मैं तेरा नाम ले लेता हूँ !!! ahsason ko jee lena shaabdon main..wah gazab ki khwaahish . magar khawahishen puri ho jaayen to wo khawaahishen nahi hoti...:)
वही तो मैं कहूँ कि प्रेम पर्व बीत गया और आपकी रचना नहीं आई..यह कैसे हो गया...
खैर ,सदैव की भांति आपने कविता में अपना दिल निकाल कर शब्दों में बहा दिया है...और लाजवाब रच डाला है... केवल एक बात की ओर ध्यान दिलाना चाहूंगी कि एक ही शरीर के अन्दर आत्मा निवास कर भी शरीर से बंधी नहीं होती बल्कि निर्लिप्त रहती है,ऐसा हिन्दू दर्शन में कहा गया है..तो फिर किसी और के जिस्म (शरीर) से रूह(आत्मा) कैसे मिल सकती है...रूह तो जब मिलेगी रूह से ही मिलेगी... तो यदि आप कविता में रूह को जिस्म से मिलवाने के स्थान पर रूह से मिलवा देते तो भाव और उद्दात्तता पाती... वैसे यह केवल एक सुझाव है...जो एक पाठक की ओर से रचनाकार को है..कोई आवश्यक नहीं कि माना ही जाय..
प्रेम की संकरी गलियों से गुज़रते हुए प्यार भरे शब्द, सभी पढने वालों के दिलों में कहीं गहरे उतर रहे हैं.. और ये आपकी काव्य कुशलता का ही कमाल है वैसे रंजना जी की बात क़ाबिल-ए-ग़ौर है .......
vijay ji bahut hi gahare ahasso se rubaru karavati hai aapki pyari si kaviti .shabdo ka uttam sanyojan bhao ko bahut hi behatreen banata hai. dhanyvaad--- poonam
इनमे अहसास कूट कूट कर भरे हुए है. कभी-कभी ऐसा होता है की आप जो लिखते है उसे पढकर अपने निशब्द से भावनाओं को शब्दों की नौका मिल जाती है...... तब लगता है कि अरे बिलकुल यही तो मैं भी कहना चाहती थी. बेहद कोमल अहसास लिए हुए है यह कविता.......
good expressions of a truly emotional human being.........to write good poetry first you have to feel the emotions before penning them down on the paper.
क्या बात है विजय भैया आप तो छा गये हैं ब्लॉग जगत में। इन दिनों मैं सिर्फ आपका ही ब्लॉग पढ़ता हूं, सारे ब्लॉग पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा है। लेकिन, अपनी व्यस्तताओं के बावजूद मैं आपका ब्लॉग पढ़ लेता हूं।
अरे मैं तो भूल ही गया। अपनी बात कह दी, कविता पर कुछ भी नहीं कहा!!! एक्सट्रीमली सॉरी भैया। असल में कविता तेरा मन मुझे आपकी सितंबर 2009 की एक कविता प्रेम कथा की याद दिला गयी। प्रेम कथा के भाव और तेरा नाम बहुत हद तक मुझे भावनाओं के ज्वार को दिल से बाहर लानेवाले लगे। वैसे आपकी सारी कविताओं की खासियत ही यही होती है कि आदमी पढ़े, तो खुद को पंक्तियों में सोया हुआ पाये। कुछ ऐसा ही मृत्यु में भी आपने जादू चलाया था।
namaskar vijayji........pahli bar aapke blogs read kiye.......so good.......itani prabhuta !!!!!!! aur itani shaleenta!!!!!!!!!!shayad yahee hai aapki kamyabi ka raj..tera naam poem ek komal prastuti...thanks.
सर, मैं आपका बहुत बड़ा फैन हूं. कामिक्स वाले ब्लाग पर भी जाता रहता हूं आपके. और बाबा वाले पर भी. आप की रचनायें बेहद खूबसूरत होती हैं. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रकट की है आपने तेरे नाम के जरिये.
कल "शनिवासरीय चर्चा" में आपके ब्लाग की "स्पेशल काव्यमयी चर्चा" की जा रही है...आप आये और अपने सुंदर पोस्टों की सुंदर काव्यमयी चर्चा देखे और अपने सुझावों से अवगत कराये......at http://charchamanch.blogspot.com/ (19.03.2011)
एहसास की खामोशियों में मेरा जिस्म
ReplyDeleteतेरी रूह से मिलकर थरथराता है !!
फिर मैं तेरा नाम ले लेता हूँ
और अपनी तनहा रूह को
चंद साँसे उधार दे देता हूँ !!
मैं तेरा नाम ले लेता हूँ !!!
वाह! प्रेम दिवस की सुन्दर अभिव्यक्ति…………दर्द और कसक दोनो बखूबी उभर कर आई हैं……………गज़ब की ख्वाहिश है और उम्दा अहसास हैं।
और अपनी तनहा रूह को
ReplyDeleteचंद साँसे उधार दे देता हूँ !!
मैं तेरा नाम ले लेता हूँ !!!
ahsason ko jee lena shaabdon main..wah gazab ki khwaahish .
magar khawahishen puri ho jaayen to wo khawaahishen nahi hoti...:)
कोमल अभिव्यक्ति।
ReplyDeletePeeda ubhar aayee hai in panktiyon me!
ReplyDeleteवाह! कोमल अहसासों का सुन्दर चित्रण!बधाई!
ReplyDeleteफिर मैं तेरा नाम ले लेता हूँ
ReplyDeleteऔर अपनी तनहा रूह को
चंद साँसे उधार दे देता हूँ !!
बहुत कोमल अहसास..बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
khoobsurat kavita...
ReplyDeletenarm ahsaas..
komal shabdawali...
behatreen..
बहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद
ReplyDeleteआपकी ये रचना मन को स्पंदित कर गया है .. प्रेम-तरंग में हिलोरे ले रहा है है ..आपको कोटि-कोटि धन्यवाद ..
ReplyDeleteवही तो मैं कहूँ कि प्रेम पर्व बीत गया और आपकी रचना नहीं आई..यह कैसे हो गया...
ReplyDeleteखैर ,सदैव की भांति आपने कविता में अपना दिल निकाल कर शब्दों में बहा दिया है...और लाजवाब रच डाला है...
केवल एक बात की ओर ध्यान दिलाना चाहूंगी कि एक ही शरीर के अन्दर आत्मा निवास कर भी शरीर से बंधी नहीं होती बल्कि निर्लिप्त रहती है,ऐसा हिन्दू दर्शन में कहा गया है..तो फिर किसी और के जिस्म (शरीर) से रूह(आत्मा) कैसे मिल सकती है...रूह तो जब मिलेगी रूह से ही मिलेगी...
तो यदि आप कविता में रूह को जिस्म से मिलवाने के स्थान पर रूह से मिलवा देते तो भाव और उद्दात्तता पाती...
वैसे यह केवल एक सुझाव है...जो एक पाठक की ओर से रचनाकार को है..कोई आवश्यक नहीं कि माना ही जाय..
ऐसे ही लाजवाब लिखते रहें....
शुभकामनाएं !!!!
गुलाब के फूल की तरह कोमल भावनाओं को व्यक्त करती सुंदर कविता
ReplyDeleteSEEDHE - SAADE SHABDON MEIN
ReplyDeleteOONCHE BHAWON KAA JADOO JAGAANAA
VIJAY JI KEE KAVITA KEE VISHESHTA
HAI . HAMESHA KEE TARAH UNKEE YAH
KAVITA BHEE MUN KO CHHOTEE HAI.
wah wah bahut sundar......
ReplyDeletedil se nikla har lafj lgta hai...
एहसास की खामोशिया और तेरी रूह ... इस सिहरन को बस खुदा जानता है
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDeleteप्रेम के सुंदर अर्थों में पगी पंक्तियाँ..... जो मन के नाज़ुक भाव लिए हैं..... बेहतरीन
ReplyDeleteमैं तेरा नाम ले लेता हूँ...
ReplyDeleteप्रेम की संकरी गलियों से गुज़रते हुए
प्यार भरे शब्द, सभी पढने वालों के दिलों में
कहीं गहरे उतर रहे हैं..
और ये
आपकी काव्य कुशलता का ही कमाल है
वैसे
रंजना जी की बात
क़ाबिल-ए-ग़ौर है .......
आपका ब्लॉग देख कर प्रसन्नता हुई।
ReplyDeleteकविता बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है। बधाई।
एहसास की खामोशियों में मेरा जिस्म
ReplyDeleteतेरी रूह से मिलकर थरथराता है !!
फिर मैं तेरा नाम ले लेता हूँ
और अपनी तनहा रूह को
चंद साँसे उधार दे देता हूँ !!
मैं तेरा नाम ले लेता हूँ !
narm aur najuk ahsaaso se piroi gayi hai ye sundar rachna ,prem divas par sundar prastuti .badhai le .
वाह सत्पथी जी कितना खूबसूरत ख्याल है ।
ReplyDeleteऔर अपनी तनहा रूह को
चंद सांसे उधार देता हूँ
मै तेरा नाम लेता हूँ ।
कोमल अभिव्यक्ति। धन्यवाद|
ReplyDeleteगहरे एहसास से ओतप्रोत रचना ... बहुत खूबसूरत ..
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर विजय कुमार सप्पाट्टी जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
हिज्र की रात कल जब मेरे घर आई थी
साथ में कुछ ख्वाहिशों की बारात लाई थी
नर्म अंधेरे मुझे ओढाकर
तेरे सपनो की चादर ;
जगा रहे थे …
तेरी यादों के जुगुनू ,
आसमान में तेरा चेहरा बना रहे थे …
उन ठहरे हुए पलों में मैंने तुझे छुआ था !!!
वाह कविराज !
बहुत सुंदर ! बहुत रूमानी !!
मैं तेरा नाम ले लेता हूं …
और अपनी तनहा रूह को
चंद सांसें उधार दे देता हूं !!
अच्छी कविता है …
♥ बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
very very sweet. bohot hi pyaari nazm hai sir....kaii din baad bhi valentines day sa mehsoos hua ise padhkar :)
ReplyDeletebahut sunder yehsas
ReplyDelete...
पहली बार आई पर आना अच्छा लगा बहुत खुबसूरत एहसासों से भरी खुबसूरत रचना |
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्त |
nice one ..
ReplyDeleteSeems as if emotions r flowing in each n every line.. lovely poem :)
ReplyDeletefir main tera naam leta hun , very nice , first sher bahut achha kaha hai aapne , ise badhayein to sunder ghazal ban sakti hai
ReplyDeletevijay ji
ReplyDeletebahut hi gahare ahasso se rubaru karavati hai aapki pyari si kaviti .shabdo ka uttam sanyojan bhao ko bahut hi behatreen banata hai.
dhanyvaad---
poonam
एहसास की खामोशियों में मेरा जिस्म
ReplyDeleteतेरी रूह से मिलकर थरथराता है !!
फिर मैं तेरा नाम ले लेता हूँ
और अपनी तनहा रूह को
चंद साँसे उधार दे देता हूँ !!
मैं तेरा नाम ले लेता हूँ !!!
वाह ...ये हर्फ जो लफ्ज़ों में ढलें हैं ..इन पंक्तियों का एक नया आयाम दे रहे हैं ...बहुत खूब ...बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
आपकी शुक्रगुजार हूं आपके प्रोत्साहन एवं हौसजाआफज़ाई के लिये ...।
और अपनी तनहा रूह को
ReplyDeleteचंद साँसे उधार दे देता हूँ !!
मैं तेरा नाम ले लेता हूँ ...............
एक तेरे सपनो की चादर ;
जगा रहे थे ...
इनमे अहसास कूट कूट कर भरे हुए है. कभी-कभी ऐसा होता है की आप जो लिखते है उसे पढकर अपने निशब्द से भावनाओं को शब्दों की नौका मिल जाती है...... तब लगता है कि अरे बिलकुल यही तो मैं भी कहना चाहती थी. बेहद कोमल अहसास लिए हुए है यह कविता.......
dil ko chu lena wala lakh hai
ReplyDeletewww.architpandit.blogspot.com
बहुत सुन्दर ...ना भुलाने लायक रचना है यह ! शुभकामनायें आपको ......
ReplyDeleteएक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई !
good expressions of a truly emotional human being.........to write good poetry first you have to feel the emotions before penning them down on the paper.
ReplyDeleteक्या बात है विजय भैया आप तो छा गये हैं ब्लॉग जगत में। इन दिनों मैं सिर्फ आपका ही ब्लॉग पढ़ता हूं, सारे ब्लॉग पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा है। लेकिन, अपनी व्यस्तताओं के बावजूद मैं आपका ब्लॉग पढ़ लेता हूं।
ReplyDeleteअरे मैं तो भूल ही गया। अपनी बात कह दी, कविता पर कुछ भी नहीं कहा!!! एक्सट्रीमली सॉरी भैया। असल में कविता तेरा मन मुझे आपकी सितंबर 2009 की एक कविता प्रेम कथा की याद दिला गयी। प्रेम कथा के भाव और तेरा नाम बहुत हद तक मुझे भावनाओं के ज्वार को दिल से बाहर लानेवाले लगे। वैसे आपकी सारी कविताओं की खासियत ही यही होती है कि आदमी पढ़े, तो खुद को पंक्तियों में सोया हुआ पाये। कुछ ऐसा ही मृत्यु में भी आपने जादू चलाया था।
ReplyDeleteऔर अपनी तनहा रूह को
ReplyDeleteचंद साँसे उधार दे देता हूँ !!
मैं तेरा नाम ले लेता हूँ !!!
कोमल एहसास लिये सुन्दर रचना। बधाई।
बहुत सुन्दर... इस सुन्दर प्रेम से लबरेज कविता को कल चर्चामंच पर रख रही हूँ...सादर
ReplyDeleteकोमल अहसासों से परिपूर्ण बहुत भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteदिल को छू गयी आपकी यह अभिवयक्ति!
ReplyDeleteसादर
अपनी रूह को चाँद साँसे उधार देने को मैं तेरा नाम लेता हूँ ...
ReplyDeleteबहुत खूब !
प्रेम में दीवानगी की मिसाल सी लगती है आपकी कविता
ReplyDeletewah ji wah kya bhawon ki abhivyakti hai . sunder ati sunder .sachmuch lag hi nahin raha hai ki aap hindibhashi nahin hai .
ReplyDeleteकोमल भाव की खूबसूरत अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकारें!
ReplyDeletePrem ki is unmukt udaan ko rokne nahi dena Vijay ji ... ye vo saagar hai jismen doobne par mzaa badhta jaata hai ...
ReplyDeletebahut accha hai join me
ReplyDeletewww.architpandit.blogspot.com
humnaam ko humnaam ka namaskar
ReplyDeletepehli baar aya hu.
lekin aab aana hota rahega
और अपनी तनहा रूह को
चंद साँसे उधार दे देता हूँ !!
मैं तेरा नाम ले लेता हूँ !!!
dil ko shoone vale ehsaas hai apke paas. bahut khoob
recd email from Mr. Shriprakash Shukla ...
ReplyDeleteआदरणीय विजय जी,
कोमल भावों को शब्द देती हुई इस अति सुन्दर रचना के लिए मेरी हार्दिक अभिनन्दन एवं बधाई स्वीकार करें .
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
recd, mail from Mr. Devmani pandey ji ...
ReplyDeleteनर्म अँधेरा, यादों के जुगनू...अच्छे एहसास हैं।
बहुत गहरे भाव लिये हुये है ये रचना।
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लग पर आये है । आना सार्थक हुआ ।
namaskar vijayji........pahli bar aapke blogs read kiye.......so good.......itani prabhuta !!!!!!! aur itani shaleenta!!!!!!!!!!shayad yahee hai aapki kamyabi ka raj..tera naam poem ek komal prastuti...thanks.
ReplyDeleteऔर अपनी तनहा रूह को
ReplyDeleteचंद साँसे उधार दे देता हूँ !!
मैं तेरा नाम ले लेता हूँ !!!
वाह..बहुत ही सुन्दर और भावुक अहसासों से भरी कोमल अभिव्यक्ति..
Bahut sunder abhivyakti...travel par hun..hindi uplabdh nahi.
ReplyDeleteहिज्र की रात कल जब मेरे घर आई थी ,
ReplyDeleteसाथ में कुछ ख्वाहिशों की बारात लायी थी ,
komal bhavnaon ko vyakt kartee huee sundar rachana !
अत्यंत कोमल भावाभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आपकी टिपण्णी और उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!
एहसास की खामोशियों में मेरा जिस्म
ReplyDeleteतेरी रूह से मिलकर थरथराता है !!
फिर मैं तेरा नाम ले लेता हूँ
और अपनी तनहा रूह को
चंद साँसे उधार दे देता हूँ !!
वाह विजय जी बहुत खूबसूरत...खूबसूरत एहसास और भावों में डूबे शब्द....
tanha raton me ehsason me jism aur rooh ka milan bahut komalta se bayan kiya hai aapne..
ReplyDeleteउम्दा रचना और भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. धन्यवाद ।
ReplyDeleteउम्दा रचना और भावपूर्ण अभिव्यक्ति.. धन्यवाद ।
ReplyDeleteसर, मैं आपका बहुत बड़ा फैन हूं. कामिक्स वाले ब्लाग पर भी जाता रहता हूं आपके. और बाबा वाले पर भी. आप की रचनायें बेहद खूबसूरत होती हैं. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रकट की है आपने तेरे नाम के जरिये.
ReplyDeleteDil me kuchh soye hue ahsaason ko jagati ek haseen rachna.. waah
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और कोमल भावनाओं से सजी सुन्दर अभिव्यक्ति ....धन्यवाद
ReplyDeleteSachmuch Bahut khoob.
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का विनम्र प्रयास।
बहुत सुन्दर रचना है ।
ReplyDeleteकल "शनिवासरीय चर्चा" में आपके ब्लाग की "स्पेशल काव्यमयी चर्चा" की जा रही है...आप आये और अपने सुंदर पोस्टों की सुंदर काव्यमयी चर्चा देखे और अपने सुझावों से अवगत कराये......at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDelete(19.03.2011)
holi parv ki dhero badhai aapko .
ReplyDelete"हिज्र की रात कल जब मेरे घर आई थी
ReplyDeleteसाथ में कुछ ख्वाहिशों की बारात लाई थी
नर्म अंधेरे मुझे ओढाकर
तेरे सपनो की चादर ;
जगा रहे थे …
तेरी यादों के जुगुनू ,
आसमान में तेरा चेहरा बना रहे थे …"
"मैं तेरा नाम ले लेता हूँ"
बहुत ख़ूबसूरत शब्दों में कोमल भावनाओं के एक महकते गुलदस्ते सी है ये कविता...
बहुत खुबसूरत ! मीठी जादुई शबनमी ! रचनाकार को बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता, शुभकामनाएं !
ReplyDeleteMakhamali....mulayam....ha! jadui ahasas sa...... bahut ...........rachana......
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti hai. shabdon se jaadoo kar diya hai...
ReplyDelete