सपने टूटते है ,
बिखरते है
चूर चूर होते है
और मैं उन्हें संभालता हूँ दिल के टुकडो की तरह
उठाकर रखता हूँ जैसे कोई टुटा हुआ खिलौना हो
सहेजता हूँ जैसे कांच की कोई मूरत टूटी हो .
और फिर शुरू होती है ,
एक अंतहीन यात्रा बाहर से भीतर की ओर
खुद को सँभालने की यात्रा ,
स्वंय को खत्म होने से रोकने की यात्रा
और शुरू होता है एक युद्ध
ज़िन्दगी से
भाग्य से
और स्वंय से ही
जिसमे जीत तो निश्चित होती है
बस
उसे पाना होता है
ताकि
मैं जी सकूँ
ताकि
मैं पा सकूँ
ताकि
मैं कह सकूँ
हां !
विजय तो मेरी ही हुई है.
कविता © विजय कुमार
संघर्ष ही जीवन है --सुन्दर रचना !
ReplyDeleteनई पोस्ट मन्दिर या विकास ?
नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
यही तो जिंदगी है...... बहुत सुंदर रचना .
ReplyDeleteबस यही जीवटता बनाये रखो जीत होकर रहेगी………जन्मदिन की तहे दिल से शुभकामनायें …………ईश्वर तुम्हारी ज़िन्दगी के सभी अंधेरों को दूर कर खुशियों की रौशनी से भर दे यही कामना करती हूँ ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteजीवन से जीवन की खोज ... अपने अंतस से ही शुरू होती है ...
ReplyDeleteTouched my heart.
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeletesundar kavita
ReplyDeleteवाह,बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteबेहतरीन रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
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ReplyDeleteसुन्दर भाव लिए रचना |
ReplyDeleteसपनों का ... टूटना संभालना
ReplyDeleteअनुपम भावों का संगम
बेहतरीन अभिव्यक्ति
सपनों से प्यारी सी स्वप्निल कविता ...अपने आप में सब रंग समेटे हुए
ReplyDeleteAAPKEE KAVITA NE MAN MOH LIYAA HAI . SEEDHEE-SAADEE BHASHA MEIN
ReplyDeleteSEEDHEE-SAADEE ABHIVYAKTI AAPKEE KAVITAAON KE VISHESHTA HAI .
--- सुन्दर कविता है ....जीवन संघर्ष अवश्य ही आवश्यक है......चाहे जीत हो या न हो .क्योंकि यह आवश्यक नहीं कि ..... ..जिसमे जीत तो निश्चिंत होती है
ReplyDeleteनिश्चिंत = निश्चित ..होना चाहिए....
आदरणीय श्याम जी . नमस्कार , आपके कमेंट के लिए हृदय से धन्यवाद.
Deleteमैंने गलती [ निश्चिंत = निश्चित ] सुधार ली है . आपका आभार .
आपका
विजय
sakaratmak soch wale hi vijayi hote hain .....sundar prastuti ......
ReplyDeletejindagi ka saar ..sundar rachna
ReplyDeleteGood, inspiring in simple & fluent language.
ReplyDeleteताकि
ReplyDeleteमैं जी सकूँ
-एक उम्दा रचना!! बधाई..
Vijay kumar Sappati jee, apkee kavitaye, apka blog aur apki bahumukhi pratibha apne aap mein bahut akarshak hai
ReplyDeleteATI UTKRISHT KAVITA HAI... AAPKI HAR VIDHA PAR PAKAD HAI, CHAHE KAVITA HO YA KAHANI.... you are great!!!
ReplyDeleteMahavir Uttranchali
भाव-प्रधान सुन्दर कविता । विजय जी ! आप बहुत अच्छा लिखते हैं । बधाई ।
ReplyDeletewaah, bahut achhi lagi
ReplyDeleteshubhkamnayen
सुन्दर रचना
ReplyDeleteदिल को छूते अहसास..यही ज़ज्बा ज़ीने की हिम्मत देता है...बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteउम्दा...बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत खूब विजय जी, मजा आ गया आपकी कविता पढ़कर।
ReplyDeletebahut khoob... :)
ReplyDeletebahut sundar prastuti,aapki yeh kavita bahut kuchh keh gaee,badhai.
ReplyDeleteस्व को परिलक्षित करती हुई सुन्दर कविता बन पड़ी है आदरणीय।
ReplyDeleteमुझे रचना में कुछ कुछ 'गोपाल दास नीरज' की बू आ रही है।
आपको बहुत बधाई इस उत्कृष्ट रचना के लिए,
सादर
Bahut sundar rachna
ReplyDeleteस्वंय को खत्म होने से रोकने की यात्रा
ReplyDeleteऔर शुरू होता है एक युद्ध
ज़िन्दगी से
भाग्य से
और स्वंय से ही
bahut khoob likha hai apne..... aabhar
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ReplyDeleteSapne sakar karna jindgi ka maksad hota hai
ReplyDeleteJo jina janta hai bas wahi asal jindgi jita hai.
sunder
ReplyDeletebahut sunder...
ReplyDeleteविजय जी ! आप बहुत अच्छा लिखते हैं । बधाई ।
ReplyDeleteअच्छी चिंतनशील व भावप्रवण कविता है।
ReplyDeleteजीवन और स्वप्न---ऐसे कि जैसे कि साडी में नारी या कि नारी में साडी----बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteसपना है यह जीवन या कि यह सपना खूबसूरत जीवन है.
बहुत सुंदर
खूबसूरत रचना
ReplyDeleteशुभकामनाएँ