कल , आज और कल !
उम्र को वक़्त के साथ गुजरते हुए देख रहा हूँ जानां .....!!!
कभी घर की खिड़की से बाहर देखते हुए ..
कभी बस की कोने वाली सीट पर बैठे हुए ...
कभी किसी नदी के बहते हुए पानी में पैर डाले हुए ..
कभी डूबते हुए सूरज की लालिमा में खुद को रंगते हुए...
और अक्सर /हमेशा ही तेरी यादो के संग रात गुजारते हुए ....
बेगानी सी उम्र को बीतते हुए देख रहा हूँ जानां .....!!
उम्र को वक़्त के साथ गुजरते हुए देख रहा हूँ जानां .....!!!
कभी घर की खिड़की से बाहर देखते हुए ..
कभी बस की कोने वाली सीट पर बैठे हुए ...
कभी किसी नदी के बहते हुए पानी में पैर डाले हुए ..
कभी डूबते हुए सूरज की लालिमा में खुद को रंगते हुए...
और अक्सर /हमेशा ही तेरी यादो के संग रात गुजारते हुए ....
बेगानी सी उम्र को बीतते हुए देख रहा हूँ जानां .....!!
और कभी किसी बीते हुए कल को तुम्हारे साथ ज़िन्दगी की
अनजानी पगडंडियों पर चलते हुए देखता हूँ..
बस तुम मेरे संग होती हो एक पल में ,
और दुसरे पल में तुम नहीं होती हो ..
इस एक पल से दुसरे पल की यात्रा करने में
मैं अक्सर कई बार जीता हूँ और मरता भी हूँ .!
इस एक पल से दुसरे पल की यात्रा करने में
मैं अक्सर कई बार जीता हूँ और मरता भी हूँ .!
अनजानी सी उम्र को बीतते हुए देख रहा हूँ जानां .....!!
ये भी अक्सर होता है कि सपनो में ;
ये भी अक्सर होता है कि सपनो में ;
तुम्हारे नहाए हुए गीले बालो से
गिरते हुए पानी की छोटी छोटी बूंदों को
मैं हथेलियों पर जमा करता हूँ ;
और फिर इससे पहले कि ,
गिरते हुए पानी की छोटी छोटी बूंदों को
मैं हथेलियों पर जमा करता हूँ ;
और फिर इससे पहले कि ,
मैं उन बूंदों में तुम्हारे होंठो को ठीक से देख लूं
वो बूंदे आसमान के झिलमिल तारो के संग मिल जाती है !
वो बूंदे आसमान के झिलमिल तारो के संग मिल जाती है !
अजनबी सी उम्र को बीतते हुए देख रहा हूँ जानां .....!!
और मैं फिर अकेला हो जाता हूँ .
और मैं फिर अकेला हो जाता हूँ .
तुम साथ होकर भी साथ नहीं होती हो …...
ज़िन्दगी के गणित मुझे समझ नहीं आये
तुमसे मिलना , तुमसे अलग होना
और फिर ये सोचना कि क्या पाया और क्या खो दिया
इस मिलने और जुदा होने के खेल में ;
सोचा न था कि यूँ किस्मत ,
तुमसे मिलना , तुमसे अलग होना
और फिर ये सोचना कि क्या पाया और क्या खो दिया
इस मिलने और जुदा होने के खेल में ;
सोचा न था कि यूँ किस्मत ,
मुझे भी कभी मात दे जायेंगी .
अब ; एक न खत्म होने वाला इन्तजार है ,
किसी ऐसे कल का ,
अब ; एक न खत्म होने वाला इन्तजार है ,
किसी ऐसे कल का ,
जो तुम्हारे आने की खबर दे…..
जहाँ जब सुबह हो तो , कोई ताज़ी हवा का झोंका कहे
कि तुम आ रही हो
कोई छोटी सी चिड़िया , चहचहाकर मुझे कहे
कि तुम आ रही हो
और घर के सूने बाग़ में रजनीगंधा के फूल खिले
जो लहलहाकर मुझे कहे
कि तुम आ रही हो
पर मुझे पता है
कि ये खेल हमेशा खुदा ही जीतता है
उसी की रज़ा है , उसी का हुक्म है
कोई कल, आज से गुजर कर फिर एक उदास कल में बदल जायेंगा
और मैं अकेला ही तुम्हारे साए के साथ रह जाऊँगा .
कि तुम आ रही हो
कोई छोटी सी चिड़िया , चहचहाकर मुझे कहे
कि तुम आ रही हो
और घर के सूने बाग़ में रजनीगंधा के फूल खिले
जो लहलहाकर मुझे कहे
कि तुम आ रही हो
पर मुझे पता है
कि ये खेल हमेशा खुदा ही जीतता है
उसी की रज़ा है , उसी का हुक्म है
कोई कल, आज से गुजर कर फिर एक उदास कल में बदल जायेंगा
और मैं अकेला ही तुम्हारे साए के साथ रह जाऊँगा .
और उम्र यूँ ही वक़्त के साथ गुजर जायेंगी
कुछ भी कहो जानां ;
वो जो दिन गुजारे हमने , उनकी उम्र थी सौ बरस ;
और वो जो राते गुजारी हमने
उनकी उम्र थी हज़ार बरस .....!!
बस एक कमी रह गयी ;
ये सपना कुछ जल्दी ही ख़त्म हो गया ;
खुदा भी न ,
शायद जानता ही नहीं कि मोहब्बत ही है ज़िन्दगी !!!
एक उम्मीद फिर भी रहेंगी ;
कि तुम आ रही हो ……….!!!
बहुत गहराई और उदासी लिए हुए दिल छू लेने वाली कविता.
ReplyDeleteबहुत मार्मिक..गहरे अहसास अंतस को भिगो गये..उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeleteबधाई !
मेरी नई कविता "अनदेखे ख्वाब"
Bahut tees hai is rachana me! Bhavuk kar gayee.
ReplyDeleteनमस्कार विजय जी ..बहुत दिनों के बाद आपकी रचना पढने को मिली ..............बहुत ही सुंदर भाव हर शब्द गहराई लिए हुए .......दिल छू लेने वाली सुंदर रचना के लिए बहुत -बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत कुछ कहती है आपकी रचना.....
ReplyDeleteगहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने ! दिल को छू गई!
ReplyDeleteभाव-पूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति......
ReplyDeleteComment by email :
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... एक प्रभावशाली रचना, बधाई !!
shyam kori 'uday'
विजय जी
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपकी गली में आना हुआ लेकिन आपकी कविता में वही ताजगी,वही शब्दों में नये अर्थ भरने की अकूत आकांक्षा,कुछ नया कर गुजरने की लालसा और सबसे बडी बात आस्था से लबरेज आपकी कविताएं एक नयी दुनिया की सैर कराती हैं। बनाये रखें
सूरज
गहन भावों का समावेश प्रत्येक शब्द में ... आभार ।
ReplyDeleteज़िन्दगी के चटख रंगों की याद अक्सर आपकी उदास रचनाओं झलकती है...ज़िन्दगी पिछले लम्हों को बिसूरते हुए याद करने में नहीं बल्कि आने वाले सुखद भविष्य के सपने देखने में अगर बीते तो उसका आनंद ही कुछ और होता है...ढलती शाम के साथ आने वाले सवेरे का जिक्र भी तो करना चाहिए...
ReplyDeleteनीरज
बेहद गहन भावो का समावेश किया है…………लेकिन वक्त के साथ सब बदलता है जो कल था वो आज नही और जो आज है वो कल नही …………इसी का नाम ज़िन्दगी है ……………और शायद वो खुदा भी यही समझाना चाहता है…………वैसे आपके इस भाव पर यदि कुछ लिख पाई तो दोबारा आकर लिखूंगी।
ReplyDeletehamesha ki tarah sunder bhav liyae haen aap ki kavitaa
ReplyDeletejaraa yahaan jayiyae aur daekhiyae
kaese kisi ne samay ko rok diyaa haen
http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2007/05/blog-post_25.html
नमस्कार विजय जी , उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हर शब्द गहराई लिए हुए,एक प्रभावशाली रचना , आप का आभारी हूं आपकी रचना पढने को मिली
ReplyDeleteधन्यवाद
जय-भारत
बस बस .कमाल की भी हद होती है
ReplyDeleteaapne to past, present aur future ek baar mein hi dikha diya... kavitayien aapke bachhon kee tarah hain.. fir bachhon ko itna maarmik aur dukhad kyon banaya... waise hain bade khubsurat...
ReplyDeletevijay ji kae aagrh par apni kavita yahaan post kar rahee hun
ReplyDeleteक्योकि कोई चाहता है
कभी तो मुड़ के देखो
खूबसूरत यादो के जंगल मे
तुमको शायद आज भी कोई मिल जाये
सिर्फ तुम्हारा इंतज़ार करते हुये
कभी तो मुड़ के देखों
अहसास करने के लिये
कि यादे अभी भी धुंधली
नही पड़ी हें
कोई उन्हे आज भी जिंदा रखे है
सिर्फ तुम्हारे लिए
कभी तो मुड़ के देखो
अहसास करो
कि किसी ने समय कों
रोक दिया है
सिर्फ तुम्हारे लिये
कभी तो मुड़ के देखो
महसूस करने के लिये
कि निशब्द एक दिल धड़क रहा है
सिर्फ तुम्हारे लिए
मुड़ के देखो कभी
क्योकि कोई चाहता है
की
तुम मुड़ के देखो
vijay ji kae pathako kae liyae meri kavitaa kaa link haen
http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2007/05/blog-post_25.html
इस सुन्दर रचना को पढ़वाने के लिए आपका आभार!
ReplyDeletecomment by email :
ReplyDeleteविजय कुमार जी
'कल आज और कल' बेहद खूबसूरत ओर दिल को छू लेने वाली कविता हे. अगर आप मुझको personally जानते हे तो यह भी जानते होगे कि मे कभी किसी की झूठी तारीफ नही करती !
शुभकामनाओ सहित
डा. सुषमा सेनगुप्ता
बहुत सुन्दर और अहसास से लिखी गई कृति .......आभार
ReplyDeleteएक साक्षी भाव लिए...अध्यात्म के सागर की गहराई से..बस, यूँ ही उम्र को गुजरते हुए देखना...यह भी ध्यान का एक चरम है....सबके बस में कहाँ भला? यूँ तो उम्र सभी की गुजर रही है हर पर...
ReplyDeleteउम्दा और गहरे भाव!!
विजय जी ,
ReplyDeleteआपकी प्रभावशाली रचना पढने को मिली |
सुंदर कविता | बधाई !
धन्यवाद |
www.omkagaD.BLOGSPOT.COM
bahut sunder kavitaa likhi ha vijay ji...
ReplyDeletebadhaayi aapko..
और कभी किसी बीते हुए कल को तुम्हारे साथ ज़िन्दगी की
ReplyDeleteअनजानी पगडंडियों पर चलते हुए देखता हूँ..
बस तुम मेरे संग होती हो एक पल में , और दुसरे पल में तुम नहीं होती हो ..
इस एक पल से दुसरे पल की यात्रा करने में
मैं अक्सर कई बार जीता हूँ और मरता भी हूँ .! अनजानी सी उम्र को बीतते हुए देख रहा हूँ जानां
क्या बात है!!
comment recd by email :
ReplyDeleteBhai Shri Vijayji,
Namaste,
Bahut dino baad aayi magar
lajawab aayi. badhai. mujhe to achhi lagni hi thi. mere mijaj ki jo
hai.dhanyawad. yuhi likhte rahe,khuda apki kalam ki umr daraz kare.
Bhavdiya,
Shilpa
comment recd. by email :
ReplyDeleteविजय जी
नमस्कार ....
आपके ब्लॉग पर जाना हुआ,,,
कविता पढ़ कर मन बहुत प्रसन्न हुआ
----------------------------------------------------------------------
ज़िन्दगी के गणित मुझे समझ नहीं आये..
तुमसे मिलना और तुमसे अलग होना और ये सोचना कि क्या खोया और क्या पाया ...
आपके काव्य की इन्ही पंक्तियों में कहीं
जीवन-सार भी छुपा नज़र आ रहा है ...
प्रेम के मार्ग पर चल कर ही ज़िन्दगी से मुलाक़ात संभव हो पाती है
आपने हर वाक्य में कुछ भावमय ही कहने का प्रयास किया है
और अपनी काव्य-कुशलता का परिचय सफलतापूर्वक दिया है
बधाई स्वीकारें .
"दानिश"
comment by email :
ReplyDeletekavita bohat achhi hai kumar sahab
Fikro Fun !!!
comment by Email :
ReplyDeletenice poem sir, keep it up...
Regards
Milan Kuchhal
खुदा भी न, शायद जानता ही नहीं कि यही है मोहब्बत जिंदगी...यह सच है कि जिंदगी का सार ही प्यार है...विजय जी बहुत ही खूबसूरत तरीके से आपने इस रचना में प्यार के विस्तार को दर्शाया है...बहुत-बहुत बधाई!!!
ReplyDeleteकभी एक पल में ही सदियाँ जी ली जाती हैं और कभी जीवन भी बिना जिए ही गुजर जाता है...
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी भाव!
बहुत खूबसूरत लिखे हैं सर!
ReplyDeleteसादर
दिल से लिखी गयी और दिल पर असर करने वाली रचना , बधाई तो लेनी ही होगी
ReplyDeleteउत्कृष्ट अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteइतनी गहन ..खूबसूरत यादें ....
ReplyDeleteसुंदर जज़्बात और एहसास भी ...
बहुत सुंदर कविता ...
बधाई ...!!
अच्छे व गजब शब्द
ReplyDeleteउम्र तो वक्त के साथ गुजरने में ही अपना मुकद्दर समझता है पर कुछ ..वही कुछ कल ,आज और कल के बीच ठहर जाता है . आपने बड़ी खूबसूरती से उस ठहराव को फिर से बहा दिया है . बेहद खुबसूरत ..
ReplyDeleteकोमल भावों को सहेजे उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteअनुपमा त्रिपाठी... has left a new comment on your post "कल , आज और कल !":
ReplyDeleteइतनी गहन ..खूबसूरत यादें ....
सुंदर जज़्बात और एहसास भी ...
बहुत सुंदर कविता ...
बधाई ...!!
मन को छूती अभिव्यक्ति ...गहरे उतरती है कविता
ReplyDeleteगहन -गंभीर भावों की अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteगहन भावों से गुम्फित एक बहुत ही खूबसूरत रचना जिसका हर शब्द अपना प्रभाव छोड़ता है ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeletecomment by email :
ReplyDeleteaapki kavita kal aaj aur kal padhi adbhut hai padh kar aisa laga,jaise hamsab k dil kisi kone se chupi ankahi baton se buni gyi rachana h humsab kabhi na kabhi in bhawnaon se gujarte hai.dhanywad
Sunita Upadhyay
AAPKE KOMAL BHAAVON AUR BHASHA KO
ReplyDeletePADH KAR AANAND AA JAATAA HAI .
ATI SUNDAR KAVITA KE LIYE AAPKO
DHERON BADHAAEEYAAN AUR SHUBH
KAMNAAYEN .
समय सदा ही भरमाता है,
ReplyDeleteजो न चाहो, आ जाता है।
बहुत ही सुन्दर भाव पिरोये हैं।
bahot achchi lagi......
ReplyDeleteintezar ke pal....kabhi khatm nahi hote
ReplyDeletemarmik rachna
naaz
धन्यवाद विजय जी आपके कहने पर अपनी रचना पेश कर रही हूं....
ReplyDeleteसब कुछ बिखर गया जैसे...
समेंटे भी तो कितना और कहां तक?
कितना मुश्किल है हम दोनों के लिए
यह कह देना कि अब वो बात नहीं...
रिश्ते को बचाने की कोशिश
तुमने भी की और मैंने भी ..
अपनी-अपनी सहेजी हुई पोटली से
अपने-अपने हिस्से की यादें जोड़ते रहे
तुम भी और मैं भी..
उस खोये हुए पल को पाने के लिए
वही बातें, वही अंदाज़ दोहराते रहे
जिस पर मिट जाया करते थे
तुम भी और मैं भी...
साथ रहकर भी साथ नहीं
कुछ खो सा गया है...
तुम्हें भूल जाना मुश्किल है बहुत
मगर ये वो रिश्ता भी तो नहीं
जो चाहने भर से टूट जाये
लेकिन कुछ टूटा जरूर है
हम दोनो के बीच
जिसकी तसदीक न तुम कर सके
और न मैं ????
बेहद कोमल एहसास .....
ReplyDeletesunder bhav dard me dube
ReplyDeletebahut khoob
rachana
akelepan kee tees, niyati ko jaante hue bhi ek ummid sajaaye rakhna...bahut maarmik rachna, man ko chhu gai rachna, badhai.
ReplyDeleteजिसे तुम कल आज और कल समझते हो
ReplyDeleteवो बिता ही कहाँ ..
आया ही कहाँ ..
और गया ही कहाँ .. जानां
मैं तो वहीँ थी जहाँ आज हूँ
और कल भी तुम मुझे वहीँ खड़ा पाओगे
सपने क्यूँ सजाते हो
बातें क्यूँ बनाते हो
जो है ही नहीं उसे क्यूँ बुलाते हो
और जो हुआ ही नहीं
उसे क्यूँ अपनी आँखों में बसाते हो
_______
जिसे तुम कल आज और कल समझते हो
वो बिता ही कहाँ ..
आया ही कहाँ ..
और गया ही कहाँ .. जानां
आपकी खुबसूरत सी कविता पढ़ मन में कुछ यूँ आया
antarman se likhi bahut hi sundar rachana hai....
ReplyDeleteएक अलग ही भाव लिए... गहरे एहसास से लिखी गई बहुत सुन्दर कविता...
ReplyDeleteuske aage sab bebas
ReplyDeleteye samjhle agar koi
to chup chaap sahle
ज़िन्दगी के गणित मुझे समझ नहीं आये ....सुन्दर...
ReplyDelete--काश ज़िन्दगी से ये गणित हट जाये ।
ज़िन्दगी में श्याम’ क्या-क्या न हो जाये ।
बहुत सुंदर विजय जी...ह्रदय को छू गयी आपकी रचना...दिल से आभार।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ, मेरा ही नुक्सान हुआ इसमें कि मैं इतनी अच्छी-अच्छी कविताओं से वंचित रहा.. इस कविता से मुझे कहीं पढ़ा हुआ एक शेर याद आ गया:
ReplyDeleteउन्हीं रास्तों पे जिनपे, कभी तुम थे साथ मेरे,
उन्हीं रास्तों ने पूछा, तेरा हमसफ़र कहाँ है!!
एक अजीब सी टीस है इस रचना में!!
नूतन वर्ष के आगमन अवसर पर आपको और आपके परिजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं...
ReplyDeleteसुंदर भावात्मक
ReplyDeleteजो भी है यह इक पल है
सुन्दर गहन भाव लिए अनुपम प्रस्तुति.
ReplyDeleteनववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
वीर हनुमान का बुलावा है.
अंतस को भिगो के गुजार गयी आपकी रचना ...
ReplyDeleteविजय जी आपको नव वर्ष की बहुत बहुत मंगल कामनाएं ...
comment by email :
ReplyDeleteVijay ji,
पढ़ी मैंने आपकी कविता - एक लाईन अटल सत्य- ये खेल खुदा ही जीतता है। अच्छी है। नया साल मुबारक हो आपको।
babita1 wadhwani
Best Idea Best Kavita.
ReplyDeleteभैया विजय कुमार जी, चाहे जिस स्थान से भी देखो, कारवा और उम्र तो गुज़रते ही जाएंगे, केवल यादों की गुबार ही रह जाएगी:) नववर्ष की शुभकामनाएं॥
ReplyDeletecomment by email :
ReplyDeleteDear Vijay
Happy New Year 2011 to you and your family !
Kavita is really praiseworthy..... keep it up
P K Kumar
comment by email :
ReplyDeleteमाननीय विजय जी,
आपकी कविता में आध्यात्म और दर्शन का अनोखा संगम मिला।
आगे भी अपनी रचनाओं को भेजें आभारी रहूंगा।
सादर,
देवेन्द्र
comment on +google
ReplyDeletekanishka kashyap - Its too good to see that !! great efforts
commenton this poem on Nukkad blog :
ReplyDeletesangita ने कहा…
sundar rchna hae umra beet bhi jaye par ummid khabhi nahin tootati hae .
January 09, 2012 8:39 PM
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
आज 15/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
MAN K BHAAVO KI BEHTAREEN ABHIVYAKTI.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebehtreeen abhivyakti... bhawpurn:)
ReplyDelete