Sunday, May 9, 2010

मां

दोस्तों , करीब २ साल पहले मैंने ये कविता लिखी थी , आज mother's day पर फिर से ये कविता ब्लॉग पर दे रहा हूं . मेरी माँ नहीं है और मुझे हमेशा ही माँ की जरुरत  रही है .. ... मैंने ईश्वर को नहीं देखा  ,लेकिन माँ को देखा है .. और मुझे लगता है की माँ ही ईश्वर का सच्चा स्वरुप है .. मेरी ये कविता दुनिया के सारी माताओ को समर्पित है .......मुझे ये लगता है की हर इंसान मूलभूत रूप से अपनी माँ का ही साया होता है ,ज़िन्दगी की राह पर... माँ शब्द ही जादू से भरा है .. इतनी राहत देने वाला और शांत करने वाला दूसरा शब्द कोई और नहीं है ... माँ .तुझे  प्रणाम !!!

मां

आज गाँव से एक तार आया है !
लिखा है कि ,
माँ गुजर गई........!!

इन तीन शब्दों ने मेरे अंधे कदमो की ,
दौड़ को रोक लिया है !

और मैं इस बड़े से शहर में
अपने छोटे से घर की
खिड़की से बाहर झाँक रहा हूँ
और सोच रहा हूँ ...
मैंने अपनी ही दुनिया में जिलावतन हो गया हूँ ....!!!

ये वही कदमो की दौड़ थी ,
जिन्होंने मेरे गाँव को छोड़कर
शहर की भीड़ में खो जाने की शुरुवात की ...

बड़े बरसो की बात है ..
माँ ने बहुत रोका था ..
कहा था मत जईयो शहर मा
मैं कैसे रहूंगी तेरे बिना ..
पर मैं नही माना ..

रात को चुल्हे से रोटी उतार कर माँ
अपने आँसुओं की बूंदों से बचाकर
मुझे देती जाती थी ,
और रोती जाती थी.....

मुझे याद नही कि
किसी और ने मुझे
मेरी माँ जैसा खाना खिलाया हो...

मैं गाँव छोड़कर यहाँ आ गया
किसी पराई दुनिया में खो गया.
कौन अपना , कौन पराया
किसी को जान न पाया .

माँ की चिट्ठियाँ आती रही
मैं अपनी दुनिया में गहरे डूबता ही रहा..

मुझे इस दौड़ में
कभी भी , मुझे मेरे इस शहर में ...
न तो मेरे गाँव की नहर मिली
न तो कोई मेरे इंतज़ार में रोता मिला
न किसी ने माँ की तरह कभी खाना खिलाया
न किसी को कभी मेरी कोई परवाह नही हुई.....

शहर की भीड़ में , अक्सर मैं अपने आप को ही ढूंढता हूँ
किसी अपने की तस्वीर की झलक ढूंढता हूँ
और रातों को , जब हर किसी की तलाश ख़तम होती है
तो अपनी माँ के लिए जार जार रोता हूँ ....

अक्सर जब रातों को अकेला सोता था
तब माँ की गोद याद आती थी ..
मेरे आंसू मुझसे कहते थे कि
वापस चल अपने गाँव में
अपनी मां कि गोद में ...

पर मैं अपने अंधे क़दमों की दौड़
को न रोक पाया ...

आज , मैं तनहा हो चुका हूँ
पूरी तरह से..

कोई नही , अब मुझे
कोई चिट्टी लिखने वाला
कोई नही , अब मुझे
प्यार से बुलाने वाला
कोई नही , अब मुझे
अपने हाथों से खाना खिलाने वाला..

मेरी मां क्या मर गई...
मुझे लगा मेरा पूरा गाँव मर गया....
मेरा हर कोई मर गया ..
मैं ही मर गया .....

इतनी बड़ी दुनिया में ; मैं जिलावतन हो गया !!!!!

25 comments:

  1. मैं सोचता हूँ कि अभी मेरे पास समय है.......
    और मैं सोच रहा हूँ..............
    और मैं सोच रहा हूँ..............
    और मैं सोच रहा हूँ..............
    और मैं सोच रहा हूँ..............

    ReplyDelete
  2. सुंदर भावों से परिपूर्ण रचना ...मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

    ReplyDelete
  3. rula diya aapne...sach hai jab waqt rehta hai kisi ki ehmiyat samajh nahi paate...

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुन्दर भाव वा लाजवाब कविता लगी , ।

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर
    मातृ दिवस के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और मेरी ओर से देश की सभी माताओं को सादर प्रणाम |

    ReplyDelete
  6. भावों से सनी एक सुंदर कविता के लिये आपका धन्यवाद
    मा तृ दिवस पर सभी माताओं को नमन.

    ReplyDelete
  7. संसार की समस्त माताओं को नमन

    ReplyDelete
  8. दुखों की कड़ी धूप में माँ , शीतलता का एहसास है
    अगर माँ हमारे पास है, तो सारी दुनिया पास है
    माँ से सच्चा दोस्त कोई नहीं है. माँ से प्यारा और कोई नहीं है. बेटा कैसा भी हो माँ के दिल से दुआएं ही निकलती है. इसलिए माँ से महान और कोई नहीं है. अगर माँ को परता:काल देख लिया तो भागवान को देख लिया.
    आपकी कविता ने आँखें नाम कर दी. और कुछ नहीं लिख सकता ........

    ReplyDelete
  9. ह्रदय से निकले भावो से लिखी गई बहुत अच्छी कविता है. विजय जी .

    --

    Usman Ali Khan | C G Artist | (Mumbai).

    usman.max@gmail.com | Cell: +08080335573
    http://artoonistkhan.blogspot.com

    ReplyDelete
  10. मां से बंधे रहते है सब रिश्ते.... जब मां मरती है तो बहुत कुछ साथ मै मर जाता है.
    बहुत सुंदर कविता कही आप ने. धन्यवाद

    ReplyDelete
  11. माँ............ क्या क्या नहीं करती माँ अपने बच्चे के लिये पर कभी भी जताती नहीं ।माँ सिर्फ देना जानती है लेना नहीं

    ReplyDelete
  12. माँ की याद ने आँखों को कई बार धुँधला कर दिया होगा और गले में कुछ अटक सा गया होगा तब जाकर यह मर्मस्पर्शी रचना पूरी हो पाई होगी...मातृ-दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ..

    ReplyDelete
  13. भावपूर्ण रचना
    माँ तुम सिर्फ माँ हो
    तुम्हारी ममता को नमन

    ReplyDelete
  14. bahut sundar bhavavyakti........maa ko naman.

    ReplyDelete
  15. माँ जैसा खाना कोई और नहीं खिला सकता ...
    बिलकुल सही ...
    माँ क्या मर गयी ...पूरा गाँव मर गया ...मेरा हर कोई मर गया ...
    ऐसा ही लगता होगा जरुर ...!!

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर. भावप्रवण रचना. दिल को छू गी आपकी रचना.

    ReplyDelete
  17. Bhai,Maa ne bahut dukh dekhe. Aaj hamari success dekhane ke liye nahi hai maa!

    ReplyDelete
  18. विजय जी..अंडमान में अपने माँ की याद दिला दी..बेहतरीन रचना..बधाई.

    ***************

    'शब्द सृजन की ओर' पर 10 मई 1857 की याद में..आप भी शामिल हों.

    ReplyDelete
  19. bahut hi emotional kar dene vali rachna hai... sundar shabdo se sajayi hui...
    \thnx

    ReplyDelete
  20. bahut khoob likha hain mitravar aapne "main sochta hoon ki mere paas samay hain"bahut hi badhiya

    ReplyDelete
  21. Thank u for writting it n make me think that i shd nt argue wid her... i'll tell her today only dat i love her... thanks a lot...

    ReplyDelete
  22. Kahin padha k... "Maa tab bhi roti thi jab beta bhukha sota tha aur maa ab bhi roti hai jab beta khana nahi deta"

    ReplyDelete
  23. ma jaisa koi nahi ..ek bhavpurn sundar kavita

    ReplyDelete
  24. sir aapne kya likha h bus sab kuch bhul gaya....maa ki mamta value apne kabitaao se jaga diya.....
    sir u r great, i am a student of MBA last year but i like poem....bus sir aap likhte rehna.... kaushal(pawan)kumar, 9999285507,New Delhi.

    THANK U SIR......

    ReplyDelete

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...