Thursday, October 15, 2015

एक नज़्म खुदा के लिए.........


उस दिन जब मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा
तुमने उस हाथ को दफना दिया
अपनी जिस्म की जमीन में !
और कुछ आंसू जो मेरे नाम के थे ,
उन्हें भी दफना दिया अपनी आत्मा के साथ !

अब तुम हो
और मैं हूँ
और हम बहुत दूर है !
हां; इश्क खुदा के आगोश में चुपचाप बैठा है!

खुदा ने एक कब्र बनायीं है ,
तुम्हारी और मेरी ,
उसने उसमे कुछ फूल और आहो के साथ मेरी प्रार्थनाओ को भी दफ़न किया है !

हां ;
कुछ लोग अब भी मेरी नज्मे पढ़ते है और मोहब्बत की बाते करते है !

© विजय

6 comments:

  1. Replies
    1. आपका दिल से शुक्रिया जी :)

      Delete
  2. कुछ लोग अब भी मेरी नज्मे पढ़ते है और मोहब्बत की बाते करते है ........क्योँकि मोहब्बत कभी नहीं मरती है।
    बहुत खूब!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका दिल से शुक्रिया जी :)

      Delete
  3. आपका दिल से शुक्रिया जी :)

    ReplyDelete

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...