Saturday, January 19, 2013

खुशखबरी ! खुशखबरी !! खुशखबरी !!!



दोस्तों , मुझे आप सभी को ये बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि विश्व हिंदी सचिवालय, मरिशिश  द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी कहानी प्रतियोगिता में मुझे तृतीय पुरूस्कार  मिला है .  पुरूस्कार राशि USD $ 300  है , लेकिन इससे बड़ी ख़ुशी ये है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुझे एक पहचान मिली है . हिंदी के लिए मेरा जीवन कुछ काम आया . मुझे इस बात की भी ख़ुशी है . आप सभी मित्रो का प्रोत्साहन मेरे लिए अमूल्य है . धन्यवाद. 


http://vishwahindi.com/en/contest.html



Tuesday, January 1, 2013

भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!















भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा,
रवि ने किया दूर ,जग का दुःख भरा अन्धकार ;
किरणों ने बिछाया जाल ,स्वर्णिम और मधुर
अश्व खींच रहें है रविरथ को अपनी मंजिल की ओर ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी रथ का सार्थ बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

सुंदर सुबह का स्वागत ,पक्षिगण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में और भौंरें मस्त तान गुंजा रहे ,
स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने ,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

प्रभात की ये रुपहली किरने ,प्रभु की अर्चना कर रही
साथ ही इसके ; घंटियाँ मंदिरों की एक मधुर धुन दे रही ,
मन्त्र और श्लोक प्राचीन , देवताओं को पुकार रही,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

प्रक्रति ,जीवन के इस नए भोर का स्वागत कर रही
प्रभु की सारी सृष्टि ,इस भोर का अभिनन्दन कर रही ,
और वसुंधरा पर ,एक नए युग ,एक नये जीवन का आव्हान कर रही ,
तू भी हे मानव ,इस जीवन रूपी सृष्टि का एक अंग बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

फोटोग्राफी और कविता © विजय कुमार

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

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