Monday, April 6, 2009

अचानक एक मोड़ पर


अचानक एक मोड़ पर , अगर हम मिले तो ,
क्या मैं , तुमसे ; तुम्हारा हाल पूछ सकता हूँ ;
तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हारे आँखों के ठहरे हुए पानी से
मेरा नाम पूछूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हारी बोलती हुई खामोशी से
मेरी दास्ताँ पूछूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तेरा हाथ थाम कर ,तेरे लिए ;

अपने खुदा से दुआ करूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हारे कंधो पर सर रखकर ,
थोड़े देर रोना चाहूं ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हे ये कहूँ ,की मैं तुम्हे ;
कभी भूल न पाया ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

आज यूँ ही तुम्हे याद कर रहा हूँ और
उस नाराजगी को याद कर रहा हूँ ;
जिसने एक अजनबी मोड़ पर ;
हमें अलग कर दिया था !!!


सुनो , क्या तुम अब भी मुझसे नाराज हो जांना !!!

31 comments:

  1. अगर मैं तेरा हाथ थाम कर ,तेरे लिए ;
    अपने खुदा से दुआ करूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

    बहुत सुन्दर बढ़िया लिखा आपने

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  2. बहुत बढ़िया..अच्छा लगा पढ़कर.

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  3. अगर मैं तेरा हाथ थाम कर ,तेरे लिए ;
    अपने खुदा से दुआ करूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

    खूब .....बहुत खूब....

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  4. सुन्दर भावनाएं संजोई हैं विजय जी...........
    बहूत खूब

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  5. पूछ की

    इतनी लंबी पूछ

    फिर भी पूछते
    पूछते

    बतला गए सब कुछ।

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  6. बहुत बढिया लिखा है।बधाई।

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  7. प्यार करने वाला कभी नाराज नही होता। बस किसी की खुशी के लिए अपनी खुशी कुरबान कर देता है।

    अगर मैं तेरा हाथ थाम कर ,तेरे लिए ;
    अपने खुदा से दुआ करूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

    सच्ची बात।

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  8. saval par savaal......
    ab bhala saamne vala inkaar kare bhi to kese???
    achcha likha he janaab.

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  9. वाह विजय जी वाह ...
    अगर मैं तुम्हारे आँखों के ठहरे हुए पानी से ...... बहोत ही कमाल के लिखा है आपने... ऐसा कथ्य तो हमारे ग़ज़ल के मिसरे में भी नहीं हो पाता है... बहोत है बढ़िया रचना मन को छू लेने वाली .. बधाई...

    अर्श

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  10. bahut hi khoobsurat ...dil pesh kiya hai aapne

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  11. vijay ji,
    kavita to aap hamesha hi achchi likhte hain magar na jaane kyun mujhe aisa laga ki maine aapki ye kavita pahle bhi padhi hai.

    aapne ye post dobara dali hai kya?

    vaise kavita bahut badhiya hai.

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  12. @vandana ji ,

    thanks for your comment . in fact agar aap meri purani poems padhengi to aapk pata chalenga ki main kuch shabd wahan se liye hai , jaise ajnabi mod par , last para , pahle bhi kahin kisi aur roop me warnit ho chuka hai shayad.. mujhe theek se yaad nahi , shayad , sannato ki awaj men..

    anyway it is good to re-explore our own poems..

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  13. विजय जी सबसे पहले तो देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ...इन दिनों जयपुर में हूँ और लेपटोप बंद है...मिष्टी की शरारतें चालू हैं...बहुत अच्छी रचना लगी आपकी...अब कोई इतनी मासूमियत से सवाल पूछेगा तो कौन नाराज़ होगा? बताईये...बहुत खूब भाई...
    नीरज

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  14. सुंदर कविता विजय जी,
    वंदना जी वाला सवाल अक्सर ही उठ रहा था,,,
    आपके उत्तर से ज्ग्यासा शांत हुयी,,,
    धन्यवाद आपका,,,
    बधाई आपको,,,

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  15. Harek pankti sundar...isse aage kuchh nahee likh sakti..
    Anek shubhkamnayen aur duayen aapke liye...

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  16. "haal" ki naarajgi se,
    "thera hua paani" ret main gir jaata hai,
    ret bhigti nahi,
    "dastaan" wahi "Haath thama tha"wali...
    ab to zindagi bhi haath chura ke ja rahi hai,
    kabhi jis zindagi ke "kandho main sar rakhkar" roye the,wahi zindagi "Naaraz" hai.

    aur usi "ajnabi mor" pe khada hoon....
    ...jahan se zindagi haath chura ke bhagi thi.

    Tum se hi to thi zindagi ....

    ...ya tum hi thi "meri zindagi"


    Bahut Bhavpoorna rachna.....
    ...aisa hi likhte rahiyea....

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  17. हृदय की भावनाओं, कलम, शब्द-चयन और अनुपम अंदाज़ का सामंजस्य इस कविता में बड़ी सुंदरता से चित्रित किया है। ऐसा लगता है जैसे शब्द चित्र बन कर सामने आरहे हैं। अंतिम पंक्तियों में बड़ी पीड़ा है।
    इसमें कोई संदेह नहीं आप बहुमुखी प्रतिभा के मालिक हैं। बस ऐसे ही लिखते रहें।

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  18. मन की सुकोमल , सुमधुर भावनाओं की
    बहुत ही मृदुल अभिव्यक्ति .....
    स्पष्ट और सच्चा आशय ........
    बानगी में श्रेष्ठ काव्यात्मक लहजा .....
    बहुत ही सुन्दर रचना .
    बधाई
    ---मुफलिस---

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  19. दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे मेरे ब्लॉग पर जाकर देखें !!

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  20. It doesn't make much sense for writing a comment after so many people have already commented on ur writing... But i would say asusual it is great and straight from the heart!!!

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  21. Vijay bhai kavita ka theme achha hai, kintu Mumbai aur Hyderabad ke rehney waley Hindi kee basic baatoN ka khayaal nahin rakh paatey kyon ki ye wahan ki boli mein shamil ho jaata hai.

    Aap ne likha hai: Agar main tumharey aankhoN ke thehrey huey paani se MERA naam poochooN...

    Ye galat Hindi Hindi hai. MaiN kabhi MERA naam nahiN poochhta hooN, Main APNA naam poochhta hooN. Theek aise hee MERI DastaaN !

    Aap apni premika ko kabhi Tum kehtey hain aur kabhi Tu. Kavita mein aam taur par sambodhan ek hee rakha jaata hai.

    Aakhir ka shabad Jaana bilkul Gair Zaroori hai aur kavita ke saath anyaaya karta hai.

    Aap dekhengey ki Neeraj Goswami jaise log aap kee tareef kartey hain magar aap ki Kavita par gehri tippni nahin kartey. Ye unki shishtata hai. And then he is a ghazalkaar and not a critic.

    Inn chhoti chhoti galatiyoN ka mukhya kaaran hai chhapney ki jaldi. Aap kavita likhney ke baad ek saptah ke liye usey rakh dein. Phir padheiN. Aap ko swayam ye baareeq trutiaaN dikhayee dengi aur aap achhey khayaal ko flawless tareequey se pesh kar sakengey.

    sapashatvadita ke liye kshama. Aapke baaki mitroN se bhee kshama yachana ke saath.

    Tejendra Sharma

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  22. bahut sunder shabdo main apney pyar or use sey dubara milney ki bhav really bahut hi sunder hain.......har bhav ko bahut hi sunder tarah sey prakat kiya hai.............

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  23. इतना सब सुनने के बाद भी कोई नाराज रह सकता है भला !

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  24. आज यूँ ही तुम्हे याद कर रहा हूँ और
    उस नाराजगी को याद कर रहा हूँ ;
    जिसने एक अजनबी मोड़ पर ;
    हमें अलग कर दिया था !!!

    वाह जी वाह विजय जी वैसे कविता तो आपकी हमेशा से ही अच्‍छी होती हैं मन को हर लेती हैं

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  25. Adarneey Vijay ji,
    bahut samvedanatmak..evam arthpoorna kavita.badhai.
    Poonam

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  26. अगर मैं तेरा हाथ थाम कर ,तेरे लिए ;
    अपने खुदा से दुआ करूँ ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

    bahut hi khubsurat bhaav liye hue panktiyan hain!
    bahut khuub!

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  27. वाह वाह क्या बात है ! बहुत खूब लिखा है आपने !

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  28. bahut hi sundar jaise apane hamare mann ki baat pesh ki..

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  29. aapki is kavita par comment karne ke liye shabd nahi hain.. vaakai dil ke bahut kareeb se likhi gayi hai aur dil ko choone waali kavita hai..

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  30. maryadao,smaj ke dr se narazgi dikhade shayad ,
    pr itni shiddat se ,itne samay baad bhi "wo"dhdkn bn dhdkti hai aap ke dil me,kyo naraz hogi ?
    har koi chahta hai ki use bhi chahe koi paglon ki tarah aur
    wo bn kr kavita hi sahi , qaid ho jaye apne priy ki dairy ke prishthon me kahin.................
    bahut pyari kvita

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