प्रेमपत्र नंबर : 1409
जानां ;
तुम्हारा मिलना एक ऐसे ख्वाब की तरह है , जिसके लिए मन कहता है कि , कभी भी ख़त्म नहीं होना चाहिए ...
तुम जब भी मिलो , तो मैं तुम्हे कुछ देना चाहूँगा , जो कि तुम्हारे लिए बचा कर रखा है ......................................
एक दिन जब तुम ;
मुझसे मिलने आओंगी प्रिये,
मेरे मन का श्रंगार किये हुये,
तुम मुझसे मिलने आना !!
तब मैं वो सब कुछ तुम्हे अर्पण कर दूँगा ..
जो मैंने तुम्हारे लिए बचा कर रखा है .....
कुछ बारिश की बूँदें ...
जिसमे हम दोनों ने अक्सर भीगना चाहा था
कुछ ओस की नमी ..
जिनके नर्म अहसास हमने अपने बदन पर ओड़ना चाहा था
और इस सब के साथ रखा है ...
कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
कुछ फूलों की मदमाती खुशबु ,
कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
कुछ ठहरे हुए से कदम,
कुछ आंसुओं की बूंदे,
कुछ उखड़ी हुई साँसे,
कुछ अधूरे शब्द,
कुछ अहसास,
कुछ खामोशी,
कुछ दर्द !
ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने
सिर्फ़ तुम्हारे लिये प्रिये !
मुझे पता है ,
एक दिन तुम मुझसे मिलने आओंगी ;
लेकिन जब तुम मेरे घर आओंगी
तो ;
एक अजनबी खामोशी के साथ आना ,
थोड़ा , अपनी जुल्फों को खुला रखना ,
अपनी आँखों में थोड़ी नमी रखना ,
लेकिन मेरा नाम न लेना !!!
मैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
और तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा
लेकिन जब तुम मुझे छोड़ कर जाओंगी
तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये
हाँ ;
शायद मेरे लिये
हाँ मेरे लिये !!!
तुम्हारा ही
मैं .........................................
जानां ;
तुम्हारा मिलना एक ऐसे ख्वाब की तरह है , जिसके लिए मन कहता है कि , कभी भी ख़त्म नहीं होना चाहिए ...
तुम जब भी मिलो , तो मैं तुम्हे कुछ देना चाहूँगा , जो कि तुम्हारे लिए बचा कर रखा है ......................................
एक दिन जब तुम ;
मुझसे मिलने आओंगी प्रिये,
मेरे मन का श्रंगार किये हुये,
तुम मुझसे मिलने आना !!
तब मैं वो सब कुछ तुम्हे अर्पण कर दूँगा ..
जो मैंने तुम्हारे लिए बचा कर रखा है .....
कुछ बारिश की बूँदें ...
जिसमे हम दोनों ने अक्सर भीगना चाहा था
कुछ ओस की नमी ..
जिनके नर्म अहसास हमने अपने बदन पर ओड़ना चाहा था
और इस सब के साथ रखा है ...
कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
कुछ फूलों की मदमाती खुशबु ,
कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
कुछ ठहरे हुए से कदम,
कुछ आंसुओं की बूंदे,
कुछ उखड़ी हुई साँसे,
कुछ अधूरे शब्द,
कुछ अहसास,
कुछ खामोशी,
कुछ दर्द !
ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने
सिर्फ़ तुम्हारे लिये प्रिये !
मुझे पता है ,
एक दिन तुम मुझसे मिलने आओंगी ;
लेकिन जब तुम मेरे घर आओंगी
तो ;
एक अजनबी खामोशी के साथ आना ,
थोड़ा , अपनी जुल्फों को खुला रखना ,
अपनी आँखों में थोड़ी नमी रखना ,
लेकिन मेरा नाम न लेना !!!
मैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
और तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा
लेकिन जब तुम मुझे छोड़ कर जाओंगी
तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये
हाँ ;
शायद मेरे लिये
हाँ मेरे लिये !!!
तुम्हारा ही
मैं .........................................
sundar bhavon kee abhivyakti .aabhar
ReplyDeleteदेव नागरी मे^ क्यो नही
Deleteअभी बस पढ़ा है ....जवाब इसका कल दूंगी
ReplyDeletevery nice .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
ReplyDeleteऔर तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा
लेकिन जब तुम मुझे छोड़ कर जाओंगी
तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये
हाँ ;
शायद मेरे लिये
हाँ मेरे लिये !!!
तुम्हारा ही
मैं ..................एक बार फिर दिल को छू गयी अभिव्यक्ति। बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं । बधाई ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ५ रुपये मे भरने का तो पता नहीं खाली हो जाता है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteऔर इस सब के साथ रखा है ...
ReplyDeleteकुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
कुछ फूलों की मदमाती खुशबु ,
कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
कुछ ठहरे हुए से कदम,
कुछ आंसुओं की बूंदे,
कुछ उखड़ी हुई साँसे,
कुछ अधूरे शब्द,
कुछ अहसास,
कुछ खामोशी,
कुछ दर्द !
आSह और वाह भी ।
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteमैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
ReplyDeleteऔर तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा
लेकिन जब तुम मुझे छोड़ कर जाओंगी
तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये
हाँ ;
शायद मेरे लिये
हाँ मेरे लिये !!
--अलौकिक प्रेम की पराकाष्ठा की बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति !
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sundar bhavpoorn rachna ..
ReplyDeletePREM - KAVITAAYEN LIKHNE MEIN AAPKAA KOEE JAWAAB NAHIN . EK - EK
ReplyDeleteSHABD PREM MEIN RACHAA - BASAA HOTA HAI .
अंतस को छूती बहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDeletepyari si prem paati ... sundar :)
ReplyDeleteSender bhavabhivyakti
ReplyDeleteबहुत सुंदर ,,उचित और सुंदर शब्दों और भावों से सजी कविता
ReplyDeleteबधाई हो !
ati sunder abhivykti
ReplyDeletesabdon ke pridhan pahan
milney ki anubhuti
suryakant
भावपूर्ण अभिव्यक्ति। आभार।
ReplyDeleteलो भई आ गए हौसला बढाने :)
ReplyDeleteकितना कुछ सहेज रखा है तुमने अपनी पोटली में परन्तु आज के भौतिक युग में यह किस काम का। इतना देने के बाद फ़िर कहते हो नाम भी न लेना। यहाँ तो एक सम्मान पत्र देने के बाद लोग बरसों ढिंढोरा पीटते हैं। इस समर्पण इदं नमं का भाव दिखाई देता है, हृदय से समर्पण। इसके साथ कुछ पापर्टी की वसीयत भी कर देते तो सोने में सुहागा हो जाता और भविष्य में "जानां" के काम आती :) :)
हर पंक्ति में समर्पण की गहराई है, कई बार पढ़ने योग्य।
ReplyDeleteक्या बात है...गज़ब!! बेहतरीन!!
ReplyDeleteEmail Comment :
ReplyDeleteOf course Good poem...
Jagdish Kinjalk, Editor- ivyalok, Bhopal.
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ReplyDeletePoems are excellent;everybody should like and appreciate.
swargvibha.in
email comment :
ReplyDeletenice poem sirji don;t minnd for u r e-mail..........!
pradeep kag
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ReplyDeleteप्रिय बन्धु,
कवि भोक्ता नहीं द्रष्टा हो । कवि की यही सामर्थ्य उसे सामान्य से विशेष बनाती है ।
P D Mishra, President Maharshi Agastya Vedic Sansthanam, www.vishwatm.com, prabhu-mishra.blogspot.com,YouTube-brahmram, Facebook- Prabhu Mishra
Email comment :
ReplyDeleteSappatti ji,
Kavita bahut bhavpuran aur aseem prem urjaa se bhari padi hai...
Aisi utkrisht kavita padhwane ke liye dhanyabad... Aap kahaniyan bhi
achchhi likhte hain...
aapka anuj
Mahavir Uttranchali
Email comment :
ReplyDeleteVIJAYJI APKI KAVITA NEY APKO TO "VIJAY" DILAI JISNEY PARI USKO BHI "VIJAY" MILI,BAHUT BHAO BHARI KAVITA, DHANYAWAD
Mukul Joshi
Email Comment :
ReplyDelete]Vijay ji,
I have read your poem. It reminds me of a very popular song from the film 'Ijaazat' -
"Mera kuchh saamaan tumhaare paas pada hai".
Best wishes,
Mahendra.
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत प्यारी अभिव्यक्ति.....
सादर
अनु
प्रेम और समर्पण की सुन्दर प्रस्तुति …शुभकामनायें
ReplyDelete१४०९ ख़त ....?
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई .....!
१४०८ खतों को भी प्रकाशित कीजिये .....!!
Saare khat padhwa hi dijiye sir...
ReplyDeleteBahut sundar....
बहुत ही नर्म एवँ नाज़ुक सी अभिव्यक्ति ! अति सुंदर !
ReplyDeleteSmrition ko sanjona aur shabdon me pirona jo kavita ban jaye.... shayed aapki pratibha ka praman hai... bahumukhi pratibha waale log hi aisa kar sakte hain... acchha laga. kalam chup na ho.. khyal rakhiyega. Dhayawad.
ReplyDeleteemail comment :
ReplyDeleteदिल से लिखी गई कविता अच्छी- सरल। बधाई
aabha mishra
बहुत कम लोगों में सामर्थ्य हुआ करती है प्रेम को ऐसे ओढ़ और बिछा पाने की ...
ReplyDeleteबधाई रचना हेतु ...
bahut -bahut sundar abhivykti
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteविजय जी..
ReplyDeleteप्रेम का बहुत ही अद्भुत वर्णन और सुंदर अभिव्यक्ति है। कविता में आध्यात्मिकता और साधना झलकती है। बहुत की सुंदर रचना .... बधाई हो.....>>>>
भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बधाई...|
ReplyDeleteप्रियंका
यह कविता प्रेम को हर एंगेल से समझने में सहायक है. सुन्दर काव्य के लिए आपको बधाई.
ReplyDeleteप्रेम में डूबी, प्यार में पगी भवपूर्ण कविता। प्रेम का इतना विस्तार, आश्चर्य होता है। सचमुच बहुत ही भावपूर्ण कविता। मैं जानना चाहता हूं कि इस कविता को लिखने के पहले आपको किन हालात से गुजरना पड़ा। मुझे बताएंगे। थोड़ी जिज्ञासा है, आप बता पाऍं तो मुझे अच्छा लगेगा।
ReplyDeleteडॉ महेश परिमल
सर . प्रेम हमेशा ही अधुरा होता है . जिसे हम पूर्णता समझते है , वो कभी भी प्रेम नहीं हो सकता . प्रेम का कैनवास इतना बड़ा होता है कि एक ज़िन्दगी भी उसमे समां नहीं जा सकती है . इसी ज़िन्दगी और प्रेम के युद्ध में अगर प्रेम प्राप्त नहीं हो सका तो तब प्रेमी के मन में ऐसी कई भावनाए आती है , जो कि वो अपनी प्रेमिका के संग पूर्ण करना चाहता है . और यहाँ भी मैंने उन भावनाओं को जिया है और उसे कविता के रूप में लिखा है . बस
Deleteबहुतखूब !
ReplyDeleteत्याग और समर्पण का इतना सजीव चित्रण प्रस्तुत करती हुई अपकी भावाभ्यक्ति हृदयातल को छू गई।
ReplyDeleteसादर
सुन्दर भावों से सजी रचना...बधाई...
ReplyDeleteEmail comment :
ReplyDeleteआप के कविता में एह्शस है सुकून है उनके लिए एक सन्देश जो प्रेम की परिभाषा को थोड़ा समझ सके बहुत सुंदर भावना है
कवि रजनी कान्त तिवारी दिल्ली
email comment :
ReplyDeleteBhai shri vijayji, pranam...aapka prempatr to kafi interesting tha....man kalpna ki lambi udan bhar aaya....vakai main dil ke kisi kone main har koi aise ankahe dard sanjoye baitha hoga...bas aapne uski sundar abhivyakti kar di...badhai...likhte rahain....reply der se karne ke liye soory....
Regards,
shilpa
बहुत अच्छे विजय जी.....सुन्दर कविता.........!
ReplyDeleteman ko chhuti hui kavitaa , sadhuwaad
ReplyDeletesadar
umda
ReplyDeleteEmail comment
ReplyDeleteआप के कविता में एह्शस है सुकून है उनके लिए एक सन्देश जो प्रेम की परिभाषा को थोड़ा समझ सके बहुत सुंदर भावना है
कवि रजनी कान्त तिवारी दिल्ली
Email comment :
ReplyDeleteप्रिय विजय जी,
नमस्कार|
आपने अपनी इस कविता में अपनी भावनाओं को अच्छी तरह व्यक्त किया है|
शुभ कामनाओं सहित-
दिनेश श्रीवास्तव
बहुत सुन्दर, दिल कों छूने वाली कविता, विजय जी !
ReplyDeleteढेर सराहना !
sadharan sai asadharan ke taraf gaman karte kavita..ate uttam
ReplyDeletesunder kata jay bhaa
ReplyDeletePrem krnaa hai , to kr tu tyaag,
ReplyDeletebujha le apni ,apne men hi aag,
Nahin to hai yah koraa raag.
Iska Vigyaapn n kro , bus keval sabr se kaam lo.
मर्मस्पर्शी रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत ही भावनात्मक और कोमल एहसास लिये हुये, बेहतरीन.
ReplyDeleteरामराम.
bahut hi sunder likha hai, man ko gehre chhoo gaya
ReplyDeleteshubhkamnayen
कुछ बारिश की बूँदें ...
कुछ ओस की नमी ..
कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
कुछ फूलों की मदमाती खुशबू ,
कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
कुछ ठहरे हुए से कदम,
कुछ आंसुओं की बूंदे,
कुछ उखड़ी हुई साँसे,
कुछ अधूरे शब्द,
कुछ अहसास,
कुछ खामोशी,
कुछ दर्द !
ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने
सिर्फ़ तुम्हारे लिये प्रिये !
जनाब ! चीज़ें तो नायाब रख रखी हैं...
:)
विजय कुमार जी
सुंदर प्रेम कविता पढ़ कर मन आनंदित हो गया !
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार
प्यार की कशिश ही ऐसी होती है जिसमें अगले जन्म की आस भी बाकी रह जाती है..सुंदर प्रस्तुति।।।
ReplyDeletewaah pyaar ka roop bada anokha hai shabd thoda bada rakhen ....
ReplyDeleteकमाल का प्रेमपत्र है गुरु !
ReplyDeleteबधाई !
:)
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
ReplyDeleteवली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
gajab ki rachana .....dher sari badhai apko
ReplyDelete