भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा,
रवि ने किया दूर ,जग का दुःख भरा अन्धकार ;
किरणों ने बिछाया जाल ,स्वर्णिम और मधुर
अश्व खींच रहें है रविरथ को अपनी मंजिल की ओर ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी रथ का सार्थ बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
सुंदर सुबह का स्वागत ,पक्षिगण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में और भौंरें मस्त तान गुंजा रहे ,
स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने ,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
प्रभात की ये रुपहली किरने ,प्रभु की अर्चना कर रही
साथ ही इसके ; घंटियाँ मंदिरों की एक मधुर धुन दे रही ,
मन्त्र और श्लोक प्राचीन , देवताओं को पुकार रही,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
प्रक्रति ,जीवन के इस नए भोर का स्वागत कर रही
प्रभु की सारी सृष्टि ,इस भोर का अभिनन्दन कर रही ,
और वसुंधरा पर ,एक नए युग ,एक नये जीवन का आव्हान कर रही ,
तू भी हे मानव ,इस जीवन रूपी सृष्टि का एक अंग बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
किरणों ने बिछाया जाल ,स्वर्णिम और मधुर
अश्व खींच रहें है रविरथ को अपनी मंजिल की ओर ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी रथ का सार्थ बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
सुंदर सुबह का स्वागत ,पक्षिगण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में और भौंरें मस्त तान गुंजा रहे ,
स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने ,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
प्रभात की ये रुपहली किरने ,प्रभु की अर्चना कर रही
साथ ही इसके ; घंटियाँ मंदिरों की एक मधुर धुन दे रही ,
मन्त्र और श्लोक प्राचीन , देवताओं को पुकार रही,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
प्रक्रति ,जीवन के इस नए भोर का स्वागत कर रही
प्रभु की सारी सृष्टि ,इस भोर का अभिनन्दन कर रही ,
और वसुंधरा पर ,एक नए युग ,एक नये जीवन का आव्हान कर रही ,
तू भी हे मानव ,इस जीवन रूपी सृष्टि का एक अंग बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
वाह!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आह्वान..........
सादर.
good morning:-)
ReplyDeletebahut hi sundar rachana:-)
प्रकृति का सुन्दर चित्रण
ReplyDeletevery optimistic... i wish i cud believe dat lyf is dis beautiful...
ReplyDeleteसुन्दर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने प्रेरणा मिल रही है....बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो |
ReplyDeletebadhi, ek acchi rachana ke liye.
Deleteashok gautam
वाह अत्यंत सुन्दर आह्वान्………नव संवत्सर मंगलमय हो।
ReplyDeleteWah! Bahut sundar!
ReplyDeleteprerna deti kavita
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
आपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
कल 24/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
भोर का सुन्दर चित्रण ....शब्द रचना बहुत खूबसूरत हैं
ReplyDeleteपर आज कल ऐसा होता कहाँ हैं ...ना कोयल की कुक ...और ना कोई मंदिर की आरती की पुकार सुनता हैं ...जिनका घर मंदिर के करीब हैं वो भी सरकार को कहें कर स्पीकर बंद करने की मांग करते हैं ...वक्त बदल रहा हैं ...फिर भी इस तरह की प्रभु की पुकार सुन कर पढ़ कर अच्छा लगता हैं
बहुत सुंदर रचना ... प्रेरक
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ! नव संवत्सर की आपको हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteआदरणीय विजय जी,
बहुत ही सुन्दर रचना है. भोर के समय की अनुपम छटा है आपकी इस रचना में. भोर का ऐसा वर्णन इससे पहले मैंने निदा फाजली साहब की रचना में पढ़ा था.
अद्भुत रचना है. आपको बधाई.
---शिव
VIJAY JI , AAPKEE EK AUR SHRESHTH RACHNA KE LIYE AAPKO BADHAEE
ReplyDeleteAUR SHUBH KAMNA .
great inspiring poem
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया प्रेरणात्मक प्रस्तुति, नव संवत की हार्दिक शुभकामनायें....
ReplyDeleteबहुत सुन्दए रचना है।
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteभोर भयी, अब नींद तजो रे...
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना!!
ReplyDeleteईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteआदरनीय महोदय
अच्छी रचना है। सुबह का आभास हुआ।
आपका
भूपेन्द्र कुमार दवे
खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
ReplyDeleteफूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,bahut achchi prastuti.
सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई.
बहुत सुंदर और प्रेरक आह्वान...
ReplyDeletebehtareeen rachnakar aap ho... prernadayak!
ReplyDeleteकितनी भी ये रात हसीं हो ... फिर भी सहर की बात अलग है ...:) .. बेहद खूबसूरत रचना ... !!
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteShiv Pathak :
मै बहुत ही साधरण पाठक हु लेकिन आप की कविता अच्छी है
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteशुभकामनायें.
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteप्रिय विजय,
कविता भोर भेजने के लिए आभार.
देवेन्द्र चौबे
ईमेल द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteMAHENDRA GUPTA
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा
!तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा !
मानव को जगाती,कुछ करने को आवाहन करती सुन्दर कृति
ReplyDelete♥
प्रियवर विजय कुमार जी
सस्नेहाभिवादन !
सुंदर गीत लिखा है आपने …
सुंदर सुबह का स्वागत पक्षीगण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में और भौंरें मस्त तान गुंजा रहे ,
स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
खिलकर कलियों ने खोले , सुंदर होंठ अपने ,
फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
पर्णों पर पड़ी ओस , लगी मोतियों सी चमकने ,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
वाह वाह …
आनंद आ गया …
~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
waah bahut sunder bhor good morning , prakruti ke karib ,badhai
ReplyDeletekabhi kabhi hamare blog ko bhi samay dijiye vijay ji
nayi post par swagat hai
http://sapne-shashi.blogspot.com
खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
ReplyDeleteफूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने ,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!
सुंदर गीत लिखा है
bahut hi sundar kavita....
ReplyDeleteachchhee rachna ke liye badhai...
ReplyDeleteमंदिर की घंटी की तरह मधुर-मधुर बजती हुई अति सुन्दर काव्य..लयबद्ध करती हुई . अलग सी अनुभूति दे रही है ..बहुत-बहुत बधाई..
ReplyDeletebahut sundar manbhawn geet.
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDelete....... रचना के लिए बधाई स्वीकारें !!!
bhut sundar abhivyakti hai mn me trotajgi bhr dene vali kavita hai.
ReplyDelete