अक्सर तेरा साया
एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है
और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है …..
मेरे हाथ , मेरे दिल की तरह
कांपते है , जब मैं
उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ …..
तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छु जाता है
जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था ,
मैं सिहर सिहर जाती हूँ ,कोई अजनबी बनकर तुम आते हो
और मेरी खामोशी को आग लगा जाते हो …
तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे धीमे उतरता है
मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
कई जनम जी लेती हूँ तुझे भुलाने में ,
पर तेरी मुस्कराहट ,
जाने कैसे बहती चली आती है ,
न जाने, मुझ पर कैसी बेहोशी सी बिछा जाती है …..
कोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,
कोई माझी ,तेरे किनारे मुझे ले जाए ,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......
या तो तू यहाँ आजा ,
या मुझे वहां बुला ले......
आदरणीय विजय जी
ReplyDeleteनमस्कार !
तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छु जाता है
जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था ,
........बहुत मर्मस्पर्शी अहसास बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
सिलवटों को सुन्दर शब्द दिये आपने....
ReplyDeleteबधाई.....
तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे धीमे उतरता है
ReplyDeleteमैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
चिठिया हो तो हर कोई बांचे भाग न बांचे कोए सजनवा बैरी हो गए हमार ...सुन्दर एहसास की रचना ...बहुत अलग बहुत ख़ास .जीवन से निस्संग मगर जीने की आस .
कोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,
ReplyDeleteकोई माझी ,तेरे किनारे मुझे ले जाए ,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......
या तो तू यहाँ आजा ,
या मुझे वहां बुला ले......
फिर कोई नाखुदा मुझे खुदा से मिला दे
रात और दिन का हर फ़र्क मिटा दे
सिलवटों की सिहरनों से आज़ाद करा दे
ओ मौला मेरे, जिस्म को जाँ से मिला दे
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
और कुछ ना हो सके तो उसका दीदार करा दे
ReplyDeleteमौला या कि नज़रों मे उसकी तस्वीर बसा दे मौला
कोई देखे मेरी निगाह मे दीदार उसका हो
नज़रों को मेरी उसका दर्पण बना दे मौला
और कुछ ना कर सके तो इतना कर दे
ReplyDeleteएक ही अक्स मे दोनो रूप मिला दे मौला
अर्धनारीश्वर को फिर साकार करा दे
नही तो खुद को खुदा कहलाना भुला दे मौला
वाह ... बहुत खूब लिखा है आपने ...आभार ।
ReplyDeleteकोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,
ReplyDeleteकोई माझी ,तेरे किनारे मुझे ले जाए ,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......
या तो तू यहाँ आजा ,
या मुझे वहां बुला ले......
बहुत बहुत सुन्दर विजय जी ! अत्यंत भावपूर्ण और दिल में गहराई तक उतरती रचना ! बहुत खूब !
बहुत ही सुंदर भाव संयोजन किया है आपने सुंदर रचना...शुभकामनायें
ReplyDeleteआपने जो बिम्ब इस्तेमाल किये हैं विजय जी, क्या कहूँ...बिम्ब नहीं बोम्ब हैं वे...सचमुच आग लगा जाने वाले...
ReplyDeleteजबरदस्त रचना..
बहुत सुन्दर कल्पना...
ReplyDeleteअक्सर तेरा साया
एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है
और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है!
Kya khoob likhte hain aap!
ReplyDeleteया तो तू यहाँ आजा ,
ReplyDeleteया मुझे वहां बुला ले......
पूरे समर्पण के साथ ...भावना जैसे कूट कूट कर भर दी है आपने अपनी रचना में ....
बहुत सुंदर रचना ....!!
bahut sunder bhav sanjoye hain vijay ji.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और मर्म को छूने वाली कविता है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ....!
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर विजय जी !!! जबरदस्त रचना.....
ReplyDeleteकोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,
ReplyDeleteकोई माझी ,तेरे किनारे मुझे ले जाए ,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......
या तो तू यहाँ आजा ,
या मुझे वहां बुला ले......
बहुत खूबसूरत एहसास.......
सादर.
अच्छे शब्द और विचार
ReplyDeleteशिर्षक से लेकर अन्त तक ..........
ReplyDelete"A Simple Human and a dreamer, a poet , a musician , a singer, a photographer, a sculptor, a comic artist, a dancer, a writer, a painter, a giver, a worshiper, a lover, a friend, a teacher, a mentor, a speaker, a thinker, a philosopher and a student for lifetime learning from this world".....
kin shabdo se tarif karoon.........umda
ReplyDeleteबहुत कोमल अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबाप रे बाप
ReplyDeleteकमाल कर दिया आपने तो
सिलवटों में सिहरन एक ग़ज़ब एहसास है भई
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteNamskar sir
Bahut hi achi kavita haii...
with regards,
Kosha G
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeletehello bhai ji,
kavita achchi hai,lekhni mein mah ke kavi banne ke liye bahut- bahut badhayee,holi ki shubh kamnaon ke saath,
sheel nigam
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteGood work.
Worth appreciation.
B.K.Dave
Executive Director (Retd.)
तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे धीमे उतरता है
ReplyDeleteमैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
....वाह! लाज़वाब अहसास...बहुत सुंदर भावमयी प्रस्तुति...
bahut hi sundar prastuti
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब।
ReplyDeleteईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteBhai Shri vijayji,
Namaste,
Man ke Bhavon ko kabhi man ki gahrayion main pighla dena to kabhi
bebaki se kagaj par utarna, aapki kavitaon ka yehi mizaj
hai.Badhai.Likhte rahen, magar bahut jyada mukharta se bachen. kuch
baaten khamosh achi lagti hain. Bura ne mane ye meri feeling hai.
Aapke blogs ki vividhta se main behad khush hun.main unhe baar baar
dekh chuki hun.kush rahen.God Bless You.
Regards,
Shilpa
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteविजय कुमार जी,
नमस्कार|
"सिलवटो की सिहरन " अच्छी कविता है|
-शुभ कामनाओं सहित
-दिनेश श्रीवास्तव
कविता की प्रवाह कहूँ या भावों का समंदर..बस खींचती जाती है ..खींचती जाती है और अहसासों में पूरी तरह डुबो देती है..
ReplyDeleteबहुत खूब ..
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
अक्सर तेरा साया
ReplyDeleteएक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है
और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है …..
................waah sunder geet , anand aa gaya padhkar , vijay ji ,
bahut dino ke baad aapki blooging suru hui ,
kabhi kabhi hamare blog par bhi aapna anmol samay den ..hardhik badhai aapki rachna ke liye
bahut bhav pravan kavita hai...badhai...
ReplyDeleteवो अपने गम अब खुद ही
ReplyDeleteढोने लगा हैं
अब हमें दर्द भी नहीं होता
क्यूँ दर्द खुद हमें छूकर
रोने लगा हैं |.........अनु
बहुत सुन्दर भाव चित्र हैं मित्र । आपको बधाई ....
ReplyDeletesundar ehsason ko choone vali sundar rachna..
ReplyDeleteवाह ||
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
कोमल भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति....