मेरी दुनिया में जब मैं खामोश रहती हूँ ,
तो ,
मैं अक्सर सोचती हूँ,
कि
खुदा ने मेरे ख्वाबों को छोटा क्यों बनाया ……
एक ख्वाब की करवट बदलती हूँ तो;
तेरी मुस्कारती हुई आँखे नज़र आती है,
तेरी होठों की शरारत याद आती है,
तेरे बाजुओ की पनाह पुकारती है,
तेरी नाख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है,
तेरी बेपनाह मोहब्बत याद आती है .........
तेरी क़समें ,तेरे वादें ,तेरे सपने ,तेरी हकीक़त ॥
तेरे जिस्म की खुशबु ,तेरा आना , तेरा जाना ॥
अल्लाह .....कितनी यादें है तेरी........
दूसरे ख्वाब की करवट बदली तो ,तू यहाँ नही था.....
तू कहाँ चला गया....
Kismat nahi to aur kya.. khwaab chhote fir bhi adhure :(
ReplyDeleteअनुपस्थिति का अनुभव उपस्थित है।
ReplyDeleteख्वाब की करवट्……………आह! क्या खूब कहा है…………अहसासों को सुन्दरता से पिरोया है।
ReplyDeletewah .bahut khubsurat kavita vijay ji.....
ReplyDeleteVijay ji..khawaab ki karvat .bahut khoob ..kuchh kehne ko mann ho raha hai...
ReplyDeletesapna sapna hi rehne do,
sapne main hi sahi tumhe apna kehne do,
tumhe mubarak ho ghar apna,
diwaron se mujhko lipta rehne do...:)
ख्वाब की करवट ही तो थी...
ReplyDeleteख्वाब जैसी ही खूबसूरत रचना...