Thursday, April 23, 2009
क्षितिज
तुमने कहीं वो क्षितिज देखा है ,
जहाँ , हम मिल सकें !
एक हो सके !!
मैंने तो बहुत ढूँढा ;
पर मिल नही पाया ,
कहीं मैंने तुम्हे देखा ;
अपनी ही बनाई हुई जंजीरों में कैद ,
अपनी एकाकी ज़िन्दगी को ढोते हुए ,
कहीं मैंने अपने आपको देखा ;
अकेला न होकर भी अकेला चलते हुए ,
अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए ,
अपने प्यार को तलाशते हुए ;
कहीं मैंने हम दोनों को देखा ,
क्षितिज को ढूंढते हुए
पर हमें कभी क्षितिज नही मिला !
भला ,
अपने ही बन्धनों के साथ ,
क्षितिज को कभी पाया जा सकता है ,
शायद नहीं ;
पर ,मुझे तो अब भी उस क्षितिज की तलाश है !
जहाँ मैं तुमसे मिल सकूँ ,
तुम्हारा हो सकूँ ,
तुम्हे पा सकूँ .
और , कह सकूँ ;
कि ;
आकाश कितना अनंत है
और हम अपने क्षितिज पर खड़े है
काश ,
ऐसा हो पाता;
पर क्षितिज को आज तक किस ने पाया है
किसी ने भी तो नही ,
न तुमने , न मैंने
क्षितिज कभी नही मिल पाता है
पर ;
हम ; अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर
अवश्य मिल रहें है !
यही अपना क्षितिज है !!
हाँ ; यही अपना क्षितिज है !!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
-
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
-
मिलना मुझे तुम उस क्षितिझ पर जहाँ सूरज डूब रहा हो लाल रंग में जहाँ नीली नदी बह रही हो चुपचाप और मैं आऊँ निशिगंधा के सफ़ेद खुशबु के साथ और त...
पर क्षितिज को आज तक किस ने पाया है
ReplyDeleteकिसी ने भी तो नही ,
न तुमने , न मैंने
क्षितिज कभी नही मिल पाता है
पर ;
हम ; अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर
अवश्य मिल रहें है
विजय जी
प्यार को पाना ही क्षितिज का मिलन है...........आसमां का ख्सितिज तो किसीने देखा नहीं...........पर दिल के ख्सितिज का तो मिलन संभव है. सुन्दर रचना
विजय जी..
ReplyDeleteसुन्दर भाव भरी रचना है.
मुश्किल यह है कि क्षितिज दिखता तो है मगर उसका अस्तित्व नहीं होता.. और शायद ये मिलन इसी लिये संभव नहीं है.. जब स्थान निश्चित नहीं तो मिलन कैसे हो :)
वाह विजय जी कितने सुन्दर भाव लिख दिये। कई दिनों के बाद पढने को मिली है आपकी रचना। दिल खुश हो गया।
ReplyDeleteक्षितिज को कभी पाया जा सकता है ,
शायद नहीं ;
पर ,मुझे तो अब भी उस क्षितिज की तलाश है !
जहाँ मैं तुमसे मिल सकूँ ,
तुम्हारा हो सकूँ ,
तुम्हे पा सकूँ .
और , कह सकूँ ;
कि ;
आकाश कितना अनंत है
और हम अपने क्षितिज पर खड़े है
बहुत ही उम्दा।
bahut hi badhiya........kshitiz par milna .........kya khoob likha hai.
ReplyDeletesach insaan apne hriday ke prem kshitiz par hi mil sakta hai varna to kshitiz sabke hi apne apne hote hain .
बहुत सुंदर रचना ..
ReplyDeleteक्षितिज होता तो मिल न जाता
ReplyDeleteढूंढो सिर्फ उसको
तलाशो सिर्फ मुझको
मैं मिलूं तो
समझ लो एक सिरा हूं
और सिरा ही है
निरा क्षितिज
बिना सिरे के
कैसा क्षितिज।
बहुत सुन्दर लगी आपकी यह कविता विजय जी .क्षितिज मन का ही अच्छा है .अच्छे भाव उकेरे हैं आपने ..
ReplyDeleteWAAHI SAHIB AAKHIRKAAR AAPNE APNI KSHITIJ DHUNDH HI LI...
ReplyDeleteAAKAASH KITANA ANANT HAI AUR HAM APNE KSHITIJ PE KHADE HAI...
IS PANKTI BHAV KA AISE PDARPAN HAI KE KYA KAHI JAAYE AISA LAGAA PAL BHAR KE LIYE KE AAPKO WO KSHITIJ MIL HI GAYA.... BAHOT HI KAMAAL KI RACHANA HAI YE TO SACH ME BAHOT ACHHI LAGI...
BADHAAYEE KUBUL FARMAAYEN
AAPKA
ARSH
वाह बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।
ReplyDelete'क्षितिज को आज तक किस ने पाया है
ReplyDeleteकिसी ने भी तो नही ,
न तुमने , न मैंने
क्षितिज कभी नही मिल पाता है
पर ;
हम ; अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर
अवश्य मिल रहें है !
यही अपना क्षितिज है !!
हाँ ; यही अपना क्षितिज है !!!'
- सुन्दर.
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
ReplyDeleteA greta composition, though i got to read ur poem after a long time it was worth waiting...
ReplyDeleteविजय जी बहुत ही बेहतरीन लिखते हो इसमें कोई दोराय नहीं है आप एक सशक्त लेखनी के धनी हो लेकिन आज काफी दिनों के बाद आए हो ऐसे अंतराल पैदा मत किया करो जान पर बन आती है हमारी
ReplyDeleteक्षितिज पर मिलना कल्पना है, चाहे जमीन आसमान का हो या मन का( वैसे मन का क्षितिज माने?)और कल्पना का अस्तित्व नहीं होता, सिर्फ छलावा होता है, जहाँ छलावा है वहां प्रेम कैसे मिल सकता है...ये एक दिलचस्प सवाल है जिसका जवाब शायद आप के पास हो.....
ReplyDeleteनीरज
aapne bhavon ko bahut khoobsurat anjam diya hai
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
पाया है किसने क्षितिज को,
ReplyDeleteपा सकेगा क्या कोई?
जैसे दूर गगन के तारे,
तोड सकेगा क्या कोई?
बहुत सुन्दर रचनाकर्म.बधाई.
आप की टिप्पणी मिली बहुत अच्छा लगा, मुझे तो ऐसा लग रहा था कि आप मुझसे न जाने किस बात पर ख़फ़ा हो बैठे...
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
शब्द , विचार , काव्य , और मन ...
ReplyDeleteअनंत आकाश में अपने अपने
क्षितिज के विस्तार को तलाशते हुए...
और उसी सार्थक तलाश की साधना का
मधुर फल ...
आपकी ये रचना ...... बधाई .
---मुफलिस---
इतनी अच्छी रचना कि तारीफ के शब्द कम पड़ गए....
ReplyDeleteकहीं मैंने हम दोनों को देखा ,
ReplyDeleteक्षितिज को ढूंढते हुए
पर हमें कभी क्षितिज नही मिला !
बहुत सुंदर कहा है विजय जी,,
बधाई हो,,
bahut sunder ehsaas kshitij ka,mil ke bhi jo na mil paya,sunder under rachana badhai
ReplyDeleteजब तक क्षितिज हमारे पास नही है या हमने नही देखा ठीक है
ReplyDeleteये क्षितिज अगर मिलं भी जाए तो क्या है |
बहुत सुंदर भाव को अभिव्यक्त करने के लिए आभार |
पर क्षितिज को आज तक किस ने पाया है
ReplyDeleteकिसी ने भी तो नही ,
न तुमने , न मैंने
क्षितिज कभी नही मिल पाता है
पर ;
हम ; अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर
अवश्य मिल रहें है
"kshitij ki talash or uska na milna, or fir apne pyar key hi kshitij ko pakr sntusht ho jana...kitna sehj or najuk hai ye ehsaas.....bhut hi sundr"
regards
भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteनये क्षितिज की रात दिन जारी रहे तलाश।
एक न एक दिन आयगा मुट्ठी में आकाश।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत दिनों बाद इतनी सुंदर भावपूर्ण रचनाएं पढ़ने को मिली है, बहुत सुंदर लेखन
ReplyDeleteविजय जी
ReplyDeleteक्षितिज शायद एक मृगतृष्णा ही है। प्यार एक ठोस सच्चाई है। आप एक काल्पनिक स्थिति में एक ठोस भावना को तलाश रहे हैं। शायद आप कहना चाह रहे हैं कि हम अपने ह्रदय की सच्चाई में अपना क्षितिज पा जाएंगे और क्षितिज भी एक सच्चाई बन जाएगा।
तेजेन्द्र शर्मा
कथा यूके (लन्दन)
sabne khoob taarif ki he janaab aapki, ab me kyaa kahu...kya likhu...?????????
ReplyDeletebhaav he, rachna bhi he...par sachmuch shitiz nahi he......
रिश्ते की एक अलग तरह से बयानगी बहुत अच्छी लगी बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteक्षितिज कभी नही मिल पाता है
पर ;
हम ; अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर
अवश्य मिल रहें है !
बहुत सुंदर पंक्तियां हैं
Awesome...!!! vijaykumarji, kitni sundar bhavpurna rachana apane likhi hai..
ReplyDeleteविजय जी,
ReplyDeleteक्षितिज एक मरीचिका है पर प्रेम एक अटल सत्य है जो मरीचिका को भी सत्य बना देता है प्रेम हर असम्भव को संभव बना देता है .इसलिए आपको भी जब प्रेम मिलेगा तो क्षितिज भी मिल जायेगा इन्ही शुभकामनाओं के साथ अछि रचना के लिए बधाई स्वीकार करें .
मन को छू गयी आपकी भावनाओं की सरिता. बहुत ही बढ़िया रचना.
ReplyDeleteपहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ की आपको मेरी शायरी पसंद आई!
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लॉग बहुत ही अच्छा लगा! बहुत ही सुंदर लिखा है आपने!
Bahut hi umda rachna..kshitij man ka sabse anant hai...
ReplyDeleteभावः प्रधान रचना ,वाकई क्षितिज को आज तक किसी ने नहीं पाया और न किसी बंधन के साथ क्षितिज को पाया जा सकता है
ReplyDeleteSundar abhivyakti.Badhai.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत विजय जी
ReplyDeleteइस कविता को अपनी आवाज़ में अपने संशिप्त परिचय के साथ मेरे पास भेज दें rasprabha@gmail.com
ReplyDeleteभावः भरे है पोर पोर में सुंदर इसकी अनभूति है ,,
ReplyDeleteऔर कहूँ क्या इस कविता में लेखनी आपकी अद्वति है,,,
बहुत ही वेहतरीन कविता है,,
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084