Tuesday, July 7, 2009
जोगन
गुरु पूर्णिमा के शुभअवसर पर अपने सारे गुरुजनों और मित्रो को प्रणाम करते हुए अपनी ये कविता समर्पित करता हूँ ...मैं ये आशा करता हूँ की आप सबका प्यार यूँ ही मुझ पर बना रहेंगा . ये गीत महान संत " मीराबाई " पर है , मैं इसकी composition में उनके द्वारा रचित कुछ पदों का भी सहारा लिया है. मुझे कृष्ण और राधा और मीरा पर काफी दिनों से कुछ लिखने की इच्छा थी , सो आज पूरी हुई .. हमेशा की तरह आपके प्यार और आर्शीवाद की राह में ....
जोगन
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !
तेरे बिन कोई नहीं मेरा रे ; हे श्याम मेरे !!
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !
तेरी बंसुरिया की तान बुलाये मोहे
सब द्वारे छोड़कर चाहूं सिर्फ तोहे
तू ही तो है सब कुछ रे , हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !
मेरे नैनो में बस तेरी ही तो एक मूरत है
सावंरा रंग लिए तेरी ही मोहनी सूरत है
तू ही तो एक युगपुरुष रे ,हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !
बावरी बन फिरू , मैं जग भर रे कृष्णा
गिरधर नागर कहकर पुकारूँ तुझे कृष्णा
कैसा जादू है तुने डाला रे , हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ;हे घनश्याम मेरे !
प्रेम पथ ,ऐसा कठिन बनाया ; मेरे सजना
पग पग जीवन दुखो से भरा ; मेरे सजना
कैसे मैं तुझसे मिल पाऊं रे , हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !
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Waaqai mein prem path bada kathin hota hai.............
ReplyDeleteantim panktiyon ne kaafi kuch ahsaas karaya...........
bahut hi sunder rachna........
A+++++++++++++
bahut achchha likha hai aapne.. bhakti kaal kee bhasha me aaj is tarah kee sumadhur rachna padhne ko mile to kahna hi kya..
ReplyDeleteBHAEE VIJAY JI,
ReplyDeleteBAHOT HI KHUBSURAT YE RACAHANAA HAI ... CHHALIYA GHANSHYAM MEERA PE JO AAPNE YE RACHANAA LIKHI HAI WO BEHAD UMDA HAI... BAHOT BAHOT BADHAAYEE SAHIB....
ARSH
prem ki abhivyakti swrup meera aur shyam ka vardan aapne bahut hi sundar andaaj me kiya hai..
ReplyDeleteachcha laga..
badhayi..
बहुत सुंदर गीत लिखा है आपने...
ReplyDeleteऐसा लगता है ये की ये आपके नहीं मीरा के ही शब्द हैं...
और सुशिल जी की टिपण्णी का मुझे इंतज़ार है...
इस पर वो क्या कहने वाले हैं
मीत
गीत की गति
ReplyDeleteसद्गति की ओर
प्रवाहमान है।
भावपूर्ण रचना के लिए बधाई...
ReplyDeleteनीरज
मीरा और कृष्ण की भक्ति तो जग हाजिर है.......... आपने लाजवाब रचना बुनी है उस प्रेम पर........... बधाई
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना है
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
ye to prem ki baat hai udho,bandagi tere baski nhi hai
ReplyDeleteyahan dil deke hote hain saude,aashiqui itni sasti nhi hai.
aapki is rachna ke bare mein mujhe isse achcha kuch sujha hi nhi.........prem path par chalna har kisi ke baski nhi hai.....meera aur radha banna bhi sabke baski nhi hai.........aur ye gopiyon ne udho ko samjhaya hai is geet mein..........bahut hi badhiya likha hai guru poornima ke avsar par.
एक अच्छी और भावपूर्ण रचना पर बधाई!
ReplyDeleteविजय जी का ये गीत भक्ति भाव से कृष्ण को अपना प्रेमी मानने बाली मीरा की काव्य और चिंतन परम्परा मे है. बहुत अच्छा और सुंदर प्रयास है.
ReplyDeleteगुरु पूर्णिमा के शुभअवसर पर बहुत ही सुन्दर रचना आप ने अपने सारे गुरुजनों और मित्रो कोसमर्पित की है .
ReplyDeleteगीत में कृष्ण प्रेम में डूबी 'मीराबाई जी के मन के भाव महसूस हो रहे हैं
waah
ReplyDeletewaah
kya baat hai !
" JOGAN" KAVITA MEIN LAGTA HAI KI
ReplyDeleteKAVI JOGAN HEE BAN GAYAA HAI.
MAN SE NIKLE HUE BHAVON KE LIYE
VIJAY JEE KO BADHAAEE
जोग जाने सो जोगन होए
ReplyDeleteजग जाने सो खूब रोये
कहत सोमाद्रि सुनो भई साधो
प्रेम पीड़ा की आनंद गति होए
विजयजी लगता है आपने विराम के दिनो मे कहीं अध्यात्मिक डुबकी जरूर लगायी है इसी लिये ये सुन्दर रचना का उदय हुया है इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई और अब विराम को विराम दें और रोज़ हमे नयी रचना पढवायें शुभकामनायें
ReplyDeleteमेरे नैनो में बस तेरी ही तो एक मूरत है
ReplyDeleteसावंरा रंग लिए तेरी ही मोहनी सूरत है
तू ही तो एक युगपुरुष रे ,हे श्याम मेरे !
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !
aap to sahi roop se shayam rang me range hai .bahut sundar geet .
आपकी हर रचना में संवेदना होती है जो यहाँ मीरा के प्रेम की में बड़े ही सुन्दर भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त हुई है.
ReplyDeleteमैं आशीष खण्डेलवाल जी से सहमत हूँ कि 'भक्ति काल की भाषा में आज इस तरह की सुमधुर रचना पढ़ने को मेली तो कहना ही क्या...'