Sunday, December 6, 2009

आबार एशो [ আবার এশো ] [ फिर आना ]



आबार एशो [ আবার এশো ] [ फिर आना ]

सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
तो मैंने देखा वो उदास था
मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके मेरी किरणे
तुम पर नज़र करती थी !!!

रात को चाँद एक उदास बदली में जाकर छुप गया ;
तो मैंने तड़प कर उससे कहा ,
यार तेरी चांदनी तो दे दे मुझे ...
चाँद ने अपने आंसुओ को पोछते हुए कहा
मुझसे मेरी चांदनी छीन ले गयी है
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके मेरी चांदनी
तुम पर छिटका करती थी ;

रातरानी के फूल चुपचाप सर झुकाए खड़े थे
मैंने उनसे कहा ,दोस्तों
मुझे तुम्हारी खुशबू चाहिए ,
उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा
हमसे हमारी खुशबू छीन ले गयी है
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके हमारी खुशबू
तुम पर बिखरा करती थी ;

घर भर में तुम्हे ढूंढता फिरता हूँ
कही तुम्हारा साया है ,
कही तुम्हारी मुस्कराहट
कहीं तुम्हारी हंसी है
कही तुम्हारी उदासी
और कहीं तुम्हारे खामोश आंसू

तुम क्या चली गयी
मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी

यहाँ अब सिर्फ तुम्हारी यादे है
जिनके सहारे मेरी साँसे चल रही है ....

आ जाओ प्रिये
बस एक बार फिर आ जाओ
आबार एशो प्रिये
आबार एशो !!!!!

69 comments:

  1. क्या खूब रचना लिखी है आपने उस चाहने वाली के लिए
    वाह !!

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  2. सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
    तो मैंने देखा वो उदास था
    मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
    मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
    कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
    जिसके सदके मेरी किरणे
    तुम पर नज़र करती थी !!!

    Vijay Kumar Sappatti जी!
    आपके गीत में कल्पना का मणिकांचन मिश्रण
    बहुत बढ़िया रहा!

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  3. bahut baDhiyaa
    mil jasye to mujhe batanaa meree jindgee bhee kahee kho gayee hai

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  4. सुंदर पंक्तियों के साथ ...बहुत सुंदर कविता........

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  5. शायद इसे ही चाहत कहते है और ऐसा होता है एक सच्चा चाहने वाला जिससे दूर रह कर मन कभी खुश नही रह पाता और अपनी चाहत को पास लाने की जद्दोजहद में लगा रहता है..सुंदर भाव सुंदर कविता..बधाई..विजय जी

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  6. बहुत सुंदर कविता, सुंदर भाव..

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  7. विरह अग्नि को प्रकट करती सुन्दर कविता

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  8. बेहद ख़ूबसूरत भावांजलि..

    हैपी ब्लॉगिंग

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  9. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! दिल को छू गई आपकी ये शानदार रचना!

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  10. सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
    तो मैंने देखा वो उदास था
    मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
    मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
    कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
    जिसके सदके मेरी किरणे
    तुम पर नज़र करती थी !!!

    बहुत सुन्दर...

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  11. बहुत ही सुंदर रचना ... विरह की बहुत मासूम सी अभिव्यक्ति है इस रचना में .......... शुक्रिया विजय जी ........

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  12. सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
    तो मैंने देखा वो उदास था
    मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
    मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
    कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
    जिसके सदके मेरी किरणे
    तुम पर नज़र करती थी !!
    बहुत दर्द भरा है इस कविता मे अच्छी रचना के लिये बधाई

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  13. विरह के भावों बेहतरीन शब्दों से लिखा है आपने। वाह क्या बात है एक के बाद एक बेहतरीन रचनाएं लिखी जा रही है।
    घर भर में तुम्हे ढूंढता फिरता हूँ
    कही तुम्हारा साया है ,
    कही तुम्हारी मुस्कराहट
    कहीं तुम्हारी हंसी है
    कही तुम्हारी उदासी
    और कहीं तुम्हारे खामोश आंसू

    बहुत खूब।

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  14. घर भर में तुम्हे ढूंढता फिरता हूँ
    कही तुम्हारा साया है ,
    कही तुम्हारी मुस्कराहट
    कहीं तुम्हारी हंसी है
    कही तुम्हारी उदासी
    और कहीं तुम्हारे खामोश आंसू
    मेरे पास शब्द नहीं हैं...
    सुंदर...
    मीत

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  15. vijay ji ko namaskaar
    bahut hi sundar likha hain aapne

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  16. सुन्दर भावों से परिपूर्ण

    आप तो प्रेम पुजारी हैं विजय जी!

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  17. विजय जी,

    प्रेम और बिछोड के भावों को बडी खूबसूरती से आपने अपनी इस रचना में पिरोया है. बधाई..
    आपके ब्लोग पर था तो फ़ोन भी मिलाया परन्तु लगता है आप व्यस्त होने के कारण उसे ले नहीं पाये...

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  18. मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
    मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
    कोई तुम्हारी चाहने वाली
    inhi panktiyon ne us vedna ko pragat kar diya jo aap mehsoos kar rahe hain.
    तुम क्या चली गयी
    मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी
    in panktiyon mein to kavita ki rooh chupi hai.

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  19. itni mradul manuhaar/itni pyari kavita..............aa jaana chahiye.

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  20. Ham aapki rachnake sadqe! Badihi sundar hai!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

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  21. बहुत दिनों के बाद, पुनः मिलकर आया आनन्द.
    हो सकता है हम दोनों, पायें मिलकर आनन्द.
    मिलता है आनन्द, हैद्राबाद शीघ्र आता हूँ.
    इस सत्रह तारीख, रात्के बारह बजे आता हूँ.
    यह साधक छः महीनों की साधना से है आबाद.
    आयेगा आनन्द मिलें जो बहुत दिनों के बाद.
    ०९९०३०९४५०८

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  22. आशिबे सोकालेर सोमोय, प्रोतीक्षा कोरुन विकाले टा. भालो लिखछेन.

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  23. recd by email from Mr. Rajkumar...

    good .............

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  24. recd. by email from krishna gopal ....

    सम्पात्ति ji
    आप की कविता अच्छी लगती है. सूरज कभी उदास नहीं होता, उदास मन सूरज को उदास देखती है. मन सूरज पर निर्भर नहीं है, बल्कि सूरज तुम्हारी अन्दर हमेशा ही रहने वाले मन पर निर्भर है. मन को खुश रखो और यही मन सबकुछ है, सारी कायनात इस मन ने ही बनायी है.

    कृष्ण गोपाल

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  25. aapane mujhe apanee kavitaa ko paDhane kaa saubhaagy diyaa jisake liye mai^ aabhaaree hoo^

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  26. सूरज की रौशनी छीन ली. चांद से चांदनी छीन ली, फ़ूल से खुशबू ,रचना कार से आत्मा बस बची है कुछ यादे ।बहुत प्यारा विरह वेदना से परिपूर्ण गीत

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  27. ... बेहद प्रसंशनीय रचना !!!!

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  28. main nihshabd hu apki is rachna ke age aur shayad is par koi comment bhejna mere bas se bahar hai....Par isme wo sabkuchh hai jo hamare dilon ko chhune ke liye kafi hai

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  29. बहुत खूब विजय जी...प्रेम-विरह पे आपकी पंक्तियाँ कयामत ढ़ाती हैं हमेशा- इस बार भी!

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  30. Recd. by email from Mr. Saurabh dubey...

    प्यार की शब्दों से बारिश कर दी आपने अपनी कविता में...जितनी तारीफ की जाए कम होगी बहुत बहुत अच्छी कविता है

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  31. सूरज सूरज कहाँ रहां न चांदनी शेष है! सब तो चोरी हो चुका! बहुत खूब!

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  32. This comment has been removed by the author.

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  33. badi hi khoobsurati se likhi gayi rachna hai ye


    badhayee ho vijay ji iss dil ko chu lene wali rachna ke liye.........................


    neeraj pal

    www.neerajkavi.blogspot.com

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  34. जीवन में एक सितारा था,
    माना, वो बेहद प्यारा था,
    वो टूट गया तो टूट गया,
    अम्बर के आनन को देखो,
    इसके कितने तारे टूटे,
    इसके कितने प्यारे छूटे,
    जो छूट गये फिर कहाँ मिले?
    पर बोलो, टूटे तारों पर कब,
    अम्बर शोक मनाता है?
    जो बीत गयी,
    सो बात गयी !

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  35. चाँद ने अपने आंसुओ को पोछते हुए कहा
    मुझसे मेरी चांदनी छीन ले गयी है
    कोई तुम्हारी चाहने वाली
    bahut sundar bhavabhivykti.

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  36. spasht,sajeev aur saras panktiyaan likhne ke liye aapko saadhuvaad.

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  37. its a awesome poem written by you.
    I totally appreciating you.

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  38. waqai zazbaat nahnin marte,
    hijr ke aalam ka accha bayan hai.
    lata haya

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  39. shabdoN ko bahut hi khoobsurat
    bhaavnaaoN ka libaas pehnaaya hai
    prem meiN virah ka varnan koi aasaan kaam nahi hai...lekin aapki lekhni se kuchh bhi sambhav ho jaata hai.....
    salaam !!

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  40. RECD. BY EMAIL FROM MR. RAMAKANT...


    Good one

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  41. RECD. BY EMAIL FROM Mr.Chandrapal Singh ...

    khubsurat kavita aapki..badhai swikare.... aap aur aapka parivar mangal me honge esi kamna karta hun..chandrapal,mumbai

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  42. KOMAL BHAVON KI SUNDAR KOMAL ABHIVYAKTI......SUNDAR PREM GEET !!! BADHAI !!

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  43. recd. by email from Mr.Rahul Kundra....

    नमस्कार
    हमेशा की तरह बेहद उम्दा रचना

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  44. सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
    तो मैंने देखा वो उदास था
    मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
    मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
    कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
    जिसके सदके मेरी किरणे
    तुम पर नज़र करती थी !!!
    virah vedana ke saath sundar bhavon ko pradarsit karti rachna bahut achhi lagi.
    Shubhkamnayen.

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  45. सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
    तो मैंने देखा वो उदास था.nice

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  46. खूब भालो। निश्चोई आशा होबे।

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  47. ek bar phir apko padne ka mauka laga

    hamesha ki tarah ahsaasoin se labrej rachna

    dil ke ander tak ja basi
    bahut achi hai

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  48. hi ..really nice.. i am speechless..

    looking forward for more such poetries...

    I have added few new poetries on my blog... do visit when u have time

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    ReplyDelete
  49. mantra mugdh ho gayi aapki rachna padhkar...puri rachna ne bandh kar rakha ...bahut-bahut badhai

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  50. recd. by comment from Mr.Chandraohan gupt....

    कही तुम्हारा साया है ,
    कही तुम्हारी मुस्कराहट
    कहीं तुम्हारी हंसी है
    कही तुम्हारी उदासी
    तुम क्या चली गयी
    मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी

    यहाँ अब सिर्फ तुहरी खूबसूरत यादे है
    जिनके सहारे मेरी साँसे चल रही है ....

    आ जाओ प्रिये
    आभार ऐशो प्रिये
    आभार ऐशो !!!!!

    दिल से निकली गहरे स्नेह को अभिव्यक्त करती, सम्मान करती सुमधुर अपील...............

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  51. recd.by comment from mr. lalit sharma

    कही तुम्हारी उदासी
    तुम क्या चली गयी
    मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी
    बहुत बढिया सतप्थी जी

    ReplyDelete
  52. recd. by comment from mr.hitendra kumar gupta

    Bahut Barhia... aapka swagat hai...isi tarah likhte rahiye

    thanx
    http://mithilanews.com

    ReplyDelete
  53. recd. by comment from mr.ashok kumar pandey...

    svagat...
    achchi kavita hai

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  54. recd. by comment from Ms.sakhi..

    घर भर में तुम्हे ढूंढता फिरता हूँ
    कही तुम्हारा साया है ,
    कही तुम्हारी मुस्कराहट
    कहीं तुम्हारी हंसी है
    कही तुम्हारी उदासी
    तुम क्या चली गयी
    मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी

    यहाँ अब सिर्फ तुहरी खूबसूरत यादे है
    जिनके सहारे मेरी साँसे चल रही है ....


    wowwwwwwwwwwwwwwww

    aapka andaz to lagta hai mere alfaz apki kalam s enikale ho jaise..dil tak pahunch jate hai..bahut dard bhara likha hai is bar phir

    ReplyDelete
  55. recd. by comment from mr.shyamal suman...

    विजय ने ख्वाबों के दामन से चुरा लिया कुछ खास।
    हृदय भाव अंकित करने का अच्छा लगा प्रयास।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  56. recd. by comment from Mrs.asha joglekar ...

    कही तुम्हारी उदासी
    तुम क्या चली गयी
    मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी
    Bahut sunder Wirah kee tadap se ot-prot.

    ReplyDelete
  57. recd. by comment from Mr.amit sagar...
    चिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं, और भी अच्छा लिखें, लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  58. recd. by comments from Mr.Dev...

    शब्दों की यह गुथी हुई मधुरता,
    अतिउत्तम सतपथी जी

    DEV
    http://devendrakhare.blogspot.com

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  59. recd. by comments from Mr.anand vardhan ojha ...

    SUDAR BHAVABHIYVAKTI !
    SWAGAT HAI !

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  60. recd. by comments from Mr.chandan kumar jha ....

    अरे वाह !!! बहुत ही भावपूर्ण रचना । आभार

    ReplyDelete
  61. recd. by comments from Ms.Jyoti singh....

    सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
    तो मैंने देखा वो उदास था
    मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
    मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
    कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
    जिसके सदके मेरी किरणे
    तुम पर नज़र करती थी !!!
    bahut sundar shabd aur bhav
    badhai ho

    ReplyDelete
  62. recd. by comment from Mr.prabhakar paandey ...

    आ जाओ प्रिये
    बस एक बार फिर आ जाओ
    आभार ऐशो प्रिये
    आभार ऐशो !!!!! ....सुंदरतम्....आभार।

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  63. सर जी कभी समय का अभाव हो जाता है इसलिए रह गयी आपकी कविता.बहुत खूब लिखा है. भावों की उत्तम अभ्व्यक्ति . वैसे मेरी एक कविता "सूर्य का संताप" रचनाकार पर है काफी कुछ ऐसी ही है पर वो सिर्फ सूर्य का दर्द ही उजागर कर रही है पर्यवारव से सम्बंधित है. मेल करने के लिए धन्यवाद
    बधाई स्वीकारें

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  64. क्षमा करें विजय जी मुझे आपकी अति भावुकता पूर्ण रचनाएँ रास नहीं आतीं...आप ने बंगाली शीर्षक दे कर इसमें नवीनता प्रदान की है...प्रेमिका के जाने पर आपको सूरज की रौशनी चाँद की चांदनी और फूलों से खुशबू जाती नज़र आ रही है...वाह...एक पुराना गीत याद आ रहा है: "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए प्यार से भी जरूरी कई काम हैं प्यार सब कुछ नहीं ज़िंदगी के लिए...."उम्मीद है आप इस से सहमत न हों...लेकिन ये ही सच है.
    नीरज

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  65. बंगाली शिर्षक की यह रचना एक प्रेमिक का दर्द बहोतही भाऊकतासे प्रगट करती है. प्रकृतीके प्रतिक को लेके अपने मनके भाव आपने बहोतही साधे सरल शब्दो में जोड दिये है. प्रकृती किसी के लिये रुकती नही, किंतु कोई अपना दूर हो जाये तो लगता है प्रकृती भी हमसे नाराज है . I like it.

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  66. सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
    तो मैंने देखा वो उदास था
    मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
    मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
    कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
    जिसके सदके मेरी किरणे
    तुम पर नज़र करती थी !!

    bahut hi bahvnatmak rachana ...apki rachana aur aapko hamara salam

    ----- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

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