Thursday, February 11, 2010
ये मुझे क्या हो गया ....
किसी अनजाने से तेरे बारे में बात करना ;
और जब वो कहे की ये जानां कौन है यार ...
किसी सुबह अपने बगल में तेरा चेहरा ढूँढना ;
और फिर हँसना की मैं पागल हो गया हूँ ...
किसी शाम को उतरते हुए सूरज से ये कहना की,
तेरे चेहरे पर मेरे नाम की किरण बिखराए...
किसी रात को अचानक उठ कर बैठना,
और तेरी तस्वीर से ढेर सारी बात करना
किसी शहर में किसी गली में मुड़ते समय,
अपना हाथ तेरे लिए , तुझे थामने के लिए बढ़ाना ...
अचानक ही अपने कमरे में तुझे देखना ,
और मुस्कराना और ढेरो बाते करना ....
मेरे होंठो पर तेरे लबो का स्वाद ढूंढना ;
फिर तेरे होंठो को हवाओ में ढूंढना ...
हवाओ पर उँगलियों से .....पानी पर उँगलियों से ..
और पेड़ो पर भी अपनी उँगलियों से तेरा नाम लिखना
अकेले होते हुए भी अकेले नहीं होना
तेरे संग बस प्यार करना और सिर्फ प्यार करना
पहली नज़र का पहला जादू ....
अब तक तुम्हे देख रहा हूँ ;
ये मुझे क्या हो गया ....
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
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किसी शाम को उतरते हुए सूरज से ये कहना की,
ReplyDeleteतेरे चेहरे पर मेरे नाम की किरण बिखराए...
gazab ki prastuti hai........premi ke sare lakshan parilakshit ho gaye hain is kavita mein..........pagal premi ke.
badi romantic rachana hai
ReplyDeleteवाह .. गजब की रचना !!
ReplyDeleteअरे यह तो प्यार का बुखार लगता है... आज ही टेस्ट करवाना ना भूलें.. हा हा
ReplyDeleteप्यार का जादू चल गया है विजय जी ......... बहुत ही रोमेंटिक लिखा है ..... मज़ा आ गया ....
ReplyDeletevaah! बहुत सुन्दर मनोभावो को शब्दो मे पिरोया है...।बढ़िया रचना!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..... पहली नजर का पहला जादू .. वाह वाह ......
ReplyDelete‘तन्हाई ...मेरी नई रचना पढ़कर टिप्पणि दिजिएगा.’.
Manmohot kar dene wali bahut hi sundar si rachana ke liye Aabhar!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
bahut sunder abhivayakti hai vijay ji
ReplyDeleteवाह सुना है कि वेलेन्टाईन डे के लिए कुछ युवक आपकी यही पंक्तियां सुनाने वाले हैं , अपनी मिस वेलेन्टाईन्स को , सच है क्या , हा हा हा हा , सुंदर शब्द और रचना
ReplyDeleteअजय कुमार झा
ehsaaso se bhari ek romantik komal rachna. badhayi.
ReplyDeletebahut shandar rachanaa hai ...... shubhkamanayen.....
ReplyDeleteमुग्ध प्रेम की क्रियायें, प्रतिक्रियायें हैं यह !
ReplyDeleteसुन्दर रचना । आभार ।
अंतर्मन से निकली कविता है। जो भी होना था आपको हो ही गया है !
ReplyDeleteकिसी भोर के ताजगी से गुजारिश करना,
ReplyDeleteकि हवायें तुझे छूकर, मेरे पास चली आयें...
किसी ओस की बूँद से फ़ुसफ़ुसाकर पूछ लेना,
कि यह महक और लज्जत,
कहीं आपके गेसुओं से तो नहीं चुराये!
और अब मुझे यह बतायें विजय जी.
कि ये भाव कहीं आपने मेरे मन से तो नहीं चुराये?
मधुर रस में गहरे डूब कर डूबते उतराते लिखी गयी रोमांटिक रचना...वाह...क्या लिखते हैं आप...वाह वाह...
ReplyDeleteबसंत ऋतु के साथ ऐसे रोमांटिक रचनाओं का जबरदस्त काकटेल ...देखिये कितने घायल होते हैं इसपर....
रोमांटिक कविताये/ग़ज़ल लिखने में आप बेजोड़ हैं...
आपकी रचनाओं का बेसब्री से इन्तजार रहता है...ये दिन जो बना जातीं हैं...
आपकी रोमांटिक रचनाओं में एक छिपी हुई टीस है, जो इसे दिल की गहराई तक उतार देती है, और मन के कोने कोने में संवेदनायें जागृत हो जाती हैं, और यादों के किसी उडन खटोले में दिल विचरने लगता है.
ReplyDeleteमुझे अधिकतर कविताओं में सार कम लगता है, मगर आपकी कविताओं से पता नहीं क्यों , मैं रिलेट करता हों अपने मन की अभिव्यक्ति को.
शानदार!!
bhut khub charay ka varnan keya ha....
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेमाभिवाक्ति. सुंदर शब्द संयोजन
vijay ji aap prem bhi karte hain ya bas prem ki kavitayen likhakar doosaron ko uksate rahte hain ?
ReplyDeletesachmuch romantic kavita hai badhai kavita ke liye bhi aur agar pyar ho gaya ho to usake liye bhi .
fir dil umagne laga...lagta hai toofaan aane ko hai...!!!!
ReplyDeleteVIJAY JEE,PAHLEE NAZAR MEIN AESA
ReplyDeleteHEE HOTA HAI,ZEHN KYA DIL BHEE
PREMIKA MEIN KHOTAA HAI.AAPNE TO
VALENTINE DAY SAARTHAK KAR DIYAA
HAI.ROMANTIK KAVITA KE LIYE AAPKO
BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
विजय जी, कविता के अंत में आप लिखते हैं कि "ये मुझे क्या हो गया है ...."
ReplyDeleteपूरी कविता पढ़कर आपकी मनोदशा एक ऐसे साधक की सी लगी जो देखने में तो उसका प्रेम सांसारिक प्रेम सा लगता है, किन्तु धीरे धीरे यही प्रेम इश्क़-ए-हक़ीक़ी में बदल रहा है, रूहानी-प्रेम में बदल रहा है, 'यार' तो केवल प्रतीक है. बस:
जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है
कि हर शै में जलवा तेरा हू-ब-हू है.
अगर इस सीढ़ी तक पहुँच गए तो समझ लीजिये कि आपकी यह दीवानगी, यह इश्क़ लाहूती है, रूहानी है.
रचना की प्रस्तुति वास्तव में दिल को छू गयी.
कवि का और उसकी कल्पना का सन्सार अनूठा होता है उसके अहसास नेचर के साथ भी आत्मालाप करते है और अपने आपको जुडा हुआ महसूस करते है. कविता के लोक से नीचे उतरने पर कवि को लगता है कि ये मुझे क्या हो गया है. ये काया परिवर्तन की बेला है.
ReplyDeleteवैसे कुछ हो गया है तो कुछ लेते क्यू नही ? कोल्डारिन ली ?
http://hariprasadsharma.blogspot.com/
ReplyDeletehttp://sharatkenaareecharitra.blogspot.com/
यहा भी घूम ले
PAHLI NAZAR KA JAADU. WAAH; VIJAYJI; AAPNE TO MUJHE MERE COLLEGE KE DINOM KI YAAD DILA DI. KABI NA KABHI HUM SABHI IS EHSAAS YA ANUBHAV SE RUBARU HO CUKE HAIN. BAHUT UMDA.
ReplyDeleteRecd by email from Mr. Vasu Murthy......
ReplyDeleteVijay
Kavita to accha hai, lekin mujhe ye samaj me nahi aata,
tum kaise isme doob gaye ho
Bachpana me aise karna to suna,
lekin ab kare to, pagalpana bole ke
log na hasaade mere yaar ko
Best Wishes to Vijay
Vasu Murthy, New York
किसी शाम को उतरते हुए सूरज से ये कहना की,
ReplyDeleteतेरे चेहरे पर मेरे नाम की किरण बिखराए...
किसी रात को अचानक उठ कर बैठना,
और तेरी तस्वीर से ढेर सारी बात करना
komal ahsaas se bhari hui rachna ,ye mujhe kya ho gaya ,khud se hi bekhabar sawalo me ghiri hui is sundar rachna ka jawab nahi ,pyar me kabhi kabhi aesa bhi ho jata hai .
मुझे साहित्य का बहुत ज्यादह ज्ञान तो नहीं है लेकिन फिर भी ....
ReplyDeleteइस कविता को पड़ कर लगता है की आज भी कवि के ह्रदय में कुछ यादे ताज़ा हैं ...
जिनको वह हमेशा अपने से जुड़ा रखना चाहता है ..!!!
इस कविता की जितनी भी तारीफ की जाए कम है .Usman Ali Khan
CG Artist Mumbai.
recd. by email from Mr. Ajay Sinha....
ReplyDelete"bahut hi khoobsurat"
Vijay Bhai Wah! Maan Gaaye Ustaad, Aap Kay Dil Ki Yeh Ati Sundar Baat!!!
ReplyDeleteJust fabulous...Keep on writing, Yaar!
Sunil Sharma
लाजवाब, क्या बात, क्या बात, क्या बात
ReplyDeleteये मुझे क्या हो गया
इस कविता में कैसे खो गया
विजय भैया की ही है देन
मैं तो बस बादलों में सो गया
बहुत ही अच्छा है भैया, एकदम सूपर कविता...
wah.. ye sunadr rachana maine pyaar chalak raha hain...
ReplyDeleterecd. by email from Mr.Dinesh ...
ReplyDelete...
Vijay ji,
Aapki kavita bahut hi achchi hain. Aise hi likhte raho aur aage badho, yahi kaamna kartaa hoo. Yadi samay mile to meri website www:kavidineshraghuvanshi.com bhi dekh lena aur reply karna.
Namaskaar.
DINESH RAGHUVANSHI
POET
आपकी कविता पढ़ कर मुझे गुलज़ार का फिल्म सत्या का गीत..."बादलों से काट काट के ,कागजों में नाम जोड़ना , ये मुझे क्या हो गया...डोरियों से बांध बांध कर रात भर चाँद तोडना ये मुझे क्या हो गया...." याद आ गया...और क्या कहूँ...
ReplyDeleteनीरज
Harek pankti sundar hai!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ........कल्पनाओं के तरणताल में अठखेलियां करते हुए मन का स्वरूप
ReplyDeleteकिसी शाम को उतारते हुए सूरज से ये कहना
ReplyDeleteक तेरे चेहरे पर मेरे नाम की किरण बिखराए
वाह हुज़ूर !
ऐसा रूमानी लहजा
और इतनी मीठी-मीठी प्यार भरी बातें
लगता है वेलेनटाइन देव आप पर
भरपूर प्रसन्न रहे अब की बार !!!
कविता बहुत अच्छी है
कहीं दूर यादों के गलियारों में
खींच लिए जाती है
बधाई
बहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है! बधाई!
ReplyDeleterat ko achanak uth key baithna........
ReplyDeletewah jee
bahut sunder bhav ki abhiviyakti ki hai
nice
ReplyDeletebahut khubsurat rachna , pehele prem ka anayas hi smaran ho gaya
ReplyDeletehttp://bejubankalam.blogspot.com/