Monday, February 14, 2011
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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फूल,चाय और बारिश का पानी बहुत दिनों के बाद , हम मिले... हमें मिलना ही था , प्रारब्ध का लेखा ही कुछ ऐसा था . मिलना , जुदा होना औ...
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वो एक अजीब सी रात थी , जो मेरे जीवन की आखरी रात भी थी ! ज़िन्दगी की बैचेनियों से ; घबराकर ....और डरकर ... मैंने मन की खिड़की से; बाहर झाँका ...