हमने कोई पुरानी सी ग़ज़ल सुनी थी ..
ऐसी ही एक सर्द रात में हमने रात भर आलाव तापा था ,
और ज़िन्दगी की राख की आग को अपने जिस्मो पर सहा था......
ऐसी ही एक सर्द रात में हमने वो पुरानी कसमे खायी थी ..
जिनमे मिलने और मिलकर साथ रहने की बातें होती है ..
ऐसी ही एक सर्द रात में ;
तुमने मेरा हाथ एक अँधेरी सड़क के सूने मोड़ पर छोडा था ..
और मैं तन्हाई का तमाशबीन बन कर रह गया था ..
और उस सर्द रात से , आज तक ;
मुझे हर रात , सर्द रात नज़र आती है ..
मैं तुम्हे याद करता हूँ और ;
अपने आंसुओं से ओस की बूंदे बनाता हूँ...
खुदा जाने , तुम्हे अब ये रातें सर्द लगती है या नही ..
खुदा जाने , तुम्हे अब मेरी याद आती है या नही....
खुदा जाने , अब किसी सर्द रात को हम दोबारा मिलेंगे या नही ...
आज की रात बहुत सर्द है ..
मालूम होता है ,
तेरी यादो के साथ मेरी जान लेकर जाएँगी...
तब शायद,
और मैं तन्हाई का तमाशबीन बन कर रह गया था ..
और उस सर्द रात से , आज तक ;
मुझे हर रात , सर्द रात नज़र आती है ..
मैं तुम्हे याद करता हूँ और ;
अपने आंसुओं से ओस की बूंदे बनाता हूँ...
खुदा जाने , तुम्हे अब ये रातें सर्द लगती है या नही ..
खुदा जाने , तुम्हे अब मेरी याद आती है या नही....
खुदा जाने , अब किसी सर्द रात को हम दोबारा मिलेंगे या नही ...
आज की रात बहुत सर्द है ..
मालूम होता है ,
तेरी यादो के साथ मेरी जान लेकर जाएँगी...
तब शायद,
किसी सर्द रात को ,
तुम्हे मेरी याद आयें......
Badi anoothee rachana hai yah!
ReplyDeleteआज की रात बहुत सर्द है ..
ReplyDeleteमालूम होता है ,
तेरी यादो के साथ मेरी जान लेकर जाएँगी...
तब शायद, किसी सर्द रात को , तुम्हे मेरी याद आयें......
बेहद दर्दभरी ............दर्द की इंतिहा हो गयी………कुछ भी कहने मे असमर्थ महसूस कर रही हूँ। दोबारा आउंगी तब शायद कुछ कह पाऊँ।
सर्द रातें तो विचार प्रवाह रोक देती हैं। उसी पर कविता। वाह।
ReplyDeletebahut sunder rachna...
ReplyDeleteबहुत खुब लगी आप की यह सुंदर रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteभावनाओं का तीव्र प्रवाह.................
ReplyDeleteखूबसूरत रचना ,अच्छी अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteवाह सर्द रातों को आने में अभी तो समय है ....ऋतुकाल के हिसाब से । रचना की सरलता ने मोहित कर दिया ....बहुत सुंदर । शुभकामनाएं
ReplyDeleteऐसी ही एक सर्द रात में तेरे आंसुओ ने मुझे भिगोया था ..
ReplyDeleteऔर सारी रात हमने कोई पुरानी सी ग़ज़ल सुनी थी ..
ye panktiyan bahut pasnd aayi...
Bahut sundar rachana likhi ha aapne ...bahut2 badhai..
sundar Bhav
ReplyDeleteविजय जी,
ReplyDeleteकहा था ना फिर आऊँगी……………
ऐसी ही एक सर्द रात में ;तुमने मेरा हाथ एक अँधेरी सड़क के सूने मोड़ पर छोडा था ..
और मैं तन्हाई का तमाशबीन बन कर रह गया था ..
मगर आज भी लग रहा है जैसे कुछ भी कहने मे असमर्थ हूँ……………॥बस इतना ही कह सकती हूँ आज फिर उसी रंगत मे आप वापस आ गये हैं जिसके लिये जाने जाते हैं।
कितनी सहजता से कह दिया कितना कुछ
ReplyDeletesard raaten bahut marmik aur prabhavshali rachnahai, bahut-bahut badhai
ReplyDeleteloved it
ReplyDeleterecd by email from Mr. D. Darpan ....
ReplyDeleteaap kee kvitaen parhee - khoob - achhee kageen - likhte raho aur esee terh logo teek phuchate raho - www.charchapunjab.com dekhna
recd. by email from mr. Dhananjay
ReplyDeleteविजयजी,
कविता का अंत बहुत ही सुन्दर है...
मुबारक. लिखते रहिये. शुभकामनाओं के साथ,
धनंजय.
recd. on FB from mr. vasu
ReplyDeleteKan Vas Very nice, touching and worth reading - Vasu in New York
विजय भैया ये कविता तो बहुत ही विस्फोटक बन गयी है। तखल्लुस में आप जावेद अख़्तर साहब के एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा... के छंद को छू गये हैं। मुझे ऐसा लग रहा है कि आपमें कहीं से कोई रूहानी ताकत आ गयी है, जो आपसे इतनी उम्दा शायरी करवा रही है।
ReplyDeleteमन को छूने वाली रचना है। विजय जी आपने तो कमाल का रचा है। बहुत खूब। ऐसे ही लिखते रहिए।
ReplyDeleteआपकी इस कविता ने पाकीज़ा की याद दिला दी:
ReplyDeleteआज की रात वो आये हैं बड़ी देर के बाद,
आज की रात बड़ी देर के बाद आयी है।
काव्य में रात का तसव्वुर बहुत भीगा हुआ होता है और आपकी कविता में यह पूरी तरह नखिर कर आया है। बधाई।
आपकी सर्द रातों पर एक शेर अर्ज है कि:
मैनें माना कि बहुत सर्द हैं रातें, लेकिन
तुम्हारी याद की चादर में कट ही जायेंगी।
इस कविता को पढ़ कर गुजरे दिनों में हो आया। यह कविता नहीं बल्कि व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर लिखी गई एक खूबसूरत रचना है।
ReplyDeletesard raton ki ye garmahat deti yadain
ReplyDeletejo tumne keh di kuch aisi batain kuch ashaq pighal ke gire yuin the
jab tumhare labon ko chuti meri garam sasain..
sir bas itna kehna chahuinga sard raton main garmagat ka ehsaas deti hain aapki rachnaye......
प्रिय विजय जी, आपकी इस रचना को पढ़कर तो कहना पडेगा, प्रेम में होना.. बस विजय कुमार sappatti होना है..तरल मौसम की उमस भरी रातों में सर्द रातों का यह गुनगुना जिक्र भा गया भाई!!
ReplyDeleteसर्द रातें,
ReplyDeleteसर्द एहसासात
सर्द यादें
सर्द ठिठुरन
सर्द रिश्ते और
टिप्पड़ी भी सर्द
ये कैसी सर्द रूमानियत है !!!!!!
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है....
ReplyDeleteitne gunee aur vidwaan sahitaykaaroN kee tipaaniyoN se zaahir hai k kaavya-rachnaa bahut
ReplyDeleteprabhaavshali hai...
hm sb ke chahete kavi
Vijay Sappati ki salaam !!
आज की रात बहुत सर्द है ..!!
ReplyDelete-----------------------------
और ज़िन्दगी की राख की आग को अपने जिस्मो पर सहा था......
कितनी सहजता से कह दिया कितना कुछ !!
yahi to hai vijay ji ki pahchan. :-)
बहुत ही सुन्दर कविता है जैसा कि इस ब्लॉग का शीर्षक है-कविता के मन से उसी के साथ आपकी ये कविता मेल खाती हैं। आपको इसके लिए बधाई हो। इतने सरल ढंग से आपने मन की भावनाओं को अभिव्यक्ति दी हैं जो सच में काबिले तारीफ है। इस तेज भागती जिन्दगी में भी आज मनुष्य इन बीते पलों को याद कर पा रहा है...बड़ा अच्छा है....
ReplyDeletebahut bhavpOOran rachanaa hai. badhai savikaare.
ReplyDeleteऐसी ही एक सर्द रात में ;तुमने मेरा हाथ एक अँधेरी सड़क के सूने मोड़ पर छोडा था ..
ReplyDeleteऔर मैं तन्हाई का तमाशबीन बन कर रह गया था ..
aisa laga..sab kuch guzarta hua apne saamne dekh liya.
इस यांत्रिक जिंदगी में भी कोई है जो अपनी यादों में जीना चाहता है | सुंदर अभिव्यक्ति , लिखते रहें......
ReplyDeleteAwesome lines.. stoped my thinking this time..
ReplyDeleteआपको आपके सदा बहार रंग में वापस देख कर बहुत ख़ुशी हुई...ऐसी रचनाएँ ही आपसे अपेक्षित हैं...सर्दियों में गिरती बर्फ की रुई के फाहों की तरह...कोमल मोहक दिलकश...लिखते रहें...
ReplyDeleteनीरज
The appearance of your Blog is quite impressive now...I wanna say...WoW...
सर्द रातों का सर्दिला अहसास। सचमुच एक गहरी अंधरी ऐसी खोह में हमें ले जाते हैं, जहां कल्पना भ्ज्ञी बेबस नजर आती है। कोई इतनी पीड़ा झेल सकता है भला? रचना सचमुच कुछ सोचने को विवश करती है। आपकी अनुभूतियां जागती रहे और हमें ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाओं का लाभ मिले, यही कामना
ReplyDeleteडॉ: महेश परिमल
recd by email from mr.Swarn
ReplyDeleteso nice of your poem and you
recd by email from संपादक (सृजनगाथा)
ReplyDeleteबधाई
बधाइ। कभी हममें तुम में करार था/ तुम्हें याद हो न के याद हो :)
ReplyDeletevery thrilling expressions...
ReplyDeleteregards
वाह, विजय भाई! कितनी गर्माहट है सर्द रातों की अभिव्यक्ति में!!
ReplyDeleterecd by email from Mrs Shilpa .
ReplyDeleteBhai Shri vijayji,
Namaste,
Sard raatein - aapki kavita to achhi hai, dard se bhari hui, yaadon ki
shabname samete hue.magar ek gujarish hai aapse - please marne ki baat
na kare. Take care.Shubhkamnaye.
Regards,
Shilpa
recd by email from Mr.bhupendra tyagi
ReplyDeleteIt's nice. Keep it up.
regards,
bhuvendra tyagi
सर्द रातें....वाह....
ReplyDeleteभावुक अभिव्यक्ति...
Vijay ji,
ReplyDeleteKavitaon ke man se jo kuch kaha aapne ekdam dil ke paas pahunchi..ek badhiya ehsaas bhari rachana....
sundar bhav ke liye badhai
nice poem.
ReplyDeleterecd. by email from Mr.Swapnil Bhartiya.
ReplyDeleteविजय जी,
आप अच्छी कवितायें लिखते हैं। मेरी राय है कि आप कल्किआन हिंदी मे अपनी रचनाये भेजें।
साभार
स्वपनिल भारतीय
bahetareen rachana..
ReplyDeletekhoobsurat rachna hai ji!
ReplyDeletebahut hi pyari si rachna hai...
ReplyDeleteacha laga apki post pad kar..
likhte rahiye....
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..
Banned Area News : Trains cancelled, re-scheduled due to derailment
Very few poets are left with this kind of sensibility about love, longings, pain and separation. Very nice!
ReplyDeleteLooking forward,
Sunil Sharma
aapki kavita gulzar ki ek nazm ...........raat bhar sard hawa chalti rahi..raat bhar hamne alaaw tapa ........se kafi prabhavit hai....hai na??
ReplyDeletesir, what an writting.....bahut hi khub....likhte rahiye.....thanks to give to read one best of the best poem....
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई ! आपकी हर रचना की तरह यह भी बहुत खूबसूरत लगी.सर्द रात के घटना क्रम ने हमे भी भिगो दिया है कविताओ के मन से!!!!
ReplyDeletebahut hee achchhee kavitaa hai , ek tarah se poorn chhand hai |
ReplyDeleteसर्द रात, सर्द रात और सिर्फ रात.
ReplyDeleteजो कुछ हुआ, सर्द रात में हुआ.
जब मिले, सर्द रात में मिले.
जुदा हुए, तब भी सर्द रात थी.
फिर...आज भी सर्द रात है.
इतनी
सर्द रातें खुले में गुजरने के बाद.....
फिर सर्द रात ही जान लेकर जाएगी,
निमोनिया रोग ही ऐसा है.
आखिर गर्म या भीगी रातों में आपको क्या हो जाता था, रोमांस अगर सिर्फ शीत ऋतु में ही आप तक होता था तो फिर किसी मनोचिकित्सक की सलाह लें.
सर्द रात...सर्द रात...सर्द रात का राग अगर कविता से निकल जाए तो कविता अच्छी बन सकती है लेकिन रचनाकार का सर्द रात से ऐसा मोह!!!
अची भावपूर्ण कहानी.
ReplyDeleteलगता हॆ-सर्द रातों ने आपको बहुत कुछ दिया हॆ.भावों की सुंदर अभिव्यक्ति हॆ-आपकी यह कविता.शुभकामनायें!
ReplyDeleterecd by email. from Mr. Khanna...
ReplyDeleteआपकी रचना पढ़ी , अच्छी लगी । लिखते रहेँ बधाई !.................खन्ना मुजफ्फरपुरी
दोस्तों ,
ReplyDeleteआप सबके प्यार भरे कमेंट्स का मैं शुक्रगुजार हूँ .
धन्यवाद.
आपका
विजय
bahut hi sunder rachna hai...
ReplyDeleteor iss mai bhav wah bahut khub....
dhanyevad...
RECD BY EMAIL FROM RISHABHA DEO
ReplyDeleteअच्छी कविता की रचना पर बधाई!