दोस्तों , मैं अपनी पिछली पोस्ट फिर से डाल रहा हूँ. वहां पर कमेन्ट बॉक्स का प्रॉब्लम था .
दोस्तों , मेरे जमाने के कुछ समय पहले के जमाने की एक मशहूर अदाकारा थी , मीनाकुमारी जी . मेरी उनसे पहली मुलाकात ," साहेब , बीबी और गुलाम " फिल्म से हुई , इस फिल्म में देखने के बाद मैं इनकी फिल्मे खोज खोजकर देखी .
मीनाकुमारी जितनी बड़ी अदाकारा थी , उतनी ही बड़ी शायरा थी . मुझे उनकी आवाज की कशिश बहुत आकर्षित करती थी , उनकी DIALOGUE DELIVERY भी बहुत PERFECT TIMING के साथ थी .,उनके चेहरे के मासूम EXPRESSION बहुत बहुत दिनों तक दिल में असर छोड़े रखते थे.
मीनाकुमारी दर्द से भरी हुई एक इंसान थी . वो ON-SCREEN जितना दर्द दिखा पाती थी , उससे ज्यादा दर्द उनके भीतर समाया हुआ था , जो की उनकी शायरी के जरिये बाहर आता था , उन्होंने बहुत दर्द भरी नज्मे लिखी , और फिर अपनी वसीयत में गुलज़ार जी को अपनी सारी शायरियो ,गजलो, और नज्मो की वारिस बना गयी.
गुलज़ार जी ने , उन सबको एक किताब की शक्ल में ढाल कर हम सबको ,मीनाकुमारी के दुसरे चेहरे से रु-बू-रु करवाया . मैं अक्सर वो किताब पढ़कर आहे भरता था ,की क्या लिखती थी वो महान शायरा और अदाकारा.
मैंने 1989 में एक रचना लिखी ,जो उनको पढ़कर ही लिखी थी .. उन्ही की स्टाइल में . ये मैंने ग़ज़ल फॉर्मेट में लिखने की कोशिश की थी , ग़ज़ल तो मुझे लिखना नहीं आता , बस गीत समझ लीजिये , नज़्म समझ लीजिये , और पढ़ लीजिये .
मैंने इस रचना के साथ
तो बस , रचना को पढ़िए, पेंटिंग देखिये , और बाद में YOU TUBE में उनका गाना सुन लीजिये , वैसे मेरा ALL TIME FAVORITE है , चलते चलते ..यूँ ही कोई मिल गया था ....
लम्हा लम्हा
अपने आप को , फिर ढूंढ रहा हूँ मैं लम्हा लम्हा ;
ज़िन्दगी भी मैंने जिया ; उतरते चढ़ते लम्हा लम्हा !
जब थककर सोचने बैठा ,कि क्या है ज़िन्दगी ,
तो पाया मैंने , ज़िन्दगी को गुजरते लम्हा लम्हा
जब मौत ने पुछा , क्यों आ गए ,मुझ तक यूँ..
मैंने कहा ,ज़िन्दगी बीती ;बस यूँ ही लम्हा लम्हा
तुझे देखता ही रह गया , कुछ कह न पाया कभी
इसी कशमकश में जाने कब बीता हर लम्हा लम्हा
जब भी चाहा की जीने की दास्ताँ कैद करूँ
ढूँढा तो पाया वहां है सिर्फ़ सूना लम्हा लम्हा
अक्सर यूँ ही रातों को बैठकर सोचता हूँ
की टूटे हुए सपनो को जमा करूँ लम्हा लम्हा
अश्को को कह दूँ की जरा ठहर जाएँ
की जफा की दास्ताँ याद आए लम्हा लम्हा
दिल की दस्तक को कोई कब तक थामे
की मौत आती जाए करीब लम्हा लम्हा
this is test comment
ReplyDeleteMeenakumari was a legend in her own lifetime. Unka koyi sani nahi.Aapne geet bhi behtareen chuna hai.
ReplyDeleteबहुत अच्छी यादों को करीने सी सजाती पोस्ट
ReplyDeleteबहुत शानदार लिखा है...
ReplyDeleteक्या कहें.....कि ये पेंटिंग आप तक कैसे पहुन्ची है.....इन्बोक्स कि मेल और सऐnt मेल में लम्हे का फर्क ही क्या से क्या कहर धा सकता है..
ReplyDeleteये शायद वो लोग भी नहीं समझ सकेंगे....जिनकी पहली ख्वाहिश ही मरने के बाद जन्नत में मीना कुमारी जी का दीदार करना है.....
खुद को....
जाने दीजिये....
.इन्बोक्स कि मेल और सऐnt मेल....ko
ReplyDelete..
inbox ki mail..aur sent mail padhein...
मीनाकुमारी की अदाकारी के संग न्याय करती पोस्ट।
ReplyDeleteमनु जी
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद , आपकी पेंटिंग के बिना , ये पोस्ट अधूरी रहती .
शुक्रिया दोस्त .
आपका
विजय
comment recd on last post ....
ReplyDeleteवन्दना said...
सुन्दर भाव संप्रेषण्………………अच्छी रचना।
बाकी मीना कुमारी का कोई जवाब नही।
comment recd on last post ....
ReplyDeleteAlbelaKhatri.com said...
वाह !
बहुत ख़ूब.........
अच्छी कविता................अच्छा विडियो
comment recd on last post ....
ReplyDeletekshama said...
Meena kumaree kaa to koyi saani nahi...bahut sundar geet sunva diya aapne!
comment recd on last post ....
ReplyDeleteMUFLIS said...
bahut hi sundar aur nayaab post lagaaee hai is baar...badhaaee.
Meena ji ke liye unhi ke shabdo mei
Aagaaz to hota hai, anjaam nahi hota
Jab meri kahani mei wo naam nahi hota
baaqi phir....
comment recd on last post ....
ReplyDeleteVIJAY KUMAR VERMA said...
बहुत ही सुन्दर रचना
दिल को छू लेने वाली
comment recd from Mrs. Ranjana Singh ..
ReplyDeleteविजय जी,
आपकी मीनाकुमारी जी वाली पोस्ट पर टिपण्णी कहाँ चिपकाऊं...खोज लिया ..वहां तो कमेन्ट बॉक्स ही नहीं मिला..
यहाँ कमेन्ट दिए दे रही हूँ ,प्लीज आप पोस्ट कर दीजियेगा...
मीना कुमारी जी की लेखनी की मुरीद मैं भी हूँ...आपने बात छेड़ी तो लीजिये कुछ पंक्तियाँ उन्ही की -
टुकड़े टुकड़े दिन बीता,धज्जी धज्जी रात मिली,
जिसका जितना आँचल था,उतनी ही सौगात मिली !!
जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज़ सुनी,
जैसे कोई कहता हो , ले फिर से तुझ को मात मिली !!
मातें कैसी , घातें क्या , चलते रहना आठ पहर,
दिल सा साथी जब पाया , बेचैनी भी साथ मिली !!!
बहुत ही सुन्दर हर शब्द गहरे भाव लिये, बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteगीत सुन्दर है और थोड़े से प्रयास से एक सुन्दर ग़ज़ल में ढल सकता है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख धन्यवाद
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteअच्छा लगा !
hamaari painting..aapki kavitaa...
ReplyDeletekoi bhi is post ko adhuraa hone se nahin rok saktaa...
adhure pan ko samjhnaa sab ke liye nahin hotaa...
बहुत अच्छी यादों को करीने सी सजाती पोस्ट
ReplyDeleteविजय जी आप लिखते रहें, हम पढ़ते रहेंगे
ReplyDeleteदिन, महीने, साल बीतते रहेंगे लम्हा-लम्हा।।
बहुत खूब! पेंटिंग भी लाजवाब। :))