Tuesday, August 17, 2010

कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ कि तुम मेरे हो ....

तुम.....
किसी दुसरी ज़िन्दगी का एहसास हो ..
कुछ पराये सपनो की खुशबु हो ..
कोई पुरानी फरियाद हो ..
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो
किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो
किसी सड़क पर ठहरा हुआ कोई मोड़ हो
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी अजनबी रिश्ते की आंच हो
किसी अनजानी धड़कन का नाम हो
किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी आंसू में रुखी हुई सिसकी हो
किसी खामोशी के जज्बात हो
किसी मोड़ पर छूटा हुआ हाथ हो
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...  हां,  तुम ........
हां , मेरे अपने सपनो में तुम हो
हां,  मेरी आखरी फरियाद तुम हो
हां, मेरी अपनी ज़िन्दगी का एहसास हो ...
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ कि तुम मेरे  हो ....
 
हां,  तुम मेरे  हो ....
हां,  तुम मेरे  हो ....
हां,  तुम मेरे  हो ....

40 comments:

  1. तुम... हां, तुम ........हां , मेरे अपने सपनो में तुम हो हां, मेरी आखरी फरियाद तुम हो हां, मेरी अपनी ज़िन्दगी का एहसास हो ...कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ कि तुम मेरे हो .... हां, तुम मेरे हो ....हां, तुम मेरे हो ....हां, तुम मेरे हो ....

    क्या कहूं अब इस अहसास पर्……………
    क्या कहूँ अब इस जज़्बात पर्……………
    दिल की धडकनों के धडकाव पर्……………
    इन मासूम ख्यालात पर ………………
    अब कैसे और क्या कहूँ………………
    कुछ तो अधूरा रह गया………………
    पर साथ पूरा हो गया…………………
    तेरे बिन भी और तेरे साथ भी…………


    अब इससे ज्यादा नही कह सकती विजय जी……………भावों को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है…………दिल मे उतर गये हैं।
    अब आप अपने पुराने रंग मे आ गये हैं तो हम पाठको को भी अच्छा लग रहा है।

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  2. बहुत भावपू्र्ण रचना है। बहुत बढिया!!

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  3. Sundar aur sahaj bhavabhivyakti ke
    liye badhaaee.

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  4. सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना.

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  5. अति सुंदर भाव पुर्ण कविता जी. धन्यवाद

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  6. मन के भावो को सच्चाई से उकेरा है.
    सुंदर अभिव्यक्ति.

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  7. Bahut sundar hai...

    kisi mod pe chhutaa huaa haath ho!!!!

    Kyaa baat hai.

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  8. तुम,
    भूलना संभव ही नहीं।
    दमदार रचना।

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  9. धांसू रचना ... बहुत सुंदर कविता है....

    you are ग्रेट...

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  10. विजय जी दिल से लिखी रचना है...हमेशा की तरह अच्छी...लेकिन आप इस से और अच्छी लिखने की क्षमता रखते हैं...
    नीरज

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  11. Recd. By Email from Mr. Sripad...

    very nice poem in hindi..all your feelings melted into this poem..so sweet.your soul is searching something..tum ho..haan haan tum ho.

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  12. recd. by email from Mrs.shalaka kulkarni

    vijay ji,
    Kavita padhi.
    Bahut hi sahaj aur sundar kavita.

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  13. recd. by email from Mr. kimatu..

    बहोत बढिया विजयजी...ऐसे ही लिखते रहिये :)

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  14. recd by email from Bhartiyam ...

    kavita me nijata ki anubhuti hai. Shubhkamnaye.

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  15. आपकी कविता की तरह ब्‍लॉग सौन्‍दर्य भी लुभावना है।

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  16. सुंदर अभिव्यक्ति.

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  17. हर बार की तरह इस बार भी आपकी कविता में बहुत गहराई है। इस सुंदर रचना के लिए आभार।

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  18. वाह..वाह. फिर से एक लाजवाब रचना लिखी आपने। मेरा सुझाव है कि आप इन सारी रचनाओं को एक किताब की शक्ल दीजिए और अगर किताब न भी छाप सकें, तो पीडीएफ बनवा के उसे साहित्य अकादमी को भेजिये।

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  19. aahista aahista...man ko bharti ek sundar rachna

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  20. विजय कुमार सप्पत्ती जी
    नमस्कार !

    तुम...किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो
    किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो

    किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो
    प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी कविता में ।
    बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें !
    हिंदी में और भी श्रेष्ठ सृजन के लिए शुभकामनाएं हैं !
    इस यात्रा में ठहराव नहीं आना चाहिए ।
    शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा …

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  21. और हां ,
    ब्लॉग की साज सज्जा आपके सौंदर्य बोध पर मोहर लगा रही है ।


    पुनः बधाई !!


    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  22. itni shiddat itna samarpan or laybadd khoobsurat kavita mein dhali huii chahat

    javab nahii lajavab

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  23. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  24. बहुत भावपू्र्ण रचना, सुन्दर अभिव्यक्ति है।

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  25. ठीक है विजय भाई मान लेते हैं, पर ये तो बताओ कि तुम्हारे वो हैं कौन?

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  26. ठीक है विजय भाई मान लेते हैं, पर ये तो बताओ कि तुम्हारे वो हैं कौन?

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  27. इस अद्भुत गीत को अपने स्वर में गाकर यदि आप पाडकास्ट करते तो सुनने का क्या आनंद होता....सोच रही हूँ....

    क्या आप अपने असंख्य प्रशंसकों के लिए ऐसा कर सकते हैं ???? हम आपके तहे दिल से आभारी रहेंगे...

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  28. कविता अच्छी है मार्मिक भी क्या कोई इस तरह भी सोचता है......।

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  29. भावपूर्ण अभिव्यक्ति................ इंसान जब किसी के एहसास में डूबा हो तो हर जगह बस वही नज़र आता है..............

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  30. बहुत ही कोमल भावों से परिपूर्ण रचना है ! मन को छूती इस सुन्दर रचना को आपने बहुत ही सूक्ष्मता से अनुपम अभिव्यक्ति दी है ! मेरी शुभकामनाएं एवं आभार स्वीकार कीजिये !

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  31. बढिया और भावपूर्ण रचना ।

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  32. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! उम्दा प्रस्तुती !

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  33. क्या बात है विजय जी हमेशा की तरह दिल की गहराईयो से लिखते है आप....सुन्दर रचना...बहुत-बहुत बधाई!

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  34. recd by email from Mrs. shilpa ,,,,,



    Bhai shri vijayji,
    Namaste,

    '' Meri akhari Fariyad ho tum
    Phir iske baad koi shikayat nahi.''

    ye mera sher aapki kavita ka dard mahsoos kar raha hai.kavita hamesha
    ki tarah achhi hai.badhai.

    Regards,
    Shilpa

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  35. रक्षा बंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  36. सलाम है कवि की कल्पना को ... सच कहा है जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि ....
    मुझे तो तुम ही तुम नज़र आ रही हो .... कविता अपने अपने एहसास में डुबो जाती है .. हर कोई अपना सोचने लगता है ... बहुत खूब रचना ...

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