किसी दुसरी ज़िन्दगी का एहसास हो ..
कुछ पराये सपनो की खुशबु हो ..
कोई पुरानी फरियाद हो ..
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम...
किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो
किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो
किसी सड़क पर ठहरा हुआ कोई मोड़ हो
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम...
किसी अजनबी रिश्ते की आंच हो
किसी अनजानी धड़कन का नाम हो
किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम...
किसी आंसू में रुखी हुई सिसकी हो
किसी खामोशी के जज्बात हो
किसी मोड़ पर छूटा हुआ हाथ हो
किस से कहूँ की तुम मेरे हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....
तुम... हां, तुम ........
हां , मेरे अपने सपनो में तुम हो
हां, मेरी आखरी फरियाद तुम हो
हां, मेरी अपनी ज़िन्दगी का एहसास हो ...
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ कि तुम मेरे हो ....
हां, तुम मेरे हो ....
हां, तुम मेरे हो ....
हां, तुम मेरे हो ....
तुम... हां, तुम ........हां , मेरे अपने सपनो में तुम हो हां, मेरी आखरी फरियाद तुम हो हां, मेरी अपनी ज़िन्दगी का एहसास हो ...कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ कि तुम मेरे हो .... हां, तुम मेरे हो ....हां, तुम मेरे हो ....हां, तुम मेरे हो ....
ReplyDeleteक्या कहूं अब इस अहसास पर्……………
क्या कहूँ अब इस जज़्बात पर्……………
दिल की धडकनों के धडकाव पर्……………
इन मासूम ख्यालात पर ………………
अब कैसे और क्या कहूँ………………
कुछ तो अधूरा रह गया………………
पर साथ पूरा हो गया…………………
तेरे बिन भी और तेरे साथ भी…………
अब इससे ज्यादा नही कह सकती विजय जी……………भावों को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है…………दिल मे उतर गये हैं।
अब आप अपने पुराने रंग मे आ गये हैं तो हम पाठको को भी अच्छा लग रहा है।
बहुत भावपू्र्ण रचना है। बहुत बढिया!!
ReplyDeleteSundar aur sahaj bhavabhivyakti ke
ReplyDeleteliye badhaaee.
सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteअति सुंदर भाव पुर्ण कविता जी. धन्यवाद
ReplyDeleteमन के भावो को सच्चाई से उकेरा है.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति.
Bahut sundar hai...
ReplyDeletekisi mod pe chhutaa huaa haath ho!!!!
Kyaa baat hai.
तुम,
ReplyDeleteभूलना संभव ही नहीं।
दमदार रचना।
धांसू रचना ... बहुत सुंदर कविता है....
ReplyDeleteyou are ग्रेट...
विजय जी दिल से लिखी रचना है...हमेशा की तरह अच्छी...लेकिन आप इस से और अच्छी लिखने की क्षमता रखते हैं...
ReplyDeleteनीरज
Recd. By Email from Mr. Sripad...
ReplyDeletevery nice poem in hindi..all your feelings melted into this poem..so sweet.your soul is searching something..tum ho..haan haan tum ho.
recd. by email from Mrs.shalaka kulkarni
ReplyDeletevijay ji,
Kavita padhi.
Bahut hi sahaj aur sundar kavita.
recd. by email from Mr. kimatu..
ReplyDeleteबहोत बढिया विजयजी...ऐसे ही लिखते रहिये :)
recd by email from Bhartiyam ...
ReplyDeletekavita me nijata ki anubhuti hai. Shubhkamnaye.
आपकी कविता की तरह ब्लॉग सौन्दर्य भी लुभावना है।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteहर बार की तरह इस बार भी आपकी कविता में बहुत गहराई है। इस सुंदर रचना के लिए आभार।
ReplyDeleteवाह..वाह. फिर से एक लाजवाब रचना लिखी आपने। मेरा सुझाव है कि आप इन सारी रचनाओं को एक किताब की शक्ल दीजिए और अगर किताब न भी छाप सकें, तो पीडीएफ बनवा के उसे साहित्य अकादमी को भेजिये।
ReplyDeleteaahista aahista...man ko bharti ek sundar rachna
ReplyDeleteविजय कुमार सप्पत्ती जी
ReplyDeleteनमस्कार !
तुम...किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो
किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो
किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो
प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी कविता में ।
बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें !
हिंदी में और भी श्रेष्ठ सृजन के लिए शुभकामनाएं हैं !
इस यात्रा में ठहराव नहीं आना चाहिए ।
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
और हां ,
ReplyDeleteब्लॉग की साज सज्जा आपके सौंदर्य बोध पर मोहर लगा रही है ।
पुनः बधाई !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
itni shiddat itna samarpan or laybadd khoobsurat kavita mein dhali huii chahat
ReplyDeletejavab nahii lajavab
bahut bhavbhari kavita hai...!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत भावपू्र्ण रचना, सुन्दर अभिव्यक्ति है।
ReplyDeletekhoobsurat,,,,,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteठीक है विजय भाई मान लेते हैं, पर ये तो बताओ कि तुम्हारे वो हैं कौन?
ReplyDeleteठीक है विजय भाई मान लेते हैं, पर ये तो बताओ कि तुम्हारे वो हैं कौन?
ReplyDeleteइस अद्भुत गीत को अपने स्वर में गाकर यदि आप पाडकास्ट करते तो सुनने का क्या आनंद होता....सोच रही हूँ....
ReplyDeleteक्या आप अपने असंख्य प्रशंसकों के लिए ऐसा कर सकते हैं ???? हम आपके तहे दिल से आभारी रहेंगे...
खूबसूरत!
ReplyDeleteकविता अच्छी है मार्मिक भी क्या कोई इस तरह भी सोचता है......।
ReplyDeleteबड़े सुन्दर भाव।
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति................ इंसान जब किसी के एहसास में डूबा हो तो हर जगह बस वही नज़र आता है..............
ReplyDeleteबहुत ही कोमल भावों से परिपूर्ण रचना है ! मन को छूती इस सुन्दर रचना को आपने बहुत ही सूक्ष्मता से अनुपम अभिव्यक्ति दी है ! मेरी शुभकामनाएं एवं आभार स्वीकार कीजिये !
ReplyDeleteबढिया और भावपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! उम्दा प्रस्तुती !
ReplyDeleteक्या बात है विजय जी हमेशा की तरह दिल की गहराईयो से लिखते है आप....सुन्दर रचना...बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleterecd by email from Mrs. shilpa ,,,,,
ReplyDeleteBhai shri vijayji,
Namaste,
'' Meri akhari Fariyad ho tum
Phir iske baad koi shikayat nahi.''
ye mera sher aapki kavita ka dard mahsoos kar raha hai.kavita hamesha
ki tarah achhi hai.badhai.
Regards,
Shilpa
रक्षा बंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteसलाम है कवि की कल्पना को ... सच कहा है जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि ....
ReplyDeleteमुझे तो तुम ही तुम नज़र आ रही हो .... कविता अपने अपने एहसास में डुबो जाती है .. हर कोई अपना सोचने लगता है ... बहुत खूब रचना ...