Tuesday, December 7, 2010

" प्यार "

सुना है कि मुझे कुछ हो गया था...

बहुत दर्द होता था मुझे,
सोचता था, कोई खुदा ;
तुम्हारे नाम का फाहा ही रख दे मेरे दर्द पर…

 
कोई दवा काम ना देती थी…
कोई दुआ असर न करती थी…

 
और फिर मैं मर गया ।

जब मेरी कब्र बन रही थी,
तो;
मैंने पूछा कि मुझे हुआ क्या था।
लोगो ने कहा;
" प्यार "

 

14 comments:

  1. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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  2. बच के रहना चाहिये था ना इस नामुराद बीमारी से …………देखा जान गंवानी पडी………………कितना बुरा रोग है जिसमे इंसान को पता ही नही चलता कि उसे हुआ क्या है और उसका इलाज क्या है……………कोई वैद्य , कोई हकीम काम नही आता।

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  3. काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
    बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ

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  4. hay hay hay

    mar hi dala..............

    aanand aa gaya

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  5. जिंदगी का असल सच कहा है आपने कविता के माध्यम से ... बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ....आभार

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  6. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ...।

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  7. Pyaar k sath ye badi samasya h k pata hi nahi chalta.. hum maleria ya aisa hi koi rog samajh k amma k kadha piye jate hain aur mann ki mithas us kaadhe ki kadwahat me ghulti rehti h.. iske lie bhi koi software banna chahiye.. :)

    Lajawab kavita.. its always a pleasure reading you :)

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  8. बहुत सुन्दर रचना है बधाई।

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  9. बहुत सुन्दर हश्र हुआ है, प्यार का।

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  10. प्यार होता ही ऐसा है ...........

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  11. bahut sunder... saade lafzon mein gehre ehsaas!

    mere blog pe aane aur protsahan ke liye bahut bahut shukriya :-)

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  12. बहुत सुन्दर लिखा आपने...बधाई.
    ______________
    'पाखी की दुनिया' में छोटी बहना के साथ मस्ती और मेरी नई ड्रेस

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  13. वाह! प्यार में उसके नाम का फाहा!

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  14. जब प्यार का फाहा पड़ता है तो मुर्दे भी जी उठतें हैं ...ऐसा सभी कहते हैं . पर ..खैर रचना के दृष्टीकोण से अति सुन्दर .. मनभावन .आपको शुभकामना

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