दोस्तों , मैं एक हास्य कविता पेश कर रहा हूँ ....आपकी खिदमत में.....!!! आपको अवश्य पसंद आएँगी ...इस कविता का जन्म पूना में हुआ था, जब मैं श्री नीरज गोस्वामी जी से मिला था .. नीरज जी बहुत शानदार व्यक्तित्व है और ऊपर से वो बहुत हंसमुख है ...मैंने उनसे कविता की किताब के बारे में कहा तो उन्होंने हंसते हुए कहा की , यार ; लोग उस पर दाल रोटी रखकर खायेंगे.. इस बात पर हम दोनों काफी देर तक हंसते रहे , और जब भी इस बात की याद करते है , हम दोनों खूब हंसते है .. फिर मैंने सोचा की ,इसी पर एक कविता लिखी जाये, सो एक कविता लिखी और उसे सजाने संवारने के लिए अपने दुसरे गुरु श्री अविनाश जी के पास भेज दिया .. वो तो एक बेहतरीन हास्य कवि है और मेरे इस segment के लिए गुरु भी है ,उन्होंने तो बस कमाल कर दिया , इस कविता को चार चाँद लग गए है उनके आर्शीवाद से; वो एक शानदार एडिटर भी है .... कविता आप पढिये ... और आनंद लीजियेगा .. कविता थोडी सी लम्बी है पर आशा है की आपको पसंद आएँगी . मैं अपनी इस हास्य कविता को अपने दोनों गुरु श्री नीरज जी और श्री अविनाश जी को dedicate करता हूँ . और उन दोनों गुरुओ को नमन करते हुए ,हमेशा उनके आर्शीवाद की कामना करता हूँ ....!!!
मेरी कविता की किताब
नीरज जी से मेरी मुलाकात हुई ;
मन की पूरी बहुत बड़ी आस हुई !
उन्हें अपना समझकर उन्हें चाय पिलाई ;
दिल उनका जीतकर मैंने एक बात बतलाई !
नीरज जी , मुझे कविता की किताब छपवाना है
साहित्य की दुनिया में बड़ा नाम कमाना है
बहुत बड़ा कवि बनकर दिखलाना है
नीरज जी हंसकर बोले ,
और बोल कर गज़ब ढा दिया
मेरा छोटा सा दिल तोड़ दिया
विजय, क्यों पगला गया है
कविता लिख लिख कर बोरा भर , बौरा गया है
तेरी किताब को कोई नहीं पढ़ेगा
उस पर घास रखकर गधे चरेंगे
और दाल रख कर लोग रोटी खाएँगे
सुनकर दिल मेरा भयभीत सा हुआ
मेरे भीतर का कवि व्यथित हुआ !!
फिर भी निडर हो मैंने किताब छपवाने की ठान ली
नीरज जी को अनसुना कर दिया ;
और दिल की बात मान ली
जाते जाते नीरज जी फिर बोल गए
कानों में नीम सा कुछ घोल गए
बेटा ,दोबारा सोच ले
मेरी बात पर कान दे !
पर मैंने न कान, न नाक और न आंख दी
उनकी सलाह को आंख दिखा दी
एक कान से सुनी दूसरे से निकाल दी
मैं कहा , नीरज जी , बस अब देखिये क्या होता है
साहित्य की दुनिया में मेरा कैसा नाम होता है
घर आकर सारे रूपये लगाकर
मैंने मोटी सी किताब छपवाई
और अपने खर्चे पर दोस्तों को भिजवाई
और लोकार्पण की एक बड़ी पार्टी रखवाई
ये बात अलग है कि इस सारी प्रक्रिया में
बीबी ने मुझे डांट ही खिलाई
खाना तो छोड़िये चाय भी नहीं पिलाई
बहुत दिन बीत गए
कर्जा जिनसे लिया था
वो आने शुरू हो गए
मेरे नाम से गालियों के दौर शुरू हो गए
कविता की वाहवाही की कोई निशान नहीं था
साहित्य जगत में मेरे कोई नाम नहीं था
मैंने एक दिन फैसला किया
और दोस्तों के घर जाने का हौसला किया !!
एक दिन भरी बरसात में एक
दोस्त के घर गया और जो देखा
उसे जी भर भर कोसा
उसके बच्चे मेरी किताब के पेजों की
नाव बना रहे हैं और
एक दूसरे पर हवाई जहाज़ बना कर उड़ा रहे है
देख कर ये सीन दिल मेरा टूट गया
मैं उस दोस्त से रूठ गया !
दूसरे दोस्त के घर गया
उसका छोटा बच्चा खडा था
और मेरी किताब को चबा रहा था !!
तीसरे दोस्त के घर गया
वहां हाल और भी खराब थे
वे किताब को वो बेच कर छोले खा चुके थे !!!
घूमते घूमते रात हो गई
पेट में चूहे तांडव मचाने लगे
एक दोस्त के घर पहुंचा
वो बेचारा गरीब था
बरतनों से भी मरहूम था
उसने मेरी ही किताब पर रख कर दाल रोटी ,
मुझे बड़े प्यार से खिलाई
ऐसा कर के उसने मुझे बड़ी ठेस
पर पेट की आंतडि़यों को राहत पहुंचाई
वापिस आते हुए ठोकर लगी और मैं गिर पड़ा
मेरे पैर को मेरी किताब ने ही ठोका था
मुझे गिराने का मौका उसने नहीं चूका था
गिरा और बेहोश हो गया मैं
आँख खुली तो हॉस्पिटल नजर आया
मेरे उपर पड़ रही थी नीरज जी की छाया
नीरज जी हंसकर कहा
फिक्र मत करो , सब ठीक है
हॉस्पिटल का बिल कुछ ज्यादा आया था
तेरी मोटी किताबों को बेचकर चुकाया है
मैं फिर खुश हो गया
पर दोबारा से रो गया
जब मुझे बताया कि बिकी नहीं
मोटी थी, तुली हैं, तोलाराम कबाड़ी वाले ने खरीदी हैं
तभी बिल चुकाया है
हाय रे मेरी कविता की किताब
जिसने अस्पताल में भर्ती करवाया मुझे जनाब !!!
अब कभी भी अपनी कोई किताब नहीं छपवाऊंगा ,
ये बात अब समझ आ गयी है
अब आप भी इसे समझ ले , यही दुहाई है ......!!!!!
LOL
ReplyDeletemaja aa gaya .
hum to aaye the ittifaq se aapki kitab ki kuch kavitayen padhne
koi baat nahii ye bhi kuch kam nahi rahii.
बहुत खूब....किताब ने क्या-क्या जलवे दिखाए और जलवों ने एक कविता भेंट की , जिसे आपने प्रस्तुत किया
ReplyDeleteछा गये विजय जी बहुत ही मज़ा आया!
ReplyDeleteजो बच्चे बुजुर्गों का कहना नहीं मानते उनका ये ही हाल होता है वत्स...वैसे अविनाश जी ने इस कविता का काया कल्प कर बहुत रोचक बना दिया है...इतनी शानदार कविता लिखने और मुझे बीच में घसीटने के लिए आप दोनों महानुभावों का बहुत बहुत शुक्रिया....वैसे विजय जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं...इश्वर से प्रार्थना है की वो आप की किताब छपवाने की इच्छा को जल्द पूरी करे...
ReplyDeleteनीरज
बहुत बढ़िया :) अच्छी लगी यह कविता ..आप की किताब छपवाने की इच्छा को ईश्वर जल्द पूरी करे...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है. बधाई.
ReplyDeleteaap aise hi kavita likhte rahein aur chhapwate rahein .........hum to yahi dua karenge magar uske aage jo hua wo na ho.............aapki kitabein khoob chhapein aur hum khoob padhein.
ReplyDeletebadhayi ho is hasya kavita ke liye.
:)
ReplyDeleteVijay jee, jab maine aap ki kavita mein Neeraj padha, main Kavi Neeraj jee ke baarey mein sochney laga. Phir apney bhai Neeraj kee tippni padhi to maamla saaf huaa. Aap ne hanstey hanstey jo dard byan kiya hai, woh sabhi lekhkon ka dard hai. Vaise lekhkon ke liye bhee ek chetawani Agyeya jee ne dee thee, "Har lekhak ko apni pustak chhapwaney se pehley sochna chahiye ki kaagaz bananey ke liye darakht kaatney padtey hain!"
ReplyDeleteTejendra Sharma
Katha UK
London
विजय जी
ReplyDeleteआपने हास्य को भी बहुत रोचक अंदाज से पेश किया है.............
मजा आ गया पढ़ कर........... पर जैसा नीरज जी कह रहे हैं...........आप शीघ्र ही अपनी कितान छापें, इश्वर से कामना है
BHAAEE VIJAY JEE,
ReplyDeleteAAPKEE "KAVITA KEE
KITAAB" BADE HEE MUN SE PADHEE
HAI.KYA KHOOB LIKHA HAI AAPNE"
HASYA HEE NAHIN,VYANGYA BHEE
HAR PANKTI MEIN HAI.JO RACHNAKAR
APNEE PATNIYON KE JEVRAAT BECH KAR
APNEE KITABEN CHAPVAATE AUR PRAKA-
SHKO KEE ZEBEN BHARTE HAIN ,UNKE
LIYE AAPKEE YE KAVITAA MARG PRADA-
ASHAK HAI,UNKEE AANKHEN KHOLNE
WALEE SAABIT HOGEE.
MUHAAVREDAAR BHASHA MEIN
LIKHEE AAPKEE YAH KAVITA HAMESHA
KE LIYE YAAD RAHEGEE.BADHAAEE
waah !! sundar !
ReplyDeleterecd in email from Shri Pran ji ..
ReplyDeleteप्रिय विजय कुमार जी,
आपकी इस नयी कविता का नया स्टाइल ,नया
रंग -रूप बहुत पसंद आया है. कई ग़ज़लों निहित
हैं इस में. यूँ ही लिखते और लुभाते रहिये सबको
प्राण शर्मा
kamaal kar diya sahih aapne to is kavita ke kitaab se .... waah mazaa aagyaa......aur jab sakshaat gazal pitaamah hi aakar khud badhaayee de raha hai to mari kay hasti ke kuchha kahun bahot hi shaandaar kavita...mahaarath sahil hai aapko...
ReplyDeletearsh
: ) bahut badhiya!
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और रोचक लिखा है..बधाई, इस निराले अंदाज के लिए.
ReplyDeleteवाह विजय जी कमाल का लिखा है। वैसे एक आध बात तो सही लिखी है। जल्द ही आपकी भी किताब आए। यही दुआ करते है हम नीली छतरी वाले से।
ReplyDeleteदेखिये मित्रों
ReplyDeleteनीरज जी और मैं तो इनके गुरू हैं
पर विजय जी तो पूरे गुरूघंटाल है
ऐसे ऐसे विषय लाते हैं खोज कर
ऐसी ऐसी कल्पना की उड़ान भरते हैं
कि हंसने वालों के मुंह से बेरसगुल्ले ही
मीठे पानी के फौव्वारे झरते मिठियाते हैं
हंसने के बाद जब करते हैं बंद मुंह तो
तो अचरज से भर जाते हैं, हैरान न हों
हैरान तो हंसने वाले होते हैं क्योंकि उनके
मुखारविन्द से बत्तीसी सत्ताईसी जो भी
रहती है बाकी, वो भी बेबाकी से हो जाती
है गायब और पोपला मुंह खुद हंसेगा तो
सामने वाले को हंसने का दौरा पड़वाएगा
।
कामना है कि इनकी हरेक कविता में हास्य
और व्यंग्य इसी तरह घुलमिल जाए कि
दोनों क्षेत्र के दिग्गजों में घमासान करवाए।
विजय भाई हास्य कविता अच्छी लगी अब किताब छपवा ही दीजिये
ReplyDelete- लावण्या
hahaha aajkal waqayi kitaba ki halat aisi hi hai
ReplyDeletekitab ne khoob jalwe dikhaye hain
aap kamaal ho sach main
Waah...ye huee naa rehnumaaee...! Ab ham to shayad kavitaa likhnaahee band kar denege...aapke zariye Neeraj jikee salah maan lenge !
ReplyDeleteJab aapkee rachnaaonkee ye qissaa goyee,( jaantee hoon,ye baat sahee nahee, par wyng sahee),to hamaraa haale kitaab kya hoga?
Ab sirf aaphee ko apnee rachnayen padhneke liye kahenge...kamse "naukaa" yaa "hawayee jahaz" to nahee dikhenge...
Ab is binatee ko hanske mat taal jayiyegaa...kyonke Neeraj ji to hamare blogpe aayenge nahee...!Unke baad aapkaahee naam yaad aa gaya!
वाह विजय जी ,मज़ा आ गया .पर आप फिर भी किताब छपाए बिना मानेंगे नहीं .हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं ,जल्दी से आपकी कवितायेँ किताब के रूप में हमारे सामने आयें .
ReplyDelete"avinaashji ka haath aour aapki kalam...khoob pasand aai.
ReplyDeleteneeraj ji ko beech me ghaseetna..kavita me jaan le aai/
isi tarah ka kuchh likhte raho vijaya bhai, aapko badhai ho badhai/"
kya bata hai
ReplyDeletekitab chhapwane ka harsh samjh gaye ab dosto ko bhi bata denge ...achi lagi kavita
अभी तक तो आपका 'प्रेम-कवि' के रूप में ही देखा था लेकिन आज इस कविता से यह भी मालूम हुआ कि आप
ReplyDeleteहरफ़न-मौला भी हैं- आज बहुमुखी प्रतिभा का भी आभास हुआ। बड़ी रोचकता और चुम्बकीय भावों से पूरी कविता
पढ़ने वाले को थामे रखती है। क्या कहें? निहायत मज़ेदार कविता है और एक संदेश भी है। ऐसी कविताएं भी लिखते रहिए।
नीरज जी भी बड़े रोचक ढंग से लाए गए हैं।
बस, मुंह से बधाई अपने आप ही निकल रही है।
waah !!
ReplyDeleteaapne bahut achhi kavitaa likhii hai...lajawaab
bahut, mazaa aaya padh kar...
matlab, mere ko bhi logo ne bahut kaha tha, kitaab chhapwaane ke liye, magar maine nahi chhapvaai...ha ha ha..
Achha kiya...
Ab agar koi kahega, to usko aapki ye kavitaa padhwaaa doonga...
Loved reading you...
Will definitely follow your blog.
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बेहद खूबसूरत शब्दप्रयोग
ReplyDeleteसभी फोटोग्राफ बहुत खूबसूरत हैं , जीवंत हैं, कुछ कहते हैं | आपकी कविता 'कविता कि किताब' बहुत अच्छी लगी |
ReplyDeleteएक दोस्त के घर पहुंचा
वो बेचारा गरीब था
बरतनों से भी मरहूम था
उसने मेरी ही किताब पर रख कर दाल रोटी ,
मुझे बड़े प्यार से खिलाई
ऐसा कर के उसने मुझे बड़ी ठेस
पर पेट की आंतडि़यों को राहत पहुंचाई
बहुत अच्छी अभिव्यति है, आज जो दशा है उसका सही मूल्यांकन किया है आपने |
आभारी है हम
स्वप्न मंजूषा
wah bahut khoob ..... apka jo margdarshan neeraj ji ne kiya apne hamara kar diya dhanayavad sir
ReplyDeleterahi baat kavita ki to sach me maja aa gaya padhkar ...
हास्य को एक नई पोशाक में
ReplyDeleteआपने कविता के माध्यम से और निखार दिया
बधाई आपको
Naye andaaj me bahut achche lage aap.Badhai.
ReplyDeletekavi ki vyathaa ko kitne saralata ke saath ujagar kar daala bahut khoob ,behad mazedaar .aap blog pe na aate to itni sundar rachana se vanchint rah jaati .shukriya jo mere blog me aaye .
ReplyDeleteसुन्दर रचना है, ’सच में’ पर आने और बेबाक तारीफ़ के लिये शुक्रिया.
ReplyDeletewww.sachmein.blogspot.com पर आते रहें.
रचना मुझे बहुत बहुत अच्छी लगी....वाह...
ReplyDeleteबढ़िया और मज़ेदार. वैसे आपकी किताब के पन्नों को बच्चों ने नाव बनाने में इस्तेमाल किया इससे अच्छी बात क्या हो सकती है:) आखिर कई काम आई आपकी किताब.
ReplyDeleteकिसी भी रूप में आपका लिखा मिलता रहे.
बहुत ही उन्दा अभिव्यक्ति .........सच मे मजा आ गया....सुन्दर
ReplyDeleteविजय जी कविता चाहे जैसी लिखो चाहे जिससे जन्च्वाओ .
ReplyDeleteछपवाने के पहले अच्छी मार्केटिंग करवाओ .
सिर्फ खिलाने पिलाने से नहीं चलेगा काम ,
पहले जान लो किसे खिलाओ ,किसे पिलवाओ .
चतुर बनो सोर्स लगाओ
अक्ल लगा कोर्स में लग जाओ .
दिल से नहीं दिमाग से लिखो .
भाव नहीं बुद्धिवाले दिखो.
कवियों को नहीं आलोचना के ठेकेदार पकडो
पहले प्रसस्ति पा लो कविता पर
फिर कलम पकडो.
फिर जब जिसे चाहे रगडो
आलोचकों को पहले बनालो बाप ,
तब akado .
वर्ना ऐसे ही बिकेगी रद्दी के भाव
खाई जायेगी रख डाल रोटी
पहले फिट करो ठीक से गोटी
मार्केटिंग गुरु खिला पिला लाइब्रेरियों में लगाओ
इंसानों के चक्कर में न पद पड़ा
दीमकों से चट्वाओ .
नवारंगमाय बनो
"कवी राजा कविता के अब मत कान मरोरो
धंधे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोडो
मैंने नहीं किसी और ने कहा
दावा करो " मैने बैल का दूध दुहा "
फिर न कहना मैने नहीं कहा .
आज तो अपन ने टिप्पणी दे ही डाली....
ReplyDeleteबढ़िया कविता लिखी है भाई
मीत
राज सिंह ने सिंहनाद कर खोले हैं जो राज
ReplyDeleteपक्का है लाजवाब हैं खोल दिए हैं जो आज
bechaaree kitaab aur almast likhne baale. yugyugo se yahee hotaa aayaa hai. chhapne kee jaldee mai chhape note kahp jate hain. rasee jal jaatee hai ham enth se rah jaate hain.
ReplyDeletevijay ji maine aapki sari kavitayen padhi hai."meri kavita ki kitab' mujhe sabse achhi lagi isme aapne kaviyonki vastvikta bayan ki hai.
ReplyDeletevijay ji maine aapki sari kavitayen padhi hai."meri kavita ki kitab' mujhe sabse achhi lagi isme aapne kaviyonki vastvikta bayan ki hai.
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