Monday, March 13, 2017

ज़िन्दगी

मैं खुदा के सजदे में था ;
जब तुमने कहा, ‘मैं चलती हूँ !’
.......इबादत पूरी हुई 
................मोहब्बत ख़त्म हुई 
..............................और ज़िन्दगी ?
वि ज य

Friday, March 10, 2017

क्षितिझ

मिलना मुझे तुम उस क्षितिझ पर
जहाँ सूरज डूब रहा हो लाल रंग में
जहाँ नीली नदी बह रही हो चुपचाप
और मैं आऊँ निशिगंधा के सफ़ेद खुशबु के साथ
और तुम पहने रहना एक सफेद साड़ी 
जो रात को सुबह बना दे इस ज़िन्दगी भर के लिए
मैं आऊंगा जरूर ।
तुम बस बता दो वो क्षितिझ है कहाँ प्रिय ।
वि ज य

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...