Friday, July 25, 2008

लाश

Life of an ordinary human in today's world.....

आज मैंने एक आदमी की लाश देखी
यूँ तो मैंने बहुत सी लाशें देखी है
पर
इस लाश की तरफ़ मैं आकर्षित था
यूँ लगा कि
मैं इस आदमी को पहचानता था
इस आदमी की जिंदगी को जानता था
इस लाश के चारो तरफ़ एक शांती थी
एक युग का अंत था ......
एक प्रारम्भ था .........
मैंने लाश को गौर से देखा ...
मैंने लाश के पैरो को देखा,
उसमे छाले थे और पैर फटे हुए थे...
कमबख्त ने जिंदगी भर जीवन की कठिन राहों पर चला होंगा
मैंने लाश की कमर को देखा,
कमर झुक गई थी और उसमे दर्द उभरा हुआ था
कम्बखत ने जिंदगी भर जीवन का बोझ ढोया होंगा
मैंने लाश के हाथों को देखा,
हाथ की लकीरें फटी हुई थी..
कम्बखत ने जिंदगी भर जीवन को सवांरा होंगा....
मैंने लाश के चेहरे को देखा,
उस पर सारे जहाँ का दुःख छाया था ...
कम्बखत ने जिंदगी भर जीवन के मौसमो को सहा होंगा
मैंने फिर चारो और देखा,
उसके चारो तरफ़ उसके रिश्तेदार थे...
वो सब थे ,जिनकी खातिर वो जिया ,

और एक दिन मर गया ...
कोई दुखी था ,कोई सोच रहा था ,कोई रो रहा था , कोई हंस रहा था
सच में हर कोई जी रहा था और ये मर गया था .....
अब मैं लाश को पहचान गया
वो मेरी अपनी ही लाश थी
मैं ही मर गया था !!

2 comments:

  1. ye aapke khwaab ki shabdik prastutikaran hai ya darakte samajik rishto aur sanskarit mulyon ki anubhuti par jo bhee hai kavita ka prastutikaran bahut khubsurat ban pada hai........mujhe to ye LAASH ek aam insaan ki lagi jisne wakyee jivan jiya.....aur naye jivan ke liye khud mar gaya.....

    Gahre Ehsaas liye sundar abhivyakti.

    ...Ehsaas!

    ReplyDelete
  2. wastav me yahi to jiwan hota hai,
    aksar hi koi aata hai or koi chala jata hai,or ye samaj,ye log,sab bas yuhin dekhte reh jate hain.....
    kyuki har koi sirf khud ki zindagi ke liye sochta hai


    apki kavita bahut hi acchi hai kash har insaan is sacchai ko samjh le to logo ke jite ji jo dukh wo jhelta hai kuch kam ban pade......

    ReplyDelete

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...