तुम कहती हो कि ,
तुम मुझसे प्यार नही करती हो
फिर क्यों तुम, अक्सर मेरे ख़तों के इंतजार में ,
अपने दरवाज़े पर खड़े होकर ;
अपने खुले हुए गेसुओ में ;
अपनी नाज़ुक उँगलियाँ ,
कुछ बैचेनी से अनजाने में लपेटते हुए
ख़त लाने वाले का इंतजार करती हो ....!!!
तुम कहती हो कि ,
तुम मुझसे प्यार नही करती हो
फिर क्यों तुम,
अक्सर धुंधलाती हुई शामों में
धूल से भरी सडको पर .
बेसब्री से , भरी हुई आँखों में
आंसुओं को थामे , कुछ सिसकते हुए..
हर आते जाते हुए सायो में .
किसी अपने के साये का इंतजार करती हो ......!!!
तुम कहती हो कि ,
तुम मुझसे प्यार नही करती हो
फिर क्यों तुम,
अक्सर मेरी आवाज सुनने को बैचेन रहती हो
दौड़ दौड़ कर ,एक यकीन के साथ
कुछ मेरी यादो के साथ
कुछ अपने मोहब्बत के सायों से लिपटे हुए
मदहोश सी , मेरी आवाज़ सुनने चली आती हो.....!!!
तुम कहती हो कि ,
तुम मुझसे प्यार नही करती हो
फिर क्यों तुम,
रातों को जब सारा जहाँ सो जाये
तो, तुम तारो से बातें करती हो
कुछ अपने बारें में ,कुछ मेरे बारें में
कुछ गिले शिकवे , कुछ प्यार
ये सब कुछ ,मेरी नज़मो / ख़तों को पढ़ते हुए
मुझे याद करते हुए , क्यों तकियों को भिगोती हो.....!!!
तुम कहती हो कि ,
तुम मुझसे प्यार नही करती हो
पर मुझे यकीन है कि
तुम मुझे प्यार करती हो……!!!!
अब जक जितनी भी कविता पढ़ी आपकी....ऐसा लगता है मन में एक ही प्रश्न बार-बार उभरता है और बार-बार कुछ नए व्योम की रचना कर जाता है.... अंतहीन व्योम विचारों के विचरते रहने के लिए....
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता है! बधाई ! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com/ http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
kaun kahta hai wo aapse pyaar nahi karti... itna pyaar bhara pada hai aapke liye uske dil mein... bas wo bayaan nahi karti... aapne kar diya bayaan uske dil kee baat apne kalam se... laajawaab...
सही कहा विजय जी.यदि चाहत नहीं है,प्यार नहीं है तो ये बेसब्री-भरा इन्तजार क्यों है.दूसरों में अपनों की परछाई महसूस करना,दूसरों के पद-चाप में अपने किसी खास के पद-चाप की आवाज सुनना क्या है.ऐसा ही होता है जब प्यार किसी से होता है.बहुत सुन्दर.
पुरुष के लिए "हाँ" और "ना" में फर्क है पर वही स्त्री की दृष्टि में एकाकार होकर "हाँ" है. "ना" कहना "हाँ" कहने का कितना प्यारा अंदाज़ है ! यह अंदाज़ "हाँ" कहने में उतना वज़नदार नहीं है विजय जी ! ख़ूबसूरत रचना !
बहुत खूबसूरती प्यार के भावो को शब्दों में पिरोया है आपने..
ReplyDeleteसच कहा आपने ...ये प्यार ही तो है .. सुन्दर भावमय प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर। एक गाना याद आ गया ...
ReplyDeleteवो पास रहें या दूर रहें, नज़रों में समाए रहते हैं इतना तो बता दे कोई मुझे क्या .....!
लगता है मुझ से डरते हो,
ReplyDeleteफिर ये ख़त क्यों लिखते हो?
सोचा था सब भूल गए हो,
याद कभी ना करते हो.
अपनी मस्ती में जीते हो,
अपनी दुनिया में रहते हो.
फिर ये ख़त क्यों लिखते हो?
-------------------
वह कभी नहीं कहेगी
ReplyDeleteवह मुझे प्यार करती है
समझना होगा इशारों से ही ...
hmmmm.....sundar abhivyakti ....shukriya
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपका यकीन करने की ज्यादा पुख्ता वजह है....
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति!!
प्यार को शब्दों से नहीं बांधा जा सकता वह तो अनकहा ही होता है।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावनाओं से ओतप्रोत कविता है। बधाई।
-डॉ. रत्ना वर्मा
Email :
ReplyDeleteप्रिय भाई,
कविता पढ़ ली. बहुत सुन्दर. बधाई.
रूपसिंह चन्देल
बहुत ही भावपूर्ण एवं बेहतरीन रचना ! हर शब्द सार्थक एवं हर भाव प्रभावशाली है ! बधाई !
ReplyDeleteक्यों यकीन को हवा देते हो
ReplyDeleteबुझे शोले जला नही करते
अब इससे ज्यादा क्या कहूँ …………
ऐसी बातें खुलेआम नही किया करते
कैसे वो कह पायेगी दिल की बात
जो ना निकली हो कभी तारो के साथ
यकीन तुम कर लो इतना
लब रहेंगे खामोश मगर
नज़र कह जायेगी हर बात
अब मै भी इससे आगे नही कह सकती विजय जी …………शायद ऐसा ही कुछ आपकी कविता की प्रेयसी आपसे कहना चाहेगी………
अब जक जितनी भी कविता पढ़ी आपकी....ऐसा लगता है मन में एक ही प्रश्न बार-बार उभरता है और बार-बार कुछ नए व्योम की रचना कर जाता है.... अंतहीन व्योम विचारों के विचरते रहने के लिए....
ReplyDeleteVIJAY KUMAR JI , MERAA EK SHER
ReplyDeleteSUNIYEGA -
VO PYAR KEE NIRAALEE
DUNIYA MEIN KHO GAYE HAIN
TUMKO BANAA KE APNAA
KUCHH AUR HO GAYE HAIN
KHOOBSOORAT KAVITA KE LIYE
AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
nari ke suloml antrmn kee snkochshil prvriti ko achchha vykt kiya hai
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, बधाई.
ReplyDeleteखतों का इन्तजार, प्यार का इजहार
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता।
Kitna pyara yaqeen hai!
ReplyDeletesunder likha hai bhaai..
ReplyDeleteEmail:
ReplyDeleteBhai Shri Vijayji,
apki kavita ka pahla paragraph bahut accha laga, aur kavita ka thought badhiya hai.Bahut kuch socha ja sakta hai. sunder rachana ke liye
badhai.
Dhanyavad aur shubhkamnayen.
Regards,
Shilpa
यकीन तुम कर लो इतना
ReplyDeleteलब रहेंगे खामोश मगर
नज़र कह जायेगी हर बात
वाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्द रचना ।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता है! बधाई !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सुन्दर कविता .. बेहद भावपूर्ण !
ReplyDeleteप्यार के धागे में शब्दों की खूबसूरत लड़िया पिरो दी आपने इस कविता के माध्यम से। सचमुच मजा आ गया पढ़कर।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावनाओं से ओतप्रोत कविता है।
ReplyDeleteसच कहा आपने ...ये प्यार ही तो है .. सुन्दर भावमय प्रस्तुति
ReplyDeleteलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
sach ke ehsaso me bhigi prem pagi rachna.
ReplyDeleteyahan bhi padhare
http://anamika7577.blogspot.com/2011/07/blog-post_13.html
kaun kahta hai wo aapse pyaar nahi karti... itna pyaar bhara pada hai aapke liye uske dil mein... bas wo bayaan nahi karti... aapne kar diya bayaan uske dil kee baat apne kalam se... laajawaab...
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ReplyDeleteसही कहा विजय जी.यदि चाहत नहीं है,प्यार नहीं है तो ये बेसब्री-भरा इन्तजार क्यों है.दूसरों में अपनों की परछाई महसूस करना,दूसरों के पद-चाप में अपने किसी खास के पद-चाप की आवाज सुनना क्या है.ऐसा ही होता है जब प्यार किसी से होता है.बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteसुन्दर भावमय प्रस्तुति
ReplyDeleteपुरुष के लिए "हाँ" और "ना" में फर्क है पर वही स्त्री की दृष्टि में एकाकार होकर "हाँ" है. "ना" कहना "हाँ" कहने का कितना प्यारा अंदाज़ है ! यह अंदाज़ "हाँ" कहने में उतना वज़नदार नहीं है विजय जी ! ख़ूबसूरत रचना !
ReplyDeleteye pyar hi hai
ReplyDeletebahut umda prastuti