Monday, May 11, 2009
माँ का बेटा
वो जो अपनी माँ का एक बेटा था
वो आज बहुत उदास है !
बहुत बरस बीते ,
उसकी माँ कहीं खो गयी थी .....
उसकी माँ उसे नहलाती ,
खाना खिलाती , स्कूल भेजती
और फिर स्कूल से आने के बाद ,
उसे अपनी गोद में बिठा कर खाना खिलाती
अपनी मीठी सी आवाज़ में लोरियां सुनाती ..
और उसे सुलाती , दुनिया की नज़रों से बचाकर ....रखती !!!
उस बेटे को कभी कुछ माँगना न पड़ा ,
सब कुछ माँ ही तो थी ,उसके लिए ,
हमेशा के लिए... उसकी दुनिया बस उसकी माँ ही तो थी
अपनी माँ से ही सीखा उसने
सच बोलना , और हँसना
क्योंकि ,माँ तो उसके आंसुओ को
कभी आने ही नहीं देती थी
माँ से ही सीखा ,नम्रता क्या होती है
और मीठे बोल कैसे बोले जातें है
माँ से ही सीखा ,
कि हमेशा सबको क्षमा किया जाए
और सबसे प्यार किया जाए
वो जो अपनी माँ का एक बेटा था
वो आज बहुत उदास है !!
बहुत बरस बीते ,
उसकी माँ खो गयी थी ..
बहुत बरस हुए , उसकी माँ वहां चली गयी थी ,
जहाँ से कोई वापस नहीं लौटता ,
शायद ईश्वर को भी अच्छे इंसानों की जरुरत होती है !
वो जो बच्चा था ,वो अब एक
मशीनी मानव बना हुआ है ...
कई बार रोता है तेरे लिए
तेरी गोद के लिए ...
आज मैं अकेला हूँ माँ,
और बहुत उदास भी
मुझे तेरे बिन कुछ अच्छा नहीं लगता है
यहाँ कोई नहीं ,जो मुझे ; तुझ जैसा संभाले
तुम क्या खो गयी ,
मैं दुनिया के जंगल में खो गया !
आज ,मुझे तेरी बहुत याद आ रही है माँ !!!
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AISE TO VIJAY BHAEE MAA KE LIYE JITNI LIKHI JAYE AUR KAHI JAAYE WO KAM HI HOTA HAI... MAA KI SHAANI KOI NAHI IS DUNIYA ME ... AAPNE BAHOT HI KHUSURAT KAVITA LIKHI HAI MAA PE ... EK ALAG SAA DARD UBHAARA HAI MAA KE LIYE AUR UTNAA HI PYAAR UMAD RAHAA HAI MAA KE LIYE IS KAVITA KO PADH KE .. BAHOT BAHOT BADHAAYEE APKO...
ReplyDeleteARSH
विजय जी
ReplyDeleteमाँ तो आठों पहर ही दिल में रहती है............पर कुछ पल ऐसे होते हैं जब वो बहूत याद आती है...........
सुन्दर भावुक रचना
वाह क्या बात है. बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteमाँ पर जितना भी लिखा जाए उतना ही कम है। आपने बहुत ही सादे शब्दों से अपने गहरे भाव कह दिये। मैं अक्सर कहता हूँ कि माँ जैसा कोई नही। बहुत ही उम्दा लिखा है आपने।
ReplyDeleteविजय जी मां के बारे में जितना बखान किया जाए उतना हमेशा ही कम होता है जैसे मां का आंचल होता है उससे कहीं बडी मां की ममता इसलिए उनकी बातों को तो कभी पूरा कोई लिख ही नहीं सका आपने बहुत बहुत बढिया कविता लिखी है
ReplyDeleteaankhen nam hain,bahut hi achhi rachna....
ReplyDeleteमा पर एक भावुक और संवेदनशील अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबधाई
विजय भाई,
ReplyDeleteआपकी कविता
सजीव नमन है
माँ के चरणोँ मेँ ...
ध्यान दीलवाने का आभार ...
ना पढती तब अफसोस रहता ..
- लावण्या
VIJAY KUMAR JEE,
ReplyDeleteAAPKEE KAVITA "MAA KAA
BETA" ABHEE-ABHEE PADHEE HAI.INTEE
SUDAR AUR GAHAN BHAVBHIVYAKTI BAHUT
KAM DEKHNE KO MILTEE HAI.SEDHEE-
SAADEE BHASHAA HAI ,JO EK BAALAK KO
BHEE SAMAJH AA JAAYE.AAPNE TO GAGAR
MEIN SAAGAR BHAR DIYAA HAI.UMDAA
KAVITA KE LIYE MEREE BADHAAEE
SWEEKAR KIJIYE.
बहुत प्यारी कविता लिखी है आप ने विजय जी,,,,
ReplyDeleteपढ़ कर मन भारी हो गया,,,
और प्राण जी ने भी इसकी कितने तारीफ ki है,,,
आपको बहुत बहुत बधाई,,,
भोलापन तेरा भा गया मुझको
ReplyDeleteयही दोनों ओर की कहानी है
bahut hi gahri bhavnaon se ot-prot kavita hai..........vaise kavita bhi nhi lagti yun lagta hai jaise ek bachcha apni maa se apne dil ki gahri baat kah raha hai jise sirf ek maa hi samajh sakti hai .
ReplyDeletepadhkar aisa laga jaise aap khud apne dil ke jazbaat shabdon mein dhal rahe hon.
vandana ji ;
ReplyDeleteye kavita main apne liye hi likhi hai , meri maa nahi hai aur ab jin haalat me se main gujar raha hoon , maa ki yaad bahut aati hai ..
मां के बारे में जितना भी लिखा जाये कम है..शायद ईश्वर से पहले मां का दर्जा है. सुन्दर भावभीनि रचना पढवाने के लिये आपका आभार
ReplyDeletehaan..aaj mujhe apnee maa aur betee donoki behad yaad aa rahee hai..aaj beteeka janm din hai..jis din janmee mai aur maa saath the...kahan pankh lagake ud gaye wo din?
ReplyDeletesaat samandar Paar kar gaye..
"lalitlekh"me maine "maatru din" ke tehet kuchh likha hai...shayad wo chhandme nahee lekin dardkaa ek athaah saagar hai...mahakavy hai.."mahakavy" mai apnee taareef ke liye nahee istemaal kar rahee...us darkee intehaa aur gehraayee ko leke likha hai..anythaa naa len..kyonki mai to rachnaakaarbhee nahee..
Aapki rachna mere aankhon me aansoon bhar gayee..kaash mere liyebhee koyi aisa likhe..iseetarah, apnee maa ko yaad kare..
Aapne to mere kavitaa blogpe tippanee bhee dee hai..
Ab mai aise kartee hun, us blogse aapke blogpe aake link chhodtee hun..wahan 52 rachnaayen hain...
Raato rat URL badal jaaneke karan mai khud pareshan ho jaatee hun..
Vijayji,
ReplyDeletehttp//kavitasbyshama.blogspot.com
Ye mera "kavitaa" blog kaa URL hai...takleef ke liye maafee chahtee hun..
Likh to rozana rahee hun...
Gar aap "bookmark" kar le to shayad aapko suvidha hogee..
Mai jinhen anusaran kartee hun, usme apke blogkaa link thaa, lekin ab mujhe "The light by..." jo ab 2/4 URL me bant gaya hai, mujhe khojana hoga...
विजय जी बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ी जो भावुक कर गयी...माँ कोई विकल्प नहीं होता...माँ माँ होती है...बहुत ही अच्छी रचना...बधाई.
ReplyDeleteनीरज
aadmi kitna nereeh prani hota he ki use apni maa ki yaad tab aati he jab vo yaa to udaas hota he yaa fir..uske hit ka kuchh nahi sadh raha hota he///////
ReplyDeletemaa par in dino kai saari kavitaye, lekhadi padhh liye////fir bhi lagtaa he kuchh adhura chhootaa he//vo kya he? samjh me nahi aataa/ thik usi tarah jis tarah ham apni maa ko jaan nahi paate/ thik usi tarah jis tarah ham apne ishvar ko jaan nahi paate///
aapki rachna yatharthvaad ki sanvaahk he// maa par likhi gai koi bhi kavita sirf aour sirf behtreen hi kahi jaa sakti he//
Saral shabdon mein sachi abhivyakti. MaaN ke baarey mein shayad tab se likha jaa raha hai jab se insaan bana hai. Hum apna pehla shabda shayad Maa hee boltey hain. Aap ko Mr. Sappati ya sir kehney waley log jeewan mein bahut milengey - lekin 'O vijay, vijay beta' jis tarha MaaN kehti hain bus wohi keh sakti hain.
ReplyDeleteTejendra Sharma
Katha UK (London)
विजय जी ,मां के बारे में जितना बखान किया जाए उतना कम ही होता है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता.
भावाभिव्यक्ति भी बहुत अच्छी है.
विजय जी ,रचना तो पढ़ ली थी कमेन्ट नहीं दे पी थी क्षमा प्रार्थी हूँ .माँ का स्थान तो कोई नहीं ले सकता ,पर हर औरत में थोडी थोडी ...... माँ होती है चाहे कोई भी रिश्ता हो .बद्र साहब का एक शेर याद आ गया ----
ReplyDeleteउसी में सब थे ,मेरी माँ -बहन भी बीबी भी ,
समझ रहा था जिसे मैं वो ऐसी -वैसी थी .
बहुत मन को छू लेने वाली रचना है बधाई
wah sir ji bahut hi badiya ....apki or bhi rachnaye padhne ki koshis karoongi ...thanks togav ur link
ReplyDeletebahut sundar kavitaa hai
ReplyDeleteविजय माँ वो निधि है जो अमूल्यहै ,, हर रिश्ता किसी न किसी तरह से किसी न किसी जगह पर दुबारा बन सकता है पत्नी दुबारा मिल सकती है बच्चे दुबारा मिल सकते है पर माँ नहीं और उसका स्नेह कभी नहीं बहुत ही ही बेहतरीन कविता है
ReplyDeleteसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बेहद सुन्दर भाव लिए आपने शानदार रूप से रचना प्रस्तुत किया है! लाजवाब! बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeletevijayji
ReplyDeletemaa to panchtatwo ke barabar hoti hai.santan ke sath hi ek maa ka janm hota hai.to fir usaka sath bhi bete ki jindagitak raheta hai.
aapaki kavita bahot hi sundar thi.