Monday, May 30, 2016

लम्हों का सफ़र....


किसी एक लम्हे में तुमसे नज़रे मिली
और
उम्र भर का परदा हो गया...
किसी एक लम्हे में तुमसे मोहब्बत हुई
और
ज़िन्दगी भर की जुदाई मिली......

लम्हों का सफ़र
लम्हों में ही सिमटा रहा !!!
© विजय

Sunday, May 8, 2016

माँ




हम भारतीयों के लिए तो हर दिन ही "mother's day' है . बिना माँ के दिन क्या और रात क्या , और तो और - बिना माँ के जीवन ही क्या है .
माँ है तो जीवन है .
दुनिया की हर माँ को मेरा प्रणाम .



Saturday, February 13, 2016

नज़्म

नज़्म :
मुझ से तुझ तक एक पुलिया है
शब्दों का,
नज्मो का,
किस्सों का,
और
आंसुओ का .......

......और हां; बीच में बहता एक जलता दरिया है इस दुनिया का !!!!

© विजय

Friday, January 1, 2016

::: भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा ::: नव वर्ष पर आप सभी को मेरी ओर से मंगलकामनाये .

मित्रो , नव वर्ष पर आप सभी को मेरी ओर से मंगलकामनाये . अपनी कविता के साथ आप सभी को ढेरो शुभकामनाये देता हूँ. जीवन आपका शुभ हो .

::: भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा :::

भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा,
रवि ने किया दूर ,जग का दुःख भरा अन्धकार ;
किरणों ने बिछाया जाल ,स्वर्णिम और मधुर
अश्व खींच रहें है रविरथ को अपनी मंजिल की ओर ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी रथ का सार्थ बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
सुंदर सुबह का स्वागत ,पक्षिगण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में और भौंरें मस्त तान गुंजा रहे ,
स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने ,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
प्रभात की ये रुपहली किरने ,प्रभु की अर्चना कर रही
साथ ही इसके ; घंटियाँ मंदिरों की एक मधुर धुन दे रही ,
मन्त्र और श्लोक प्राचीन , देवताओं को पुकार रही,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
प्रक्रति ,जीवन के इस नए भोर का स्वागत कर रही
प्रभु की सारी सृष्टि ,इस भोर का अभिनन्दन कर रही ,
और वसुंधरा पर ,एक नए युग ,एक नये जीवन का आव्हान कर रही ,
तू भी हे मानव ,इस जीवन रूपी सृष्टि का एक अंग बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

फोटोग्राफी और कविता © विजय कुमार


एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...