Sunday, November 29, 2009
मेरा कुछ सामान
दोस्तों ,बहुत दिनों से कुछ उलझा हुआ था ज़िन्दगी की कशमकश में , और अब , जब लगने लगा की ,मुझमे और मेरी कविताओ में दूरी बढ़ते जा रही है ,तो आज कुछ लिखा ! इस छोटी सी नज़्म को आपकी महफ़िल में नज़र करता हूँ , और उम्मीद करता हूँ की ,हमेशा कि तरह ,आप सभी अपना प्यार और आशीर्वाद से मुझे नवाजेंगे !!!
मेरा कुछ सामान
कुछ दिन पहले मेरा कुछ सामान
मैंने तुम्हारे पास रख छोडा था !
वो पहली नज़र ..
जिससे तुम्हे मैंने देखा था ;
मैं अब तक तुम्हे देख रहा हूँ..
वो पहली बार तुम्हे छूना..
वो तुम्हारे नर्म लबो के अहसास आज भी
अक्सर मुझे रातों को जगा देते है ..
वो सारी रात चाँद तारो को देखना ..
वो सारी सारी रात बाते करना ....
मैं अब भी तुम्हे चाँद में ढूंढता हूँ
वो तुम्हारे काँधे के पार मेरा देखना...
वो तुम्हारा खुलकर मुस्कराना
तुम्हारी मुस्कान अब तक मेरा सहारा बनी हुई है
वो साथ साथ दुनिया को देखना ..
वो पानी में खेलना और गलियों में भटकना ...
तेरे साथ का साया अब तक मेरे साथ है
वो तुम्हारी आँखों की गहरयियो में झांकना ..
वो तुम्हारी गुनगुनाहट को सुनना ...
वो तुम्हे जानना ,तुम्हे पहचानना
वो तुम्हारे कदमो की आहट ..
वो मेरे हाथो का स्पर्श ....
वो हमारा मिलना और जुदा होना
वो मेरा बोलना , वो तुम्हारा सुनना ..
वो मौन में उतरती बाते
वो चुपचाप गहराती राते
वो कविता ....वो गीत ..
वो शब्द ,वो ख़त ,
तुम्हारे लिखे ख़त अब , मेरी साँसे बनी हुई है
वो ढलती हुई शाम ..
वो उगता हुआ सूरज
वो ज़िन्दगी का चुपचाप गुजरना
वो तुम्हारा आना ..
वो तुम्हारा जाना ...
वो ये ;
वो वो .............
जाने क्या क्या ....
इन सब के साथ ,
मेरे कुछ आंसू भी है जांना तुम्हारे पास......
तुम्हे कसम है हमारी मोहब्बत की
मेरा सामान कभी वापस न करना मुझे !!!
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बहुत सुंदर कविता ....मन को छू गई.....
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर व कोमल अनुभूति.
ReplyDeleteकौन कम्बखत प्रेमिका को अपना सामान वापिस लौटाने को देता है. समान लौटा समझो प्यार गया सो सामान लेने का नही देने का. प्रेमिका की यादे कौन भूलना चाहेगा लेकिन हा कौनसी याद किस प्रेमिका की है ये तो याद करना ही पदेगा ना. नही तो पता चला कि हरि शर्मा गलत जगह पर सही मन्त्र पढते पिटते भये.
ReplyDeleteरचना भाव और कथ्य के गहरे समन्दर मे खीच ले जाती है और अपना सब सामान भी प्रेमिका को देकर
वाह क्या बात है, बहुत सुंदर ओर भाव से भरी रचना,धन्यवाद
ReplyDeleteमासूम सी कविता पर यह आधुनिक सी हरि शर्मा की टिप्पणी - मानो काजल का टीका!
ReplyDeleteप्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteAise ehsaas kayiyon ne apne seeneme dafnake rakhe honge..aapne alfaaz ka haar pahna diya!
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
"वो कविता ....वो गीत ..
ReplyDeleteवो शब्द ,वो ख़त ,
तुम्हारे लिखे ख़त अब , मेरी साँसे बनी हुई है"
पूरी कविता में अजब सा गुनगुना एहसास, और इन पंक्तियों ने तो गजब ही कर दिया । साँस कैसे जुदा हो, तो खत अब श्वांस-निधि बन गये हैं । आभार ।
vijay ji,
ReplyDeletekavita kya hai apne aap mein ek premi ke dil ki tasveer kheench gayi hai.........uske har pal ka hisab de gayi hai.....premi ke pal pal par kaise premika ke prem ne kabza kiya hua hai, uske har bhav ko darshati hai........bahut hi sundar bhavon se saji kavita.........badhayi.
aapki pareshaniyan jab door ho jayein tab kabhi hamare blog par bhi nazar daliyega ..........aapke intzaar mein hai.
badhiyaa
ReplyDeleteविजय जी,
ReplyDeleteजैसे आजकल आपका मन नहीं है कवितायें लिखने का वैसे ही हमारा भी नहीं है....
लेकिन कविता लिखनी आपके लिए ज्यादा जरूरी है बनिस्बत हमारे...
अपनी तो जैसे तैसे....
थोड़ी ऐसे या वैसे...
खैर.....
इस कविता की सबसे अच्छी बात ये लगी ...
तुम्हे कसम है हमारी मोहब्बत की
मेरा सामान कभी वापस न करना मुझे !!!
बहुत अच्छे लगे ये भाव....!!!
विजय जी,
ReplyDeleteजैसे आजकल आपका मन नहीं है कवितायें लिखने का वैसे ही हमारा भी नहीं है....
लेकिन कविता लिखनी आपके लिए ज्यादा जरूरी है बनिस्बत हमारे...
अपनी तो जैसे तैसे....
थोड़ी ऐसे या वैसे...
खैर.....
इस कविता की सबसे अच्छी बात ये लगी ...
तुम्हे कसम है हमारी मोहब्बत की
मेरा सामान कभी वापस न करना मुझे !!!
बहुत अच्छे लगे ये भाव....!!!
Bahut samay baad aapne koi rachna likhi hai ... bahut hi sashakt, lajawaab aur gahre arth liye hai aapki rachna .... gahre prem ki abhivyakti ....
ReplyDeleteकाफी दिनों बाद लिखा विजय जी...
ReplyDeleteमगर बेहतरीन लिखा...
बहुत सुंदर...
प्रेम में रंगी हुयी.. पूरी तरह प्रेम में ही डूबी हुयी कविता...
जारी रखिये...
मीत
AApke pyare se pyar ko humara pyara sa ...
ReplyDeleteAApka Neelesh
Dear Sir,
ReplyDeleteBahut khoob kaha hai. Ehsason ko sparsh karne ki baat hai, prem men premi ka saman koi lauta bi nahi pata hai.
"man let hain det chhatank nahi"
विजय जी देर से ही सही ब्लॉग जगत में वापसी पर स्वागत है...ज़िन्दगी की जद्दोजेहद में कौन नहीं फंसा हुआ...आप कोई अपवाद नहीं हैं इसलिए निराश ना हुआ करें...लड़ा करें...आपकी रचना में भी निराशा के भाव हैं और अति भावुकता है जो हकीकत से कोसों दूर है...आप कविता लिखें जिसमें आशा का सूरज जगमगाता हो...मेरी बात बुरी लगी हो तो क्षमा करें...मैं सिर्फ वाह वाह कर के आप के ब्लॉग से नहीं जा सकता जो मन में आता है उसे व्यक्त करता हूँ, क्यूँ की अपना रिश्ता ही कुछ ऐसा है...और ये अधिकार भी आपने ही मुझे दिया है.
ReplyDeleteनीरज
अजी जनाब इसे सिर्फ कविता कह कर छोटा न बनाए.मैंने तो इस ही में एक जिदगी फिर से जी ली है.भावविभोर हो गयी हूँ .लिखने में कितना ही समय क्यों न लगा हो पर क्षण भर में ही एक जिन्दगी जी ली है और आगे के लिए फिर तैयार हूँ सुंदर प्रस्तुती के लिए बधाई
ReplyDeleterecd by email from Mr. Neelesh.....
ReplyDeleteAapki kavita mein masoom aur pak mohabbat ke ravangi hai...uparwala ise barkaraar rakhe.
Aapka
Neelesh
वाकई बहुत ही सुन्दर कविता...आज ही आपका ब्लाग मिला काश...पहले मिलाता ..कोई बात नहीं देर से आए दुरुस्त आए..बधाई..बधाई...और बधाई..
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