सिलसिला कुछ इस तरह बना..........!
कि मैं लम्हों को
ढूंढता था खुली हुई नींद के तले |
क्योंकि मुझे सपने
देखना पसंद थे - जागते हुए भी ;
और चूंकि मैं उकता गया
था ज़िन्दगी की हकीक़त से !
अब किताबो में लिखी हर
बात तो सच नहीं होती न .
इसलिए मैं लम्हों को
ढूंढता था ||
फिर एक दिन कायनात रुक
गयी ;
दरवेश मुझे देख कर
मुस्कराये
और ज़िन्दगी के एक लम्हे
में तुम दिखी ;
लम्हा उस वक़्त मुझे बड़ा
अपना सा लगा ,
जबकि वो था अजनबी -
हमेशा की तरह ||
देवताओ ;
मैंने उस लम्हे को कैद किया है ..
अक्सर अपने अल्फाजो में ,
अपने नज्मो में ...
अपने ख्वाबो में ..
अपने आप में ....||
एक ज़माना सा गुजर गया
है ;
कि अब सिर्फ तुम हो और
वो लम्हा है ||
ये अलग बात है कि तुम
हकीक़त में कहीं भी नहीं हो .
बस एक ख्याल का साया
बन कर जी रही हो मेरे संग .
हाँ , ये
जरुर सोचता हूँ कि तुम ज़िन्दगी की धडकनों में होती
तो ये ज़िन्दगी कुछ जुदा
सी जरुर होती……||
पर उस ज़िन्दगी का उम्र
से क्या रिश्ता .
जिस लम्हे में तुम थी, उसी में ज़िन्दगी बसर हो गयी .
और ये सिलसिला अब तलक जारी है …….|||
जिंदगी एक सफर है,चलते जाना है.बहुत सुन्दर कविता मान्यवर.
ReplyDeletesundar abhivyakti vijay ji
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति .......
ReplyDeleteमेरी नयी रचना
देश की कहानी
http://pankajkrsah.blogspot.com
उनके साथ का लम्हा ही तो जीवन है ...
ReplyDeleteबहुत खूब विजय जी ...
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 02/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
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ReplyDeleteधन्यवाद
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bahut sundar silsila hai..yadon ka...
ReplyDelete...काश कि ऐसा हो सकता!..किसी खास लम्हे को जिंदगी भर के लिए अपने साथ ले कर हम चल सकतें!...बहुत सुन्दर कल्पना है विजय कुमार जी!...बधाई!
ReplyDeleteपर उस ज़िन्दगी का उम्र से क्या रिश्ता .
ReplyDeleteजिस लम्हे में तुम थी, उसी में ज़िन्दगी बसर हो गयी .
बहुत खूब कहा ………सुन्दर ख्याल की रचना
पर उस ज़िन्दगी का उम्र से क्या रिश्ता .
ReplyDeleteजिस लम्हे में तुम थी, उसी में ज़िन्दगी बसर हो गयी .
...लाज़वाब...दिल को छू जाती रचना..
bahut achhaaa khyaal...aur wo lamha jisme ye khyaal aaya man mein
ReplyDeleteliked it
ReplyDeletebest wishes
Bahut khub !
ReplyDeleteकोई एक लम्हा पूरी ज़िंदगी बन जाता है, भले जागती आँखों का सपना सही... बहुत भावपूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteZindagi hai Roshni aur teergi se hamkenar
ReplyDeleteSabqa padta hai in donoN se aksar baar baar
Us ki aamad ki khabar hai roshni ki ek kiran
Aur wajh e teergi hai us ka Barqi Intezar
Ahmad Ali Barqi Azmi
Janab Vijay Kumar sb
aap ki kavita ka behad dilnasheeN hai sisila
Pesh karta hoon mubarakbad maiN is ke liye
Barqi Azmi
अच्छा है।इस प्रयास के लिए बधाई ।यदि आपकी आज्ञा हो तो इस कविता को वेब साईट पर डालना चाहूंगा www.jamosnews.com
ReplyDeleteहाँ , ये जरुर सोचता हूँ कि तुम ज़िन्दगी की धडकनों में होती
ReplyDeleteतो ये ज़िन्दगी कुछ जुदा सी जरुर होती……||
पर उस ज़िन्दगी का उम्र से क्या रिश्ता .
जिस लम्हे में तुम थी, उसी में ज़िन्दगी बसर हो गयी .
यादों का सिलसिला जब चल पड़ता है तो कब रुक पाता है? यादें भी तो कभी कभी ख्वाब बन जाती हैं.
बहुत ही सुन्दर रचना
सच है, वे पल याद रहते हैं जो अपना सब कुछ हमारे पास छोड़ जाते हैं।
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteवाह बहुत ही खूब ||
ReplyDeleteतुम्हारी कविता पढ़ने के बाद एक नयी कविता का जन्म हुआ ..जल्द ही पढ़ने को मिलेगी ...अआभर
पर उस ज़िन्दगी का उम्र से क्या रिश्ता .
ReplyDeleteजिस लम्हे में तुम थी, उसी में ज़िन्दगी बसर हो गयी .
बहुत खूब विजय जी ! बहुत खूबसूरत जज़्बात हैं और उतनी ही खूबसूरती के साथ आपने उन्हें शब्दों में पिरोया है ! बहुत सुन्दर !
गज़ब...अद्भुत!!
ReplyDeletecomment by email :
ReplyDeleteaadarneey Vijay ji,
जिस लम्हे में तुम थी, उसी में ज़िन्दगी बसर हो गयी . और ये सिलसिला अब तलक जारी है ...
aapki poori kavita main ek saans me padh gayi.. man ko choo lene wali...
lambe samay tak man me bane rahne wali.. aur har dil ki kahani lagti hai ye kavita..
iss sundar rachna ke liye meri shubhkamnayen sweekar karen!
Kripya , Aage bhi kripya mujhe aise hi apni kavitayne bhej diya karen.
saadar,
Ajanta
FB comment :
ReplyDeleteदेवताओ ;
मैंने उस लम्हे को कैद किया है ..
अक्सर अपने अल्फाजो में ,
अपने नज्मो में ...
अपने ख्वाबो में ..
अपने आप में ....||...bahut sundar baat kahi hai aapne..cheers!
Raj geet
email comment :
ReplyDeleteSheel Nigam
bahut bhav poorn rachna...vijay ji.
email comment :
ReplyDeleteArjun Kwatra
कविता के भाव अतिसुन्दर है, विजय जी
email comment :
ReplyDeleteबधाई विजय जी ..सुन्दर कविता के लिए..आपके ब्लाग में सीधे कमेंट करने नहीं जाती..
सुमीता
email comment :editor
ReplyDeleteपर उस ज़िन्दगी का उम्र से क्या रिश्ता .
जिस लम्हे में तुम थी, उसी में ज़िन्दगी बसर हो गयी।
क्या बात है, बहुत खूब
बहुत शानदार कविताओं का संग्रह एवं काफी खजाना भरा हुआ है आपको ब्लॉग्स में।
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अंदाज़े बयां है आपका!
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना है।
ReplyDeleteविजय जी ...वाह ...सुन्दर बधाई.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना बधाई
ReplyDeleteemail comment:
ReplyDeletePrakash Kanungo
और ये सिलसिला अब तलक जारी है …….||| बहुत सुन्दर
पर उस ज़िन्दगी का उम्र से क्या रिश्ता .
ReplyDeleteजिस लम्हे में तुम थी, उसी में ज़िन्दगी बसर हो गयी .
बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता.
email comment :
ReplyDeleteSatish Gupta
Sila dil ka us pal ka shukragujar hai
vijay ji silsila achchi kavita hai
ReplyDeleteemail comment :
ReplyDeleteBhai Shri Vijayji,
Aaapki kavita silsila bahut kuch meri soch se milti julti hai....bahut badhia....padhkar acha laga......khayalon ki duniya jhilmilane lagi....
Shukriya....
Regards,
Shilpa