जब मैं तुझे छोड़ने उस अजनबी स्टेशन पर पहुंचा ;
जो की अब मेरा जाना पहचाना बन रहा था ….
तो एक बैचेन सी रात की सुबह हो रही थी ......
एक ऐसी रात की , जो हमने साथ बिताई थी
ज़िन्दगी के तारो के साथ .. जागते हुए सपनो के साथ
और प्यार के नर्म अहसासों के साथ ...
हमारे प्रेम की मदिरा का वो जाम
जो हम दोनों ने एक साथ पिया था ..
उसका स्वाद अब तक मेरे होंठों पर था...
मैंने धुंधलाती हुई आँखों से देखा तो पाया कि ;
तेरे चेहरे के उदास उजाले
मेरे आंसुओ को सुखा रहे थे......
मौन की भी अपनी भाषा होती है
ये आज पता चला .......
जब तुमने मेरा हाथ पकड़ कर कुछ कहना चाहा....
और कुछ न कह सकी .....
मैं भी सच कितना चुप था !!
हम दोनों क्या कहना सुनना चाहते थे ;
ये समझ में नहीं आ रहा था .....और सच कहूँ तो
मैं समझना भी नहीं चाहता था !
फिर थोडी देर बाद तुझे ;
तेरे शहर को ले जाने वाली ट्रेन आयी ....
ये वही स्टेशन था ,जिसने तुम्हे मुझसे मिलाया था
और हम दोनों ने ये जाना था कि ;
किसी पिछले जनम के बिछडे हुए है हम...
मैंने मरघट की खामोशी के साथ ;
तुझे उस ट्रेन में बिठाया ..
तेरा चले जाना जैसे ;
मेरी आत्मा को तेरे संग लिए जा रहा था ..
जिस जगह हम मिले , उसी जगह हम जुदा हुए..
ये कैसी किस्मत है हमारे प्यार की ......
फिर ट्रेन चल पड़ी ....
बहुत दूर तलक मैं उसे जाते हुए देखते रहा
और उसे ;
तुझे ले जाते हुए भी देखते रहा ..
मेरी आँखों ने कहा ,
सुन यार मेरे .. अब तो हमें बहने दे.....
बहुत देर हुई ..रुके हुए ...
मैं अपने कदमो को खीचंते हुए वापस आया ....
देखा तो ;
कमरा उतना ही खामोश था ..
जितना हमने उसे छोड़ा था ....
बिस्तर पर पड़ी चादर को छुआ तो ,
तुमने उसे अपनी ठोडी तक ओड़ ली ...
और अपनी चमकीली आँखों से
मुझे देखकर मुस्करा दिया ...
और फिर कोने में देखा तो तुम
मेरे संग चाय पी रही थी ..
सोफे पर शायद तुम्हारा दुपट्टा पड़ा था ...
या मेरी धुंधलाती हुई आँखों को कोई भ्रम हुआ था ...
आईने में देखा तो तुम थी मेरे पीछे खड़ी हुई ...
मुझे छूती हुई .....मेरे कानो में कुछ कहती हुई..
शायद I LOVE YOU कह रही थी......
सारे कमरे में हर जगह तुम थी ...
अभी अभी तो मैं तुम्हे छोड़ आया था
फिर ये सब ..................................
सुनो ,
मैं बहुत देर से रो रहा हूँ ..
तुम आकर मेरे आंसू पोंछ दो ......
विजय जी ,आप तो बस कमाल ही करते है ,कितनी मर्मस्पर्शी रचना है .प्रेम ,भावुकता ,भावनात्मकता , बिछड़ने का दर्द सब जैसे अपनी पूरी ताकत के साथ सबको रुलाने के लिए आपकी कविता में आ गए है .इतनी achhi कविता के लिए तो हमारी बधाई भी छोटी hai ,फिर भी बधाई स्वीकारें
ReplyDeletenice rachna...
ReplyDeletebahut behtreen likha hai aapne
ReplyDeleteman ke bhavon ko khoobsurati se pesh kiya hai
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
भाषा लगातार बेहतर होती जा रही है और अभिव्यक्ति भी।
ReplyDeleteबधाई
Saans hi ruk gayi padhte padhte
ReplyDeleteaap sach mein itna ghara likhte hain ki jaise sab samne ho raha ho yaa khud ke saath ho raha ho lagta hai
meri aankhon ne kahaa sun yaar ab to bahne de...kya gazab ke khayaalaat daale hai bhaee sahib aapne.... bahot hi dil ko chhu lene waali kavita hai ye.... main to bas bahtaa hi chalaa gayaa padhte padhte...puri tarike se baandhe rakhaa hai aapne puri kaivtaa me...shaandaar prasturi hai aapki ....
ReplyDeletedhero badhaayee
arsh
विजय जी आपका ये रोमांटिक अंदाज़ पसंद आया...जिस्म से जुदा होने से कोई जुदा थोडी न होता है...आपकी रचना इस बात की पुष्ठी करती है...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
विजय जी
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब...........प्रेम की पराकाष्ठा तक पहुंची हुयी रचना प्रेम , मिलन और बिछड़ने का दर्द सब कुछ है ओकी इस कविता में.........दिल में बस गयी है ये प्रेम की अभिव्यक्ति
bahut achchha laga aapki rachan paDhkar
ReplyDeleteएक उत्कृष्ट रचना.......
ReplyDeletebhut sundar koml ahsas aur ye ahsas
ReplyDeleteta umra bne rhe hrek ke sath .kyoki kavita imandari ka prteek hoti hai aisa mai manti hu .........
बहुत ही बेहतरीन लगी आपकी यह रचना ..
ReplyDeleteतेरा चले जाना जैसे ;
ReplyDeleteमेरी आत्मा को तेरे संग लिए जा रहा था ..
kya baat kahi hai....
poori rachna ne ek mahol me o hamesha se apki rachnao ki fan hun isme bhi wohi jajbat nazar aaye pyar nazar aaya darad nazar aaya jo aksar apki rachnao ne jiya hai.
bahut achi
sakhi
विजय जी.. आपकी कविताओं में शब्द कहीं खो जाते हैं, बचते हैं तो सिर्फ भाव.. जो हर पढ़ने वाले शख़्स के ज़ेहन में उतर जाते हैं।
ReplyDeletevijay je
ReplyDeletebahut hi achchhi sansmarnaatmak abhivyakti hai , sundar .
badhaai
- vijay
VIJAY JEE,
ReplyDeleteHAZAAR GAZLEN QURBAAN AAPKEE
IS KAVITA PAR.KYA BHAAV AUR KYA
BHASHA,KISEE SARITA KAA BAHAAV HAI
DONO MEIN.SACH JAANIYE,EK ARSE KE
BAAD ITNEE ACHCHHEE KAVITA KA RAS
LIYAA HAI.SOCHTAA HOON GAZLEN
KAHNEE CHHOD KAR AAPKEE LINE PAR
CHAL KAR AAPKAA SHISHYA BAN JAAOON.
MERE CHHOTE BHAI,AAP KAVITA KE
KSHETRA MEIN STAR BAN GAYE HAIN.
SUPERSTAR BANNE MEIN DEREE NAHIN
HAI.MEREE IN PANKTIYON KO ATISHYOKTI NAHIN SAMAJHIYEGAA.
UTTAM KAVITA KE LIYE BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNAYEN.
बहुत कम लोग इतनी शिद्दत से लफ्ज़ोँ को उँडेल पाते हैँ पर आप सफल हुए हैँ
ReplyDelete- लावण्या
aapki kavita bhav pravan lagi ...k-h-a-r-a-b-l-o-g par aamad ka shukriya
ReplyDeleteनिशब्द हूँ विजय जी,,,,,,,
ReplyDeleteजब प्राण जी की हजार गजलें इस कविता पर कुर्बान ,,
तो मुझ अदने की क्या बिसात जो कुछ कह सके,,,,
कुछ लिख सके,,,,,,
मुझ को तो अपने पूरे जीवन में भी हजार गजलें लिखने की उम्मीद नहीं है....
वाकई आप नयी बुलंदियां हासिल कर रहे हैं,,,
सोफे पर शायद तुम्हारा दुपट्टा पड़ा हुआ था,,,,
क्या बात है,,,,,,
आपकी कविताओं की नायिका के सूट और दुपट्टे सदा ही मुझे आकर्षित करते हैं,,,,,
(मतलब मेरे खुद के पहन ने के लिए नहीं,,,,,)
कविता में एक नया रंग भरने के लिए,,,,,
pahle hi itna sab kuch kaha ja chuka hai ki ..aage kuch kahne ki gunjaish nahi hai.
ReplyDeletevaise bhi aap jaise kavi ko tippani karne se jyada jaroori hai padhna ..
fir bhi kahunga ki aapki rachna pyar samarpan or bhavukta ka accha chitran hai.
sach kahoon to kavita kya ek fasana hai ..jise or jyada jaanne ki utsukta hoti jati hai.jaise ki isse pahle kya huaa or fir baad main kya huaa hogaa...........
ye kavita padh kar mereman ne kahaa bahut sunder hai bhavnaaon se lvarez ab to tippani kar dekyon ki prashansa ke liye to shabd mere paas nahin bahut hi sunder abhivyakti hai kya kahoon badhai aur abhar
ReplyDeleteविजय जी मेरा ब्लॉग आप को पसंद आया यह जान कर खुशी हुई | ब्लॉग की प्रशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद | यह जान कर अत्यंत खुशी हुई की आप को भी डाक टिकट संग्रह करने का शौक था | आप की कविता पढ़ी, बहुत ही पसंद आयी | अभिनंदन |
ReplyDeletehttp://prashantpandya.blogspot.com
भावुक रोमांटिक मन को छूती हुई रचना.....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर....पीडा को बखूबी बयां किया आपने...
सब मरीचिका है मित्र - मिलना, बिछुड़ना, मिलना। कई बार पास रहते हुये भी दशकों तक अजनबी रहते हैं। कई बार पास न होते हुये भी पल पल साथ साथ जीते हैं।
ReplyDeleteमुझे कविता इवेल्युयेशन की समझ नहीं है। पर यह जरूर है कि यह कविता याद रहेगी।
भाई विजय जी
ReplyDeleteदरअसल हिन्दी कविता में से प्रेम की अभिव्यक्ति लगभग ग़ायब सी हो गई है। आपकी कविताओं में रोमांस (श्रृंगार रस) के भिन्न पहलू उभर कर सामने आते हैं।
मुझे ब्लॉग पर टिप्पणियां कुछ वैसी ही लगती हैं जैसे किसी मुशायरे में वाह वाह की जा रही हो। यहां गोष्ठी जैसी सार्थक टिप्पणियों की कमी मैं महसूस करता हूं। आपकी कविता के बारे में की गई २३ टिप्पणियों में से ८० प्रतिशत किसी भी ब्लॉग की किसी भी कविता के बारे में की जा सकती हैं।
इतनी वाहवाही के बाद थोड़ी सी सच्चाई - आपकी कविता मेरे हिसाब से यहां समाप्त हो जाती है जब आप लिखते हैं - आईने में देखा, तुम मेरे पीछे खड़ी थीं ... मुझे छूती हुई.... मेरे कानों में कुछ कहती हुई....(उसके बाद की पंक्ति आइ लव यू कविता को कमज़ोर करती है)। उसके बाद - कमरे में हर जगह तुम थीं ... अभी अभी तो तुम्हें छोड़ आया था।
इसके बाद कविता में कुछ भी लिखना ऐंटी-क्लाइमेक्स है।
विजय भाई, आपसे पहले भी कहा था कि कविता लिख कर कुछ दिनों के लिये रख दिया करिये। २ या ३ सप्ताह के बाद अपनी ही लिखी रचना में बदलाव करने को जी चाहता है। हम सभी लेखकों को अपनी रचना बहुत प्यारी लगती है। मगर हमारे पास साहित्य की एक बहुत बड़ी परम्परा है, हमें अपनी निजी योग्यता से उसमें कुछ नया जोड़ना है। तभी रचना पूर्ण रूप से सार्थक होगी।
क्षमा प्रार्थी
तेजेन्द्र शर्मा
कथा यू.के. (लंदन)
मौन की भी अपनी भाषा होती है
ReplyDeleteये आज पता चला .......
जब तुमने मेरा हाथ पकड़ कर कुछ कहना चाहा....
और कुछ न कह सकी .....
मैं भी सच कितना चुप था !!
बहुत ही बढिया तरीके से आपने भावों को अभिव्यक्ति प्रदान की है......बेहतरीन
विजय जी , आपकी यह रचना प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाती हुई बहुत ही मर्मस्पर्शी लगी ।
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteअथाह प्रेम और बिछुड़ने के बाद की रिक्त्तता एवं एकाकीपन के मनोभावों का उम्दा शब्द चित्रण किया है. पढ़कर रचनाकारिता से अभिभूत हुए. तजेन्द्र भाई का कमेंट निश्चित ही अनुकरणीय है. साधुवाअ उन्हें. आपको बधाई.
ReplyDeleteविजय जी
ReplyDeleteशब्दों में इस कविता के लिए कहना कुछ कहना आसान नहीं है। तीन बार पढ़ी, हर बार जैसे शब्द स्वयं ही बोलकर एक मार्मिक कहानी दिल को झकझोरे जा रहे थे। काश कि आप इसे किसी प्लेयर में ढाल कर आप ही की आवाज़ में सुनने का अवसर मिलता तो एक नायाब अनुभव होता। सच मानिए, आंखें बंद कर, सुनने पर सारे शब्द, सारे भाव, सशरीर सजीव होकर आंखों के सामने चल-चित्र की भांति सामने घूमते रहेंगे। मैंने आपकी आवाज़ तो कभी नहीं सुनी, लेकिन महसूस कर सकता हूं कि जिसके लिखे हुए मूक शब्द ही हृदय को विह्वल कर सकते हैं,उसकी आवाज़ में भी ऐसा ही दर्द होगा।
आपका नाम 'प्रेम-कवि' कहूं तो अतिशयोक्ति न होगी। बस, ऐसे ही लिखते रहिए। मेरी कामना है कि आपको जीवन में हर क्षेत्र में सफलता मिलती रहे।
vijay ji, sabne bahut kuchh kah diya hai, main to bas ek hi shabd kah kar viram doonga, yahi shabd hai mere pass.
ReplyDeleteANUPAM.
तेजन्द्र भाई ने बहुत सही लिखा है। वास्तव में जब पहली बार कविता निकलती है तो वह खान में से निकले हीरे की तरह होती है। उसे तराशना और अधिक से अधिक चमकदार बनाना हमारे हाथ होता है।
ReplyDeleteयह कविता बहुत प्रभावित कर रही है। तराशने के बाद तो इस की चमक सैंकड़ों गुना बढ़ जाती।
और मनुष्य का मनुष्य के प्रति प्रेम तो यूनिवर्स की सब से अनमोल वस्तु है। कविता में यह निसृत हो उस से सुंदर कोई बात नहीं।
मौन की भी अपनी भाषा होती है
ReplyDeleteये आज पता चला .......
जब तुमने मेरा हाथ पकड़ कर कुछ कहना चाहा....
और कुछ न कह सकी .....
मैं भी सच कितना चुप था !!
Vijay ji
aapko pahli baar padha hai, sach aise laga mano sab ankhon ke samne ho raha , koi apne ko chor chal jaa raha hai, aor ek khamoshi si hai zubaan par par baatain dilse ho rahi hai.
yunhi likhte rahiyega.
nira
bahut hi imotional. man ko chhoone wali rachana. ek-ek shabd bhavnaon main dooba hua or dil ka dard bayan karta hua. bahut hi achha.
ReplyDeleteइतनी सुंदर और हृदयस्पर्शी कविता
ReplyDeleteतो कोई अपनी पत्नी के लिए ही
रच सकता है!
waah vijay ji, bahut sundar hai ye kavitaa! Mujhe bahut pasand aaya!!!
ReplyDeleteप्रेम की भावपूर्ण और रूमानी अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद.
ReplyDeleteआज जो आपका मेल न पढ़ता तो इस अप्रतिम कृति से वंचित ही रह जाता...
ReplyDeleteसच कहूँ विजय जी तो इन नई कविताओ इन कथित मुक्त छंद वाली नज़्मों का मैं रसिया नहीं रहा कभी भी। मुझे समझ में नहीं आती ऐसी कवितायें....
किंतु आपकी इस मुक्त छंद में एक विचित्र सी गेयता है...शायद प्रेम के चरमोत्कर्ष का प्रभाव है
जो भी है, मैं फैन हो गया सर शब्दों और भावों के इस अद्भुत सामंजस्य पे।
नमन आपको !!!
Vijayji,
ReplyDeleteItne saare comments ke baad mai kya likhun, is sambhram me hun...behtareen rachna hai, jo dilme ek kasak paida kar gayee..
Mai Neeraj ji se sehmat hun..! Aap aakharee pankti nabhi likhte to,yahee ehsaas bana rehta...!
TERA CHALE JANA ..........wo gayi kab thi vijay ji,wo to ek ahsaas ke roop mein tab bhi aapke pass hi thi........kuch ahsaason par kisi ke aane jaane se koi fark nhi padta......wo apne hote hain sirf apne.
ReplyDeleteaur kya kahun.........sabne bahut kuch kah diya.......iske baad to yahi kahungi aage bhi apni lekhni isi tarah chalate rahiye.
वो रात क्यों अजीब थी,
ReplyDeleteवो ख्याल भी अजीब है,
जो पल भर साथ थी मेरे,
वो आज भी क्यों अजीज है,
वो रात क्यों अजीब थी
इतनी सुन्दर प्रेम रस में डुबी अभ्व्यक्ति की इतनी विस्तृत टिप्पणियां भाई लोगों ने कर दी ये स्वयं में रचना की श्रेष्ठता को सिद्ध कर रहा है. अब मैं कुछ भी कहूं तो किसी न किसी की नक़ल प्रतीत होगी, सो तहे दिल से बधाई ही दे रहा हूँ., कृपया स्वीकार करें साथ ही मेरी प्रतिक्रिया को भी सर्व गुण संपन्न "मौन" की ही भाषा में समझें, आभार.
ReplyDeleteचन्द्र मोहन गुप्त
just excellent!
ReplyDeleteVijay ji aapki kavita men jeevan ki sachchaai hai.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
नजदीकियों की तरह विदाई भी सुंदर होती है यह आपकी कविता कहती है!
ReplyDeleteहमारे प्रेम की मदिरा का वो जाम
ReplyDeleteजो हम दोनों ने एक साथ पिया था ..
उसका स्वाद अब तक मेरे होंठों पर था...
वाह सपत्ति जी वाह
vijay...bahut sunder kavita hai..bahut din baad padhhne ko mili itni achhi bhavabhivyakti...vaise bataao toh patni lout aayi hai na..ab toh theek lag raha hai na?
ReplyDeleteLovely lines!
ReplyDeleterecd. by email from Ms. Rachana Srivastava..........
ReplyDeletebahut hi sunder kavita hai
sab kuchh asa lagta hai dikhai de raha hai
sunder chitran
saadar
rachana
जी कैसे हैं
ReplyDeleteकविताएँ तो भाव पूर्ण हैं
विजय जी, सच मानिय, हर कविता की ही तरह यह कविता भी मेरे दिल की गहराइयों को चीर गयी। इतनी गंभीर और मारक कविताएं लिखते हैं कि कभी कभी दिल करता है कि आपके पास आकर आपसे आशीर्वाद ले लूं, लेकिन क्यां करूं रांची से हैदराबाद की दूरी ही कम्बख्त इतनी है कि मैं आपसे मिल नहीं पा रहा हूं, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि आपकी कविताएं ये फासला किसी भी दिन खत्म कर देंगी। आगे भी आपसे ऐसी ही रचनाएं चाहिए खासकर माता-पिता के साथ संबंधों पर एक रचना चाहिए आपसे...इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteमिलकर खोना,खो कर पाना,
प्यार को दूजा रूप यही हैं.
हर साँस पर,उन्ही का नाम लिखा हो,
बस सच्चे प्यार का स्वरूप यही हैं.
सारे कमरे में हर जगह तुम थी ...
ReplyDeleteअभी अभी तो मैं तुम्हे छोड़ आया था
फिर ये सब ..................................सुनो ,मैं बहुत देर से रो रहा हूँ ..
तुम आकर मेरे आंसू पोंछ दो ......
यूँ कि यादों में ना आया करो...
जाओ तो कुछ देर निभाया करो....
रोते रोते..
vijey ji wahh sundar abhi waykti hui hai ..bhot hi umda..apni rachnao ka hame asaa hi sathi baante rahiye..
ReplyDeletenamshkaar
"मौन की भी अपनी भाषा होती है"
ReplyDeleteसच है । मौन कमोबेश सब कुछ व्यंजित करता है ।
सुन्दर रचना के लिये आभार ।
vijay ji namaskar , aap ki kavita ne muje rula diya ,kyun ki aap ki kavita me mera ateet jalak gaya. aaj fir wo sare jakhm obhar aaye hai jo main salon se bulaye baitha tha .dard samagne ke liye dard se guzarna padta hai thx.(wo bhooli dastan lo fir yaad aa gai)
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है /हर लाइन मैं एक जीवन जीता हुआ स प्रतीत हो रहा है/ पूरी कविता मैं एक प्रेमी केट जाने की तरप बिलकुल जीवंत सी प्रतीत हो रही है. वो लाइन ....मौन की भी अपनी भाषा होती है
ReplyDeleteये आज पता चला .......
जब तुमने मेरा हाथ पकड़ कर कुछ कहना चाहा....
और कुछ न कह सकी .....
मैं भी सच कितना चुप था !!...
सच कितनी भावुक है /
बहुत सुंदर लिखा है धन्येवाद मित्र बहुत बहुत /
वाह विजय जी, शुरु से लेकर अंत तक ऐसा लगा जैसे किसी धारा के साथ बह रहा हूँ। आपने अद्भुत सी रचना लिखी है। दिल को आनंद आ गया। यह सच है कि कुछ भी हो आपने प्यार में सच में ही पी एच डी कर रखी है।
ReplyDeleteअरे यार,कविता की साईट पर गाने को क्यों डाल रखा है?बार-बार कविता पढ़ता हूं और डिस्टर्ब होता हूं। आपकी कविता चार बार पढ़्नी पड़ी। अभी इसी वक्त गाने को निकाल दें अपनी साईट से। कविता भावुक करती है। आप में कविता लेखन की कला काफ़ी विकसित हो चली है।
ReplyDeleteसुशील कुमार
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ की आपको मेरी शायरी पसंद आई! आपकी टिपण्णी के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है!
bhaav abhivyakti bahut hi pravaah liye hue hai..
ReplyDeletebahut hi khubsurat rachna..
itne gunijan sab kah gaye..kya kahun?
badhaayee..is sundar kavita ke liye.
sachmuch...itna bhaavpoorn...bas aansoo behne hi reh gaye ise padhke..2-4 baar aur padh doon to wo bhi ho jaaye shayd....
ReplyDeletewww.pyasasajal.blogspot.com
मिलना बिछड़ना कविता की ही नहीं
ReplyDeleteजीवन की भी रीत है
इस कविता में भावों की ऐसी ही भीत है
विजय जी कविता के पर्याय हो चले हैं
कविता तो अब विजय जी की मीत है।
विजय जी , आपकी यह रचना प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाती हुई बहुत ही मर्मस्पर्शी लगी ।
ReplyDeleteअब कुछ कहने को बचा नहीं बस इतना ही की दूर हो कर भी हम दूर क्यों नहीं हो पते .....और उनकी याद के सहारे उनके साथ कैसे जिया जाता है
धन्यवाद अब शायद कभी मैं उदास न रहू अगर हुई तो आप की रचना का स्मरण कर लूंगी....:)
Anupam Rachna..
ReplyDeleteBahut bhaai aapki lekhni bhi,
Bahut bahut badhaai aapko
mujh se to kahi behtar aap likhte hain...acha laga apka blog dekh ker...milte rahe...aur bhi achcha lagega...
ReplyDeletewaah bahut khoob ehsaaso ko jiti hui rachna hai ...very nic
ReplyDeleteविजय साहब,
ReplyDeleteये कविता नहीं है आपका दिल है, जिसे आपने निकाल कर रख दिया है | आपने प्रेम का एक खुबसूरत सा एहसास करा दिया है पढने वालों को |
आप बधाई के पात्र हैं
कविता अच्छी है, वैसे तेजेंन्द्रजी की टिप्पणी भी गौर करने लायक है। जारी रहिए। बधाई।
ReplyDeletepyare bhai vijayji.....the kahan aap abhi tak,
ReplyDeleteBHAI KAMMAAAAAL KAR DIYA -
GAZAB KAR DIYA
nitant maulik prateekon ke madhyam se nitant niji kshnon ko akhil maanvta k patal par jeevan k jis chitra ko aap ne khada kar diya hai...vah anupam hai..adwiteey hai
AAPKO LAKH LAKH HARDIK BADHAIYAN
waah waah
waah waah
waah waah
-ALBELA KHATRI
www.albelakhatri.com
विजय जी सबसे पहले तो आपको बहुत ही खुबसूरत कविता के लिए ढेरों बधाईयां
ReplyDeleteविजय जी क्या आपको पता हे आपने जो लिखा है वह पढकर किसी के दिल पर क्या बीतेगी
नहीं नां
मैं बताता हूं आपकी इस कविता को पढकर बस एक शेर जो है तो पंजाबी में लेकिन मैं हिंदी में लिखूंगा शायद आप समझ जाएंगे
सीन सोनिए कंच भन के चूर कित्ता
आना ता नई सी पंजाब नू
तेरे पिआर ने मजबूर कित्ता
बहुत बेहतरीन रचना के लिए आपको ढेरों बधाईयां अब मैं भी जल्द ही अपनी निरंतरता बनाने का प्रयास करूंगा
yahaan aana ek atyant sukhad anubhav raha,,,,
ReplyDeletebahut hi pyara likha aapne
mera saubhagya ki maine apko padha
"..HAZAAR GAZLEN QURBAAN AAPKEE
ReplyDeleteIS KAVITA PAR.KYA BHAAV AUR KYA
BHASHA,KISEE SARITA KAA BAHAAV HAI
DONO MEIN.SACH JAANIYE,EK ARSE KE
BAAD ITNEE ACHCHHEE KAVITA KA RAS MILA HAI..."
"...आपका नाम 'प्रेम-कवि' कहूं तो अतिशयोक्ति न होगी। बस, ऐसे ही लिखते रहिए। मेरी कामना है कि आपको जीवन में हर क्षेत्र में सफलता मिलती रहे...."।
श्री प्राण शर्मा और श्री महावीर जी की इन
टिप्पणियों के बाद भला क्या कुछ रह जाता है कहने को ??
और फिर श्री तेजेंदर जी की टिपण्णी को भी
नज़र-अंदाज़ करना मुनासिब नहीं होगा ........
विजय सप्पति !!
भावुक शब्दों का जादूगर !!
काव्य-सम्राट ,,,
सब को अपनी भावनाओं के साथ बहा ले जाने की महारत रखने वाला भोला-भला कवि....
आज सम्पूर्ण ब्लॉग-जगत का चहेता बन चुका है...
बधाई .
---मुफलिस---
बहुत बढ़िया.......!!
ReplyDeleteVijayji, Aapki rachna humesha ke tarah bahut badhiya hain. Dil ki bhavanao kitni khoobsurati ke saathh pesh kiya hain....
ReplyDeleteभाषा की जादूगरी से बचते हुए एक सहज कविता !
ReplyDeletebehatarin.......itni sahajta se apne mann ke bhavon ko kah pana aasan nahi hai.......kam se kam mere liye to nahi.
ReplyDeleteसहजता से बहुत कुछ कह जाने का प्रयास है इस कविता में । भावनात्मक कविता का उत्कृष्ठ नमूना । धन्यवाद ।
ReplyDeletereally these lines have a lots of hidden meaning. kise ke chale jane ke bad bhi kai sari chijen yun hi rah jati hai.
ReplyDeletebohot hi behtarin kavita hai. balki kahna chahiye ki bahawna gajab ki hai.
bahut hi sundar aur dil ko cho lene wali rachna
ReplyDeleteक्या कहूं दिल के एहसासों को समझ सकें तो आइये आपका इंतज़ार कर रहा हूं....
ReplyDeleteसिने से लगूं या कदम चूम लूं......
आपने बताया था आप कैसे लिखते हैं बिना कलम को रोके हुए तो यही सोचता हु उस वक़्त आप कौन से तसव्वुर मैं होंगे जो इतना भावपूर्ण और कुछ कुछ होने वाला लिख देते हैं....:)
आज मेरा सलाम भी लेलिजिये सर जी.......
अक्षय-मन
कोमल भावों से भरपूर मन को छूती हुई दिल में उतर जाने वाली यह कविता कितने गहरे अनुभव बाँटती है ।
ReplyDeleteबधाई आपको इस लेखन पर ।
... बेहद खूबसूरत, प्रभावशाली, प्रसंशनीय .... बधाईंयाँ ... बधाईंयाँ !!!!
ReplyDeleteNice poem!
ReplyDeletehe ishwar ! ye main padh rahithi ki har pal ko dekh aur jaan rahi thi .itani sundar arachna aur vo bhi itane saral sabdon me jaise maine kisi bichade premi ka dil padh liya . bahut sundar ,bahut hi sundar :)
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleterecd. by email from Mr. Shyamal Suman ..........
ReplyDeleteVijay Bhai,
Namasar.
"MAUN KI APANEE BHASHA HOTI HAI" man kochhunevali line hai. Ap bahut sunder lihate hain tabhi to itane comments aa rahe hain. Han ek bat kahanee thi ki yadi rachana ki lambai chhoti ho to aur maja aye.
Meri badhi aur shubhkamnayen.
Bahetareen..Laajawaab Rachana... itni acchi tarah likha hain jaise ye kavita nazaroke saamne ek haqeekat banke dikhai de rhai hain
ReplyDeleteह्रदय स्पर्शी कविता. लगा जैसे ये कविता नहीं है, हाल-ए-दिल है जो चीर कर कागज पर रख दिया है. लगभग सभी की जिन्दगी में ये पल आते हैं आपकी कविता पढ़ कर वो पल याद आ गए, आँखें नम हो गईं. आपने बहुत खूबसूरती से प्रेम को बिछुड़ने को शब्दों में पिरोया है . बेहतरीन.
ReplyDeleterecd. by email from Mr.Naresh Bohra.....
ReplyDeleteDear Vijayji;
Aapki kavitaayen padhi. Samast rachanayen bahut hi uchch koti ki hai. Waise main bhi thoda bahut likhta hoon lekin aaj tak kisi ko nahi padhaya. Dar hai ki koi sunkar ya padhkar hans na dey.
Sadhuvaad rachanaon se awgat karane ke liye.
Namaskaar
Naresh Bohra
wow...
ReplyDeleteso many comments..
ab hm kya kahe..
aapki bhavnaaye to vakai bahut achchi thi ...
aapne jis tarah ki kavita likhi hai wo aajkal bahut prachalan me hai ... shayad is tarah ki kavita ko atukant kavita kahte hai ..
jinme line ke ant me koi tuk ya rhyme nahi hoti..
lekin mujhe lagata hai . rhyming poems jyada attractive hoti hai..
atukant kavita.. chhoti ho to jyada achchi lagti hai..
mai aapse chhoti hoo aur sirf ek suggestion ke taur per aapse kah rahi hoo ki tukant kavitaon ke sath in bhavon ko dhalenge to vakai bahut achchai kavita banegi...
aasha karti hoo.. aap ise negatively nahi lenge..
mere blog per aane ke liye dhanyawad...
My Hindi is not very good, but I thoroughly enjoyed your deeply-felt poem.
ReplyDeleterecd. by email from Mr.Rahul Kundra.....
ReplyDeletebahut khub likha hai sundar rachna hai, mubarak
हमारे प्रेम की मदिरा का वो जाम
ReplyDeleteजो हम दोनों ने एक साथ पिया था ..
उसका स्वाद अब तक मेरे होंठों पर था...
wah
बहुत ही सुंदर रूमानी रचना और सच भी तो है , बिछड़ कर भी प्रेम कभी बिछड़ता थोड़े ही ना है।
ReplyDeleterecd. by email from Ms.Ajanta Sharma.....
ReplyDeletewah ! bahut sundar kavita, behad prabhavshaali chitraN !!
meri antarim shubhkaamnayen sweekar karen...
saadar,
Ajanta
pyar ke ehsaas ko...judayi ko aap bahut behtari se pesh karte hain
ReplyDeleteu r superb
aap ke anurodh pe ek mitr ke salaah pe itni sundar rachanaa ka aanand le payi .iske liye aapki aabhaari hoon .baki sab baate sabhi ne kah di aur main unka samarthan karti hoon .
ReplyDeleteबहुत उमदा रचना है विजय जी, बाकि तो सबने सब कुछ कह दिया बस दो शब्द कहूँगा:
ReplyDeleteदेख कर तेरा जाना मेरे अश्रु भी ना रुक पाए,
तन्हा छोड़ इन पलकों को, बह चले वो भी तेरी राह पर...
vijay ji ,100 comments hone par bahut bahut badhai.mujhe pata nahi tha ki kisi ka chale jana is kadar logon ko prbhavit karega .rachana ke bare men to itna kaha ja chuka hai ke ab aur kucha na hi kahun to behatar hai isase ye sabit hota hai ke ye rachana wakai aapki moulik anubhuti hai isiliye abhivykti bhi sahaj aur molik hai ,aur jo sahaj hai wahi sundar hai punh bahut bahut badhai .asha hai age bhi isi taraha ki rachnayen padhane ko milengi .
ReplyDeleterecd. by email from Mr. Chandrapal ......
ReplyDeleteDear Vijay,
aap ki kavita vakai pyar ke naye aayamo ko chooti ek maarmik aur samvedansheel kavita hai...
aap ki anumati ho to hum ese humare sahityik portal..aakhar.org per publish kerna chahte hai.
aap ki aagya ke intjar me aap ka sathi,
chandrapal
very nice......badhaai...
ReplyDeletegajab likha hai vijay ji. dil khush hogaya.
ReplyDeleteguzari zindgi yad dila di janab aapne
ReplyDelete....badhiya (Manoj Durbi)
विजय भाई मैं तो कुछ भी टिप्पणी करने के लिए बहुत छोटा हूँ,फिर भी बड़े ही मार्मिक भावों को इतनी सहजता से पेश करने का अंदाज़ बेजोड़ है आपका.
ReplyDeletebahut SHANDAR ABHIVYAKTI hai ..... SHUBHKAMANAYEN..........
ReplyDeleteविजय जी,
ReplyDeleteआप की कविता ने रुला दिया. हृदय की तरंगों को झंकृत कर दिया. खूबसूरत संवेदनाओं का चित्रण देखा भी और महसूस भी किया.प्रेम की नाज़ुक अनुभूतियों की सुंदर अभिव्यक्ति.
बधाई.
This is amazing, "Yeh bichadne ka ehsaas jeena bhi zaroori hot hai varna kisi ke hone ka ehsaas hi nahin hot, Jab koi nahin hota hai tabhi uske hone ki ahmiyat pata chalti hai."
ReplyDeleteBeautiful Combination of "I Love You" & voh "station ki chai ka Cup" because recently I lived this emotion with my sweet fiancee
विजय जी
ReplyDeleteबधाई, आपकी कविता एक कहानी सी कहती है
दिल को छु लेने वाली कहानी
हर मुलाकात एक हसीन याद छोड़ जाती है
अगर हर मुलाकात पर एक कविता लिखी जाये तो
एक अलग लाइब्रेरी बनानी होगी
ट्रेन, स्टेशन और आयी लव यूं जैसी अंग्रजी शब्दों का प्रयोग काफी स्वाभाविक सा लगा...
एक अच्छा प्रयास है
इंदर
behtreen
ReplyDeletepahli baar kisi ki kavita padh ke main boht der tak royee..ek ek shabad ek tasveer hai...agar yeh sach hai to boht dukh bhara hai.....wakte rukhsat wo chup rahe magar aankho me kajal fail gya...
ReplyDeletevery nice.....i found here some thing different...
ReplyDeleteHello,
ReplyDeleteEach word unfolded itself beautifully. Seemed someone was playing a movie on-screen!
Went thru your photography blog as well. Really hats off to your talent.
Great work..
Regards :-)
विजयजी आप मेरे ब्लॉग पर आये और मेरी हौसला अफजाई की साधुवाद ,
ReplyDeleteआपकी कविताये पढी भावनाओं का प्रवाह शुरू से अंत तक मिला तुम्हारा चले जाना कविता तो आपके जीवन की सच्चाईओं को पूर्णता केसाथ व्यक्त करती है बधाई
ऐसा ही होता है देह चली जाती है, मन आत्मा पीछे छोड़ जाती है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
"मैंने धुंधलाती हुई आँखों से देखा तो पाया कि ;
ReplyDeleteतेरे चेहरे के उदास उजाले
मेरे आंसुओ को सुखा रहे थे......"
You are really fantastic writer.
Thanks for coming to my blog and liking my postings... That way I got to see your writing.... Thanks a lot for that.
I liked your writing so much that now I am a follower!!
~Jayant
आपकी रचना का हर शब्द एवं उसकी सशक्त अभिव्यक्ति बहुत ही बेहतरीन है, इसकी प्रस्तुति के लिये बधाई ।
ReplyDeletejis tarah is kavita ka ant aapne kiya hai, sanch men mere haath uth gaye aansu ponchhne ke liye, bahut maarmik.
ReplyDeleteमैंने मरघट की खामोशी के साथ ;
ReplyDeleteतुझे उस ट्रेन में बिठाया ..
तेरा चले जाना जैसे ;
मेरी आत्मा को तेरे संग लिए जा रहा था ..
...प्रेम से परिपूर्ण रचना....बहुत अच्छा लगा आप के ब्लाग पर आकर.
आपकी कविता किसी टिप्पणी से परे है. नि:शब्द शब्द कहा से लाये?
ReplyDeleteRecd. by Email from Mr.Praveen Pathik...
ReplyDeletemanaskaar vijay ji ;
natmastak hun .vaah guru vah jitna andar ghusta hun utna hi gahan. bahut behhtreen likhte hi janab.
dhyanbaad
recd. by email
ReplyDeletefrom Mr.Dilip Kawathekar ...............
विजय जी नमस्ते,
आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया.
आपके ब्लोग पर जा पहुंचा तो ठगा सा रह गया. आपकी कविता का अंदाज़े बयां बेहद ही जुदा और बाखुदा दिल को छू लेने वाला था. यूं कहें कि इतना प्रभावित हुवा कि आन फ़ानन में इस कविता को पढ डाला.(एक सांस में). सोचा कि आप को भी भेज दूं. (No retakes)
आपको बधाई और शुभकामनायें
आभार,
दिलीप
Recd. By email from Mr.Santosh Kumar..............
ReplyDeleteVijay Ji,
Namaskar,
apke blog par comments itne the ki e-mail karna hi uchit laga.
meine kisi poetry par ab tak kisi ke blog par 121 comments nahi dekhe. Yeh aviswaniya hai. Kamal hai,ab tak kahan chupe the aap.
As usual poetry bahat acchi hai.
aapne aamantrit kiya tha so kaise nahi aata. aaya toh khusi bhi hui.
aapka,
Santosh Kumar
+91 9990 106 318
www.kalam-e-saagar.blogspot.com
Adarneeya Vijaya ji,
ReplyDeleteItanee sashakt evam dil ko jhakjhor dene valee rachana ke liye hardik badhai.
Poonam
इतनी अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद......और हाँ बताना चाहूँगा आपके ब्लॉग पर भी इसी कविता पर कुल १२५ कमेंट्स हो गए है.....अविश्वसनीय पर सच-मुच में.....
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
एक ऐसी रात की , जो हमने साथ बिताई थी
ReplyDeleteज़िन्दगी के तारो के साथ .. जागते हुए सपनो के साथ
और प्यार के नर्म अहसासों के साथ ...
bahut sundar lines hain...Sir........
Sir .main apka aabhari hoon ki itna khoobsoorat comment aapne meri kavita pe diya.....dhanyawaad.......
Sir plz do follow my blog also
कविता कहने का आपका यह अंदाज बहुत अच्छा लगा। एक बेहद खूबसूरत रचना के लिए बधाई।
ReplyDeletebahut hi lajawab rachna hai, dil ke kisi koney mai dabi kisi ki yaar aur akhiri mulakat zahan mai taza ho gayi....
ReplyDeleteप्रिय विजय जी,
ReplyDeleteमेरे Blogg ’सच में’ पर आकर आपने मेरी रचना को पसन्द किया,और प्रसंशा की आप का बहुत बहुत शुक्रिया.
शुक्रिया,आप का इतनी सुन्दर रचना लिखने और मुझे इस को पढने का मौका देने के लिये.
आशा है,मेरे ब्लोग 'सच मे’ www.sachmein.blogspot.com के प्रति आपका स्नेह ऐसे ही बना रहेगा.
recd. by email by Mr.Rajat Narula .......
ReplyDeleteSir,
I have read the poem its just superb... very touching and high on emotions...
You can read two of my personal favorite poems on my blog as well..
"Akhiri Khat" and "zinda hai mujhme aaj bhi"
Regards,
Rajat Narula
उम्दा रचना के लिए बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteBahut Kuch kahan Chata tha...lakin daar sae aaya phir kabhi sahi.
ReplyDeleteirshad
बहुत सुन्दर रचना विजय जी
ReplyDeleterecd. by email from Mr. Mahesh shah on aakahr -hindi e -magazine ....www.aakhar.org
ReplyDeleteआपकी कविता ने दिल को मोह लिय....बहुत बधाई आपको....
recd. by email from Mr.Ishwar..
ReplyDeleteसादर नमन , आपकी सभी कविताओं कों पढ़ता रहता हूँ ,बार -२ पढ़ता हूँ, एसा लगता है कि आप उन लोगो के लिए एक शशक्त माध्यम बन जाने मे सहायक हो जो अपने दिल की गहराइयों से निकले कोमल निश्छल भाव को शब्द रूप देने मे असफल रहते है, और आप उनके भाव कों पढ़ कर ,या यो कहे कि समझ कर उन्हें शब्द रूप दे पाने मे उन लोगो के मददगार के रूप मे खड़े हो जाते हो , आपको इस सुकृत्य के लिए हार्दिक धन्यवाद और क्या कहे , कहने कों बहुत कुछ है मगर ...कुछ लिखे या कहे दिल भर आता है , बस आप व आपके कविताओ कों मेरा नमन
ये तो लाखों के दिल से चुरा कर लिख दिया... पर ये बताइए जब राजीव जी ने मेरे दिल में खिड़की या दरवाजा लगाया ही नहीं है तो फिर आपने मेरे दिल से ये चोरी कैसे कर लिया...
ReplyDeleteबिलकुल अपनी सी लगती है...
और आज अपना IE ठीक हो गया है...
मीत
विजय जी,
ReplyDeleteबाकी लोंगों ने तो आपको नेट पर पढां मगर हमें तो आपके रूबरू बैठ कर आपकी आवाज में यह कविता सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ...सुन कर बहुत मजा आया. अगली मुलाकात की प्रतीक्षा है.
ब्लोग पर तो टिप्पणियों के माध्यम से मिलते रहेंगे
hello mr.vijay. i read u poem.. its really very heart rendering & contemperory.. it cn be viewed in two different wayz. it cn be d heart renching story of a luvr who himsulf snd his beloved for sum reasons.. it cn olso b d journey of lyf.. in which death is d beloved & man, hr luvr. man himsuf leave death feeling dat he'll never ever meet her in his lyf, but the moment he turns his back over it he finds hr sitting rite in front of him. death sying "I LUV U"... its d existence of death, d omnipresent nature of death dat makes lyf worth living..
ReplyDeleteyour poem has made me remember a few lines saying
"LIFE IS A TALE, TOLD BY AN IDIOT,
FULL OF SOUND & FURY,
SIGNIFYING NUTHIN....
nyways urs is a really good attempt..
cheers
hello mr.vijay. i read u poem.. its really very heart rendering & contemperory.. it cn be viewed in two different wayz. it cn be d heart renching story of a luvr who himsulf snd his beloved for sum reasons.. it cn olso b d journey of lyf.. in which death is d beloved & man, hr luvr. man himsuf leave death feeling dat he'll never ever meet her in his lyf, but the moment he turns his back over it he finds hr sitting rite in front of him. death sying "I LUV U"... its d existence of death, d omnipresent nature of death dat makes lyf worth living..
ReplyDeleteyour poem has made me remember a few lines saying
"LIFE IS A TALE, TOLD BY AN IDIOT,
FULL OF SOUND & FURY,
SIGNIFYING NUTHIN....
nyways urs is a really good attempt..
cheers
kya kahu bas phir se ek din ki yaad taaza ho gayi.
ReplyDeletemain bhi kisi apne ko Metro station tak chor kar jab ghar aayi thi aur jab use chorne gayi thi us waqt ki sari felling apne apni kavita main likh di hai. main to bas soch kar hi rah gayi thi aapne meri feling ko kavita ka rup diya hai Thank you.vv Nice.
तेरा जाना ...मेरी आत्मा को साथ लिए जा रहा था .............. विजय जी दिल को छू लिया आपने...
ReplyDeleteबेहतर रचना के लिए धन्यवाद्
shodhun kadhnyache kasht waya nahi gele. keval apratim.
ReplyDeleteबेहतरीन शब्दों के संयोजन के द्वारा सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति की सशक्त कविता बन पड़ी है।मेरे हिसाब से आपकी श्रेष्ठ रचना है।
ReplyDeleteमैंने धुंधलाती हुई आँखों से देखा तो पाया कि ;
ReplyDeleteतेरे चेहरे के उदास उजाले
मेरे आंसुओ को सुखा रहे थे......
आईने में देखा तो तुम थी मेरे पीछे खड़ी हुई ...
मुझे छूती हुई .....मेरे कानो में कुछ कहती हुई..
शायद I LOVE YOU कह रही थी......
सारे कमरे में हर जगह तुम थी ...
अभी अभी तो मैं तुम्हे छोड़ आया था
फिर ये सब ..................................
सुनो ,
मैं बहुत देर से रो रहा हूँ ..
तुम आकर मेरे आंसू पोंछ दो ....
dil par asar kar gayi
behadd umda..Vijay ji tareef ke liye shabd chhote pad gaye..sach, amazing , awesome.
thanx lot 4 being my frnd.
मेरे आने और आंसू पोंछ देने भर से
ReplyDeleteक्या फरक पड़ जाना है
ये तो अब नियति है हमारी
जिसे जीना है हमने.....मरने तलक
कई दफे तुमसे कहा
भूल जाओ मुझे
एक बार मुझे पा के भला क्या कर लोगे
दिल तो तुम्हारा कभी था ही नहीं
क्या जीवन भी मुझे दे दोगे
___________
मैं जानती थी
एक बार....सिर्फ एक बार
मुझे छू लेने भर से
तुम फिर किसी के ना हो पाओगे
अपने आप में खो कर रह जाओगे
एक बार फिर मेरे ख्यालों से
अपनी दुनिया सजा लोगे
और वही हुआ.....
अब हर जगह
तुम्हें मेरा अक्स नज़र आता है
चाय के कप में
बिस्तर की चादर में
यहाँ तक की सोफे पर पड़े
तुम्हारे ही रेशमी रुमाल में.....
गुन्जन
१३/९/११
wakai mei aapi kavitao ka koi jawab nahi hai, ati sunder.
ReplyDeletewese deri se aapko comment kerne ke liyeh mafhi chahugi, darasal kaam ki wajah se blog per kam time depati hu... per meine aapni lagbhag sari kavitae read ki zitni achi kavita hai utna hi acha hai apke sabdo ka chayan . bahut khub
Ruchi Rai