Wednesday, July 8, 2009
मन की खिड़की /// The window of my heart
वो एक अजीब सी रात थी ,
जो मेरे जीवन की आखरी रात भी थी !
ज़िन्दगी की बैचेनियों से ;
घबराकर ....और डरकर ...
मैंने मन की खिड़की से;
बाहर झाँका .........
बाहर ज़िन्दगी की बारिश जोरो से हो रही थी ..
वक़्त के तुफानो के साथ साथ किस्मत की आंधी भी थी.
सूखे हुए आँखों से देखा तो ;
दुनिया के किसी अँधेरे कोने में ,
चुपचाप बैठी हुई तुम थी !!!
घुटनों में अपना चेहरा छुपाये,
कांपती हुई ,और भीगती हुई .....
और;
मेरे नाम को अपने आँसूओँ मेँ जलाती हुई ......
मुझे देखकर कहा ;
सुनो .......
मैं बरसो से भीग रही हूँ ..
मैं तुम्हारे मन के भीतर आ जाऊं ?
मैंने मुड़कर मन की खिड़की से ;
झाँककर अपने भीतर देखा ...
मेरे मन की दुनिया ,
अपनी आखरी साँसे गिन रही थी ..
ज़िन्दगी बेजार सी थी
और वीरान थी ..
सब कुछ ख़तम सा हो गया था…..
मेरी सारी खुशियों को
ज़िन्दगी के अँधेरे निगल गए थे......
मेरी किस्मत को तेरा प्यार मंज़ूर नहीं था ,
मेरे खुदा को तेरा साथ का इकरार नहीं था ,
मैं हार चूका था ;
समय से !
ज़िन्दगी से !!
और खुदा से ...!!!
मैंने बड़े प्यार से ;
अपनी भीगी आँखों से तुम्हे देखा ;
बड़े हौले से तेरा नाम लिया ;
एक आखरी सांस ली ;
और
फिर मर गया ..................
The Window of my heart
It was a very strange night,
so strange and ruthless;
That I couldn’t recognize,
It as last night of my life....
such restless was my life ;
By traveling a long journey ,
That it made me Frightened and scared
Of the world around me;
On that night I looked out of
The window of my heart... .........
The rains of Life were very harsh;
There were the tornados of time ;
With unseen storms of fate ;
Making deafening sounds around me ….
My Dry eyes saw you at a distance…
You were so close to my heart and
Yet so far from my reach...
In a dark corner of the cruel world
you were sitting quietly!!!
Your face was hidden
In your knees;
you were trembling and
Getting drenched;
In the harsh rains of life.....
And;
You were burning my name in your tears ......
than suddenly;
You looked at me in a trance of happiness
You were pleading me...
Listen o’ my love
May I come inside your heart...?
I don’t want to stay here in this world…
Please let me come, inside you…
I turned away my face from you
And looked inside the window of my heart;
The world of my heart,
Was breathing its last few breaths ..
My life was destroyed and deserted…
everything had come to an end.....
All my happiness was gone...
the Darkness of death were swallowing my life ......
My destiny was not ready to accept your love
My God did not agree to unite me with you
I lost you to Time, Life and God;
With misty eyes,
I saw you o’ my great love ....
slowly I whispered your name ….
I Took one last breath;
and than I died..................
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
-
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
-
मिलना मुझे तुम उस क्षितिझ पर जहाँ सूरज डूब रहा हो लाल रंग में जहाँ नीली नदी बह रही हो चुपचाप और मैं आऊँ निशिगंधा के सफ़ेद खुशबु के साथ और त...
एहसासों को बहुत मार्मिक जामा पहनाया है आपने.. आभार
ReplyDeleteअरे जिन्दगी आपकी चौखट पे सजदा कर रही थी और तुम हो की उसे घुसने भी नहीं दिया. अगर हम उजाले का स्वागत नाहे करेंगे तो अँधेरा तो सहज सुलभ है.
ReplyDeleteIts a brilliant expression... itni shiddat se wo yaad karta hai mujhe.. itni shiddat se to maine usse chaha bhi nahi...
ReplyDeletevery nice nazm...
क्या कहूँ विजय सर इसे पढ़कर तो ऑंखें नम हो गयीं.... रोंगेटे खड़े हो गए...
ReplyDeleteबहुत दर्द भरी है....
मुझे बहुत पसंद आयी...
.......निशब्द हूँ में इसके तारीफ के लिए शब्द नहीं....
यह एक एहसास है जिसे मैंने महसूस किया...
मीत
सूखे हुए आँखों से देखा तो ;
ReplyDeleteदुनिया के किसी अँधेरे कोने में ,
चुपचाप बैठी हुई तुम थी !!!
घुटनों में अपना चेहरा छुपाये,
कांपती हुई ,और भीगती हुई .....
और;मेरा नाम को अपने आंसुओ में जलाती हुई ......क्या कहूं ? बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं. जीवन का मर्म है.
waah vijayji,
ReplyDeletekavita aur kavi ke bheetar ki komalkant samvednaaon ko aapne jis sahaj swaroop me prastut kiya hai vah ni:sandeh prashansneey hai
waah
waah
badhaai !
हमेशा की तरह सुन्दर भाव लिए हुए हैं आपकी यह रचना भी ...शुर्किया
ReplyDeleteक्या कहें विजय जी, कई बार कुछ कहने की अपेक्षा बस पढते जाने का मन करता है। कुछ ऐसा ही आज भी है। जज़्बातों को बखूबी लिख दिया आपने। कितना दर्द है शब्दों में।
ReplyDeleteमैंने मुड़कर मन की खिड़की से ;
ReplyDeleteझाँककर अपने भीतर देखा ...
मेरे मन की दुनिया ,
अपनी आखरी साँसे गिन रही थी ..
Lajawaab bahoot hi marmik rachna....dil ko choote huve likhte hain aap Vijay ji
aaj to rula hi diya aapne............kahan se itne gahre ahsaas le aaye..........abhi kuch samajh nhi aa raha kya likhun .........nishabd hun.
ReplyDeleteplz apni ye poem mujhe send kijiyega if possible.
very touchy .........too much.
bahut hi marmika aant kari hai aapane ................aankho se sirf pani hi pani aa rahaa hai ,,,,,,,,,,,apako meri salam
ReplyDeleteसबसे पहले मै आभारी हुँ comment के लिये
ReplyDeleteआप ने आपने मन का जीवंत चित्रण यहा किया है
बहुत भावपूर्ण भाव लिये है कविता. इतना दर्द ---इतना मार्मिक --
ReplyDeleteमैंने मन की खिड़की से;
बाहर झाँका .........
बहुत खूब --
अंग्रेजी रूपांतरण भी बहुत सुन्दर
behad bhavpurn kavita... dhero badhaayee...
ReplyDeletearsh
अत्यंत भावुक कर देने वाली रचना है ये आपकी...हर प्यार का अंत क्या दुखद ही होता है?
ReplyDeleteनीरज
विजय जी ,व्यस्तता की वज़ह से देर हो गयी ,परन्तु ध्यान बराबर बना रहा ,इस मौसम के अनुरूप ही भीगा देने वाली रचना ,बहुत ही खूबसूरत .क्या कहू सोंच में हूँ .
ReplyDeleteआख़िरी रात भी न फिसलने और मौत को गले लगाने जैसे श्रेष्ठ, उच्च संस्कारिक भावों से ओतप्रोत आपकी यह मर्म स्पर्शी रचना ह्रदय को छू गई.
ReplyDeleteबधाई स्वीकार करें.
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत मार्मिक कविता है सभी पंक्तियाँ दर्द से भरी हैं, भाव बहित ही सुंदर हैं....क्या कहूँ शब्द नहीं हैं इस कविता की तुलना में मेरे पास
ReplyDeleteबहुत खूब विजय जी.....कितना दर्द है इन शब्दों में और सच्चाई भी !
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! सबसे बढ़िया लगा कि आपने हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में ही लिखा है! आपका हर एक ब्लॉग एक से बढकर एक है!
ReplyDeletebahut hi sundar vijay ji
ReplyDeleteaap apni kavita me jo bhavnayen piro kar late hai..
ham usake kayal hai.
behtareen abhivyakti....
विजय जी,
ReplyDeleteदर्द का अहसास कराती हुई कविता।
बहुत अच्छा लगा कि आपने कलम टांगने का विचार त्यागकर अपनों के बीच लौट आयें है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
" last lines has just craeted the seen in front of eyes, and emotionaly just touched the feelings. "
ReplyDeleteregards
you always write very nice compostions
ReplyDeletehope we will get more to read
sard ahsoson ko aag di hai aapne ..
ReplyDeletejane kitni bejar bhigti thithurti zindgii isi aas mein dam tod deti hai..yakinan kabil-e-daad ,marmik bhavo ko abhivyakt kiya hai aapne
शानदार विजय जी, लेकिन थोड़ा भावुक कर दिया आपने। हैप्पी इंडिंग होता, तो बहुत खुश होता अभी थोड़ा ग़मगीन हो गया माहौल। वैसे आपकी कविताओं का एडिक्शन हो गया है हम सभी को। आजकल हम लोग बातें करते हैं कि विजय भैया कब नई कविता लिखेंगे। आजकल आपने कविताएं लिखने की रफ्तार भी धीमी कर रखी है, क्यों भला?
ReplyDeleteऔर, मुझे आपसे शिकायत है कि आप मुझे कविता की लिंक सबसे आखिरी में देते हैं। सब लोग पढ़ लेते हैं, तब मुझे पढ़ने मिलता है। वैसे मैं हमेशा आपके ब्लॉग पर आता हूं, उस वक्त कोई नई कविता नहीं रहती है, और कभी बाहर चला जाता हूं और नहीं देख पाता, तो पता चलता है कि आपने नयी कविता लिख डाली है। खैर, इस कविता के लिए बहुत बहुत बधाई।
In sabhi diggaj tippanee karon ke saathshamil hun..! Lekin, Hindi kee kavita, angreeke b-nisbat, mujhe zyada achhee lagee...!
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://lalitlekh-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
मैंने मुड़कर मन की खिड़की से ;
ReplyDeleteझाँककर अपने भीतर देखा ...
मेरे मन की दुनिया ,
अपनी आखरी साँसे गिन रही थी ..
लाजवाब्! मार्मिक भावों को समेटे हुए एक बेहतरीन रचना......
aap ke bhavnao ka prabha bhut sasakt hai, aap kisi ko bhi apni bhavnao main baha le jatae hai or kalpana ka satyapan hone lagta hai ......bhut sunder rachna
ReplyDeletebahut behtareen abhivyaktee, or sach kahoon to behad naye prastutikaran k saath ....bharatiy sahity ka ye naya swaroop shayad sahity ko nayee yuva peedhi ke table or table se uske mastishk tak pahuncha sake...uss or aapka ye prayaas kabile tareef hai...vijay ji behad sukun se bahar aapka ye prayaas aur kaavy par aapkee pakad sabi tippaniyon se upar hai...Ehsaas ka sadhuwaad sweekaren or ye silsila yunhi anwarat jari rakhen!
ReplyDeleteDhanywaad!
Ehsaas!
I can see you still loving her,
ReplyDeleteLove for the rest of your life
Look inside through the window of your heart!!
Outstanding composition!!
poetic treatment in english is far better than vernaculer..
ReplyDeleteदोनों भाषाओं में प्रस्तुति लाजवाब है । मुझे महसूस हो रहा है जैसे अंग्रेजी में पहले लिखी आपने यह कविता - गजब की रवानि है उसमें ।
ReplyDeleteकविता की प्रवाहमयता बाँधती है। शब्दों का किसी भी तरह उपस्थित सा होना फिर सज-सा जाना, अर्थ से ज्यादा संप्रेषण से प्रभाव उत्पन्न करना - यह सब सहज विशेषतायें हैं आपकी कविता की । आभार इस प्रस्तुति के लिये ।
मर्मस्पर्शी रचना...कोमल भाव और कोमल अभिव्यक्ति.......
ReplyDeleteमेरा सुझाव है की आप अंगरेजी में कवितायेँ अवश्य लिखें....क्योंकि इसमें प्रवाह तथा धार बेजोड़ है....
its a silly question but who wrote this beautiful poem when poet himself was no more !Perhaps his ghost ....(pun) ha ha
ReplyDeletegood and steady effort pl keep it up !
AAPKEE LEKHNEE SE EK AUR SASHAKT
ReplyDeleteRACHNAA.BAHUT-BAHUT BADHAAEE
recd. by email from Mr.Rahul Kundra.....
ReplyDeletehamesha ki tarah bahut khub likha hai
mubarak
main tumhare mann ke bheetar aa jaun? kya line hai sir.......... kya likha hai aapne........ mann khush ho gaya........ marvellous expression of love........
ReplyDeletevijay ji
ReplyDeleteaapki yeh poem pahle bhi padhi aur nishabd ho gayi...........aaj dobara aayi hun .......ahsason ki gahanta ko samet diya hai .........dard ke athah sagar mein doobi rachna hai...........jahan milkar bhi milan nhi hota........kuch mohabbat aisi bhi hoti hain unka bahut hi sukshm chitran kiya hai aapne.........dil ko jhakjhor gayi aapki ye rachna.......shabdon ka chayan bahut hi khoobsoorat bana hai aur bhavon ka to kahna hi kya.......kavita ke bhav to ek doosri hi duniya mein le gaye.
bahut hi hridaysparshi.
बहुत ही मार्मिक रचना है. मैं यही सोचता हूँ कि जब आप लिख रहे होंगे, अपने आपको, अपने दिल को कैसे संभाल पाए होंगे. मैं तो केवल पढ़कर ही आंसुओं का भार संभाल नहीं पाया. आपकी लेखनी को सलाम, विजय जी.
ReplyDeleteदोनों ही भाषाओँ में शब्द-चयन अनुपम है.
एक शेर आपके लिए:
मिरी आंखें जुदा करके मिरी तुर्बत पे रख देना,
नज़र भर देख लूं उसको, ये हसरत भी निकल जाए।
महावीर शर्मा
प्यारे विजय भाई,
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात है यार! अरे हिन्दी के साथ साथ अँग्रेज़ी तर्जुमा। बहुत ही सुन्दर और बहुत ही साहित्यिक। क्या ही संजीदा बात। आँखें भर आईं। आपसे एक आग्रह है और वो ये कि इस कविता को बहुस्नोख़ूबी दोनों ज़बानों में हमें ई-मेल ज़रूर कर दीजिएगा। हम संग्रह करके रखेंगे जी, यदि आपको एतराज़ न हो तो।
आपका दोस्त
---बवाल
आप सचमुच महान है सर,
ReplyDeleteअभी २९ जून को आपने क्षमापना पोस्ट डाली थी और विराम की घोषणा भी की थी..पर आप न केवल पहले से फास्ट हो गए बल्कि अंग्रेजी में भी ....
उस क्षमापना पोस्ट के दस दिन के भीतर ये चौथी पोस्टिंग है,
ये बात सिद्ध करती है के आप एक महापुरुष है सर जी...
जैसे के और लोग नहीं होते..
और हाँ,,,,,अब आप इतने मशहूर हो चुके हैं के जब भी कभी कहीं दो ब्लोगेर दो मिनट को भी मिलते हैं....
तो कम से कम डेढ़ मिनट तक आपकी चर्चा जरूर करते हैं....
चाहे चैट पर,,,मेल पर,,फ़ोन पर,,एस.एम.एस पर,, हर जगह आपकी ही चर्चा है सर जी,,,,,,
जिन से प्रेरित हो हजारों हिंदी ब्लोगेर कुछ लिखने का प्रयास करते हैं.......
ऐसे विजय कुमार सप्तति जी को मेरा नमन है..
बारम्बार नमन है...
स्वीकार करें
:)
kaash...
ReplyDeleteaise viraam ham bhi le paate...
kya kahu...aap to bas saare ahsaas ko udel dete hai kavita me
ReplyDeletepriy vijay ji....kavita apne aap me ek jivan hai use jina padta hai...mahsus kerna padta hai...aap ki kavitae padh ker esa lagta hai aap kavitay likh nahi rahe hai ..kavita ko apne ander ji rahe hai....vakai dil ko choone vali rachnay hai aapki....keep it up....
ReplyDeletechandrapal
www.aakhar.org
hnm...
ReplyDeleteहमेशा की तरह सुन्दर भाव लिए हुए हैं आपकी यह रचना...
vijayji,
ReplyDeletemanuji ne to sach kah diya/
kuchh esa hi he// chaliye badhaai swikaar kare.
angreji to bhai hame samajh nahi aati..fir bhi koshish ki to hindi se jyada mazaa aagaya...//
likhte rahiye janaab../umda likhte he aap.
दोनों भाषाओं में उत्तम रचना. अंग्रेजी में हिंदी की अपेक्षा अच्छी लगी.
ReplyDeletecomment from Ms.Neera on my other blog:
ReplyDeleteneera said...
Like it, the end reminds me one of Ashok Vaajpai poem..
comment from Ms.Aditi on my other blog:
ReplyDeleteAditi said...
Bahot sundar kavita hai.
आपकी यह रचना मुझे बहुत पसंद आयी |तारीफ के लिए शब्द नहीं है....
ReplyDeleteoh my god..
ReplyDeletethe end was really touching..
n nice try..both in english n hindi.. :)
n m back to blog world..
u r invited on my blog..
recd by email from Ms.Sneh Anishi........
ReplyDeletekawita man ko chhu gai. vijay ji. kahaan se itna dard samet
liya hai apne . apki samvedanshiilta adbhut hai . aapki kawitaon
ko padhne ka intzar rahta hai . badhai swiikar karen .
sneh.anushi .
dard ko kavita kahu ya kavita ko dard..maloom nahi aaj maine dard pada ke kavita padi.....har baar padne pe alag sa ahsaas hai...
ReplyDeleteसंवेदनशील कविता --मार्मिक अंत.
ReplyDeleteअच्छी -अच्छी कविताएँ लिखते रहिये.
... सुन्दर व प्रभावशाली रचना, बधाईयाँ !!!
ReplyDeleteUdaasi bhari huye nazm likhi hai Vijay ji...... bahoot hi maarmik abhivyakti hai isme...aaanke geeli ho uthti hain....
ReplyDeleteसूखे हुए आँखों से देखा तो ;
दुनिया के किसी अँधेरे कोने में ,
चुपचाप बैठी हुई तुम थी
Uff........ kitnaa bebas hoga man us vaqt jab jeevan pratiskhaa kar rahaa hai par hamaari baahen usko simet mahi paa rahi hon.......
bahoot khoob....
padh kar laga ki jaise maine ye zindgi ji ho
ReplyDeleteaapki kavitayen waqayi itni hi ghrayi rakhti hai ki padhne wala khud mahssos karne lagta hai
bheegi aankhon se
mere naseeb mein tumhara pyaar nahi tha
ant aate aate aankh bhar gayi
इस मरने पर कौन ना मर जाये ए खुदा …
ReplyDeleteKhubsurat rachna...man ki khidki kholen to bahut kuchh bahar aa jata hai.
ReplyDeleteविजय जी सबसे पहले माफ़ी मैंने इतनी देर से कमेन्ट किया और खुद पे शर्मिंदा हूँ की इतनी देर तक आप की इस अमूल्य रचना से दूर रहा आप के लेखन ki यही बात मुझे बहुत प्रभावित करती है की आप सरल से सरल शब्दों मेंमें भावो को इस तरह से भर देते है की ह्रदय वेदनाकुल हो जाता है आप की ये लेने मुझे बहुत पसंद आई
ReplyDeleteमेरी किस्मत को तेरा प्यार मंज़ूर नहीं था ,
मेरे खुदा को तेरा साथ का इकरार नहीं था ,
मैं हार चूका था ;
समय से !
ज़िन्दगी से !!
और खुदा से ...!!!
मैंने बड़े प्यार से ;
अपनी भीगी आँखों से तुम्हे देखा ;
बड़े हौले से तेरा नाम लिया ;
एक आखरी सांस ली ;
और
फिर मर गया ..................
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
सर जी...
ReplyDeleteआप तो सच में चले गए...
या हो सकता है के आप अपने बाकी के आठ ब्लोग्स को अपडेट कर रहे हों...
हम से तो एक ब्लॉग ही नहीं संभाल पाते...
आप सच में महान हैं सर...
सर सच में आप महा पुरुष हैं...a
बहुत ही अच्छी रचना........
ReplyDelete"मेरे नाम को अपने आँसूओँ मेँ जलाती हुई "
ReplyDeleteये सही होगा -
ना कि,
" मेरा नाम को अपने आँसूओँ मेँ जलाती हुई "
बाकि,
द्वीभाषिय प्रयास पसँद आया -
लिखते रहीये
-- लावण्या
Everything was came to an end -
ReplyDeleteShould be written as
" everything had come to an end "
in the English vesion of your poem
Your expressions are Frank & Raw - keep writing --
Good Luck & God bless !
&
I'm glad it is only a Piem ...& You are very much ALIVE ;-)
rgds,
- Lavanya
thanks for your compliment.
ReplyDeleteyour jazabat poem is too good.
haya
आदरणीय लावण्या दीदी ,
ReplyDeleteआपके प्यार और आर्शीवाद के लिए धन्यवाद्. आपने जो corrections बताएं है , मैंने उन्हें ठीक कर लिया है .. आप सबके आर्शीवाद से ही मैं लिख पा रहा हूँ .
आपका स्नेह यूँ ही मुझ पर बना रहे .
आपका छोटा भाई
विजय
recd. by email from Mr. Subhash Chander........
ReplyDeletevijayji,
namaskar.apki rachnayen dekhne ka avsar mila(net par).prabhavi hain .
badhai.