यूँ ही ...
ज़िन्दगी भर कुछ साए साथ साथ ही चलते है
और उन्ही सायो की याद में ये ख़ाक ज़िन्दगी;
.......कभी कभी गुलज़ार भी होती है !!!
सोचता हूँ अक्सर यूँ ही रातो को उठकर ...
अगर अम्मा न होती ,
अगर पिताजी न होते .
अगर तुम न होती ..
अगर वो दोस्त न होता ...
...चंद तकलीफ देने वाले रिश्तेदार न होते ...
...चंद प्यार करने वाले दुनियादार न होते ..
तो फिर जीना ही क्या होता !
यूँ ही ज़िन्दगी के पागलपन में लिखे गए अलफ़ाज़ भी न होते !
copyright © विजय कुमार