THIS POEM TAKES YOU ALL TO A WORLD OF PURE LOVE ; WHERE YOU WILL TRAVEL ALONG WITH THE WRITER ON A TIMELESS JOURNEY.... ONE OF MY ALL TIME FAVORITE COMPOSITIONS ...................
तस्वीर
मैंने चाहा कि
तेरी तस्वीर बना लूँ इस दुनिया के लिए,
क्योंकि मुझमें तो है तू ,
हमेशा के लिए....
पर तस्वीर बनाने का साजो समान नही था मेरे पास.
फिर मैं ढुढ्ने निकला ;
वह सारा समान ,
मोहब्बत के बाज़ार में...
बहुत ढूंढा , पर कहीं नही मिला;
फिर किसी मोड़ पर किसी दरवेश ने कहा,
आगे है कुछ मोड़ ,तुम्हारी उम्र के ,
उन्हें पार कर लो....
वहाँ एक अंधे फकीर कि मोहब्बत की दूकान है;
वहाँ ,मुझे प्यार कर हर समान मिल जायेगा..
मैंने वो मोड़ पार किए ,सिर्फ़ तेरी यादों के सहारे !!
वहाँ वो अँधा फकीर खड़ा था ,
मोहब्बत का समान बेच रहा था..
मुझ जैसे, तुझ जैसे,
कई लोग थे वहाँ अपने अपने यादों के सलीबों और सायों के साथ....
लोग हर तरह के मौसम को सहते वहाँ खड़े थे...
शमशान के प्रेतों की तरह .......
उस फकीर की मरजी का इंतज़ार कर रहे थे....
फकीर बड़ा अलमस्त था...
खुदा का नेक बन्दा था...
अँधा था......
मैंने पूछा तो पता चला कि
मोहब्बत ने उसे अँधा कर दिया है !!
या अल्लाह ! क्या मोहब्बत इतनी बुरी होती है..
मैं भी किस दुनिया में भटक रहा था....
खैर ; जब मेरी बारी आई
तो ,
उस अंधे फकीर ने ,
तेरा नाम लिया ,और मुझे चौंका दिया ,
मुझसे कुछ नही लिया.. और
तस्वीर बनाने का साजो समान दिया...
सच... कैसे कैसे जादू होते है मोहब्बत के बाजारों में !!!!
मैं अपने सपनो के घर आया ..
तेरी तस्वीर बनाने की कोशिश की ,
पर खुदा जाने क्यों... तेरी तस्वीर न बन पाई...
कागज़ पर कागज़ ख़त्म होते गए ...
उम्र के साल दर साल गुजरते गये...
पूरी उम्र गुजर गई
पर
तेरी तस्वीर न बनी ,
उसे न बनना था ,इस दुनिया के लिए ....न बनी !!
जब मौत आई तो ,
मैंने कहा ,दो घड़ी रुक जा ;
ज़िन्दगी का एक आखरी कागज़ बचा है ॥उस पर मैं "उसकी" तस्वीर बना लूँ !
मौत ने हँसते हुए उस कागज़ पर ,
तेरा और मेरा नाम लिख दिया ;
और मुझे अपने आगोश में ले लिया .
उसने उस कागज़ को मेरे जनाजे पर रख दिया ,
और मुझे दुनियावालों ने फूंक दिया.
और फिर..
इस दुनिया से एक और मोहब्बत की रूह फना हो गई..
मोहब्बत का शायद यही अंजाम होता है
ReplyDeleteइश्क रोता है खुदा निगेहबान होता है
अब इसके बाद तो कुछ कहन ्को मेरे पास बचा ही नही………तो क्या कहूँ ?
सत्यम ,सुंदरम...सुंदरम....सुंदरम
ReplyDeleteप्रेम पंथ है दुर्गम साधो,
ReplyDeleteअनबँध समय उड़ाय।
बहुत अच्छी रचना |
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग में भी पधारें |
www.pradip13m.blogspot.com
Uf! Mere raungate khade ho gaye!
ReplyDeletebhut bhut khubsurat rachna...
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति
ReplyDeletemann ke bhavon ko ukerti hai aapki ye rachna vijay ji...bahut sundar
ReplyDeletePyar wahee sachcha hai jee dard hai jismen dard ka ahsas sabse oopar hai.
ReplyDeleteअहह...मोहोब्बत के सफर में ....
ReplyDeleteये अंजाम कैसा हो गया ....
मिली ना वो ता उम्र ..
और ये सफ़र खत्म हो गया...anu
पढ़ कर ऐसा लगा की दिल के घाव रिस रहे है ......
Muhabbat ka asia anjaam kyu hota h... kya jo puri ho jaye wo muhabbat nahi???
ReplyDeleteaapki kavita me doob kar hi dekh paye us tasveer ko.
ReplyDeleteमुहब्बत की दास्ताँ ... चल चित्र उतार दिया आपने ... नज़्म की तस्वीर खींच दी ... कमाल का लिखते हैं आप ...
ReplyDelete"शायद मोहब्बत का
ReplyDeleteयही अंजाम होता है...
फ़ना हो जाना उसके खातिर
दिल पे जिसका नाम लिखा होता है "
खूब कही आपने......
शुक्रिया...!!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteप्यार तो एक ऐसी तलाश का सफ़र है जिसका कोई मकाम नहीं ,
ReplyDeleteपहले तो मिलता नहीं , और जब मिल जाता है......तब भी नहीं मिलता .
बहुत ही खूबसूरत कविता !!
गहन रचना
ReplyDelete