हमने कुछ बनी बनाई रस्मो को निभाया ;
और सोच लिया कि;
अब तुम मेरी औरत हो और मैं तुम्हारा मर्द !!
लेकिन बीतते हुए समय ने जिंदगी को ;
सिर्फ टुकड़ा टुकड़ा किया ….
तुमने वक्त को ज़िन्दगी के रूप में देखना चाहा
मैंने तेरी उम्र को एक जिंदगी में बसाना चाहा .
कुछ ऐसी ही सदियों से चली आ रही बातो ने ;
हमें एक दुसरे से , और दूर किया ....!!!
प्रेम और अधिपत्य ,
आज्ञा और अहंकार ,
संवाद और तर्क-वितर्क ;
इन सब वजह और बेवजह की बातो में ;
मैं और तुम सिर्फ मर्द और औरत ही बनते गये ;
इंसान भी न बन सके अंत में ...!!!
कुछ इसी तरह से ज़िन्दगी के दिन ,
तन्हाईयो की रातो में ढले ;
और फिर तनहा रात उदास दिन बनकर उगे .
फिर उगते हुए सूरज के साथ ,
चलते हुए चाँद के साथ ,
और टूटते हुए तारों के साथ ;
हमारी चाहते बनी और टूटती गयी '
और आज हम अलग हो गये है ..
बड़ी कोशिश की जानां ;
मैंने भी और तुने भी ,
लेकिन ....
न मैं तेरा पूरा मर्द बन सका
और न तू मेरी पूरी औरत !!
खुदा भी कभी कभी
अजीब से शगल किया करता है ..!!
है न जानां !!
© विजय कुमार
namaskaar vijay ji , bahut sundar rachna mard aur auurat , bakhoobi aapne gaharai se baato ko vyakt kiya , bahut dino baad aapki rachna aayi , badhai aapko .
ReplyDeletekabhi tjhoda samaye sapne ko bhi de .
http://sapne-shashi.blogspot.com
behtreen abhivyakti vijay bhai,niyameet lekhan ek din aap ko janpriya karega.
ReplyDeleteBest wishes ....
ReplyDeleteफिर उगते हुए सूरज के साथ ,
ReplyDeleteचलते हुए चाँद के साथ ,
और टूटते हुए तारों के साथ ;
हमारी चाहते बनी और टूटती गयी '
और आज हम अलग हो गये है
समझोते की चारपाई तुमने बिछाई वो सोई
ReplyDeleteतुम भी अधूरे उठे वो भी अधूरी उठी
http://rachnapoemsjustlikethat.blogspot.in/2008/02/blog-post.html
vijay
ur poem reminded me of my couplet just posting it for you reading pleasure
nice poem , yours is , nice expressions
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (1-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (1-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
वाह बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteविश्व एड्स दिवस पर रखें याद जानकारी ही बचाव - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
प्रकृति के रहस्यों को समझना एक गुत्थी ही है..
ReplyDeletewaah...lajawab kar diya aapki rachna ne...bahut khoob..
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और कोमल भावों की अभिव्यक्ति..
सादर
अनु
प्रेम और अधिपत्य ,
ReplyDeleteआज्ञा और अहंकार ,
संवाद और तर्क-वितर्क ;
इन सब वजह और बेवजह की बातो में ;
मैं और तुम सिर्फ मर्द और औरत ही बनते गये ;
इंसान भी न बन सके अंत में ...!!!
....लाज़वाब अहसास...जीवन की सच्चाई का बहुत सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुतीकरण..
वाह ....बहुत बढिया विजय ...रिश्तों पर बखूबी लिखते हो तुम ...
ReplyDeleteमैं और तुम सिर्फ मर्द और औरत ही बनते गये ;
ReplyDeleteइंसान भी न बन सके अंत में ...!!!
रिश्तों की पहेली को समझती और समझाती सुंदर कविता.
Jahan tum chale.jahan wo chli..wo rshte shareer ke thhe...rishty dilon ke hote ..to ye naubat na aati
ReplyDeleteDeekhane wale shareer. Insan nahi hote...
ReplyDeleteMan ki sundarta ko insaan kaha jata hai...
Rishty likhe nahi jaate....mahasoos kiye jaate hain...
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